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आलिंगन में कस रहा,रंगीला त्यौहार।। 1।।
तन पर पड़ती जब सुनो,पिचकारी की धार।
रंगों की बौछार से,जुड़ते मन के तार।।2।।
ढोल तंबूरे बज रहे,चौपाई के गान।
रंगों में रंगीन सब,ऊंची सबसे शान।। 3।।
सांवरिया के रंग में,हुई सांवरी श्याम।
राधा के मन में बसे,कृष्णा आठों याम।। 4।।
केसरिया तन मन हुआ,पड़ी केसरी धार।
राधा कृष्णा खेलते,होली जमुना पार।।5।।
रंग रसिया साजन मिले,रंग बिरंगी देह।
सजनी का उबटन करें,उमड़ा सारा नेह।।6।।
होली होली श्याम की,होली राधा आज।
श्याम रंग ऐसा चढ़ा,श्याम बने सरताज।।7।।
चूड़ी खन खन बोलती,पायल की झंकार।
बांसुरिया अब आ मिलो,राधा रही पुकार।।8।।
✍️ वैशाली रस्तोगी
जकार्ता, इंडोनेशिया
अबकी ऐसे रंगना हमको होली का दिन याद रहे
ऐसा रंग लगाना जो हर दिल का सूनापन भर दे
ऐसा रंग लगाना जो सहमी इच्छाओं को पर दे
ऐसा रंग लगाना जो अहसासों तक को तर कर दे
उम्मीदों के कल्ले फूटें, मन की बगिया शाद रहे
ऐसा रंग लगाना दिशा-दिशा की मांगें भर जाएँ
ऐसा रंग लगाना चूनर ओढ़ बालियाँ मुस्काएँ
ऐसा रंग लगाना पवनें भी मस्ती में बौराएँ
धरती जब अँगड़ाई ले तो नस-नस में उन्माद रहे
ऐसा रंग लगाना जिसमें अपनेपन की चाहत हो
ऐसा रंग लगाना जिसकी रग-रग में ही मिल्लत हो
ऐसा रंग लगाना जो भाईचारे की राहत हो
आपसदारी का ये जज़्बा देखो ज़िन्दाबाद रहे
✍️ अंकित गुप्ता 'अंक'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मैं तो सबको रंग लगाना चाहूंगा ।।
चाहूंगा नफरत को मिटाना चाहूंगा ।
प्रेम की गंगा फिर से बहाना चाहूंगा ।।
झूम के खुशबू और रंगों की मस्ती में ।
प्यार के रंग मैं सब को लगाना चाहूंगा ।।
हिंदू को मुस्लिम से कुछ तकलीफ ना हो ।
एक दूजे से सबको मिलाना चाहूंगा ।।
तुम भी मुझको पाठ पढ़ाना वेदों के ।
मैं तुमको कुरआन पढ़ाना चाहूंगा ।।
धर्म सभी अच्छे हैं सच बतलाते हैं ।
मैं तो मुजाहिद प्यार सिखाना चाहूंगा ।।
✍️ मुजाहिद चौधरी
हसनपुर, अमरोहा
और फीके पड़े उल्लास को रंगना है मुझे.
मैं हूँ वासंती हवा रंग हैं सारे मुझमे.
सरसों टेसू को अमलतास को रंगना है मुझे.
कौन सा रंग है बेहतर मेरे रंगरेज बता.
एक बेरंग से विश्वास को रंगना है मुझे.
सात रंगों से अलग रंग की मुझको है तलाश.
अबकी होली में किसी खास को रंगना है मुझे.
नाम है भक्ति मेरा खुद मे अलग रंग हूँ मै.
सूर को मीरा को रैदास को रंगना है मुझे.
जिस्म से रंग तो एक रोज उतर जाएंगे.
तेरी फितरत तेरे एहसास को रंगना है मुझे.
मैं चितेरा हूँ मेरा काम बहुत बाकी है .
भूख गढ़नी है अभी प्यास को रंगना है मुझे.
चाहता हूँ कि इन्हें दूर से पहचान सकूँ.
पीर को दर्द को संत्रास को रंगना है मुझे.
✍️ राहुल शर्मा
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम द्वारा मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन रविवार पांच मार्च 2023 को आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज, मिलन विहार में हुआ।
अंकित गुप्ता अंक द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वयोवृद्ध साहित्यकार रामदत्त द्विवेदी ने कहा .....
