सोमवार, 14 नवंबर 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की साहित्यिक संस्था अखिल भारतीय काव्यधारा की ओर से 13 नवंबर 2022 को कवि सम्मेलन, लोकार्पण एवं सम्मान समारोह का आयोजन

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की साहित्यिक संस्था अखिल भारतीय काव्यधारा  की ओर से रविवार 13 नवंबर 2022 को  महादेवी वर्मा की स्मृति में कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह आयोजित किया गया । यह आयोजन आनंद कॉवेंट स्कूल , ज्वाला नगर, रामपुर में संस्थापक जितेन्द्र कमल आनंद की अध्यक्षता में हुआ ।

  मुख्य अतिथि प्रो मीना श्रीवास्तव 'पुष्पांशी ' (ग्वालियर -मप्र), विशिष्ट अतिथि द्वय प्रमेश लता पाण्डेय (कासगंज) व डॉ  गीता मिश्रा 'गीत' (हल्द्वानी) , अध्यक्ष जितेन्द्र कमल आनंद, महासचिव राम किशोर वर्मा (रामपुर), संरक्षक पीयूष प्रकाश सक्सेना, रोहित राकेश द्वारा मां सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलन और अनमोल रागिनी (रामपुर) द्वारा सरस्वती वंदना से आयोजन का शुभारंभ हुआ ।

   जितेन्द्र कमल आनंद ने अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। नजीबाबाद से पधारीं डॉ  मंजू जौहरी 'मधुर' ने महादेवी वर्मा की कृतियों- "नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत' आदि का उल्लेख किया तो रुद्रपुर (उत्तराखंड) से पधारी कवयित्री शारदा नरूला ने उनके गीतांश को सस्वर प्रस्तुत किया ।

   इस अवसर पर ग्वालियर से पधारी  प्रो मीना श्रीवास्तव पुष्पांशी का संग्रह "मीना की गज़लें" का लोकार्पण संस्था अध्यक्ष जितेन्द्र कमल आनंद ,  प्रमेश लता पाण्डेय, डॉ गीता मिश्रा 'गीत' तथा राम किशोर वर्मा द्वारा किया गया । 

   इस अवसर पर प्रो मीना श्रीवास्तव पुष्पांशी, प्रमेश लता पाण्डेय, डॉ  गीता मिश्रा 'गीत', राम किशोर वर्मा, चंद्रभूषण तिवारी 'चंद्र' ( प्रयागराज), बरेली के पूनम शुक्ला, डॉ  निशा शर्मा, रोहित राकेश, डॉ  रीता सिंह (चंदोसी), डॉ  अरविंद धवल (बदायूं), अमरोहा से शशि त्यागी , इंदु रानी, मुरादाबाद से राजीव प्रखर, उदय प्रकाश 'उदय', डॉ  प्रीति हुंकार , सत्यपाल सिंह 'सजग' (लालकुआं), राम रतन यादव (खटीमा), सुश्री पुष्पा जोशी 'प्राकाम्य' (सितारगंज- उ०खं०), रामपुर से राजवीर राज, सुरेन्द्र अश्क, अनमोल रागिनी, रवि प्रकाश, राम सागर शर्मा, जितेन्द्र नंदा , अमित रामपुरी, रश्मि चौधरी, झांसी से सांध्य निगम  सहित लगभग ३५ काव्यकारो ने काव्यपाठ किया और इन सभी को शाल ओढ़ाकर , प्रतीक चिन्ह देकर व "महादेवी वर्मा स्मृति काव्य धारा " सम्मान से संस्था द्वारा सम्मानित किया गया ।

    रोहित राकेश (बरेली) और राम किशोर वर्मा ( रामपुर) ने संचालन किया।अध्यक्ष जितेन्द्र कमल आनंद ने आभार व्यक्त किया ।

























::::::: प्रस्तुति:::::     

राम किशोर वर्मा

राष्ट्रीय महासचिव

अखिल भारतीय काव्यधारा,

 रामपुर (उ०प्र०) भारत ।


शनिवार, 12 नवंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर की सजल...


पग-पग पर पीडा़यें  भोगी, 

सपने  चकनाचूर  हुए  हैं! 

कैसे  अपना  दर्द  छुपाएँ, 

क्यों अपनों से दूर हुए हैं? 


साथ-साथ आंगन में खेले, 

प्रातराश-भोजन भी पाया! 

तारे गिनते - गिनते सोये, 

कभी नहीं मजबूर हुए हैं!! 


खेल-खेल में गिरे अचानक, 

चोट लगी कितना मन रोया! 

हाथ पकड़ कर सहलाते थे, 

कितने दिन काफ़ूर हुए हैं!! 


बड़े  हुए  घर  गया  छूटता, 

शिक्षा-परहित रहे अकेले! 

लेकिन,घर को भूल न पाये, 

मिलन दिवस अति क्रूर हुए हैं!! 


समय बदलते देर न लगती, 

मात-पिता भी स्वर्ग सिधारें! 

अपनों का संकट हरने को, 

अनचाहे  ज्यों  घूर  हुए  हैं!! 


तन-मन कब नीलाम हो गया, 

वैभव - साहुकार  के  द्वारा! 

यौवन उसका दास बन गया, 

मित्र  कहें  मशहूर  हुए  हैं!! 


श्रम ने भाग्य बदल डाला है, 

बदला घर का मानचित्र भी! 

अपने  भूले  अहंकार  में, 

हम  खट्टे  अंगूर  हुए  हैं!! 


अपना कौन पराया जग में,

इसका बोध नहीं हो पाता ? 

महाकष्ट में साथ खड़े जो, 

वे  ही  सच्चे  शूर  हुए  हैं!! 

✍️ डॉ. महेश 'दिवाकर' 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद के साहित्यकार के डी शर्मा (कृष्ण दयाल शर्मा ) की पंद्रह रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में


 















शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा.....टारगेट



 "कल जिले में कितने नए पौधे लगाए गए थे"

" दो हजार"

" पौधे लगाते हुए फोटो खींच लिए थे"

" जी हां"

"अब ऐसा करो, उन सबको उखाड़ लो और किसी नई जगह लगाकर फोटो खींच लो"

"लेकिन ऐसे तो बहुत से पौधे खराब हो जायेंगे"

" हो जाने दो। हमें प्रदेश का टारगेट पूरा करना हैं।"


✍️ डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

आदर्श कॉलोनी रोड

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघु कथा ....आर या पार

 


सावित्री का चेहरा सूजा हुआ था। जगह-जगह लाल- नीले निशान पड़े हुए थे ,जो बता रहे थे कि कुछ देर पहले क्या हुआ होगा।

    मायके से सावित्री का भाई आया था और अपनी बहन के चेहरे पर यह निशान देखकर भौचक्का रह गया। बहुत गुस्सा आया। पूछा" यह क्या है ? कैसे हुआ ? किसने किया?"

