रविवार, 21 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई और उदय अस्त,रामपुर की साहित्यकार रागिनी गर्ग समेत पांच साहित्यकारों को रामपुर की आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा ने किया सम्मानित। यह आयोजन रामपुर में 21 नवम्बर 2021 को हुआ ।

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा के तत्वावधान में कवि सम्मेलन व सम्मान समारोह का आयोजन रविवार 21 नवम्बर 2021  को संस्था अध्यक्ष सुरेश अधीर की अध्यक्षता में आनंद कान्वेंट स्कूल ज्वाला नगर रामपुर में सम्पन्न हुआ।

  इस अवसर पर उत्कृष्ट साहित्यिक सेवाओं के लिए मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई एवं उदय प्रकाश सक्सेना अस्त, रामपुर की साहित्यकार रागिनी गर्ग, हल्द्वानी की साहित्यकार डा गीता मिश्र" गीत",  पीयूष प्रकाश सक्सेना जी, प्रबंधक आनंद कांवेंट स्कूल रामपुर को शाल ओढ़ाकर ,  अभिनन्दन पत्र,प्रतीक चिह्न प्रदान कर एवं मोती - माल्यार्पण कर काव्यधारा-साहित्य मनीषी" एवं काव्यधारा - गौरव" - सम्मान से सम्मानित किया गया।

  माँ सरस्वती वंदना राजीव प्रखर ने और गुरु वंदना अनमोल रागिनी ने प्रस्तुत की। सम्मानित साहित्यकारों के अतिरिक्त राम रतन यादव रतन, अनमोल रागिनी, शायर सुरेंद्र अश्क रामपुर, पुष्पा जोशी प्राकाम्य जी , राम किशोर वर्मा जी, विपिन शर्मा, डॉ ० अरविंद धवल, रवि प्रकाश, ओंकार सिंह विवेक, जितेन्द्र नंदा, राजवीर 'राज', महाराज किशोर सक्सेना आदि ने भी काव्य पाठ किया। इस अवसर पर श्रीमती ऊषा सक्सेना, श्रीमती कुसुम लता वर्मा, श्रीमती रवि प्रकाश, आनंद प्रकाश वर्मा एवं अतुल वर्मा उर्फ पीयूष वर्मा आदि उपस्थित रहे । संस्थापक महा सचिव जितेन्द्र कमल आनंद एवं अध्यक्ष सुरेश अधीर जी ने सभी का हार्दिक आभार व्यक्त किया। संचालन राम किशोर वर्मा जी ने किया।





























::::::प्रस्तुति:::::::

राम किशोर वर्मा

उपाध्यक्ष, आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा, रामपुर (उ०प्र०), भारत

शनिवार, 20 नवंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर के साहित्यकारों डॉ अनिल कुमार शर्मा अनिल, रचना शास्त्री, इंद्र देव भारती, नरेंद्रजीत अनाम, डॉ भूपेंद्र कुमार, रंजना हरित और अजय जैन की बाल कविताएं...। ये सभी बाल कविताएं प्रकाशित हुई हैं धामपुर के साहित्यकार डॉ अनिल कुमार शर्मा अनिल के सम्पादन में प्रकाशित ई पत्रिका अभिव्यक्ति के अंक 96, अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस अंक में ।


 














::::::;:प्रस्तुति:::::::::


मुरादाबाद के साहित्यकार माहेश्वर तिवारी के दो नवगीत । उनके ये गीत प्रकाशित हुए हैं सुरेश अधीर एवं जितेन्द्र कमल आनन्द के सम्पादन में प्रकाशित साझा काव्य संकलन 'प्रवाह' में । यह संकलन आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा भारत, रामपुर द्वारा वर्ष 2000 में प्रकाशित हुआ था ।


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की कविता -----प्रेम की निरपेक्षता

 


