मानवता का चश्मा
मुझे अपने पिता से
विरासत में मिला था
जो मेरे पिता को
उनके पिता ने दिया था
ये स्थानांतरण
सदियों से चल रहा है
समूचा खानदान
इसी परंपरा में पल रहा है
आज जब चारों तरफ़
अत्याचारों की बाढ़ आई है
मुझे उस पुश्तैनी
चश्मे की याद आई है
काफी खोजबीन के बाद
मैंने उसको ढूंढ लिया है
उस पर से
उपेक्षा और तिरस्कार की
धूल को भी हटा दिया है
लेकिन अफसोस
वो दुर्लभ और मूल्यवान चश्मा
हम को कुछ नहीं दिखा रहा है
अजायबघर में सजने वाली
वस्तु सा नजर आ रहा है
सदियों से उसको
किसी ने भी नहीं लगाया है
दूसरी ओर
भौतिकता की चकाचौंध ने
हमारी आंखों को
और अधिक कमजोर बनाया है
लगता है जैसे,उनमें
भौतिकिया बिंद उतर आया है।
✍️ डॉ.पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेजीडेंसी
आदर्श कॉलोनी रोड
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
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