शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव सक्सेना की बाल कहानी..... असफलता । उनकी यह कहानी बालपत्रिका -देवपुत्र के नवंबर-2022 के अंक में प्रकाशित हुई है।

     


"बच्चों ! तुम्हें पता है... भारत अंतरिक्ष में अपने यात्री भेजने वाला है....।" सुधीर आचार्य जी ने कक्षा में विज्ञान पढ़ाते हुए अपने छात्रों को जानकारी देते हुए कहा।

" आचार्य जी ! हमने यह भी सुना है कि हमारे वैज्ञानिक शीघ्र ही चन्द्रमा पर अपना अभियान करने वाले हैं।" रचित ने बीच में बोलते हुए कहा।

"हाँ बिल्कुल ठीक यही नहीं इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) मंगल पर भी दूसरा यान भेजने में जुटा है। सही बात तो यह है कि दुनिया के सभी विकसित देशों के बीच अपने यान अंतरिक्ष में भेजने की प्रतिस्पर्धा लगी है। हमारा भारत भी पीछे नहीं है। लेकिन बच्चों समय रहते तुम्हें भी विज्ञान में रुचि लेनी होगी जिससे हमें योग्य वैज्ञानिक और इंजीनियर मिल सकें। नहीं तो हमारा देश पिछड़ ने जायेगा।" सुधीर आचार्य जी ने कुछ गंभीर होकर कहा।

"आचार्य जी! मुझे तो विज्ञान पढ़ना बहुत पसंद है। मुझे यह बड़ा रोचक लगता है।" सार्थक ने कहा। "मुझे तो वैज्ञानिकों और उनके आविष्कारों की कहानियाँ पढ़ना पसन्द है।" इस बार संकेत बोला।

"अंतरिक्ष यात्रा बड़ी मजेदार होती है। मैं तो बड़ा होकर अंतरिक्ष यात्री बनूँगा। एलियनों अर्थात अंतरिक्ष वासियों से भेंट करूँगा।" तुषार बोला। "मैं तो वैज्ञानिक बनूँगा, बड़ा होकर आविष्कार करूँगा।" सजल ने कहा। 

सुधीर आचार्यजी की कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे विज्ञान के बारे में अपनी-अपनी राय दे रहे थे। सुधीर आचार्य जी बड़े ध्यान से उन्हें सुन रहे थे। सारी कक्षा

में एक भी छात्र ऐसा नहीं था जिसकी 

विज्ञान में रुचि न हो । दरअसल, सुधीर आचार्य जी का विज्ञान पढ़ाने का अंदाज ही निराला था । विज्ञान

जैसे नीरस और कुछ कठिन लगने वाले विषय को भी वे इतने रोचक ढंग से पढ़ाते थे कि सभी की रुचि इसमें बनी रहती थी और कोई भी छात्र उनकी कक्षा में अनुपस्थित नहीं रहना चाहता था।

"बच्चों ! अंतरिक्ष के बारे में जानने की जिज्ञासा तुम्हारे अंदर बनी रहे और तकनीक से तुम्हें जोड़ने के लिए अगले महीने 'रॉकेट बनाओ' प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है, जिसमें शहर के सभी विद्यालयों को आमंत्रित किया गया है। आप अपने बनाये रॉकेट का प्रदर्शन उसे उड़ाकर प्रतियोगिता में कर सकते हैं बढिया रॉकेट बनाने वाले बच्चों को पुरस्कार दिया जायेगा.. हाँ, एक बात और रॉकेट बनाने के लिए आप इन्टरनेट या बड़ों की सहायता भी ले सकते हैं। इस प्रतियोगिता का जीवंत प्रसारण भी किया जायेगा।" आचार्य जी ने कहा।

"वाह! मैं भी एक नन्हा रॉकेट बनाऊँगा।" चंचल ने चहकते हुए कहा।

अनुभव को छोटे रॉकेट या उनके नन्हें मॉडल बनाने का बड़ा शौक था। शहर के ही एक पटाखे बनाने वाले से उसने रॉकेट बनाने के गुर सीखे थे। इसके अलावा वह नेट पर भी रॉकेट बनाने के तरीके सीखता रहता था। राकेट बनाना अनुभव की धुन थी। मित्र और सहपाठी भी अनुभव की इस धुन को अच्छी तरह जानते थे। तभी वे उसे 'रॉकेट मैन' कहकर पुकारते थे। संभव तो अक्सर कहता था- "अनुभव! मुझे लगता है बड़ा होकर तू अवश्य ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जैसा राकेट वैज्ञानिक बनेगा। " उस दिन जब सुधीर आचार्यजी ने विद्यालय में आयोजित होने वाली 'रॉकेट बनाओ' प्रतियोगता के बारे में बताया तो मित्रों ने अनुभव से कहा "अनुभव! तुम्हारे लिये तो यह स्वर्णिम अवसर है। तुम अवश्य यह प्रतियोगिता जीतोगे।" अनुभव भी मन ही मन प्रतियोगिता के लिए रॉकेट बनाने को तैयार हो गया।