प्रेम की निरपेक्षता  सुनी है कहीं 

लेकिन प्रेम की निरपेक्षता   

एक अमूल्य साहित्य रच देती है 

महान कलाओं का सृजन कर देती है

एक निर्भीक,  सत्यनिष्ठ ,

संसार  रच देती है

उत्साह की  गंगा में

गोते लगाती   

सद्भावों की गीता बाँचती है

सृष्टि का सार समझाती है 

क्योंकि प्रेम धर्म निरपेक्ष होता है 

सनातन भाव में जीता है

पूर्णतः साहित्यिक', सुसंस्कृत' ,

कर्तव्यनिष्ठ और सीमाओं से परे ।

आलौकिक आध्यात्मिक 

सात्विक भावों की

सकारात्मक सोच ही प्रेम  की व्यापकता है ।

सामाजिक सौहार्द भी प्रेम है  

एक निर्वैर उद्गीथ रचता   । 

आशीषता प्रेम  

'शारदीय प्रभा में आलोड़ित' 

गंगे माँ तुम सा पावन ,तुम सा निर्मल प्रेम ,

उद्दाम लहरों में

बहा मत ले जाना । सुवासित कर देना जग को।

  मात्र कल्पना लोक का प्रेम तो नही यह ।--

✍️ मनोरमा शर्मा

अमरोहा, उ.प्र., भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ----भौतिकिया बिंद


 मानवता का चश्मा

मुझे अपने पिता से

विरासत में मिला था

जो मेरे पिता को

उनके पिता ने दिया था

ये स्थानांतरण

सदियों से चल रहा है

समूचा खानदान

इसी परंपरा में पल रहा है


आज जब चारों तरफ़

अत्याचारों की बाढ़ आई है

मुझे उस पुश्तैनी

चश्मे की याद आई है

काफी खोजबीन के बाद

मैंने उसको ढूंढ लिया है

उस पर से

उपेक्षा और तिरस्कार की

धूल को भी हटा दिया है

लेकिन अफसोस

वो दुर्लभ और मूल्यवान चश्मा

हम को कुछ नहीं दिखा रहा है

अजायबघर में सजने वाली

वस्तु सा नजर आ रहा है

सदियों से उसको

किसी ने भी नहीं लगाया है

दूसरी ओर

भौतिकता की चकाचौंध ने

हमारी आंखों को

और अधिक कमजोर बनाया है

लगता है जैसे,उनमें

भौतिकिया बिंद उतर आया है।


✍️ डॉ.पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

आदर्श कॉलोनी रोड

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कविता -- लोकतंत्र


खुशहालपुर गाँव के

उस छोर पर

झोपड़ी नुमा मकान में

एक दीप जल रहा था।

दरिद्रता का प्रकोप

झिलमिलाते दीप की

रोशनी में

स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था।

काम करती बुढ़िया की

थकी - झुकी कमर

जाड़ों की रात में

ठंड से कांपती हुई

मेरे मस्तिष्क में

एक सिरहन की भांति

कौंध गई, तभी

मैनें सुना

एक बच्चा कह रहा था

माँ-माँ 

लोकतंत्र क्या होता है ?

माँ ने यह सुन

बच्चे को कलेजे से 

लगाकर,पुचकार कर

एक लम्बी सांस ली

और

अपने उंगलियों के पोरवे                                 

दीपक की

लौ पर रख दिये

तब

छा गया अंधकार

शेष रह गया,

उनके जीवन की भांति,

शून्य में तैरता

दीपक का धुआं ।।


✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

           

 

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता,इंडोनेशिया निवासी ) वैशाली रस्तोगी की रचना --हिम्मत रखना


 

मुरादाबाद मंडल के धामपुर (जनपद बिजनौर) की साहित्यकार डॉ पूनम चौहान के पांच दोहे ---