    सावित्री ने कोई जवाब नहीं दिया। पानी का गिलास भाई की तरफ बढ़ाया ।

       कहा" पानी पियो "

भाई बोला "मेरी बात का जवाब दो !"

    सावित्री बोली "बात बढ़ाने से कोई फायदा नहीं । कल तुम्हारे जीजा जी जब खाने बैठे तो उन्हें खाने में नमक कुछ ज्यादा लगा । बस इसी बात पर मार- पिटाई शुरू कर दी ।"

     भाई भड़क गया "आजकल के जमाने में क्या कोई औरतों से ऐसे सलूक करता है?"

      बहन बोली "आजकल के जमाने में ही यह सब हो रहा है। मर्दों का कहना है  कि औरतें पिटाई की भाषा ही समझती हैं। ऐसे ही ठीक रहती हैं ।"

     "तुम विद्रोह क्यों नहीं करती ?"

             "क्या होगा इससे ?-"सावित्री का जवाब था।

    "तुम पुलिस में रिपोर्ट क्यों नहीं करती?"

          " परिवार टूट जाएगा ?"

"और अब क्या बिखरा हुआ नहीं है ?अब क्या कम टूटा हुआ है ? अपने चेहरे के निशान देखो ! क्या जिंदगी भर इन्हीं को लिए हुए रोती रहोगी ?"

     सावित्री ने कोई जवाब नहीं दिया। रसोई में चली गई ।भाई गुस्से में तमतमाता रहा। जीजा आए तो सीधा सवाल दाग दिया-" मेरी बहन को अगर हाथ भी लगाया तो ठीक नहीं होगा।"

      सुनते ही जीजा भड़क गए "ओह !अब बहन के भाई के पर निकलने लगे ! क्या कर लोगे मेरा ! जाओ बहन को उठाकर ले जाओ ।"

     "जीजा आपने सही नहीं समझा। मेरी बहन कहीं नहीं जाएंगी। वह इसी घर में रहेंगी, क्योंकि वह घर की मालकिन हैं।  हां ! आपको जरूर जेल जाना पड़ेगा ।सोच लीजिए ! आप तो समझदार हैं । पढ़े लिखे हैं। सरकारी नौकरी करते हैं।"

      " मुझे धमका रहे हो ।"

              "बिल्कुल धमका रहा हूँ। आपकी सरकारी नौकरी चली जाएगी ।"

        जीजा समझदार था ।थोड़ी ही देर में उसने हथियार डाल दिए। बोला "अपनी बहन को समझाओ । घर गृहस्थी में ध्यान दे। मैं जानबूझकर थोड़े ही मारता हूँ।"

            "चाहे जानबूझकर मारो ,चाहे बगैर जानबूझकर  मारो ,लेकिन अब आज से हाथ नहीं उठना चाहिए । वादा करते हो तो मैं जाऊँ, वरना यहीं रह कर आगे की कार्यवाही करूँ।"

       जीजा डर गया ।बोला "अब हाथ नहीं उठाऊँगा ।"

            रसोई के दरवाजे की आड़ में खड़ी सावित्री ने जब यह सुना, तो खुशी से उसकी आँखों में आँसू आ गए ।लेकिन थोड़ी सी धुकर-पुकर भी मन में बढ़ रही थी कि देखो आगे क्या होता है । फिर सोचने लगी, चलो ठीक ही हो रहा है। जो होगा,अच्छा ही रहेगा। या तो आर या फिर पार। इस रोज-रोज की मार- पिटाई वाली जिंदगी से तो बेहतर रहेगा ।

✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा,

रामपुर

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा--सभ्यता

   


चौराहे पर गाड़ी और मोटरसाइकिल में टक्कर होते -होते रह गई।तभी मोटरसाइकिल सवार ने गाड़ी चला रहे 75 वर्षीय वृद्ध से कहा

 देख कर नहीं चल सकता जब चलानी नहीं आती तो चलते क्यों हो ? वृद्ध ने विनम्रता से कहा ," बेटा गलती हो गई आइंदा ध्यान रखूंगा।" हाँ हाँ----- इतना ही कह पाया था कि उधर से मोटसाइकिल चालक के

पिता श्री ने उसके पास आकर गाड़ी रोक कर पूछा क्या हुआ बेटा ? ," कुछ नहीं पिता जी बस इसे बता रहा था कि गाड़ी देख कर चलाया कर ।" पिता रामसेवक ने गाड़ी में बैठे महाशय को देख गाड़ी से उतर कर उनके पैर छुये और लड़के के चपत लगाते हुए कहा," मालूम है यह कौन हैं?"ये गाड़ी ये मोटसाइकिल सब इनकी कृपा से है ,माफ़ी मांग इनसे।

    कोई बात नहीं राम सेवक," जाने दो बच्चा है कहा सेठ जी ने " और यह कह कर अपनी गाड़ी बढ़ा दी," ईश्वर का दिया तुम पर सब कुछ है  राम सेवक बस थोड़ी सी सभ्यता की कमी है-- सिखाना जरुर -----"।।

✍️ अशोक विश्नोई


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉक्टर प्रीति हुंकार की लघु कथा ..... आखिर वह क्या करे....



"ये बच्चे तुम्हारे भी तो हैं अमन,मैं नौकरी न कर रही होती तो भी तो तुम इन बच्चों की जिम्मेदारी उठाते कि नहीं ।"बच्चों की पढ़ाई ,मकान लोन दवाई गोली ,अतिथि सत्कार घर की छोटी से छोटी जरूरत तुम मेरे जिम्मे करके स्वयं चिंता मुक्त हो ,कभी तो सोचो कि मैं अकेले कैसे मैनेज करती हूं कहते कहते अवनि के नेत्रों से अश्रु धारा वह निकली......।"अगर मुझे जिम्मेदारी उठानी होती तो तेरी जैसी काली कल्लो से शादी क्यों कर लेता । खैर कर ,की भगवान ने तुझे नौकरी दी है वरना तेरी जैसी बदसूरत औरत से रिश्ता करने की क्या पड़ी थी मुझे । हर लड़के ने नापसंद किया था तुझे बस मैं ही अभागा था जो तू मेरे ......अमन ने  अवनि की आवाज़ दबाते हुए गुर्राते हुए व्यंग्य किया । 

जीवन के बीस वर्षों में जब भी अवनि ने अपने नौकरीपेशा पति अमन को उसकी जिम्मेदारी बतानी चाही ,कभी वह मोबाइल में शेयर देखने लगता, कभी उससे अलग हो जाने की कहता कभी चरित्र पर ऊंगली उठाता और कभी बदसूरती की दोहाई देता ,पर अपने समस्त कर्त्तव्यों का सम्यक निर्वहन करके भी अवनि स्वयं से प्रश्न करती  रह जाती कि आखिर वह क्या करे ..........? पर उत्तर शायद ही उसे मिल पाता।


✍️ डॉ प्रीति हुंकार

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार राम किशोर वर्मा की लघुकथा.....ईमानदार


 "आज पाँच तारीख हो गई शर्मा जी । अभी तक आपके स्टेटमेंट नहीं आये? तीन तक आ जाने चाहिए थे!" -- बड़े बाबू बाबू जी पर बिगड़ रहे थे --"हमें सात को हाई कोर्ट भेजने हैं। हम कब तैयार करेंगे ? आपसे एक अपनी कोर्ट के नक्शे नहीं बन पा रहे?"

