कभी न छीनो किसी हाथ से, रोटी सबको खाने दो,
जो भूले-भटके हों राही, उन्हें राह पर आने दो!
आसमान की नहीं ये सारी धरती की हैं सन्तानें,
धरती माता की दौलत को, इन सब में बंट जाने दो।
बैर करने को अशुभ है, हर महूरत हर घड़ी,
प्यार करने को मगर हर एक पल है शुभ घड़ी।
खिल उठें दिल जब मिलें, खुशबू बनो तुम प्यार की,
कौन जाने साँस की, टूटे न जाने कब - लड़ी।
छोड़ दो अभिमान यारो, प्यार की बातें करो,
झोलियों में नफरतों के, पत्थरों को मत भरो !
हर किसी को एक दिन, जाना पड़ेगा सोच लो,
मत किसी की खुशी छीनों, समय से तो कुछ डरो !
भुला भी दो उन्हें जो भी हुईं तकरार की बातें,
किबाड़ें खोलकर मन की, करो मनुहार की बातें ।
सफर में कौन जाने, कब कहाँ यह साँस रुक जाये,
अभी कुछ और पल हैं शेष कर लो प्यार की बातें।
प्यार ही तो धर्म है, कर्त्तव्य हैं, अधिकार है,
यदि न दिल में प्यार हो तो जिन्दगी बेकार है ।
किसलिए नफरत की बांधे पोटली तुम फिर रहे,
जिन्दगी का तो यहाँ पर, प्यार ही आधार है।
जिंदगी बहुत सुन्दर है, मगर छोटी कहानी हैं,
इमारत है यह माटी की, यह माटी में समानी है।
समय से भी डरो अज्ञान राही, यों न इतराओ,
न कोई चीज दुनिया की, तुम्हारे साथ जानी है।
बुराई बैर वाली हैं, सभी बेकार की बातें।
जिंदगी चाहती है, आज करना प्यार की बातें।
बनाओ लीक कुछ ऐसी, दिलों के फासले कम हों,
प्यार है सार जीवन का, करो मनुहार की बातें।
दिखाये राह लोगों को, वही इन्सान होता है,
गिराये राह से वह आदमी शैतान होता है।
बुराई बैर मेटे प्यार घोले जो हवाओं में,
आदमी, आदमी के रूप में भगवान होता है।
कीमती है कहीं यदि रत्न तो वह जिंदगानी है,
चली यों ही गई तो फिर कभी वापस न आनी है।
बना पाये नहीं कोई कहीं पद चिह्न धरती पर,
तो जीवन व्यर्थ है, यह जिंदगी झूठी कहानी है।
आदमी श्रेष्ठ है, इस सृष्टि का शृंगार होता है,
कर्म से यदि गिरे तो वह धरा पर भार होता है।
यही शैतान रावण है, यही है कंस-दुस्शासन,
यही यदि आदमी बन जाये तो अवतार होता है।
समझते क्यों नहीं समझो, बड़े ही ध्यान से समझो,
समझना है अगर भगवान तो इन्सान को समझो।
निगाहों से जो गिरता है, कभी उठ ही नहीं पाता,
न तुम विश्वास को खोओ तनिक ईमान को समझो।
उजाला तो यहाँ भी है, आदमी किन्तु अन्धा है,
सफर के वास्ते रस्ता मगर हर एक गन्दा है ।
लुटी-सी रो रही है अब दुखी मजबूर लाचारी,
यहाँ कमजोरियों के वास्ते फाँसी का फन्दा है।
धूल धरती पर उड़ाता जा रहा है आदमी,
रोज़ रातों में समाता जा रहा है आदमी ।
मैं अंधेरों की शिकायत भी करूँ तो क्यों करूँ,
अब उजालों से बहुत घबरा रहा है आदमी ।।
बहुत गहरे में यहाँ यह गिर गया है आदमी,
जानें क्यों इस आदमी का मर गया है आदमी
लग रहा है वंश ही विश्वास का हो मिट गया,
इस कदर इस आदमी से डर गया है आदमी।
✍️ राम लाल अनजाना
::::::::प्रस्तुति:::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
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