आज अचानक याद आ गया मुझको अपना गांव
दरवाजे पर खड़ी पंखुड़ियों की वह शीतल छांव
मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार की अभिव्यक्ति थी -
भारत में हैं जातियां, मज़हब पंथ अनेक।
होली सबको बांधकर, कर देती है एक।।
विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. मनोज रस्तोगी ने रंगों की बौछार करते हुए कहा -
प्रेमभाव से सब खेलें होली,
रंग अबीर गुलाल बरसाएं।
आपस के सब झगड़े भूल,
आज गले से सब लग जाएं।।
विशिष्ट अतिथि के रूप में अशोक विद्रोही ने आह्वान किया -
होली तो है देश के, त्यौहारों की शान।
रंग डालो इक रंग में, पूरा हिन्दुस्तान।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजीव प्रखर ने कहा .....
बदल गईं अनुभूतियाॅं, बदल गए सब ढंग।
पहले जैसे अब कहाॅं, होली के हुड़दंग।।
गुमसुम पड़े गुलाल से, कहने लगा अबीर।
चल गालों पर खींच दें, प्यार भरी तस्वीर।।
इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई ने कहा....
रोज सबेरे पास हमारे, एक जादूगर आता है।
और मुझे कविता करने की जादूगरी सिखाता है।।
रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ का कहना था .....
मानव बन तू दीप समान
दीपक सा तू जल जल कर
पदम 'बेचैन' ने कहा .....
सूर्य चन्द्र तारागण की चांदनी
मेघ पावक और पवन की रागनी
योगेन्द्र वर्मा व्योम ने भी फागुन के रंग में सभी को डुबोया -
मन के सारे त्याग कर, कष्ट और अवसाद ।
पिचकारी करने लगी, रंगो से संवाद ।।
रिश्तो की शालीनता, के टूटे तटबंध।
फागुन ने जब जब लिखा, मस्ती भरा निबंध ।।
रचना-पाठ करते हुए जितेन्द्र जौली ने कहा -
ये क्या समझ लिया तूने, ये जीवन नहीं झमेला है।
मंजिल वो ही पाता है, कष्टों को जिसने झेला है।।
डॉ. प्रीति हुंकार की अभिव्यक्ति थी -
कुछ ही दिनों की बात है, नववर्ष हमारा आएगा।
धरती का आंचल महकेगा, बासंती फगुआ छाएगा।।
अंकित गुप्ता अंक की अभिव्यक्ति थी -
देखो पेड़ों में छुपी, कोयल एक उदास।
दबेे पाँव आता गया, शहर गाँव के पास।।
प्रशांत मिश्र भी गरजे -
सन सैंतालीस की गलती को
अब तो देश सुधारों तुम।
बहुत सब्र अब हो चुका,
अब तो सिंह दहाड़ों तुम।
अंत में दिवंगत साहित्यकार शिशुपाल मधुकर जी की स्मृति में दो मिनट का मौन रखकर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
रूई की तरह
धुनता था
अपने ज्ञान के
शब्दकोश से
मोती कुछ चुनता था
भावनाओं के धागे से
गीत नया बुनता था
लेकिन फिर भी
रहता था
उपेक्षित सा
खुद ही उसको
पढ़ता था
खुद ही उसको
सुनता था
धीरे धीरे
जब पड़ी समय की मार
मैं हो गया समझदार
कहीं से ईट
कहीं से रोड़ा उठाने लगा
लीपा पोती करके
कविताओं के
महल बनाने लगा
चर्चित पत्र पत्रिकाओं में
अब धडल्ले से छपता हूं
बुक स्टालों पर बिकता हूं
कवि सम्मेलनों में जमता हूं
अगली पिछली
दोनों पीढ़ियां
आराम से पल रही हैं
और मेरी मौलिक रचनाएं
मुझ तक को खल रही हैं
✍️ डॉ पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेजीडेंसी
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
चीखना एक ऐसा हुनर बन चुका है, जो हर क्षेत्र में ना केवल कमाल दिखा रहा है अपितु कमाई का एक सर्वोत्तम साधन बन चुका है टीवी पर समाचारों के स्थान पर चीखने के टॉक शो चलते हैं जो जितना अधिक चीख चीख कर प्रभावी ढंग से अपनी बात रख जाता है वही शेर बन जाता है मध्यम स्वर तो कहां दब के रह जाता है सुनाई नहीं देता ।कुछ तो टीवी शो चीखने की क्षमता पर ही चल रहे हैं। राजनीति में भी चीखना अच्छी कला मानी जाने लगी है जो जितना अधिक चीख सकता है समझो उतना प्रभावशाली है ।चीखना सोशल मीडिया का एक ऐसा हथियार बन गया है कि आम नागरिक इस चीख-पुकार को सुनकर कई बार सदमे में आ जाता है जी हां.... गौर से देखिए, यह वही जगह है ,खूनी जगह,लोगो को मार देने वाली जगह जहां एक्सीडेंट हुआ था .............