   शर्मा जी बोले -- "मैं तीन दिन से छुट्टी पर था । कल ही ऑफिस आया हूँ । मेरे पीछे काम बहुत फैल गया था । उसे समेटा है । रात को घर पर स्टेटमेंट की तैयारी भी कर ली है। कल सुबह ही स्टेटमेंट आपकी टेबिल पर होंगे ।"

   "काम का तो बहाना है । आपको इधर-उधर जुगाड़ भिड़ाने से फुर्सत मिले न!" -- कहते हुए बड़े बाबू कुर्सी से उठे --"मेरी नमाज़ का टाइम हो गया है। मैं मस्जिद में जा रहा हूँ । आज शाम तक हर हाल में स्टेटमेंट मेरे पास आ जाने चाहिए।"

   शर्मा जी ने बड़े बाबू को याद दिलाया --"आप भी बाबू रह चुके हो । अभी तो आपने इधर-उधर झांकना बंद कर दिया है। नौ सौ चूहे खाये बिल्ली हज़ को चली । आज आप ईमानदारी का ढोंग रच रहे हैं तो आपकी नज़र में सब बेईमान हो गये ।"

   बड़े बाबू सब सुनते हुए नमाज पढ़ने के लिए कमरे से तेज कदमों से  बाहर  निकल गये ।

   ✍️ राम किशोर वर्मा 

रामपुर 

उत्तर प्रदेश, भारत


मंगलवार, 8 नवंबर 2022

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद संभल) के साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की बाल कविता ....चंद्रग्रहण


शिक्षक जी बच्चों से पूछे,

फिर से एक सवाल। 

चंद्रग्रहण कैसे-क्यों पड़ता, 

बतलाओ तत्काल। 


गप्पू जी ने हिम्मत करके, 

सर जी को बतलाया ।

चाँद चमकता है,सूरज से,

तुमने हमें बताया ।


सर जी बोले सही पकड़े हो,

पर आगे बतलाओ ।

चंद्रग्रहण की सारी घटना,

जल्दी से समझाओ।

 

सूर्य-चंद्रमा में भी तो सर!,

झगड़ा होता होगा। 

सूरज न देता प्रकाश, तब,

चंदा रोता होगा। 


उस दिन सर जी हमें रात में,

चाँद न जब दिख पाता।

समझो सर जी उसी रात में,

चंद्रग्रहण पड़ जाता। 


सारी कक्षा ही-ही करके,

गप्पू पर थी हँसती। 

शिक्षक जी ने डाँटा सबको,

करो न इतनी मस्ती। 


कुछ तो कोशिश करता गप्पू ,

कुछ तो हमें बताता।

सूर्यप्रकाश से चाँद चमकता,

गप्पू सही फरमाता। 


सुनो ध्यान से पूरी कक्षा, 

देखो मैं समझाऊं। 

चंद्रग्रहण की पूरी घटना, 

मे तुमको बतलाऊं।


जब पृथ्वी सूरज-चंदा के,

ठीक मध्य में आती। 

तब सारी किरणें सूरज की, 

भू तक पहुंच न पाती।


अरु पृथ्वी की छाया बच्चो!

चंदा पर पड़ जाती। 

यह खगोलिय घटना गप्पू !,

चन्द्रग्रहण कहलाती।

 

पूर्णिमा है वो तिथि बच्चो!,

जब ऐसा होता है। 

न सूरज लड़ता चंदा से, 

न चंदा रोता है।


✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग' 

शिवबाबा सदन, कृष्णाकुंज,

बहजोई-244410 (संभल) 

उत्तर प्रदेश, भारत

मो. 9548812618 

ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com

सोमवार, 7 नवंबर 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में मेरठ निवासी)के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी के चार गीत .....


(1)

मेरे सपने, तेरे सपने  

घर पर ही कुर्बान हुए  

संतानों ने चढ ली सीढी, 

सपने तब संधान हुए 


सोचा क्या, पाया फिर हमने 

इतनी फुरसत मिली कहां 

अंगारों पर चले मुसाफिर 

क्या अपने-अरमान हुए


बच्चों ने भी गुल्लक फोड़ी 

मां ने गहने बेच दिए 

कर्जा कर्जा लदे पिताजी

तब जाकर भगवान हुए।


कुछ बनने की खातिर यूं तो

करते हैं सब, जतन यहां 

रखी दिवाली मन के अंदर

बल-बलकर बलिदान हुए।।  

(2)

टूटी सड़कें, पसरे गड्ढे, 

अपना सफर तो जारी है

आसमान में छेद किया है,

 दिल अपना त्योहारी है।


सुबह सवेरे निकले घर से

क्या पूरब कहाँ पश्चिम है

दगा दे रहे सूरज को सब

दिल अपना सरकारी है। 


आओ आकर देख लो तुम भी

कदमों से नापी दुनिया 

उठते गिरते बढ़ गये आगे

छालों से भी यारी है।। 


अभी अभी तो यहीं कहीं पर

फ़ाइल देखी किस्मत की

फेंका पैसा, खुल गई यारो

क्या अपनी लाचारी है।। 


घर से दफ्तर,दफ्तर से घर

हर दिन का रूटीन यही 

मुँह चुराता घर का चूल्हा

महँगी सब तरकारी है।।

(3)

प्रेम की संकल्पना

प्रेम की वर्जनाएं

है मेरे पास ही

तुम्हारी कल्पनाएं


एक दिया हाथ पर

रोशनी मुझमें कैद

प्रकाश का वह घेरा

और तुम्हारी अर्चनाएं


दीप्त प्रदीप्त सी तुम

समक्ष जो मेरे खड़ीं

उच्छवास था गहरा मगर

गूंजती मंगल कामनाएं


दर पर प्रतीक्षित चांद सा

मैं नभ दृष्टिपात करता

लाने उसको आँगन यहां

करता नित अभ्यर्थनाएं..


है परस्पर प्रीत का पर्व

आलिंगन में विश्वास बेला

तैरते नैनों ने देखी फिर

सदा यूँ ही  ज्योत्स्नाएं..

