बुधवार, 17 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में नोएडा निवासी) नरेन्द्र स्वरूप विमल का गीत--- रूप छलता रहा मन मचलता रहा, भावनाओं की गंगा प्रवाहित रही....। उनका यह गीत प्रकाशित हुआ है सुरेश अधीर एवं जितेन्द्र कमल आनन्द के सम्पादन में प्रकाशित साझा काव्य संकलन 'प्रवाह' में । यह संकलन आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा भारत, रामपुर द्वारा वर्ष 2000 में प्रकाशित हुआ था ।

 


रूप छलता रहा मन मचलता रहा, 

भावनाओं की गंगा प्रवाहित रही। 

कुछ न तु म कह सके 

कुछ न हम कह सके 

प्रेम की यह लता पर सुवासित रही।


दोष किसका यहाँ, तोष किसको यहाँ, 

धड़कनें हैं तो जीवन बिताना ही है। 

याद तृष्णा सही, मानता कुछ नहीं 

चाँद मन को दिखाकर रिझाना ही है। 

नीर ही नीर है, पीर ही पीर है, 

गंध-सी उर में ज्वला समाहित रहीं।।


आस ही आस है, प्यास ही प्यास है, 

जाने क्यों आज तक तुम पर विश्वास है। 

फूल बनने से पहले कली खिल गई, 

पास कुछ भी नहीं और सब पास है। 

ज़िन्दगी ढल रही, आँधियाँ चल रहीं। 

क्वारी इच्छा सदा पर विवाहित रहीं।।


कौमुदी छल रही, राका रजनी बनी, 

तुम क्या बिछुड़े सभी दृष्टियाँ फिर गई। 

तारे यादों के गिनने को बैठा ही था, 

धुन्ध ही धुन्ध में बदलियाँ घिर गई। 

आँखे रोती रहीं, बोझ ढोती रहीं, 

मन से मन की जलन अविभाजित रही।


स्वप्न कितने बुने, फूल कितने चुने,

गीत कितने लिखे, पर तुम न पा सके। 

घन बरसते रहे, हम तरसते रहे, 

झूठ को ही सही, तुम नहीं आ सके। 

फिर भी जलते रहे, दर्द पलते रहे, 

मन के मन्दिर में प्रतिमा स्थापित रही।


✍️ नरेन्द्र स्वरूप विमल

ए 220, सेक्टर 122, नोएडा

उत्तर प्रदेश, भारत

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