समाज में भी यदि कोई चीख पुकार करने वाला व्यक्ति होता है तो वह केंद्र बिंदु में रहता है।
इसी प्रकार जानवरों में भी यह खासियत देखी गई है कुछ टीवी टॉक शो की तरह कुत्तों में भी चीखने की जैसे प्रतियोगिता सी चलती है कोई हार मानने को तैयार ही नहीं होता बशर्ते भोंक भोंक के हलक बाहर आने को तैयार हो....
कुछ लोगों के लिए चीखना बहुत आसान काम होता है क्योंकि वह साधारण बात भी चीख–चीख कर ही कहते हैं, परेशानी तो विनम्र स्वभाव वाले की है मरता क्या न करता चीखने की कोशिश करता है परंतु आवाज हलक से बाहर ही नहीं आती अब कोई मोर को कहे सियार जैसे आवाज निकालो या कुत्ता जैसे भोंको तो यह उसकी प्रवृत्ति तो नहीं...
चीखना सीखने के लिए अपनी प्रवृत्ति छोड़ना पड़ती है जो कि असंभव सा है परंतु चीखने के युग में जी रहे हैं तो थोड़ा चीखना भी अवश्यंभावी ही है अतः चीखने की सकारात्मकता, अन्याय पर न्याय की विजय के लिए चीखना भी आवश्यक है।
✍️ मीनाक्षी वर्मा
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मिलना चाहा तो मिल भी न पाए
अपनी मर्ज़ी से दिल के सफर में,
कब मिलते हैं आंचल के साए !
उस पार के सपने दिखा कर,
नाखुदा ने ही लूटा मेरा घर
जिसके कहने पर निकले सफर में,
वही कश्ति भंवर में डुबाए!
वो अपने थे कितने पराए
मिलना चाहा तो मिल भी न पाए
दिल की बातें लोगों से कर के
फरेब खाते रहे मर-मर के
शामिल थे उनमें तुम भी,
ये भी हम समझ न पाए !
वो अपने..........
जो घर गुरबत में पले हैं,
दंगों में वो ही जले हैं,
अंधेरी इन गलियों में,
कोई जाकर शमा एक जलाए
वो अपने थे.......
पैगाम न कोई खबर,
आंख देखे है सूनी डगर,
"आमोद" आज उनसे मिलेंगे,
कल ये शाम आए, न आए
वो अपने थे कितने पराए,
मिलना चाहा तो मिल भी न पाए
✍️ आमोद कुमार, दिल्ली
सोचने लगी "आजकल के बच्चे भी न ....पता नहीं क्या होता जा रहा है ?"
कल उसकी बेटी सान्या का बर्थडे था , बस बच्चों को तो मौका मिल जाए गिफ्ट का , फिर भले ही उसकी जरूरत हो या न हो ।
"मॉम मुझे इस बार कुछ नया गिफ्ट चाहिए ....जो मेरी किसी फिरेण्ड के पास नहीं हो । "बेटी ने ठुनकते हुए कहा ।
"मगर बेटा ...किसी की होड़ थोड़े ही करते हैं ...जिसकी जरूरत हो ....l"
"मॉम प्लीज यह जरूरत वाली बात मुझे अच्छी नहीं लगती ....डैड देखो न मम्मा ...l"
"ठीक तो कह रही है तुम्हारी मम्मी l"सूरज ने भी डरती हुई आवाज में कहा l
"बस रहने ही दो मुझे नहीं जाना आपके साथ मार्केट ...l"चिढ़ते हुए सान्या ने कहा और पैर पटकते हुए अपने कमरे में भाग गई l
"सान्या.........l"दोनों आवाज देते रह गए l
"क्या जरूरत थी उसको ज्ञान देने की ?"सूरज का भी मूड खराब हो गया l
"आप भी न ....चढ़ा लो इस लड़की को सिर पर ...क्या समझाना बुरी बात है ?"शुभि ने चिढ़कर कहा l
"नहीं ...मगर अब कुछ माँग रही है तो देना ही होगा l"
"और क्या देना ही होगा ...डिमांड तो रोज बढ़ती ही जा रहीं हैं दोनों की ...सुर भी तो कुछ कम नहीं l"
"अभी तो दोनों आठवीं और दसवीं कक्षा में हैं ...पता नहीं आगे क्या होगा ?"शुभि ने संदेह व्यक्त करते हुए कहा l
