गुरुवार, 25 अगस्त 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघु कहानी.......आज भी,,,,

सर्वज्ञान विद्यालय के छात्र भीखू से स्वजातीय छात्रों ने पूछा अरे यार आज तो तुम एकदम सुस्त,थके-थके,मरियल से दिख रहे हो। तुम्हारा चेहरा भी बुझा बुझा और शरीर भी बेदम सा लग रहा है। तुम्हारे सूखे होंठों पर जमी पपड़ी भी तुम्हारी शारीरिक स्थिति को परिभाषित कर रही है। हो न हो कोई न कोई बीमारी अंदर ही अंदर पनप रही है। बोलो मित्र क्या बात है।

     भीखू की कक्षा के कुछ साथियों द्वारा उसकी सुस्ती का कारण जानने की हठ करने पर उसने कहा, भाइयो कई दिन से मैं तेज ज्वर व खाँसी से पीड़ित था। बुखार ऐसा कि कभी उतर जाता और फिर इतनी तेजी से चढ़ता की पूरे शरीर को ही जलाकर रख देता। कुछ भी खाने को मन न होता।

      आज कुछ कम होने पर विद्यालय आने की हिम्मत कर पाया। आज आजादी का  अमृत महोत्सव भी तो है। मैंने सोचा आप सभी से मिलकर मन खुश हो जाएगा।  और कुछ अधूरे कार्य भी आपके सहयोग से पूरे हो जाएंगे।

     भीखू के सभी मित्र यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और उसे पूर्ण सहयोग देने की बात कहते हुए कक्षा में  ले जाकर बैठा दिया। भीखू के सभी दोस्त जिनमें नथुआ, खचेड़ू, कलुआ, भैरों, हीरा ने भीखू से पूछा भैया, कुछ खाओगे। हमारे पास जो भी है मिल बांट कर खा लेंगे। भीखू ने कहा नहीं भैया मुझे बिल्कुल भूख नहीं है। आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद। यदि हो सके तो दो घूँट पानी पिला देना। बहुत प्यास लगी है। सारा हलक सूख रहा है। 

     इतना कहते ही भीखू अचेत होकर धरती पर गिर गया। उसके सभी साथी चीखते-चिल्लाते विद्यालय के प्रधानाचार्य भद्राचरण शुक्ला जी के कार्यालय में पहुंचे  और भीखू की अचेतावस्था से अवगत कराते हुए कहा सर, विद्यालय का नल खराब हो गया है। यदि आप अपने घड़े में से थोड़ा जल दे दें तो आपका बड़ा उपकार होगा। यह कहते हुए सभी ने पानी हेतु अपने गिलास आगे बढ़ा दिए।

    इतना सुनते ही प्रधानाचार्य ने सभी छात्रों को फटकार लगाते हुए अपने कक्ष से तुरंत  बाहर निकल जाने का आदेश देते हुए कहा। तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई कि तुमने अपने गंदे पैर मेरे कक्ष में रखे। मेरा सारा कमरा ही अपवित्र कर दिया।

    मैं खूब समझता हूँ कि पढ़ने के नाम पर ऐसे नाटक करना तुम नींच जाति के छात्रों की पुरानी आदत है।

   नहीं-नहीं गुरुवर ऐसा नहीं है, भीखू वास्तव में ही बहुत बीमार है। उसे दो घूँट पानी न मिला तो उसके प्राण संकट में पड़ जाएंगे। नथुआ ने विनम्र भाव से पुनः जल देने की प्रार्थना करते हुए कहा। गुरुजी आप स्वयं चलकर देख लेते तो सत्य असत्य का पता चल जाता।

   प्रधानाचार्य ने क्रोधवश कहा कि मैं अपने घड़े से दो घूँट तो क्या, दो बून्द पानी भी उस अछूत को नहीं दे सकता। मुझे अपवित्र नहीं होना समझे और जहां तक चलकर देखने की बात है तो मैं अपनी परछाईं भी उसके समीप ले जाना पाप समझता हूँ।

    सवर्णों को छोड़कर उसके अन्य सहपाठी बड़े उदास मन से कक्षा में लौट आए। सभी ने मिलकर भीखू को उठाया और विद्यालय परिसर के बाहर बह रहे नाले के पानी को कपड़े से छानकर पिलाने को जैसे ही उसका मुँह ऊपर उठाया तो देखा कि उनका प्रिय मित्र भीखू उन्हें सदा-सदा के लिए छोड़कर जा चुका है।

    सारे के सारे मित्र दौड़े-दौड़े भीखू के गांव पहुंचे और उसके देहांत की दुखद सूचना देकर स्वयं भी दहाड़ें मार कर रोने लगे।

    देखते ही देखते सारा गाँव एकत्र होकर स्कूल में हो रहे भेद-भाव पर रोष प्रकट करने संबंधित पुलिस थाने पहुँचा। परंतु वहां भी ऊंच नीच के घृणित व्यवहार ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। सभी लोग अपना सा मुँह लेकर लौट आए और अपने नसीब को कोसते हुए भारी मन से भीखू का अंतिम संस्कार यह कहते हुए कर दिया कि, अब शांत बैठने से काम नहीं चलने वाला। हम सभी को एक साथ इस भेद-भाव की कुप्रथा से लड़ना ही पड़ेगा।और कहना होगा भाड़ में जाए ऐसी आजादी जिसमें दशकों बाद आज भी......


✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल फोन नंबर 9719275453

               

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