सरस सलिल अविरल बहे,निर्मल गंगा धार।

मोक्षदायिनी मात तुम, तारो भव से पार।।


माघ मास पावन अती, पावन होत नहान।

पापनाशिनी तुम सदा,कहते वेद पुरान।।


गंगा तट पे गूंजते , ऋषि मुनियों के गान।

हर हर गंगे घोष में , सभीजन का कल्याण।।


धर्म कर्म और काज में, जल गंगा का होय।

अनुपम, अद्भुत, गुणकारी, राखो गेह संजोए।।


 गौ,  गंगा, गायत्री से, धारे  संस्कृति प्रान।

हाथ जोड़ विनती यही, करियो सदा सम्मान।।


✍️ डॉ पूनम चौहान

दुर्गा विहार  कॉलोनी नगीना रोड धामपुर( जिला बिजनौर) उत्तर प्रदेश,भारत

मोबाइल फोन नम्बर 92587 56221


शुक्रवार, 19 नवंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा --- चुनाव


      रामकली को साड़ी दिखाकर खुश होते हुए  भरतो बोली  अम्मा हमें तो न मालूम कि कौन कौन खड़े हैं  मुखिया बनने को, बस हम तो अपना वोट इन साड़ी बांटने वाले को ही देंगे। रामकली भी साथ साथ दोहराने लगी- हां बहू , हमें और क्या चाहिए बेचारा साल भर से सब त्योहारों पर नए नए सामान बंटवा जो रहा है ।कनु यह सब सुन रही थी  बोली" स्कूल में तो मैम ने समझाया था कि हमें लालच में आकर वोट नहीं देना है सही नेता का चुनाव करें  कनु ने लाख प्रयास किया अपनी मां और दादी मां को समझाने का पर उसकी दोनों में से किसी ने न सुनी।

चुनाव हुए - साड़ी वाला उम्मीदवार जीत गया बेचारा पढ़ा लिखा और ईमानदार उम्मीदवार  राम किशोर हार गया।

शपथ के अगले दिन ही  मुनादी हुई कि गांव में  आदर्श तालाब बनेगा, जिस पर सब लोग घूमने फ़ोटो खिंचवाने जाया करेंगे और गांव का नाम होगा। गांव के सभी लोगों ने पूरे उत्साह से श्रम दान किया । उसके कुछ दिनों बाद पता चला कि  वहां मुखिया जी ने स्वीमिंग पूल बनवा लिया है और उसी के पास अपनी कोठी बनवा ली  अब वह उनकी अपनी  प्रॉपर्टी है न कि  गांव की ।हद तो तब हो गई जब भरतो चीखती रही और.... रामकली को दरोगा  जी पकड़ कर ले गए, कि यह झोपड़ी अवैध रूप से बनी हुई है। इस जगह पर तो ....मुखिया जी  मन्दिर बनवाना चाहते हैं। अब रह - रह कर भरतो को कनु की बातें याद आ रही थीं लेकिन........

अब पछताए क्या होत  है जब चिड़िया चुग गई  खेत

कनु बाहर से आकर बोली "मां! रामकिशोर काका दादी को छुड़ा लाए हैं और वो इस सब के लिए 

मुखिया जी के खिलाफ़ लड़ाई भी लड़ेंगे।"


✍️ रेखा रानी 

विजय नगर, गजरौला 

जनपद अमरोहा ,उत्तर प्रदेश।


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार शिव कुमार चंदन का गीत ----गिरि शिखर से अवतरित गंगे , तू कल ‌- कल बह रही है


हरण   कर    त्रय   ताप,  माँ ,

पावन जगत  को कर रही  है  ।

गिरि शिखर से अवतरित गंगे

तू   कल  - कल  बह  रही  है

माँ  !  विमल जलधार  से  तू  ,

तृप्त  करती  ,तृषित जन को  ।

रूपसी   तू   प्रकृति   निर्मल  ,

मौन  रह  कुछ  कह  रही  है ।

हरण  कर  त्रय ताप  जग के ,

तू  जगत पावन  कर रही है ।।


तेरी   निर्मल   धार  अविरल  ,

बह रही  शिव शीश  रह कर  ।

तेरे    तट    उपजीं   ऋचाएँ  ,

गहन    आरण्यक   निरन्तर  ।।

तोड़  गिरि - मरू  श्र॔खलाएँ ,

चंचला   सी   बह   रही   है  ।

हरण  कर  त्रय ताप जग के  ,

पावन जगत को कर रही है ।।


समर्पित   घृत , पुष्प  चंदन  ,

नैवेद्य  अक्षत,अगरू ,रोली  ।

पूर्ण    कर   मन   कामनाएँ  ,

माँ भरो जन जन की झोली ।।

बाँट कर जग  को विमलता ,

नित  कलुषता  सह  रही है  ।

हरण   कर  त्रय  ताप   ,माँ  ,

तू जगत पावन  कर रही है ।।


✍️  शिव कुमार चंदन

सीआरपीएफ बाउण्ड्री , निकट- पानी की बड़ी टंकी  ज्वालानगर,   रामपुर ( उत्तर प्रदेश ) मोबाइल फोन नम्बर 6397338850 


