रविवार, 28 अगस्त 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अक्षरा के तत्वावधान में रविवार 28 अगस्त 2022 को आयोजित कवयित्री डॉ. पूनम बंसल के गीत-संग्रह "चाँद लगे कुछ खोया-खोया" का लोकार्पण समारोह

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अक्षरा के तत्वावधान में  कवयित्री डॉ. पूनम बंसल के गीत-संग्रह "चाँद लगे कुछ खोया-खोया" का लोकार्पण रविवार 28 अगस्त 2022 को सिविल लाइंस मुरादाबाद स्थित दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय के सभागार में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने की, मुख्य अतिथि के रूप में गजरौला से विख्यात कवयित्री डॉ. मधु चतुर्वेदी तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में उच्च शिक्षा आयोग के पूर्व सदस्य डॉ. हरवंश दीक्षित, इं० उमाकांत गुप्त, सिंभावली के साहित्यकार राम आसरे गोयल एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामानंद शर्मा उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा किया गया। कार्यक्रम का आरंभ युवा कवि मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वन्दना से हुआ। 

     इस अवसर पर लोकार्पित कृति "चाँद लगे कुछ खोया-खोया" से रचनापाठ करते हुए डॉ. पूनम बंसल ने गीत सुनाये- "दूर हो ये धरा का अँधेरा सभी/आज फिर इक नया अवतरण चाहिए/प्रेम के फूल ही हर तरफ़ हों खिले/हम लगा लें गले राह में जो मिले/हर जहाँ से हसीं हो हमारा जहाँ/चेतना का विमल जागरण चाहिए"। उनके एक और गीत की सबने तारीफ की- "भौतिकता ने पाँव पसारे, संस्कृति भी है भरमाई/मौन हुई है आज चेतना, देख धुंध पूरब छाई/नैतिकता जब हुई प्रदूषित, मूलें का भी ह्रास हुआ/मात-पिता का तिरस्कार तो मानवता का त्रास हुआ/पश्चिम की इस चकाचैंध में लाज-हया भी शरमाई"।

   लोकार्पित गीत संग्रह पर आयोजित चर्चा में प्रख्यात साहित्यकार माहेश्वर तिवारी ने कहा- "डॉ. पूनम बंसल शुद्ध अर्थों में  अंतरंग रागचेतना और बाह्य प्रकृति के समन्वय से निर्मित गीत कवयित्री हैं जिनकी काव्य-भाषा आम बोलचाल की भाषा है, जिसमें हिंदी के तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू का पुट भी मिलता है।"

        वरिष्ठ ग़ज़लकार डॉ. कृष्णकुमार नाज़ ने कहा- "पूनम जी के गीत यूँ तो विविध रंगों में सजे हुए शब्दचित्र हैं, लेकिन उनके यहाँ श्रृंगार की प्रधानता पाई जाती है। उसमें भी वियोग श्रृंगार की प्रबलता है। आम बोलचाल की भाषा में लिखे गए गीत सबका मन मोह लेते हैं।"

     नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा- "डाॅ. पूनम बंसल के गीतों में मन की रागात्मकता तथा संगीतात्मकता की मधुर ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है, ऐसा महसूस होता है कि ये सभी गीत गुनगुनाकर लिखे गए हैं। संग्रह के गीतों का विषय वैविध्य कवयित्री की सृजन-क्षमता को प्रतिबिंबित करता है। इन गीतों में जहाँ एक ओर प्रेम की सात्विक उपस्थिति है तो वहीं दूसरी ओर भक्तिभाव से ओतप्रोत अभिव्यक्तियाँ भी हैं।"

     कृति के संबंध में अपने विचार रखते हुए महानगर के रचनाकार राजीव प्रखर ने कहा - कवयित्री डॉ. पूनम बंसल ने मात्र लिखने के लिए ही नहीं लिखा अपितु, अनुभूतियों के अथाह सागर में उतर कर उनसे साक्षात्कार भी किया है। यही कारण है कि वह संग्रह की प्रत्येक रचना में अपने मनोभावों को सशक्त रूप से स्पष्ट करने में सफल रही हैं।        कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने पुस्तक के संबंध में अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हुए कहा  - डॉ पूनम बंसल जी के गीतों से गुजरते हुए हम सहजता से पीड़ा के घने जंगलों को पार कर मुस्कानों व उम्मीदों की डगर पर बढ़ते हुए प्रेम की सुन्दर नगरी में प्रवेश करते हैं जहाँ मन की चिड़िया फुर्र से उड़ती है।

