15 नवम्बर 2020 को सुबह-सुबह जब डॉ. मीना नक़वी जी के निधन का अत्यधिक दुखद समाचार सुना तो दिल धक से रह गया। सहसा विश्वास ही नहीं हुआ, लेकिन सच तो सच होता है। मीना नक़वी जी एक उत्कृष्ट रचनाकार होने के साथ साथ एक बहुत अच्छी इंसान भी थीं। उर्दू में शानदार और विशिष्ट अंदाज की शायरी करने वाली मीना जी का हिन्दी में भी महत्वपूर्ण सृजन रहा। उनकी आत्मीयता जीवनपर्यन्त शब्दातीत रही। डॉ. मीना नक़वी के नाम से अदबी दुनिया में बखूबी पहचानी जाने वाली ज़िला बिजनौर की तहसील नगीना में 20 मई,1955 को जन्मी और वर्तमान में ज़िला मुरादाबाद के अग़वानपुर कस्बे में चिकित्सकीय वृत्ति से जुड़ी डॉ. मुनीर ज़ह्रा की शायरी के ज़र्रे-ज़र्रे में बसने वाली तहजीब और हिन्दुस्तानियत उनकी ग़ज़लों को इतिहास की ज़रूरत बनाती है। दरअस्ल उनके अश’आर में ना तो अरबी-फारसी की इज़ाफ़त वाले अल्फ़ाज़ घुसपैठ करतेे हैं और ना ही संस्कृतनिष्ठ हिन्दी के शब्द। उनकी शायरी को पढ़ने और समझने के लिए किसी शब्दकोष की ज़रूरत नहीं पड़ती। ग़ज़ल एक मुश्किल काव्य विधा है जिसमें छंद का अनुशासन भी ज़रूरी है और कहन का सलीक़ा भी। इसे इशारे की आर्ट भी कहा गया है। डॉ. मीना जी का शे’र देखें-
‘यूँ तो कुछ भी नहीं अयां मुझमें
है मगर कहक निहां मुझमें
रब्त रखते हुए ज़मीन के साथ
जज़्ब है सारा आसमां मुझमें’
ग़ज़ल की विशेषता ही यही है कि उसमें मुहब्बत की कशिश और कसक के कोमल अहसास की ज़िन्दादिली से परंपरागत अभिव्यक्ति के साथ-साथ पारिवारिक-सामाजिक सरोकार और समकालीन यथार्थ भी पूरी संवेदनशीलता से अभिव्यक्त होता रहा हैे। डॉ. मीना नक़वी की शायरी में भी इश्क, जुदाई, अना, फलसफा, मश्वरे और फ़िक्र-ओ-फ़न इस अहसास की चाशनी में पगकर अपनी विलक्षण मिठास के साथ मौजूद रहते हैं। शायद इसीलिए कराची (पाकिस्तान) के प्रसिद्ध लेखक जनाब अली मुजम्मिल डॉ. मीना नक़वी को साक्षात शायरी मानते हुए कहते हैं कि ‘उनकी शायरी के कलापक्ष और भावपक्ष दोनों ही मजबूत हैं, परम्परा में आधुनिकता का समावेश है....पाठक को हर मिसरा अपने दिल तक पहुंचता हुआ महसूस होता है।’ इन अश’आर में उनका अंदाज़-ए-बयाँ काबिल-ए-ग़ौर है-
‘बुलंदी टूट जाती है ज़रा से ज़लज़ले से ही
ज़मीं जब आसमानों पर पलटकर वार करती है’
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‘कामना अब याचना से यातना तक आ गई
रक्तरंजित देह को उपचार तक लाएगा कौन
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‘वक़्त के जलते हुए सूरज की तपती धूप में
उसकी यादों के शज़र हैं साएबानी के लिए’
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‘तेरी वफ़ाओं पे इतना यक़ीन हो मुझको
तू झूठ बोले मुझे एतबार आ जाए’
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अच्छे अश्आर मन-मस्तिष्क पर अपनी आहट से ऐसी अमिट छाप छोड़ जाते हैं जिनकी अनुगूँज काफी समय तक मन को झकझोरती रहती है। डॉ. मीना नक़वी की शायरी भी अपनी ऐसी ही ख़ूबसूरत आहटों की गूँज के लिए जानी जाती है। उर्दू के मशहूर शायर निदा फाज़ली कहते हैं - ‘ग़ज़ल मीनाकारी की कला है जिसमें केवल शब्दों से ही नहीं, शब्दों में शामिल अक्षरों की ध्वनियाँ, क़ाफ़ियों की ताल, छंद की चाल के माध्यम से भी बात की जाती है। यह एक ऐसी विधा है जो ख़ामोशियों की ज़ुबान में बोलती है और फ़िक्र को जज़्बे की तराज़ू में तोलती है।’ उर्दू शायरों की लम्बी फेहरिस्त में चंद लोग ही हैं जो ग़ज़ल को कहने में इन शर्तों का निर्वहन ईमानदारी से करते हैं। डॉ. मीना नक़वी का नाम ग़ज़ल-लेखन परंपरा के ऐसे ही चंद रचनाकारों में अदबी अहमियत के साथ शुमार होता है जिन्होंने छंद के अनुशासन का निर्वाह करते हुए ख़ूबसूरत कहन के साथ ग़ज़ल को नई पहचान दी। उनकी ग़ज़लों में कथ्य की ताज़गी, ग़ज़लियत की ख़ुशबू और भाषाई मिठास एक साथ गुंथी हुई मिलती ही हैं, कहीं-कहीं प्रतिरोध का स्वर भी मुखरित होता हुआ दिखाई देता है। एक शे’र देखिए-
‘हमें ही बेवफ़ा कहकर किनारा कर लिया उसने
हमारी ज़ात पर इससे बड़ा इल्ज़ाम क्या होगा’