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक के कार्तिक पूर्णिमा गंगा स्नान पर्व पर आठ दोहे ----



💥

जटा   खोलकर  रुद्र   ने , छोड़ी  जिसकी  धार,

नमन   करें   उस   गंग   को ,  आओ   बारंबार।

💥

भूप   सगर   के   पुत्र   सब , दिए  अंत में   तार,

कैसे   भूलें   हम  भला ,  सुरसरि  का  उपकार।

💥

यों  तो  नदियों  का  यहाँ ,  बिछा  हुआ है जाल,

पर  गंगा  माँ - सी  हमें , मिलती  नहीं  मिसाल।

💥

मातु - सदृश   भी   पूजता , मैली   करता  धार,

गंगा - सॅंग   तेरा   मनुज , यह  कैसा  व्यवहार।

💥

दिन-प्रतिदिन  दूषित  करे , मानव  उसकी  धार,

फिर   भी  यह  आशा   रखे  , गंगा   देगी  तार।

💥

आज   धरा   पर    देखकर , गंगा   का  संत्रास,

शिव जी  भी  कैलाश  पर , होंगे  बहुत  उदास।

💥

सच्चे  मन   से   प्रण  करें ,  हम   सब  बारंबार,

नहीं   करेंगे   अब  मलिन ,  देवनदी  की  धार।

💥

चला-चलाकर  नित्यप्रति, अधुनातन  अभियान,

स्वच्छ   करेंगे  गंग को , मन  में  लें  अब ठान।


 🙏 ओंकार सिंह विवेक, ,रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल का गीत ----आओ हम सब बनें भगीरथ, गंगा को फिर स्वच्छ करें स्वच्छ रखें नाले नाली सब, अपशिष्टों से मुक्त करें


एक भगीरथ के तप से ही, धरती पर गंगा आई

शिव के सहस्त्रार से होकर, अमृतमय जल ले आई

गंगाजल का एक आचमन, तन मन पावन करता था

पाप ताप को धोते धोते, पतित पावनी कहलाई

 

उद्गम से जब चलती है तो, अमृत लेकर चलती है

देवभूमि तक पावनता से, कल कल बहती रहती है

इसके पावन गंगाजल से, जड़ चेतन जीवन पाते

औषधीय गुण धारण करके, तृप्त सभी को करती है

 

पाप हमारे धोने को ये अविरल बहती जाती है

तन मन को पावन करने में, तनिक नहीं सकुचाती है

पर हम अपनी सभी गंदगी, फेंक इसी में जाते हैं

मैल हमारा धोते धोते खुद मैली हो जाती है

 

गंगा की अविरल धारा को, हमने दूषित कर डाला

सब अपशिष्ट ग्रहण कर गंगा आज रह गई बस नाला 

पतित पावनी गंगा का जल, तन मन निर्मल करता था

आज आचमन भी कैसे हो, गंगाजल दूषित काला. 

 

 गंगा के अविरल प्रवाह पर, बाँध अनेक बना दिए  

अपशिष्टों के नद नाले भी, गंगाजल में मिला दिए

 बूँद बूँद जल में अमृत था, बूँद बूँद अब गरल हुआ

  पाप मोचिनी को मलीन कर, हमने कितने पाप किए

 

  आओ हम सब बनें भगीरथ, गंगा को फिर स्वच्छ करें

  स्वच्छ रखें नाले नाली सब, अपशिष्टों से मुक्त करें

  धर्म कर्म के सभी विसर्जन, धरती में करना सीखें

  स्वच्छ बने ये गंगा फिर से, पुनः आचमन सभी करें

 

 ✍️  श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका मासूम की रचना----गंगा उदास है ...मेरी.... गंगा उदास है