डॉ. पूनम बंसल के रचनाकर्म के संबंध में अन्य वक्ताओं में डॉ सुधीर अरोरा, डॉ. आर. सी. शुक्ल, डॉ. प्रेमवती उपाध्याय, डॉ. अजय अनुपम, देवकीनंदन जैन, हरिनंदन जैन, प्रदीप बंसल,  डॉ अंबरीश गर्ग, काव्य सौरभ रस्तोगी, बाल सुंदरी तिवारी आदि प्रमुख रहे। 

       कार्यक्रम में ओंकार सिंह ओंकार,  फक्कड़ मुरादाबादी, श्रीकृष्ण शुक्ल, डॉ. मनोज रस्तोगी, धवल दीक्षित, ज़िया ज़मीर, रामदत्त द्विवेदी, राकेश जैसवाल, मनोज मनु, वीरेन्द्र ब्रजवासी, ज़िया ज़मीर, नकुल त्यागी, शिव मिगलानी, डॉ अर्चना गुप्ता, डॉ पंकज दर्पण, शिव ओम वर्मा, नकुल त्यागी, संतोष गुप्ता, जितेन्द्र  जौली, रामसिंह निशंक, राजीव शर्मा, दुष्यंत बाबा, माधुरी सिंह, अभिव्यक्ति, अमर सक्सेना, मुस्कान आदि उपस्थित रहे। आभार अभिव्यक्ति अंशिका बंसल ने व्यक्त की। 










































मुरादाबाद के साहित्यकार माहेश्वर तिवारी का नवगीत .....आने वाले हैं ऐसे दिन आने वाले हैं ,जो आंसू पर भी पहरा बैठाने वाले हैं.......

 क्लिक कीजिए 

👇👇👇👇👇👇👇👇👇 


::::::::प्रस्तुति::::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

मोबाइल फोन नंबर 9456687822






शनिवार, 27 अगस्त 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ...... मैं कौन हूं


मैं थूक कर चाटता हूं

अंधा बनकर

अपनो को ही रेबड़ी बांटता हूं

अपनी और पराई चीज में

कोई भेद नहीं करता हूं

जिस थाली में खाता हूं

छेद उसी में करता हूं


अपना उल्लू सीधा करना

मुझे अच्छे से आता है

मुझे रंग बदलता देख

गिरगिट भी शर्माता है

मैं कभी घड़ियाली

आंसू बहाता हूं

कभी हथेली पर

सरसों जमाता हूं

मुख में राम

बगल में छुरी रखता हूं

कुंभकरण को पीछे छोड़

पांच साल तक सो सकता हूं


जनता रूपी मछली को देख

बगुला भगत की तरह

खड़ा रहता मौन हूं

क्या आप बता सकते हैं

मैं किस ग्रह का वासी हूं,

कौन हूं

वैसे मैं बाहर से

बिल्कुल आपके जैसा हूं

अब तो समझ गए ना

मैं कौन हूं,कैसा हूं


✍️ डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

आदर्श कॉलोनी रोड

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पुष्पेंद्र वर्णवाल के 31 गीत । ये गीत लिए गए हैं वर्ष 2006 में प्रकाशित उनके गीत-विगीत संग्रह प्रणय परिधि से । उनका यह गीत संग्रह श्री पुष्पेंद्र वर्णवाल षष्ठिपूर्ति अभिनंदन समिति द्वारा प्रकाशित हुआ है।


 
































:::::::::: प्रस्तुति:::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शचींद्र भटनागर के ग़ज़ल संग्रह "तिराहे पर" की ओंकार सिंह ओंकार द्वारा की गई समीक्षा ....आस्था और चिंतन की गजलें हैं ’तिराहे पर’ में