डॉ. मीना नक़वी की शायरी में काव्य के विविध रंग मिलते हैं, वह कभी ज़िन्दगी का फलसफ़ा समझाती हैं और कभी प्रेम की अनुभूतियाँ। नारी-मन की व्यथा को भी उन्होंने अपनी अलग ही शैली में अभिव्यक्ति दी है। दहेज की समस्या और कन्या भ्रूण हत्या जैसे अतिसंवेदनशील मुद्दे नारी अस्मिता से तो जुड़े हुए हैं ही साथ ही आज के तथाकथित रूप से विकसित व शिक्षित समाज के मुंह पर एक तमाचा भी हैं, कन्या भ्रूण हत्या के संदर्भ में समाज की भूमिका पर कटाक्ष करते हुए बड़ी बेबाक़ी से वह कहती हैं-
‘यह तो अच्छा हुआ कलियों का गला घोंट दिया
वरना ख़ुशबू भी हवाओं में बिखर सकती थी’
वर्तमान में समाज चाहे कितना ही विकसित क्यों ना हो गया हो लेकिन कुछ सन्दर्भों में समाज आज भी कुंठित मानसिकता और वही पुरानी दकियानूसी रूढ़िवादिताओं के चक्रव्यूह में फँसा हुआ है, उसकी सोच में बदलाव नहीं हो सका। दहेज की समस्या भी आज उसी मजबूती के साथ समाज में बनी हुई है जितनी दशकों और सदियों पहले अपने विद्रूप रूप में थी। आज भी दहेज के कारण अनेक परिवार बिखर रहे हैं, अनेक बेटियाँ दहेज-हत्या का शिकार हो रही हैं। दहेज हत्या की पीड़ा को मीना जी की संवेदनशील लेखनी कुछ इस तरह से बयां करती है-
‘बहू ज़िन्दा जला दी जाती है इस बात को सुनकर
मेरी मासूम बेटी शादी से इंकार करती है’
साथ ही तथाकथित आधुनिकता का लबादा ओढे आज के समाज की स्याह मानसिकता को उजागर करते हुए एक संवेदनशील रचनाकार की अनुभूति और कडुवी सच्चाई को अपने शे’र में ढालकर वह कहती हैं-
‘तअल्लुक़ हो न हो, ज़रदार से फिर भी तअल्लुक़ है
हो मुफ़लिस भाई तो रिश्ता बताना भूल जाते हैं’
वहीं दूसरी ओर आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता सांप्रदायिक-सद्भाव की बात को वह बिल्कुल अनूठे अंदाज़ में अभिव्यक्त करती हैं-
‘है अज़ाँ अल्लाह की और आरती है राम की
गूँज है दोनों में लेकिन प्यार के पैग़ाम की’
डॉ. मीना नक़वी के रचनाकर्म के संदर्भ में अपनी टिप्पणी के माध्यम से जहाँ एक ओर मशहूर शायर बड़े भाई श्री कृष्ण कुमार ‘नाज़’ ने उनको दर्द को थपकियाँ देकर सुलाने का हुनर जानने वाली शायरा बताया है वहीं दूसरी ओर वरिष्ठ नवगीतकार श्री माहेश्वर तिवारी उन्हें भारत की परवीन शाकिर मानते हैं। दरअस्ल डॉ. मीना नक़वी की शायरी अलग अंदाज़ की शायरी है, ख़ुशबू के सफ़र की शायरी है। ज़िन्दगी के ऊँचे-नीचे रास्तों पर चलते हुए उनकी अनुभूतियाँ अपने आप शायरी में ढलती गईं और ये शे’र यथासमय उनकी ग़ज़लों के अंग बनते गए। तीन विषयों- हिन्दी, अंग्रेज़ी और संस्कृत में परास्नातक डॉ. नक़वी की अब तक नौ कृतियाँ- ‘साएबान’, ‘बादबान’, ‘जागती आँखें’ (तीनों उर्दू में), ‘दर्द पतझड़ का’, ‘धूप-छाँव’, ‘किरचियाँ दर्द की’ (देवनागरी और उर्दू दोनों में) तथा ‘आईना’ प्रकाशित, पुरस्कृत और साहित्य जगत में पर्याप्त चर्चित हो चुकीं हैं। अपनेे महत्वपूर्ण कृतित्व के लिए मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी, बिहार उर्दू अकादमी, बज़्मे अदब जालंधर, नज़र अकादमी मुरादाबाद, रामकिशन सिंघल ट्रस्ट शिवपुरी, साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ मुरादाबाद, क़ैफ मैमोरियल सोसाइटी मुरादाबाद, अखिल भारतीय साहित्य कला मंच मुरादाबाद सहित अनेक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर सम्मानित तथा भारत-भर ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मुशायरों के मंचों पर अपनी बेशक़ीमती शायरी से प्रतिष्ठा पाने वाली डॉ. मीना नक़वी की महत्वपूर्ण रचनाधर्मिता अपने इंद्रधनुषी रंगों वाले कथ्यों और भावों से समृद्ध है, उनकी ग़ज़लें जहाँ मन को गहरे तक छूती हैं वहीं मस्तिष्क को झकझोरती भी हैं। गंभीररूप से अस्वस्थ रहने बाबजूद भी अपने अंतिम समय तक अपनी रचना-यात्रा को प्रवाहमान रखने वाली शायरा डा. मीना नक़वी का समग्र सृजन उर्दू साहित्य के साथ-साथ हिन्दी साहित्य में भी अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ईश्वर उनके रचनाकर्म को रामकथा की आयु दे।
✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल- 94128.05981
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