तन हो गया मलिन कि इसका मन हताश है

गंगा उदास  है ...मेरी.... गंगा उदास है


शिव को शिवाया छोड़ भगीरथ की हो गयी

ये विष्णु पगा सिंधु के आंचल में खो गयी

संताप , पाप ,  पल में सारे जग के  हर लिए

मंदाकिनी मैदान की गलियों में जो गयी


माँ अमृता की बूँद बूँद में मिठास है

गंगा उदास है... मेरी... गंगा उदास है


मीरा की सिर्फ एक मनौती में आ गयी

रैदास ने चाहा तो कठौती में आ गयी

अपनी ही धरोहर की कद्र हमने छोड़ दी

ये जब से अपने पास बपौती में आ गयी


विश्वास खण्ड खण्ड , मां की टूटी आस है  

गंगा उदास है ...मेरी... गंगा उदास है


निकला है कोई गंदगी गंगा में डाल के

चुपके से कोई चल दिया जूठन खंगाल के

 इस मां के लाल के घिनौने कर्म देखिये

मारा किसी छाती पे सिक्का उछाल के


ये कैसी उन्नति  है ये कैसा विकास है

गंगा उदास है ...मेरी... गंगा उदास है


दुनिया में पतित पावनी गंगा की धार है

आधार है जीवन का ये मुक्ति का द्वार है

केवल नदी नहीं है , न इसको मिटाइए

गंगा हमारी सभ्यता है  संस्कार  है


गरिमा ये पूर्वजों की देवों का उजास है

गंगा उदास है... मेरी... गंगा उदास है


✍️ मोनिका "मासूम"

मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुम्बई निवासी ) प्रदीप गुप्ता की सात कविताएं.....

 



(1) गाँव : एक शब्द चित्र  

      

एक अजब वीरानगी है 

इन दिनों चौपाल में 


न इधर सरपंच आते 

न ही कोई फ़रियादी

हुक्का कहीं लुढ़का पड़ा है 

और कहीं चौपड़ गिरा दी 

अब ठहाके को तरसती 

सामने वाली बूढ़ी काकी 

एक अरसे से ढिबरी वहाँ 

है पड़ी  बिन तेल बाती 


जानना यह है ज़रूरी

गाँव क्यों इस हाल में 


बंट गए हैं लोग फ़िरक़ों में 

छोटी छोटी बात में 

और ज़हर फैला हुआ है 

नफ़रतों का बेबात में 

जो गले मिल के रहा करते थे 

गला काटने की फ़िराक़ में 

किसान से मुवक्किल बने और लुट गए 

बस वकील हैं ठाठ में 


है दुखद पर सच यही है 

गाँव अब इस हाल में 


न रोपाई समय पर 

न ही अब  चले है हल 

दिन कट रहे कचहरी में 

रात को पहरे का शग़ल 

कुछ इधर के साथ में हैं 

कुछ उधर के संग निकल 

स्थिति आदर्श है यह 

काटने वोटों की फसल 


और युवा करके पलायन शहर में 

फँस चुके  मजूरी के जंजाल में


(2) कठपुतली सा हमें नचाएँ 

कठपुतली सा हमें नचाएँ 

जो कुछ चाहें वही कराएँ


एक पटकथा लिख के रक्खी

जिसके नित दिन नए प्रसंग 

झूठ सत्य सा बाँच रहे हैं 

जैसे छिड़ी हुई हो जंग 

पढ़ना लिखना अब अतीत है 

जिएँ आभासी दुनिया के संग 

भ्रमित लोग अब और भ्रमित हैं 

झूठ बिखेरें  कितने रंग 


नेपथ्य से जाल बिछाएँ 

हम से जो चाहें करवाएँ 


मेरे सच और तेरे सच में 

झूठ झूठ जंजाल बिछे  हैं 

घर घर में उन्माद भरा है 

तर्कों के हथियार बड़े हैं 

उल्टे कदम सही ठहराने 

देखो कितने लोग खड़े हैं 

डोरें उनके पास हमारी 

हम सारे रोबोट बने हैं 


जतन करो आँखें खुल जाएँ 

कठपुतली फिर मानव बन जाएँ


(3) ज़िंदगी : एक शब्द चित्र ………

हरदम लड़ती रहती हो 

मुँह में जो आता कह देती हो . 