  ग़जल की यह परंपरा रही है कि ग़जल का हर शेर अपने आपमें स्वतंत्र होता है यानी यह आवश्यक नहीं है कि ऊपर के शेर से मिलती हुई बात ही दूसरे शेर में भी कहीं जाए दूसरे शेर में दूसरी बात हो सकती है तीसरे शेर में कोई और बात हो सकती है चौथे और पाँचवे शेरों में अलग-अलग बातें कहीं जा सकती हैं। परंतु कवि श्री शचींद्र भटनागर जी की यह विशेषता है कि उनकी कृति "तिराहे पर" में संग्रहीत कई ग़ज़लों में एक शेर दूसरे शेर से संबद्ध रहता है जिससे गुज़लों का सौंदर्य और अधिक हो गया है, जो कि पाठक के आनंद को बढ़ा देता है।

   आजकल मनुष्य इतना स्वार्थी होता चला जा रहा है कि वह समृद्धि, संपन्नता, वैभव और सुख तो चाहता है, परंतु उसके लिए सकारात्मक प्रयास नहीं करता। यह बात ठीक उसी तरह से है जैसे कि किसी पुराने कवि की इस पंक्ति में कि 'बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाय' परंतु कवि श्री शचींद्र जी एक मतले के द्वारा इसी बात को सुंदर ढंग से इस तरह से कहते हैं

फूल चाहा, पर न अभिरुचि बागवानी में रही

 हर समय रुचि स्वार्थ के प्रति सावधानी में रही

और इसी प्रकार वे कहते हैं कि

जिक्र ऊँचाइयों का होता है 

पर सफ़र खाइयों का होता है

लाख चलते हैं हम मरुस्थल में

ध्यान अमराइयों का होता है।

राज्य का हर नागरिक पीड़ा से कराह रहा है तरह-तरह से कष्ट एवं कठिनाइयाँ झेल रहा है प्रदूषण, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, महँगाई, शोषण, मजहब और धर्म के नाम पर अलगाववाद और आतंकवाद की चपेट में या गिरफ्त में फँसे हुए समाज का हर व्यक्ति इस घुटन से मुक्ति चाहता है। कवि श्री शचींद्र भटनागर जी ने भी इस घुटन से मुक्ति की कामना इस तरह से एक शेर के माध्यम से की है। इससे लगता है कि उनका भरोसा शासन से उठ गया है और जनता को घुटन से मुक्ति का रास्ता खुद तलाशना होगा।

     राज्य के हर नागरिक को जो घुटन से मुक्ति दे

     अब हवा ऐसी न कोई राजधानी में रही।

भीड़ बढ़ती चली जा रही है मगर आदमी अकेला होता चला जा रहा है। और इस भीड़ में तन्हाई के इस दर्द की टीस को कविवर श्री शचींद्र भटनागर ने अपने इस शेर में किस खूबसूरत अंदाज़ में बयान किया है

बढ़ती भीड़ों में रात-दिन केवल 

दर्द तनहाइयों को होता है।

संसार में सारे सुख वैभव मौजूद रहते हुए भी आज का आदमी उनका सुख नहीं भोग पा रहा है और अधिक प्राप्ति की चाह में अपने वर्तमान को नरक बनाए हुए हैं, अधिक से अधिक व्यक्तिगत पूँजी जमा करने में अपना भविष्य सुरक्षित समझता है। कवि श्री भटनागर इस बुराई से निजात पाने के लिए प्रेरित करते हैं और कहते हैं

धन तो चोरों औ' लुटेरों पे बहुत होता है

 मिल सके प्यार औ' सम्मान यही काफ़ी है।

और वे कहते हैं

आदमी है, जो हँसता-हँसाता रहे 

संकटों से भी जो सीख पाता रहे

फूल सा खुशनुमा हो सभी के लिए

 शूल के बीच भी मुस्कुराता रहे

जब लक्ष्य बड़ा होता है तो रास्तों का भी कठिन होना स्वाभाविक है ऐसे में अधिक धन-दौलत, आलीशान महल आदि की सुविधा भोगते हुए उस लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता है। इसी बात को अपने इस शेर में सुंदर ढंग से व्यक्त करते हैं श्री भटनागर जी

दूर जब लक्ष्य हो, राहें भी बहुत मुश्किल हों

 साथ में थोड़ा हो सामान यही काफी है।

समाज में संवेदनहीनता इतनी अधिक है कि यदि सड़क दुर्घटना में कोई व्यक्ति घायल पड़ा मदद के लिए तड़प रहा हो, तब भी उसे अस्पताल पहुंचाने वाला कोई नहीं होगा। भीड़ अनदेखी करती हुई गुजर जाएगी इसके अलावा भी न जाने कितनी ही घटनाएँ, दुर्घटनाएँ हमारे आस-पास होती हैं परंतु कोई किसी का दर्द बाँटने का उपक्रम नहीं करता। शायद इन्हीं बातों से व्यथित होकर श्री शचींद्र भटनागर जी कहते है कि