(4)

जब जब ढलके शाम, गूंजता मन का क्रंदन

कैसे कह दूं कोई कर रहा,  हमारा वंदन।।


आई पीर कहने लगी, सागर बूंदों का 

डरना क्या तूफानों से, तन तो नींदों का  

बन अगस्त्य हैं पी जाते, लहरें सागर की 

बादल बनते हैं हमसे,  आशा गागर की 

ठहरो-ठहरो चली वेग है, खिलता उपवन।।  

कैसे कह दूं कोई कर रहा,  हमारा वंदन।।


हर मौसम की नई फसल, इन खलिहानों की 

जब जब फूटती बालियां, कह बलिदानों की 

रह रहकर फिर आ जाती, कथा सावन की

आसमां पर टिकी निगाहें, व्यथा आंगन की

नागफनी सम ख्वाब हमारे,  तन-मन चंदन।

कैसे कह दूं कोई कर रहा,  हमारा वंदन।।


आओ करते गुणा-भाग, अपनी बदरी का 

छाता ओढे खड़े हुए जन, अपनी नगरी का

बीत गई लो उम्र अपनी, किस्सा पानी सा

नापतोल कर लिखा हमने, हिस्सा रानी का

ज्यूं कर रही कोई अप्सरा, छम-छम नर्तन।।

कैसे कह दूं कोई कर रहा,  हमारा वंदन।।

✍️ सूर्यकांत द्विवेदी, मेरठ






रविवार, 6 नवंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष रामलाल अनजाना की काव्य कृति "वक्त न रिश्तेदार किसी का"। यह कृति वर्ष 2009 में अखिल भारतीय साहित्य कला मंच मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित की गई है ।


क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति 

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:::::::प्रस्तुति::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

मोबाइल फोन नंबर 9456687822




मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में रविवार छह नवंबर 2022 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन

    मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में दिल्ली रोड मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इण्टर कालेज के सभागार में रविवार छह नवंबर 2022 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से काव्य गोष्ठी का शुभारम्भ हुआ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा...

मन में  सुन्दर स्वप्न सजाएं। 

हर असमंजस दूर भगाएं। 

घोर निराशा के तम में सब। 

आओ आशा दीप जलाएं।  

मुख्य अतिथि कवि शिशुपाल मधुकर ने अपनी अनेक जनवादी कविताएं प्रस्तुत की । उन्होंने कहा ....

कांटों की दहशत 

नहीं छुड़वा सकी। 

फूलों का मुस्कराना 

इसी सोच में 

कांटे सूखते चले गये। 

विशिष्ट अतिथि के रुप में ग़ज़लकार ओंकार सिंह ओंकार ने कहा ....

इतनी इच्छाएं बढ़ा लीं अब खुशी के नाम पर। 

सुख से रहते ही नहीं है सादगी के नाम पर। 

 काव्य गोष्ठी का  संचालन करते हुए संस्था के महासचिव जितेन्द्र कुमार जौली ने हास्य कविता प्रस्तुत की- 

गाड़ी में बैठाकर ले गये हमको,

 हथकड़ियों में जकड़ा गया। 

बिना लाइसेंस कविताएं सुनाता था, 

इसलिए पकड़ा गया। 

संस्था के अध्यक्ष रामदत्त द्विवेदी ने सुनाया- 

कौन मन का मीत पंथी, कौन मन का मीत ये। 

एक पल मिलना बिछड़ना ही जगत की रीत रे। 

      कवि रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने सुनाया- 

हर कदम पर बिछा छद्म का जाल है। 

ओढ़ ली वक ने गिरगिटी खाल है। 

भीड़ में खोते जा रहे हैं, नामी यहां। 

आंख के सामने ही ओझल भाल है।

कवि विकास मुरादाबादी ने कविता सुनाई- 

मैं नहीं कहता गगन में मत उड़ो तुम। 

जो दिशा भाये उधर को ही मुड़ो तुम।

 लोग पशुओं से भी बद्तर हैं जमीं पर। 

कितना अच्छा हो कि इनसे भी जुड़ो तुम। 

      डॉ मनोज रस्तोगी ने भ्रष्टाचार पर व्यंग्य करते हुए सुनाया- 

भाई साहब, 

इसका तो हर कोई शिकार है,

 इसके खिलाफ आप कहां जायेंगे। 

जहां जायेंगे इसे पायेंगे। 

नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने सुनाया- 

आज फिर अख़बार की ये सुर्ख़ियाँ हैं। 

गाँव सहमे-से डरी-सी बस्तियाँ हैं। 

चिट्ठियाँ तो हो गई हैं गुमशुदा अब। 

याद करने को बची बस हिचकियाँ हैं।

कवयित्री इन्दु रानी ने सुनाया-

 गोमुख से हो अवतरित ,बहे चली हरिद्वार।

 बन प्रयाग में त्रिवेणी,देती पाप उतार। 

लहराती शीतल करे,खेत और खलिहान। 

हिन्द के तल पर बहती, बढ़ा रही है मान।

 आभार  संस्था के अध्यक्ष रामदत्त द्विवेदी ने अभिव्यक्त

किया। 














:::::::प्रस्तुति:::::::

जितेन्द्र कुमार जौली

महासचिव

हिन्दी साहित्य संगम

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल - 8279374790

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी का संस्मरण..... मुरादाबाद से गहरा लगाव रहा था बाबा नागार्जुन का

      सहज जीवन के चितेरे, शब्दों के अनूठे चित्रकार, प्रकृति प्रेमी जनकवि बाबा नागार्जुन का मुरादाबाद से विशेष लगाव रहा है। अक्सर गर्मियों के तपते दिन वह  लैंस डाउन और जहरी खाल की हरी भरी उपत्यकाओं में बिताते रहे हैं। वहां की हरियाली,घुमावदार सड़कें, चेरापूंजी जैसी बारिश और साहित्यकार वाचस्पति का स्नेह उन्हें हर साल वहां खींच लाता था तो मुरादाबाद भी वह आना नहीं भूलते थे। यहां प्रसिद्ध गीतकार माहेश्वर तिवारी और हिन्दू कालेज के सेवानिवृत्त प्रवक्ता डॉ डी. पी. सिंह -डॉ माधुरी सिंह के यहाँ रहते। उनके परिवार के साथ घंटों बैठकर बतियाते रहते। पता ही नहीं चलता था समय कब बीत जाता था।   साहित्य से लेकर मौजूदा राजनीति तक चर्चा चलती रहती और उनकी खिलखिलाहट पूरे घर में गूंजती रहती । मुरादाबाद प्रवास के दौरान वह सदैव सम्मान समारोह, गोष्ठियों से परहेज करते रहते थे।