मैं भी सब चुप सुनता रहता हूँ 

साथ साथ अख़बार की सुर्ख़ियों को 

पढ़ता रहता हूँ 

इस सब के बीच मेज़ पे चाय आ जाती है 

हाँ, स्वरों की हलचल और बढ़ जाती है 

आलू के बदले अरबी ले आ जाना 

मुद्दा बन जाता है 

दूध वाला ज्यादा पानी मिला रहा है 

मसला आ जाता है 

कई बार लगता है भूमण्डल की 

सारी गड़बड़ मेरे कारण हैं 

और इधर मेरा दुनिया में होना अकारण है 

अख़बार से झांकता हूँ 

मेज पे नया कुछ पाता हूँ 

खमण , फ़ाफडा की ख़ुश्बू से 

भरी प्लेट पाता हूँ 

इसी बीच ऊँचे स्वर 

अचानक सुप्त हो जाते हैं 

पूजा घर से प्रार्थना के स्वर 

घंटी के साथ  गूंजित हो जाते हैं

इस सब के बीच नहाने 

और बाज़ार जाने के 

आदेश जारी हो जाते हैं 

अख़बार अधूरा छोड़ हम भी 

नए मोर्चे पर बढ़ जाते हैं 

बाज़ार में इक इक तरकारी 

चुन चुन के रखवाते हैं 

फिर भी कोई गड़बड़ न रह जाए

 सोच के थोड़ा घबराते है 

हर सामान को कई बार 

लिस्ट से जंचवाते हैं 

कुछ छूट नहीं गया हो 

इस लिए बार बार गिनवाते हैं 

यह किसी एक दिन का नहीं 

रोज़ का क़िस्सा है 

ऐसा लगता है अब व्यक्तित्व का 

अटूट हिस्सा है 

कभी सोचता हूँ कि उसकी

वाणी का अंदाज मीठा हो जाए

और ज़िंदगी का अन्दाज़ ही बदल जाए 

पर इस पर मुद्दे पर ठहर सा जाता हूँ 

और ज़िंदगी के इन रसों का लुत्फ़ उठाता हूँ 

तुम जैसी हो वैसे ही आगे भी रहना 

इस रूप में भी सैकड़ों से अच्छी हो 

ऐसे ही जीवन भर रहना


(4) उम्र का असर ....