अब उन्हें देख के हरकत न जरा होती है

 हादिसे सामने हर रोज गुजर जाते हैं।

मनुष्य का जीवन खुशहाल बनाने के लिए सामाजिक ताना-बाना आवश्यक है। परंतु हमारा समाज विभिन्न रोगों से ग्रसित है। यह चिंता कवि श्री शचींद्र भटनागर को साल रही है। इसी से बेचैन होकर वे कहते हैं कि 

कैसे महकेगा कोई फूल किसी डाली पर

बाग का बाग है बीमार भला क्या होगा

द्वार दीवारें हैं कमजोर छतें चटकी हैं 

और तूफों के हैं आसार भला क्या होगा।

जब न हाथों में हो मल्लाह के ताकत बाकी 

लाख मजबूत हो पतवार भला क्या होगा।

श्री भटनागर साहब ने विभिन्न सामाजिक समस्याओं पर और उनके निदान पर शेर कहे हैं। इसके अलावा शृंगाररस में भी उन्होंने बेजोड़ शेर कहे हैं, जिनमें हर पंक्ति से सौंदर्यबोध होता है, जो प्यार की खुशबू भरी मिठास पाठक के तक पहुँचाता है। बानगी के तौर पर कुछ शेर देखिए

वक्त के इस तरह से इशारे हुए 

आज के दिन पुनः तुम हमारे हुए

पांखुरी पांखुरी मुस्कुराने लगी 

रात तक जो रही मन को मारे हुए

आप जब भी मेरे उपवन की तरफ़ आते हैं

 वृक्ष किसलय से अनायास ही भर जाते हैं।

काम ही काम करते रहना मनुष्य का सद्गुण है कवि श्री शचींद्र जी कहते हैं....

हमारी व्यस्तता के क्षण कभी भी कम नहीं होंगे

हमारी याद ही रह जाएगी जब हम नहीं होंगे।

अंत में, मैं यही कहना चाहूँगा कि श्री भटनागर की गजलों से महसूस होता है कि वे ईश्वर में दृढ़ आस्था रखने वाले पूरी तरह आध्यात्मिक और समाज के प्रति चिंतनशील कवि थे। 






✍️ 'ओंकारसिंह 'ओकार'

1 बी/241, बुद्धि विहार 

आवास विकास कालोनी

मुरादाबाद (उ.प्र.)

गुरुवार, 25 अगस्त 2022

मुरादाबाद मण्डल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य ----अधिकारी की जय हो

 


बिना अधिकारी के मंत्री की क्या मजाल कि एक फाइल भी तैयार करके आगे बढ़ा दे ! जब मंत्री पदभार ग्रहण करता है तब अधिकारी उसे अपने कंधे का सहारा देकर मंत्रालय की कुर्सी  पर बिठाता है । झुक कर प्रणाम करता है और कहता है "माई बाप ! आप जो आदेश करेंगे ,हमारा काम उसका पालन सुनिश्चित करना है ।"

     मंत्री इतनी चमचामय भाषा को सुनकर अपने आप को डोंगा समझने लगता है और इस तरह अधिकारी चमचागिरी करके मंत्री रूपी डोंगे के भीतर तक अपनी पहुँच बना लेता है । 

           मंत्रियों की टोपी का रंग नीला , पीला ,हरा ,लाल बदलता रहता है लेकिन अधिकारी का पूरा शरीर गिरगिटिया रंग का होता है । जो मंत्री की टोपी का रंग होता है, वैसा ही अधिकारी के पूरे शरीर का रंग हो जाता है । पार्टी में दस-बीस साल तक धरना - प्रदर्शन - जिंदाबाद - मुर्दाबाद कहने वाला कार्यकर्ता भी अधिकारी के मुकाबले में नौटंकी नहीं कर सकता । कार्यकर्ता ज्यादा से ज्यादा टोपी पहन लेगा लेकिन अधिकारी का तो पूरा शरीर ही टोपी के रंग में रँगा होता है । अधिकारी मंत्री को यह विश्वास दिला देता है कि हम आप की विचारधारा के सच्चे समर्थक हैं और हम आपकी पार्टी को अगले चुनाव में विजय अवश्य दिलाएंगे । 