    वर्ष 91  का महीना था बाबा, माहेश्वर तिवारी के यहां रह रहे थे। महानगर के तमाम साहित्यकारों ने उनसे अनुरोध किया कि वह अपने सम्मान में गोष्ठी  की अनुमति दे दें लेकिन वह तैयार नहीं हुए। वहीं साहित्यिक संस्था "कविता गांव की ओर"  के संयोजक राकेश शर्मा जो पोलियो ग्रस्त थे, बाबा के पास पहुंचे, परम आशीर्वाद लिया । बाबा देर तक उनसे बतियाते रहे. बातचीत के दौरान राकेश ने बाबा से उनके सम्मान में एक गोष्ठी का आयोजन करने को अनुमति मांगी। बाबा ने सहर्ष ही उन्हें अनुमति दे दी।
      अखबार वालों से वह दूर ही रहते थे । पता चल जाये कि अमुक पत्रकार उनसे मिलने आया है तो वह साफ मना कर देते। स्थानीय साहित्यकारों से वह जरूर मिलते थे, बतियाते बतियाते यह भी कह देते थे बहुत हो गया अब जाओ ।दाएं हाथ में पढ़ने का लैंस लेकर अखबार पढ़ने बैठ जाते थे और शुरू कर देते थे खबरों पर टिप्पणी करना।
    वर्ष 1992 में जब  बाबा यहां आए तो उस समय यहां कृषि एवं प्रौद्योगिक प्रदर्शनी चल रही थी। छह जून को के.सी. एम. स्कूल में कवि सम्मेलन था । बाबा ने एक के बाद एक, कई रचनाएं सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कवि सम्मेलन जब खत्म हुआ तो वह चलते समय वहाँ व्यवस्था को तैनात पुलिस कर्मियों के पास ठहर गये और लगे उनसे बतियाने। ऐसा अलमस्त व्यक्तित्व था बाबा का। वह सहजता के साथ पारिवारिकता से जुड़ जाते थे।
    बच्चों के बीच बच्चा बनकर उनके साथ घंटों खेलते रहना उनके व्यक्तित्व का निराला रूप दिखाता था। डॉ माधुरी सिंह अपने दीनदयाल नगर स्थित आवास पर बच्चों का एक स्कूल टैगोर विद्यापीठ संचालित करती थीं।  वर्ष 1995 की तारीख थी दस अगस्त , बाबा जब वहां गए तो बैठ गए बच्चों के बीच और बाल सुलभ क्रीड़ाएं करते हुए उन्हें अपनी कविताएं सुनाने लगे । यही नहीं उन्होंने बच्चों से भी कविताएं सुनीं, जमकर खिलखिलाए और बच्चों को टाफियां भी बांटी। बच्चों के बीच बाबा , अद्भुत और अविस्मरणीय पल थे।

     बाबा जब कभी मुरादाबाद आते, मेरा अधिकांश समय उनके साथ ही व्यतीत होता था । वर्ष 1985 में नजीबाबाद में आयोजित दो दिवसीय लेेेखक शिविर में भी उनके साथ रहने का  सुअवसर प्राप्त हुआ। अनेक यादें उनके साथ जुड़ी हुई हैं। वर्ष 1998 में इस नश्वर शरीर को त्यागने से लगभग छह माह पूर्व ही वह दिल्ली से यहां आए थे । कुछ दिन यहां रहने के बाद वह काशीपुर चले गए थे ।
















✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन 9456687822










शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव सक्सेना की बाल कहानी..... असफलता । उनकी यह कहानी बालपत्रिका -देवपुत्र के नवंबर-2022 के अंक में प्रकाशित हुई है।

     


"बच्चों ! तुम्हें पता है... भारत अंतरिक्ष में अपने यात्री भेजने वाला है....।" सुधीर आचार्य जी ने कक्षा में विज्ञान पढ़ाते हुए अपने छात्रों को जानकारी देते हुए कहा।

" आचार्य जी ! हमने यह भी सुना है कि हमारे वैज्ञानिक शीघ्र ही चन्द्रमा पर अपना अभियान करने वाले हैं।" रचित ने बीच में बोलते हुए कहा।

"हाँ बिल्कुल ठीक यही नहीं इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) मंगल पर भी दूसरा यान भेजने में जुटा है। सही बात तो यह है कि दुनिया के सभी विकसित देशों के बीच अपने यान अंतरिक्ष में भेजने की प्रतिस्पर्धा लगी है। हमारा भारत भी पीछे नहीं है। लेकिन बच्चों समय रहते तुम्हें भी विज्ञान में रुचि लेनी होगी जिससे हमें योग्य वैज्ञानिक और इंजीनियर मिल सकें। नहीं तो हमारा देश पिछड़ ने जायेगा।" सुधीर आचार्य जी ने कुछ गंभीर होकर कहा।

"आचार्य जी! मुझे तो विज्ञान पढ़ना बहुत पसंद है। मुझे यह बड़ा रोचक लगता है।" सार्थक ने कहा। "मुझे तो वैज्ञानिकों और उनके आविष्कारों की कहानियाँ पढ़ना पसन्द है।" इस बार संकेत बोला।

"अंतरिक्ष यात्रा बड़ी मजेदार होती है। मैं तो बड़ा होकर अंतरिक्ष यात्री बनूँगा। एलियनों अर्थात अंतरिक्ष वासियों से भेंट करूँगा।" तुषार बोला। "मैं तो वैज्ञानिक बनूँगा, बड़ा होकर आविष्कार करूँगा।" सजल ने कहा। 

सुधीर आचार्यजी की कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे विज्ञान के बारे में अपनी-अपनी राय दे रहे थे। सुधीर आचार्य जी बड़े ध्यान से उन्हें सुन रहे थे। सारी कक्षा

में एक भी छात्र ऐसा नहीं था जिसकी 

विज्ञान में रुचि न हो । दरअसल, सुधीर आचार्य जी का विज्ञान पढ़ाने का अंदाज ही निराला था । विज्ञान

जैसे नीरस और कुछ कठिन लगने वाले विषय को भी वे इतने रोचक ढंग से पढ़ाते थे कि सभी की रुचि इसमें बनी रहती थी और कोई भी छात्र उनकी कक्षा में अनुपस्थित नहीं रहना चाहता था।

"बच्चों ! अंतरिक्ष के बारे में जानने की जिज्ञासा तुम्हारे अंदर बनी रहे और तकनीक से तुम्हें जोड़ने के लिए अगले महीने 'रॉकेट बनाओ' प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है, जिसमें शहर के सभी विद्यालयों को आमंत्रित किया गया है। आप अपने बनाये रॉकेट का प्रदर्शन उसे उड़ाकर प्रतियोगिता में कर सकते हैं बढिया रॉकेट बनाने वाले बच्चों को पुरस्कार दिया जायेगा.. हाँ, एक बात और रॉकेट बनाने के लिए आप इन्टरनेट या बड़ों की सहायता भी ले सकते हैं। इस प्रतियोगिता का जीवंत प्रसारण भी किया जायेगा।" आचार्य जी ने कहा।