उम्र का असर अब दिखने लगा है 

थोड़ा चल के शरीर थकने लगा हैं 


मगर बहुत कुछ है जो मुझे आज भी 

बूढ़ा होने से रोकता है 

तेरी यादों का सिलसिला 

आ के अक्सर झकझोरता  है 

पुलकित हो जाता है रोम रोम 

अजब सी ऊर्जा भर जाती है 

मायूसी पल भर में तेरी यादों से 

वाष्प बन कर उड़ जाती है


पहले उड़ता था उन्मुक्त पंछी जैसा 

अब अपने आप ही टिकने लगा है 


चंद दोस्त जब दूर से दिख जाते हैं 

कदम अपने आप उधर मुड़ जाते हैं 

वही उन्मुक्त अट्टहास वही शोख़ी 

उनके पुराने प्रहसन भी गुदगुदाते हैं 

मेरे ये दोस्त  टानिक से कम नहीं 

थके शरीर को नए उत्साह से भर देते हैं 

अजीब रिश्ता है मेरा उनके साथ 

बिना कहे वो मुझको समझ लेते हैं 


पर देख पता हूँ उन दोस्तों का दर्द 

अब उनके चेहरे पे  छलकने लगा है 


टीवी मोबाइल  से ऊब होती है 

तो जा के किताबों में गुम जाता हूँ 

हर किताब से नया रिश्ता बनता है 

उसके साथ सफ़र पे निकल जाता हूँ 

कई बार जब कविताएँ पढ़ता हूँ 

उनके कई अंश मुझ पे ताने मारते हैं 

कई कहानियों में अपना अक्स लगता है 

बहुत से उपन्यास हालत के रोजनामचे हैं 


किताबों की दुनिया मैं तैरते तैरते 

एक नया सा शख़्स मुझमें बसने लगा है


(5) मशक़्क़त करनी पड़ती है ………

बहुत मशक़्क़त करनी पड़ती है 

तब कहीं जा के किसी के लबों पे मुस्कान आ पाती है 


कभी जोकरों जैसा लबादा ओढ़ना होता है 

सुनाने पड़ते है समिष या फिर निरामिष जोक 

कभी बौद्धिकता का आवरण उतार देना होता है 

तो कई बार ज़रूरी हो जाती है थोड़ी नोक झोक 

भले ही दिल में चल रही हों ज़बरदस्त उलझनें 

अपने सारे उद्वेगों को ठंडे बस्ते में लेते हैं रोक 

ताकि आपके सामने वाला बस यही सोच ले 

आप से ज़्यादा ख़ुश मिज़ाज नहीं है कोई और 

 

सच तो यह है कि बहुत कोशिश के बावजूद 

आसानी से यह कला हर किसी को नहीं आ पाती है 


कर के देखिए न एक बार,  अगर आपके प्रयास से 

कोई सचमुच मुस्कुरा देता है 

यक़ीन मानिए आपका दिन बन जाएगा 

इस तरह दिल तक पहुँचने का रास्ता खुल जाता है 

इसे  हल्की फ़ुल्की उपलब्धि  मत समझ लेना 

अच्छे अच्छों को यह हुनर नहीं आ पाता  है 

दिल का रास्ता खोजने में बरस लग जाते हैं 

किसी का मुस्कुराना सम्बन्धों  का पासवर्ड बन जाता है 


मुस्कुराहट फैलाने का सिलसिला जारी रखें

किसी की मुस्कुराहट से दुनिया और हसीन हो जाती है . 



(6) सफ़र .….

बताया जो मैंने अपना सफ़र 

मेरे साथ चाँद तारे हो लिए 


कहाँ ये सफ़र जा के होगा ख़त्म 

कोई जीपीएस नहीं मेरे हाथ में 

रास्ता कहाँ से कहाँ जा मिले 

भूल जाऊँ दिशा बात ही बात में 

है ये लम्बा सफ़र कोई  साथी नहीं 

ना कोई सयाना मेरे साथ में 

ना कोई टिकट ना मासिक पास 

ना कोई आरक्षण मेरे पास में 


मगर देखे मेरे पैरों के ज़ख्म 

साथ में कुछ दोस्त भी हो लिए 


मजहबों के बारे में जम के पढ़ा 

ऋषियों  की वाणी को भी सुना 

मंत्रों को तसबीह पे फेर के 

ध्यान की मुद्राओं को भी चुना

संगतें साधुओं की अक्सर करीं

उनके सुभाषितों को भी गुना 

समाधि , मज़ारों पे चादर चढ़ा 

इक तिलिस्म रूहानियत का बुना 


यह सब कुछ कुछ अधूरा लगा 

इसलिए रस्ते अलग चुन लिए



(7) कविता ....