             मंत्री को क्या पता कि कानून कैसे बनता है ? वह तो केवल फाइल के ऊपर लोक-लुभावने नारे का स्टिकर चिपकाने में रुचि रखता है । भीतर की सारी सामग्री अधिकारी बनाता है । मंत्री के सामने मंत्री के मनवांछित स्टिकर के साथ फाइल प्रस्तुत करता है । इसलिए फाइलों में स्टिकर बदल जाते हैं ,नारे नए गढ़े जाते हैं ,महापुरुषों के चित्रों में फेरबदल हो जाती है लेकिन सभी नियमों का प्रारूप अधिकारियों की मनमानी को पुष्ट करने वाला ही बनता है । अधिकारी अपने बुद्धि चातुर्य से कानून का ऐसा मकड़ी का जाल बनाते हैं कि जनता रूपी ग्राहक उनके पास शरण लेने के लिए आने पर मजबूर हो जाता है और फिर उनकी मनमानियों का शिकार बन ही जाता है। मंत्रियों को तो केवल उस झंडे से मतलब है जो अधिनियम की फाइल के ऊपर लहरा रहा होता है । अधिकारी घाट-घाट का पानी पिए हुए होता है । उसे मालूम है कि यह झंडे -नारे सब बेकार की चीजें हैं । इन में क्या रखा है ? 

      असली चीज है अधिनियम की ड्राफ्टिंग अर्थात प्रारूप को बनाना । उसमें ऐसे प्रावधानों को प्रविष्ट कर देना कि लोग अफसरशाही से तौबा-तौबा कर लें । अधिकारियों की तानाशाही और उनकी मनमानी के सम्मुख दंडवत प्रणाम करने में ही अपनी ख़ैरियत समझें । परिणाम यह होता है कि मंत्री जी समझते हैं कि रामराज्य आ गया ,समाजवाद आ गया ,सर्वहारा की तानाशाही स्थापित हो गई । लेकिन दरअसल राज तो अधिकारी का ही चलता है । अधिनियम में जो घुमावदार मोड़ उसने बना दिए हैं , वहाँ रुक कर अधिकारी को प्रसन्न किए बिना सर्वसाधारण आगे नहीं बढ़ सकता। अधिकारी इस देश का सत्य है । मंत्री अधिक से अधिक अर्ध-सत्य है । अर्धसत्य फाइल का कवर है । सत्य फाइल के भीतर की सामग्री है ,जो अंततः विजयी होती है । इसी को "सत्यमेव जयते" कहते हैं ।

✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा

 रामपुर

 उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर के निर्देशन में जय प्रकाश सिंह का शोध प्रबंध .... साहित्यकार डॉ पुष्पेंद्र वर्णवाल : जीवन और साहित्य : एक आलोचनात्मक अध्ययन


                          


क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरा शोध प्रबंध 

⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️ 

https://acrobat.adobe.com/id/urn:aaid:sc:AP:dfe9c8b0-7e16-4c74-ab52-de3637915db2 

:::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

संस्थापक

साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822





मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघु कहानी.......आज भी,,,,

सर्वज्ञान विद्यालय के छात्र भीखू से स्वजातीय छात्रों ने पूछा अरे यार आज तो तुम एकदम सुस्त,थके-थके,मरियल से दिख रहे हो। तुम्हारा चेहरा भी बुझा बुझा और शरीर भी बेदम सा लग रहा है। तुम्हारे सूखे होंठों पर जमी पपड़ी भी तुम्हारी शारीरिक स्थिति को परिभाषित कर रही है। हो न हो कोई न कोई बीमारी अंदर ही अंदर पनप रही है। बोलो मित्र क्या बात है।

     भीखू की कक्षा के कुछ साथियों द्वारा उसकी सुस्ती का कारण जानने की हठ करने पर उसने कहा, भाइयो कई दिन से मैं तेज ज्वर व खाँसी से पीड़ित था। बुखार ऐसा कि कभी उतर जाता और फिर इतनी तेजी से चढ़ता की पूरे शरीर को ही जलाकर रख देता। कुछ भी खाने को मन न होता।