"वाह! मैं भी एक नन्हा रॉकेट बनाऊँगा।" चंचल ने चहकते हुए कहा।

अनुभव को छोटे रॉकेट या उनके नन्हें मॉडल बनाने का बड़ा शौक था। शहर के ही एक पटाखे बनाने वाले से उसने रॉकेट बनाने के गुर सीखे थे। इसके अलावा वह नेट पर भी रॉकेट बनाने के तरीके सीखता रहता था। राकेट बनाना अनुभव की धुन थी। मित्र और सहपाठी भी अनुभव की इस धुन को अच्छी तरह जानते थे। तभी वे उसे 'रॉकेट मैन' कहकर पुकारते थे। संभव तो अक्सर कहता था- "अनुभव! मुझे लगता है बड़ा होकर तू अवश्य ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जैसा राकेट वैज्ञानिक बनेगा। " उस दिन जब सुधीर आचार्यजी ने विद्यालय में आयोजित होने वाली 'रॉकेट बनाओ' प्रतियोगता के बारे में बताया तो मित्रों ने अनुभव से कहा "अनुभव! तुम्हारे लिये तो यह स्वर्णिम अवसर है। तुम अवश्य यह प्रतियोगिता जीतोगे।" अनुभव भी मन ही मन प्रतियोगिता के लिए रॉकेट बनाने को तैयार हो गया।

किन्तु अब समस्या यह थी कि कैसा रॉकेट बनाया जाए। यह तो तय था कि दूसरे बच्चे भी नेट से सहायता लेकर रॉकेटों के एक से एक उत्तम प्रादर्श बनाकर उनका प्रदर्शन करेंगे।

"मुझे सबसे हटकर कुछ अनोखे प्रकार का मॉडल रॉकेट बनाना होगा जैसा किसी ने न बनाया हो।" अनुभव विचार करने लगा। लेकिन यह आसान काम नहीं था। समय खिसकता जा रहा था। खिसक क्या रहा था बल्कि तेजी से पंख लगाकर उड़ रहा था।

अनुभव के भीतर रॉकेट प्रतियोगिता को लेकर गहरी उधेड़बुन चल रही थी। अनुभव को विज्ञान और तकनीक से जुड़ी खबरें देखने-पढ़ने का भी शौक था।

एक दिन ज्यों ही अनुभव ने अपना टी.वी. खोला स्क्रीन पर एलन मस्क का चेहरा दिखायी दिया। टी. वी. पर एलन मस्क का साक्षात्कार दिखाया जा रहा था मस्क ने साक्षात्कार लेने वाले पत्रकार से कहा "हमारा कॉरपोरेशन ऐसे रॉकेट के प्रोटोटाइप पर काम कर रहा है जिसे अंतरिक्ष में उड़ान भरने के लिए ईंधन की आवश्यकता ही न हो यानि बिना ईंधन का रॉकेट।'

'बिना ईंधन का रॉकेट ? यह सचमुच एक नयी बात थी। अभी तक दुनिया में बिना ईंधन का रॉकेट बनाने में किसी को सफलता नहीं मिली थी। "मैं प्रतियोगिता के लिए ऐसा ही रॉकेट बनाऊँगा। बिना ईंधन का रॉकेट।" टी. वी. पर एलन मस्क का साक्षात्कार देखते ही जैसे अनुभव को राह मिल गयी। वह एक नये उत्साह से भर गया। जो काम बड़े-बड़े वैज्ञानिक नहीं कर पाये थे वह एक किशोर या बच्चे के लिए आसान कैसे हो सकता था? मुझे अरुण चाचा की सहायता लेनी होगी अनुभव ने मन ही मन विचार किया।

अरुण के चाचा इंजीनियर थे जब अनुभव ने उनसे बिना ईंधन वाला रॉकेट बनाने का उल्लेख किया तो वे बोले "रॉकेट को उड़ान भरने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होगी। यह ऊर्जा कोई भी हो सकती है- विद्युत ऊर्जा, ध्वनि ऊर्जा या फिर प्रकाश ऊर्जा।"

"यदि मैं प्रकाश से चलने वाला रॉकेट बनाऊँ तो कैसा रहेगा। बस, इसके लिए मुझे कुछ फोटो सेल की ही तो आवश्यकता होगी।"

अचानक एक जोरदार सूझ भरा विचार बिजली की तरह अनुभव के मन में कौंध गया। बस, फिर क्या था।

अनुभव एकदम हवा-हवाई हो गया। वह फोटो सेल से उड़ने वाला यानी फोटान रॉकेट बनाने में जुट गया। अरुण चाचा ने भी रॉकेट के लिए फोटो सेल बनाने में उसकी खूब सहायता की।

आखिर प्रतियोगिता के लिए अनुभव का रॉकेट बनकर तैयार हो गया। कुछ-कुछ हवाई जहाज जैसा दिखने वाला अनुभव का यह रॉकेट बिल्कुल अलग या अनोखे किस्म का था।

    प्रतियोगिता वाले दिन दूसरे बच्चे अनुभव का यह अजीबो-गरीब आकृति वाला रॉकेट देखकर हैरान थे।

प्रतियोगिता प्रारंभ हुई। "नौ... आठ... सात... चार... दो... एक...शून्य।"

आचार्यजी ने 'काउन्ट डाउन' यानी उल्टी गिनती शुरू की तो शून्य पर पहुँचते ही दर्जनों रॉकेट दनदनाते हुए हवा में ऊँची उड़ान भरते हुए चले गये। अनुभव का रॉकेट बस बीस-तीस मीटर ऊँचा ही उड़ पाया और फिर एकाएक औंधे मुँह मैदान में नीचे गिरकर मिट्टी में धँस गया।

हो...हो...हो...हो...। अनुभव के रॉकेट की यह दशा देखकर आस पास खड़े दर्शकों, अध्यापकों और सहपाठियों के मुँह से हँसी का एक फव्वारा ही छूट पड़ा।

वे व्यंग्य भरी दृष्टि से उसे देख रहे थे। "कहो रॉकेट मैन! तुम्हारा रॉकेट तो फुस्स हो गया।" संभव ने व्यंग्यपूर्वक कहा। पता नहीं एकाएक क्या हुआ!

अनुभव की आँखों में आँसू उमड़ आये। उसका महीने भर का परिश्रम धूल में मिल गया। वह जोर-जोर से सुबकने लगा और साथ आये अपने पिता जी से लिपटकर रोने लगा।

"रोओ मत अनुभव! तुम हारे नहीं हो। अगली बार फिर प्रयत्न करना।" पिता जी ने दिलासा देते हुए कहा।

मॉडल रॉकेट बनाने के लिए पुरस्कार मिलना तो दूर किसी ने अनुभव को शाबाशी तक नहीं दी। अनुभव ने मैदान में गिरा अपना रॉकेट उठाया और पिता जी के साथ चुपचाप घर चला आया।

किन्तु यह कहानी का अंत नहीं था। एक दिन अनुभव के पिता जी को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी 'इसरो' की ओर से एक ई-मेल प्राप्त हुआ। संगठन के चेयरमैन ने अनुभव के बनाये रॉकेट को अपनी प्रयोगशाला में जाँच के लिए मँगाया था। इसरो के वैज्ञानिकों ने अनुभव के प्रोटोटाइप में रुचि दिखायी थी।

अनुभव और उसके पिताजी तो क्या स्वयं सुधीर आचार्य जी के आश्चर्य की कोई सीमा न रही। दरअसल इसरो के वैज्ञानिकों ने 'रॉकेट बनाओ'