कविताओं को लेकर जोश ओ जुनून कहीं नहीं दिखता 

वजह साफ़ है अधिकांश मामलों में गहराई नहीं होती 

जो कविता महज लिखने के लिए लिखी जाती हैं 

उनमें उत्कृष्ट शब्द शिल्प रहता है स्पंदन नहीं मिलता 

कुछ कविताएँ तो ख़ास पुरस्कारों के लिए गढ़ी जाती हैं 

इसीलिए आम लोगों की ज़बान तक नहीं चढ़ पाती हैं 

कविता सच में कविता होगी तो पढ़ के मुरीद हो जाएँगे  

इनमें दर्द के साये तो कहीं झूमते गाते शब्द दिख जाएँगे 

ऐसी कविता में वंचित के दुःख दर्द भी मिल जाते हैं 

हताश इंसान को इनमें सम्बल भी नज़र आते हैं 

राह भटके को आशा का झरोखा  भी दिख जाता है 

कहीं समाज के हालत बदलने का जुनून छुपा रहता  है 

कई में तो कवि की ज़िंदगी का पूरा निचोड़ रहता है 

ऐसी कविता को सत्ता के गलियारे की दरकार नहीं 

घूमती रहती है ज़िंदगी की गलियों में कहीं विश्राम नहीं 

इसमें जीवन रंग रहते हैं कोई पूर्वाग्रह नहीं बोती हैं 

तभी तो ये किसी प्रचार तंत्र का कट पेस्ट नहीं होती हैं 

जब कभी लोग अपनी तकलीफ़ से आजिज़ आ जाते हैं 

इन्हीं कविताओं को परचम की तरह लहराते हैं 

इसी लिए ये आगे जाके इतिहास का हिस्सा बन जाती हैं 

और ये लोक गाथाओं में स्थायी रूप से बस जाती हैं 

कविता सही में कविता हो तो उसे हलके में मत लेना 

इसमें बसते हैं प्राण, काग़ज़ का पुर्ज़ा न समझ लेना


✍️ प्रदीप गुप्ता 

B-1006 Mantri Serene, Mantri Park, Film City Road , Mumbai 400065    

गुरुवार, 18 नवंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का मुक्तक--लोभ से होकर रहित यह जिंदगी...


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का गीत --- मोदी - योगी अपने देश को ईश्वर का वरदान हैं, देखो, कैसा बदल रहा अब अपना हिंदुस्तान है...



 

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की रचना ----तेरी बांहों में दम निकले, सफर अब और क्या करना ...


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की ग़ज़ल ---कह लो अब जो भी कहना है .....


 

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी का गीत - हम भारत की तकदीर हैं


 

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी) आमोद कुमार का गीत-- जीवन भी है तृष्णा भी है .....निवेदिता सक्सेना के स्वर में..


 https://youtu.be/9NXiA8t26PY

बुधवार, 17 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में नोएडा निवासी) नरेन्द्र स्वरूप विमल का गीत--- रूप छलता रहा मन मचलता रहा, भावनाओं की गंगा प्रवाहित रही....। उनका यह गीत प्रकाशित हुआ है सुरेश अधीर एवं जितेन्द्र कमल आनन्द के सम्पादन में प्रकाशित साझा काव्य संकलन 'प्रवाह' में । यह संकलन आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा भारत, रामपुर द्वारा वर्ष 2000 में प्रकाशित हुआ था ।

 


रूप छलता रहा मन मचलता रहा, 

भावनाओं की गंगा प्रवाहित रही। 

कुछ न तु म कह सके 

कुछ न हम कह सके 

प्रेम की यह लता पर सुवासित रही।


दोष किसका यहाँ, तोष किसको यहाँ, 

धड़कनें हैं तो जीवन बिताना ही है। 

याद तृष्णा सही, मानता कुछ नहीं 

चाँद मन को दिखाकर रिझाना ही है। 

नीर ही नीर है, पीर ही पीर है, 

गंध-सी उर में ज्वला समाहित रहीं।।


आस ही आस है, प्यास ही प्यास है, 

जाने क्यों आज तक तुम पर विश्वास है। 

फूल बनने से पहले कली खिल गई, 

पास कुछ भी नहीं और सब पास है। 

ज़िन्दगी ढल रही, आँधियाँ चल रहीं। 

क्वारी इच्छा सदा पर विवाहित रहीं।।


कौमुदी छल रही, राका रजनी बनी, 

तुम क्या बिछुड़े सभी दृष्टियाँ फिर गई। 

तारे यादों के गिनने को बैठा ही था, 

धुन्ध ही धुन्ध में बदलियाँ घिर गई। 

आँखे रोती रहीं, बोझ ढोती रहीं, 

मन से मन की जलन अविभाजित रही।


स्वप्न कितने बुने, फूल कितने चुने,

गीत कितने लिखे, पर तुम न पा सके। 

घन बरसते रहे, हम तरसते रहे, 

झूठ को ही सही, तुम नहीं आ सके। 

फिर भी जलते रहे, दर्द पलते रहे, 

मन के मन्दिर में प्रतिमा स्थापित रही।


✍️ नरेन्द्र स्वरूप विमल

ए 220, सेक्टर 122, नोएडा

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार कंचन खन्ना की कविता ---बच्चे