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जटा खोलकर रुद्र ने , छोड़ी जिसकी धार,
नमन करें उस गंग को , आओ बारंबार।
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भूप सगर के पुत्र सब , दिए अंत में तार,
कैसे भूलें हम भला , सुरसरि का उपकार।
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यों तो नदियों का यहाँ , बिछा हुआ है जाल,
पर गंगा माँ - सी हमें , मिलती नहीं मिसाल।
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मातु - सदृश भी पूजता , मैली करता धार,
गंगा - सॅंग तेरा मनुज , यह कैसा व्यवहार।
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दिन-प्रतिदिन दूषित करे , मानव उसकी धार,
फिर भी यह आशा रखे , गंगा देगी तार।
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आज धरा पर देखकर , गंगा का संत्रास,
शिव जी भी कैलाश पर , होंगे बहुत उदास।
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सच्चे मन से प्रण करें , हम सब बारंबार,
नहीं करेंगे अब मलिन , देवनदी की धार।
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चला-चलाकर नित्यप्रति, अधुनातन अभियान,
स्वच्छ करेंगे गंग को , मन में लें अब ठान।
🙏 ओंकार सिंह विवेक, ,रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत
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