      आज कुछ कम होने पर विद्यालय आने की हिम्मत कर पाया। आज आजादी का  अमृत महोत्सव भी तो है। मैंने सोचा आप सभी से मिलकर मन खुश हो जाएगा।  और कुछ अधूरे कार्य भी आपके सहयोग से पूरे हो जाएंगे।

     भीखू के सभी मित्र यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और उसे पूर्ण सहयोग देने की बात कहते हुए कक्षा में  ले जाकर बैठा दिया। भीखू के सभी दोस्त जिनमें नथुआ, खचेड़ू, कलुआ, भैरों, हीरा ने भीखू से पूछा भैया, कुछ खाओगे। हमारे पास जो भी है मिल बांट कर खा लेंगे। भीखू ने कहा नहीं भैया मुझे बिल्कुल भूख नहीं है। आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद। यदि हो सके तो दो घूँट पानी पिला देना। बहुत प्यास लगी है। सारा हलक सूख रहा है। 

     इतना कहते ही भीखू अचेत होकर धरती पर गिर गया। उसके सभी साथी चीखते-चिल्लाते विद्यालय के प्रधानाचार्य भद्राचरण शुक्ला जी के कार्यालय में पहुंचे  और भीखू की अचेतावस्था से अवगत कराते हुए कहा सर, विद्यालय का नल खराब हो गया है। यदि आप अपने घड़े में से थोड़ा जल दे दें तो आपका बड़ा उपकार होगा। यह कहते हुए सभी ने पानी हेतु अपने गिलास आगे बढ़ा दिए।

    इतना सुनते ही प्रधानाचार्य ने सभी छात्रों को फटकार लगाते हुए अपने कक्ष से तुरंत  बाहर निकल जाने का आदेश देते हुए कहा। तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई कि तुमने अपने गंदे पैर मेरे कक्ष में रखे। मेरा सारा कमरा ही अपवित्र कर दिया।

    मैं खूब समझता हूँ कि पढ़ने के नाम पर ऐसे नाटक करना तुम नींच जाति के छात्रों की पुरानी आदत है।

   नहीं-नहीं गुरुवर ऐसा नहीं है, भीखू वास्तव में ही बहुत बीमार है। उसे दो घूँट पानी न मिला तो उसके प्राण संकट में पड़ जाएंगे। नथुआ ने विनम्र भाव से पुनः जल देने की प्रार्थना करते हुए कहा। गुरुजी आप स्वयं चलकर देख लेते तो सत्य असत्य का पता चल जाता।

   प्रधानाचार्य ने क्रोधवश कहा कि मैं अपने घड़े से दो घूँट तो क्या, दो बून्द पानी भी उस अछूत को नहीं दे सकता। मुझे अपवित्र नहीं होना समझे और जहां तक चलकर देखने की बात है तो मैं अपनी परछाईं भी उसके समीप ले जाना पाप समझता हूँ।

    सवर्णों को छोड़कर उसके अन्य सहपाठी बड़े उदास मन से कक्षा में लौट आए। सभी ने मिलकर भीखू को उठाया और विद्यालय परिसर के बाहर बह रहे नाले के पानी को कपड़े से छानकर पिलाने को जैसे ही उसका मुँह ऊपर उठाया तो देखा कि उनका प्रिय मित्र भीखू उन्हें सदा-सदा के लिए छोड़कर जा चुका है।

    सारे के सारे मित्र दौड़े-दौड़े भीखू के गांव पहुंचे और उसके देहांत की दुखद सूचना देकर स्वयं भी दहाड़ें मार कर रोने लगे।

    देखते ही देखते सारा गाँव एकत्र होकर स्कूल में हो रहे भेद-भाव पर रोष प्रकट करने संबंधित पुलिस थाने पहुँचा। परंतु वहां भी ऊंच नीच के घृणित व्यवहार ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। सभी लोग अपना सा मुँह लेकर लौट आए और अपने नसीब को कोसते हुए भारी मन से भीखू का अंतिम संस्कार यह कहते हुए कर दिया कि, अब शांत बैठने से काम नहीं चलने वाला। हम सभी को एक साथ इस भेद-भाव की कुप्रथा से लड़ना ही पड़ेगा।और कहना होगा भाड़ में जाए ऐसी आजादी जिसमें दशकों बाद आज भी......


✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल फोन नंबर 9719275453