प्रतियोगिता का प्रसारण देखा था। अनुभव ने अपना अधजला रॉकेट बेंगलुरू के अंतरिक्ष मुख्यालय भेज दिया।

कुछ ही दिनों बाद अनुभव को इसरो के चेयरमैन की ओर से फिर संदेश प्राप्त हुआ। इस बार उन्होंने अनुभव को उसके पिता जी के साथ अंतरिक्ष मुख्यालय में भेंट के लिए बुलाया था।

इसरो के चेयरमैन स्वयं देश के बड़े रॉकेट वैज्ञानिक थे। जब अनुभव पिताजी के साथ मुख्यालय पहुँचा तो उन्होंने स्वागत करते हुए कहा- "अनुभव! तुमने गजब का रॉकेट बनाया है, वैज्ञानिक जिसका लम्बे समय से सपना देख रहे हैं- फोटान रॉकेट इसके लिए तुम्हें एक विशेष पुरस्कार दिया जा रहा है... बिल्कुल अभी।" क्षणभर के लिए तो अनुभव और उसके पिता जी को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ।

अनुभव कुछ अचकचाकर बोला- "लेकिन, मेरा रॉकेट तो असफल हो गया था। मैं प्रतियोगिता जीतने में असफल रहा।"

"कौन कहता है तुम असफल रहे ? तुम्हारा रॉकेट भी असफल नहीं हुआ था। तीस मीटर ही सही लेकिन तुम्हारा यह रॉकेट जिसे मैं 'फोटान रॉकेट' कहूँगा लगभग तीस मीटर उड़ने में सफल रहा। हमने इसकी गहराई से जाँच की है। डाटा का विश्लेषण करने से पता चला है कि रॉकेट की प्रणाली शार्ट सर्किट हो जाने के कारण इसके फोटो सेल जल गये और अपेक्षित थ्रस्ट न बन पाने के कारण रॉकेट अधिक ऊँची उड़ान नहीं भर पाया लेकिन तुम्हारे इस रॉकेट ने हमारी राह आसान कर दी है। इसरो ने तुम्हारे मॉडल के आधार पर विशालकाय फोटान रॉकेट बनाने की दिशा में काम शुरू कर दिया है। वह दिन दूर नहीं जब बिना ईंधन वाले भारतीय रॉकेट गहन अंतरिक्ष में उड़ान भरेंगे।" "ल... ल... लेकिन... ।

    "लेकिन वेकिन कुछ नहीं अनुभव तुम्हारा रॉकेट असफल हुआ था, तुम नहीं। अब जरा देखो महान वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडीसन ने हजार बार से अधिक बल्ब का फिलामेंट बनाया था तब कहीं वह बल्ब बन पाया जो आज हमें रोशनी देता है। माइकल फैराडे ने सैकड़ों बार प्रयत्न किया तब कहीं वे बिजली का पहला डायनमो बना पाये थे ऐसे और भी उदाहरण हैं विज्ञान की दुनिया में ध्यान रहे, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। हर असफलता के पीछे एक सफलता छिपी होती है। हमें असफलता से डरना नहीं चाहिए बल्कि उससे सबक लेना चाहिए।"

"आओ! मेरे साथ एक सेल्फी हो जाए।" चेयरमैन ने अनुभव को पुरस्कार देते हुए कहा तो उसके पिताजी का छाती गर्व से चौड़ी हो गई और स्वयं अनुभव के चेहरे पर एक मुस्कान खेलने लगी।

✍️ राजीव सक्सेना

डिप्टी गंज

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत













मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष रामलाल अनजाना के चौदह मुक्तक । ये हमने लिए हैं उनकी वर्ष 2000 में प्रकाशित काव्य कृति "सारे चेहरे मेरे से"


कभी न छीनो किसी हाथ से, रोटी सबको खाने दो, 

जो भूले-भटके हों राही, उन्हें राह पर आने दो! 

आसमान की नहीं ये सारी धरती की हैं सन्तानें, 

धरती माता की दौलत को, इन सब में बंट जाने दो।


बैर करने को अशुभ है, हर महूरत हर घड़ी, 

प्यार करने को मगर हर एक पल है शुभ घड़ी। 

खिल उठें दिल जब मिलें, खुशबू बनो तुम प्यार की, 

कौन जाने साँस की, टूटे न जाने कब - लड़ी।


छोड़ दो अभिमान यारो, प्यार की बातें करो, 

झोलियों में नफरतों के, पत्थरों को मत भरो ! 

हर किसी को एक दिन, जाना पड़ेगा सोच लो, 

मत किसी की खुशी छीनों, समय से तो कुछ डरो !


भुला भी दो उन्हें जो भी हुईं तकरार की बातें, 

किबाड़ें खोलकर मन की, करो मनुहार की बातें । 

सफर में कौन जाने, कब कहाँ यह साँस रुक जाये, 

अभी कुछ और पल हैं शेष कर लो प्यार की बातें।


प्यार ही तो धर्म है, कर्त्तव्य हैं, अधिकार है, 

यदि न दिल में प्यार हो तो जिन्दगी बेकार है ।

 किसलिए नफरत की बांधे पोटली तुम फिर रहे,

 जिन्दगी का तो यहाँ पर, प्यार ही आधार है।


जिंदगी बहुत सुन्दर है, मगर छोटी कहानी हैं, 

इमारत है यह माटी की, यह माटी में समानी है। 

समय से भी डरो अज्ञान राही, यों न इतराओ, 

न कोई चीज दुनिया की, तुम्हारे साथ जानी है।


बुराई बैर वाली हैं, सभी बेकार की बातें। 

जिंदगी चाहती है, आज करना प्यार की बातें। 

बनाओ लीक कुछ ऐसी, दिलों के फासले कम हों,

 प्यार है सार जीवन का, करो मनुहार की बातें।


दिखाये राह लोगों को, वही इन्सान होता है, 

गिराये राह से वह आदमी शैतान होता है। 

बुराई बैर मेटे प्यार घोले जो हवाओं में, 

आदमी, आदमी के रूप में भगवान होता है।


कीमती है कहीं यदि रत्न तो वह जिंदगानी है, 

चली यों ही गई तो फिर कभी वापस न आनी है। 

बना पाये नहीं कोई कहीं पद चिह्न धरती पर, 

तो जीवन व्यर्थ है, यह जिंदगी झूठी कहानी है।


आदमी श्रेष्ठ है, इस सृष्टि का शृंगार होता है, 

कर्म से यदि गिरे तो वह धरा पर भार होता है। 

यही शैतान रावण है, यही है कंस-दुस्शासन, 

यही यदि आदमी बन जाये तो अवतार होता है।


समझते क्यों नहीं समझो, बड़े ही ध्यान से समझो, 

समझना है अगर भगवान तो इन्सान को समझो। 

निगाहों से जो गिरता है, कभी उठ ही नहीं पाता, 

न तुम विश्वास को खोओ तनिक ईमान को समझो।


उजाला तो यहाँ भी है, आदमी किन्तु अन्धा है, 

सफर के वास्ते रस्ता मगर हर एक गन्दा है । 

लुटी-सी रो रही है अब दुखी मजबूर लाचारी, 

यहाँ कमजोरियों के वास्ते फाँसी का फन्दा है।


धूल धरती पर उड़ाता जा रहा है आदमी, 

रोज़ रातों में समाता जा रहा है आदमी । 

मैं अंधेरों की शिकायत भी करूँ तो क्यों करूँ, 

अब उजालों से बहुत घबरा रहा है आदमी ।।


बहुत गहरे में यहाँ यह गिर गया है आदमी, 

जानें क्यों इस आदमी का मर गया है आदमी 

लग रहा है वंश ही विश्वास का हो मिट गया, 

इस कदर इस आदमी से डर गया है आदमी।

✍️ राम लाल अनजाना


::::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी रवि प्रकाश का व्यंग्य ...जाड़ों की धूप में मूॅंगफली खाना मौलिक अधिकार