किन्तु अब समस्या यह थी कि कैसा रॉकेट बनाया जाए। यह तो तय था कि दूसरे बच्चे भी नेट से सहायता लेकर रॉकेटों के एक से एक उत्तम प्रादर्श बनाकर उनका प्रदर्शन करेंगे।

"मुझे सबसे हटकर कुछ अनोखे प्रकार का मॉडल रॉकेट बनाना होगा जैसा किसी ने न बनाया हो।" अनुभव विचार करने लगा। लेकिन यह आसान काम नहीं था। समय खिसकता जा रहा था। खिसक क्या रहा था बल्कि तेजी से पंख लगाकर उड़ रहा था।

अनुभव के भीतर रॉकेट प्रतियोगिता को लेकर गहरी उधेड़बुन चल रही थी। अनुभव को विज्ञान और तकनीक से जुड़ी खबरें देखने-पढ़ने का भी शौक था।

एक दिन ज्यों ही अनुभव ने अपना टी.वी. खोला स्क्रीन पर एलन मस्क का चेहरा दिखायी दिया। टी. वी. पर एलन मस्क का साक्षात्कार दिखाया जा रहा था मस्क ने साक्षात्कार लेने वाले पत्रकार से कहा "हमारा कॉरपोरेशन ऐसे रॉकेट के प्रोटोटाइप पर काम कर रहा है जिसे अंतरिक्ष में उड़ान भरने के लिए ईंधन की आवश्यकता ही न हो यानि बिना ईंधन का रॉकेट।'

'बिना ईंधन का रॉकेट ? यह सचमुच एक नयी बात थी। अभी तक दुनिया में बिना ईंधन का रॉकेट बनाने में किसी को सफलता नहीं मिली थी। "मैं प्रतियोगिता के लिए ऐसा ही रॉकेट बनाऊँगा। बिना ईंधन का रॉकेट।" टी. वी. पर एलन मस्क का साक्षात्कार देखते ही जैसे अनुभव को राह मिल गयी। वह एक नये उत्साह से भर गया। जो काम बड़े-बड़े वैज्ञानिक नहीं कर पाये थे वह एक किशोर या बच्चे के लिए आसान कैसे हो सकता था? मुझे अरुण चाचा की सहायता लेनी होगी अनुभव ने मन ही मन विचार किया।

अरुण के चाचा इंजीनियर थे जब अनुभव ने उनसे बिना ईंधन वाला रॉकेट बनाने का उल्लेख किया तो वे बोले "रॉकेट को उड़ान भरने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होगी। यह ऊर्जा कोई भी हो सकती है- विद्युत ऊर्जा, ध्वनि ऊर्जा या फिर प्रकाश ऊर्जा।"

"यदि मैं प्रकाश से चलने वाला रॉकेट बनाऊँ तो कैसा रहेगा। बस, इसके लिए मुझे कुछ फोटो सेल की ही तो आवश्यकता होगी।"

अचानक एक जोरदार सूझ भरा विचार बिजली की तरह अनुभव के मन में कौंध गया। बस, फिर क्या था।

अनुभव एकदम हवा-हवाई हो गया। वह फोटो सेल से उड़ने वाला यानी फोटान रॉकेट बनाने में जुट गया। अरुण चाचा ने भी रॉकेट के लिए फोटो सेल बनाने में उसकी खूब सहायता की।

आखिर प्रतियोगिता के लिए अनुभव का रॉकेट बनकर तैयार हो गया। कुछ-कुछ हवाई जहाज जैसा दिखने वाला अनुभव का यह रॉकेट बिल्कुल अलग या अनोखे किस्म का था।

    प्रतियोगिता वाले दिन दूसरे बच्चे अनुभव का यह अजीबो-गरीब आकृति वाला रॉकेट देखकर हैरान थे।

प्रतियोगिता प्रारंभ हुई। "नौ... आठ... सात... चार... दो... एक...शून्य।"

आचार्यजी ने 'काउन्ट डाउन' यानी उल्टी गिनती शुरू की तो शून्य पर पहुँचते ही दर्जनों रॉकेट दनदनाते हुए हवा में ऊँची उड़ान भरते हुए चले गये। अनुभव का रॉकेट बस बीस-तीस मीटर ऊँचा ही उड़ पाया और फिर एकाएक औंधे मुँह मैदान में नीचे गिरकर मिट्टी में धँस गया।

हो...हो...हो...हो...। अनुभव के रॉकेट की यह दशा देखकर आस पास खड़े दर्शकों, अध्यापकों और सहपाठियों के मुँह से हँसी का एक फव्वारा ही छूट पड़ा।

वे व्यंग्य भरी दृष्टि से उसे देख रहे थे। "कहो रॉकेट मैन! तुम्हारा रॉकेट तो फुस्स हो गया।" संभव ने व्यंग्यपूर्वक कहा। पता नहीं एकाएक क्या हुआ!

अनुभव की आँखों में आँसू उमड़ आये। उसका महीने भर का परिश्रम धूल में मिल गया। वह जोर-जोर से सुबकने लगा और साथ आये अपने पिता जी से लिपटकर रोने लगा।

"रोओ मत अनुभव! तुम हारे नहीं हो। अगली बार फिर प्रयत्न करना।" पिता जी ने दिलासा देते हुए कहा।

मॉडल रॉकेट बनाने के लिए पुरस्कार मिलना तो दूर किसी ने अनुभव को शाबाशी तक नहीं दी। अनुभव ने मैदान में गिरा अपना रॉकेट उठाया और पिता जी के साथ चुपचाप घर चला आया।

किन्तु यह कहानी का अंत नहीं था। एक दिन अनुभव के पिता जी को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी 'इसरो' की ओर से एक ई-मेल प्राप्त हुआ। संगठन के चेयरमैन ने अनुभव के बनाये रॉकेट को अपनी प्रयोगशाला में जाँच के लिए मँगाया था। इसरो के वैज्ञानिकों ने अनुभव के प्रोटोटाइप में रुचि दिखायी थी।

अनुभव और उसके पिताजी तो क्या स्वयं सुधीर आचार्य जी के आश्चर्य की कोई सीमा न रही। दरअसल इसरो के वैज्ञानिकों ने 'रॉकेट बनाओ'

प्रतियोगिता का प्रसारण देखा था। अनुभव ने अपना अधजला रॉकेट बेंगलुरू के अंतरिक्ष मुख्यालय भेज दिया।

कुछ ही दिनों बाद अनुभव को इसरो के चेयरमैन की ओर से फिर संदेश प्राप्त हुआ। इस बार उन्होंने अनुभव को उसके पिता जी के साथ अंतरिक्ष मुख्यालय में भेंट के लिए बुलाया था।

इसरो के चेयरमैन स्वयं देश के बड़े रॉकेट वैज्ञानिक थे। जब अनुभव पिताजी के साथ मुख्यालय पहुँचा तो उन्होंने स्वागत करते हुए कहा- "अनुभव! तुमने गजब का रॉकेट बनाया है, वैज्ञानिक जिसका लम्बे समय से सपना देख रहे हैं- फोटान रॉकेट इसके लिए तुम्हें एक विशेष पुरस्कार दिया जा रहा है... बिल्कुल अभी।" क्षणभर के लिए तो अनुभव और उसके पिता जी को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ।

अनुभव कुछ अचकचाकर बोला- "लेकिन, मेरा रॉकेट तो असफल हो गया था। मैं प्रतियोगिता जीतने में असफल रहा।"

"कौन कहता है तुम असफल रहे ? तुम्हारा रॉकेट भी असफल नहीं हुआ था। तीस मीटर ही सही लेकिन तुम्हारा यह रॉकेट जिसे मैं 'फोटान रॉकेट' कहूँगा लगभग तीस मीटर उड़ने में सफल रहा। हमने इसकी गहराई से जाँच की है। डाटा का विश्लेषण करने से पता चला है कि रॉकेट की प्रणाली शार्ट सर्किट हो जाने के कारण इसके फोटो सेल जल गये और अपेक्षित थ्रस्ट न बन पाने के कारण रॉकेट अधिक ऊँची उड़ान नहीं भर पाया लेकिन तुम्हारे इस रॉकेट ने हमारी राह आसान कर दी है। इसरो ने तुम्हारे मॉडल के आधार पर विशालकाय फोटान रॉकेट बनाने की दिशा में काम शुरू कर दिया है। वह दिन दूर नहीं जब बिना ईंधन वाले भारतीय रॉकेट गहन अंतरिक्ष में उड़ान भरेंगे।" "ल... ल... लेकिन... ।

    "लेकिन वेकिन कुछ नहीं अनुभव तुम्हारा रॉकेट असफल हुआ था, तुम नहीं। अब जरा देखो महान वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडीसन ने हजार बार से अधिक बल्ब का फिलामेंट बनाया था तब कहीं वह बल्ब बन पाया जो आज हमें रोशनी देता है। माइकल फैराडे ने सैकड़ों बार प्रयत्न किया तब कहीं वे बिजली का पहला डायनमो बना पाये थे ऐसे और भी उदाहरण हैं विज्ञान की दुनिया में ध्यान रहे, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। हर असफलता के पीछे एक सफलता छिपी होती है। हमें असफलता से डरना नहीं चाहिए बल्कि उससे सबक लेना चाहिए।"

"आओ! मेरे साथ एक सेल्फी हो जाए।" चेयरमैन ने अनुभव को पुरस्कार देते हुए कहा तो उसके पिताजी का छाती गर्व से चौड़ी हो गई और स्वयं अनुभव के चेहरे पर एक मुस्कान खेलने लगी।

✍️ राजीव सक्सेना

डिप्टी गंज

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत













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