   


हुआ यह कि एक सरकारी संस्थान था और उसमें पदासीन गेंदा बाबू रोजाना एक घंटा लेट आते थे । संस्थान के प्रभारी ने इस बात को तो सहन किया क्योंकि उसकी बुद्धि कहती थी कि इन छोटी-छोटी बातों में टॉंग अड़ाना अच्छी बात नहीं होती। लेकिन जब से जाड़ा शुरू हुआ गेंदा बाबू एक घंटा लेट तो आते ही थे, अब उन्होंने आने के बाद कोई कार्य करने के स्थान पर धूप में कुर्सी डालकर बैठना और मूॅंगफली खाने का कार्य और आरंभ कर दिया । 

        हफ्ते-दो-हफ्ते तो प्रभारी ने चीजों को नजरअंदाज किया लेकिन एक दिन उसकी चेतना जागृत हो गई अथवा यूं कहिए कि साठ वर्ष का होने से पहले ही उसकी बुद्धि सठिया गई और उसने गेंदा बाबू को टोक दिया -"यह आप कार्य करने के स्थान पर रोजाना धूप में कुर्सी डालकर मूंगफली खाने का कार्य नहीं कर सकते । आपको कार्य के लिए वेतन दिया जाता है।"

          बस  प्रभारी के इस भारी अपराध को गेंदा बाबू न तो क्षमा कर पाए और न ही सहन कर पाए। तत्काल उन्होंने अपने मौलिक अधिकारों की दुहाई लगाई तथा संस्थान के सभी सहकर्मियों को एकत्र कर लिया। संस्थान-प्रभारी के विरुद्ध हाय-हाय के नारे लगने लगे । 

           गेंदा बाबू ने सबके सामने खड़े होकर जोरदार भाषण दिया । अपने भाषण में उन्होंने कहा कि यह पूंजीवादी व्यवस्था है तथा निजीकरण की ओर बढ़ता हुआ प्रयास है, जिसमें किसी गरीब का धूप में बैठना और मूंगफली खाना व्यवस्था को सहन नहीं हो पा रहा है । गेंदा बाबू ने सबको बताया कि ईश्वर ने सेंकने के लिए ही धूप बनाई है तथा मूंगफली खाने की ही वस्तु है । अतः धूप में मूंगफली खाना हर कर्मचारी का मौलिक अधिकार है। इससे उसे रोका नहीं जा सकता।

              प्रभारी ने अब एक और बड़ी भारी गलती कर दी । उसने अनुशासनहीनता के आरोप में गेंदा बाबू को निलंबित कर दिया। प्रभारी की इस कार्यवाही ने आग में घी डालने का काम किया । वैसे तो मामला सुलझ जाता। थोड़ा-बहुत गेंदा बाबू कार्य करते रहते और थोड़ी-बहुत धूप सेंकते हुए मूंगफली भी खाते रहते। लेकिन कठोर कार्यवाही से मामला एक संस्थान के हाथ से निकल कर जिले-भर के सभी संस्थानों तक फैल गया ।

         मौलिक अधिकारों का प्रश्न अब मुख्य हो चला था । कार्य तो संस्थानों में होता ही रहता है, कभी कम-कभी ज्यादा । लेकिन धूप सेंकना और मूंगफली खाना -यह तो ईश्वर प्रदत्त मौलिक अधिकार है । इससे किसी को वंचित कैसे रखा जा सकता है -अब यह तकनीकी प्रश्न सबके सामने था । आंदोलन जोर पकड़ने लगा । जिले-भर के सभी संस्थानों के समस्त स्टाफ ने जिले के 'वेतन वितरण अधिकारी' को पत्र लिखकर जिले-भर के सभी संस्थानों के समस्त कर्मचारियों को निलंबित करने की मांग कर डाली और कहा कि रोज-रोज के शोषण और उत्पीड़न को सहने की अपेक्षा अच्छा यही है कि एक बार में ही सब को निलंबित कर दिया जाए । 

            अब मामला गंभीर था। 'जिला वेतन वितरण अधिकारी' ने पूरे जिले के समस्त संस्थानों के कर्मचारियों की भीड़ को देखते हुए आनन-फानन में निर्णय लिया और संबंधित समस्याग्रस्त संस्थान के प्रभारी को पत्र लिखकर चौबीस घंटे के अंदर अपने संस्थान में असंतोष को समाप्त करने का अल्टीमेटम दे डाला -"अगर आप अपने संस्थान में कर्मचारियों के असंतोष को दूर नहीं करते हैं तो आप के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जाएगी ।" 

                 'जिला वेतन वितरण अधिकारी' के कठोर पत्र को पढ़कर समस्याग्रस्त संस्थान का प्रभारी चक्कर खाकर गिर पड़ा । उसकी समझ में दो मिनट में यह बात आ गई कि जाड़ों के दिनों में धूप इसीलिए निकलती है कि सब लोग उसका सेवन करें तथा मूंगफलियां तो खाने के लिए ही बनाई जाती हैं । यह एक प्रकार से परमात्मा का अलिखित आदेश है । उसने तुरंत अपनी भूल को सुधारा और गेंदा बाबू से कहा -"आपने हमें जो गहरा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया है, वह तो हमें नौकरी से रिटायरमेंट के करीब आते-आते भी कहीं से नहीं मिल पाया था । अब हम अपने चक्षु खोल सके हैं और आप धूप के सेवन तथा मूंगफली खाने के लिए स्वतंत्र हैं।" यह सुनकर गेंदा बाबू ने प्रभारी से कहा कि आप चिंता न करें, हम धूप के सेवन और मूंगफली खाने के अतिरिक्त भी कुछ न कुछ कार्य संस्थान के लिए अवश्य करेंगे। आखिर हमें वेतन वितरण अधिकारी के कर-कमलों से वेतन इसी कार्य के लिए तो प्राप्त होता है ।

✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा,

 रामपुर 

उत्तर प्रदेश ,भारत

मोबाइल 99 97 61 5451