"शुभि तुम क्यों परेशान हो ....आजकल पेरेंट्स होना कोई इतना आसान नहीं ...हमारे तुम्हारे जैसा जिनके लिए माँ बाप की बात मानना भगवान की बात से भी ज्यादा आवश्य था l"
तभी दरवाजे की घंटी बजती है वह उठकर दरवाजा खोलती है l
"अरे आप तो तैयार हैं ....मैँ अभी रेडी होकर आती हूँ l"
सान्या ने बैग सोफे पर पटकते हुए कहा l
अपनी जीत पर सान्या बहुत खुश जो थी आखिर पेरेंट्स को हरा जो दिया था l
रात खाना इसने तभी खाया था जब यह तय कर लिया कि जो मांगेगी वही दिलाना पड़ेगा l
✍️ राशि सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश , भारत
सच था कि जब उसकी शादी हुई ,उसने 12वीं पास की थी। पति सरकारी विभाग में चपरासी थे ।परिवार ने शादी कर दी ।मगर जब उसने रितेश से आगे पढ़ने की इच्छा जताई तो वह खुशी खुशी तैयार हो गया।दो बच्चों के जन्म और परिवार की जिम्मेदारी के साथ वह पढ़ती रही।और प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण कर अधिकारी बन गयी।मगर उस पर बिजली तब गिरी जब उसकी पोस्टिंग उसी कार्यालय में हुई जहाँ उसके पति चपरासी थे। बडी विषम स्थिति थी।उसने कहा कि वह नौकरी छोड़ दे।मगर रितेश न माना।उसने उनका स्थानांतरण दूसरे आफिस में करवा दिया। मगर उसके साब जब मैडम से मिलने आते तो बड़ी विषम परिस्थिति हो जाती। रितेश उन्हें देखकर खडा़ हो जाता।अपने चपरासी को मैडम के पति होने के नाते नमस्कार करना उन्हें बडा नागवार गुजरता था। घर का वातावरण भी कभी कभी बडा़ बोझिल हो जाता।वह बहुत प्रयास करती मगर स्थिति मे संतुलन लाना कठिन था।फिर भी वह रितेश के सामने पत्नी ही रहने की कोशिश करती।
किंतु नये साल की पार्टी में अग्रिम पक्ति मे बैठे रितेश को नशे मे धुत अधिकारी द्वारा अपमानित करने पर वह पार्टी छोड़कर आ गयी।रितेश ने दो दिन की छुट्टी ले ली थी।वह उसे नौकरी छोड़कर व्यापार करने को मना रही थी।मगर रितेश ये कदम उठा लेगा उसे यकीन नहीं हो रहा था।
रितेश का यूं जाना ,उसकी सबसे बड़ी हार थी।जब नौकरी लगी थी तब उसे लगा कि वह जीत गयीं।आज वह समझ नहीं पा रही थी कि वह हार गयी या जीत गयीं।
✍️ डॉ श्वेता पूठिया
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मिठाईयां बंद हो गईं। कितने दुख की बात है कि अब तरह-तरह की मिठाइयां जो इस संसार की शोभा बढ़ाती रही हैं और आज भी बढ़ा रही हैं ,हमारे मुंह की शोभा नहीं बढ़ा पाएंगी। बुरा हो उस मनहूस सुबह का जब हमने हॅंसी-हॅंसी में अपना भी ब्लड शुगर टेस्ट करा लिया। हम समझते थे कि हमें आज तक शुगर नहीं हुई है, इसलिए अभी भी नहीं होगी । सोचा चलो एक सर्टिफिकेट मिल जाएगा कि तुम ठीक-ठाक हो । हाथ आगे बढ़ाया । जॉंचने वाले ने उंगली में सुई चुभाई। ब्लड की जॉंच की और शुगर सौ से ऊपर थी। बिना कुछ खाए फास्टिंग में सौ से ऊपर। सच कहूॅं हमारी तो सॉंस ऊपर की ऊपर, नीचे की नीचे रह गई। यह क्या हो गया !
बस उसी समय से जीवन में अंधकार छाया हुआ है। सब लोग मीठा खाते हैं और हम गम खाते हैं ।आखिर बचा ही क्या है जिन्दगी में! फलों में मिठास है, खाने की हर चीज में मिठास है, अब जब मिठास ही खाने की वस्तुओं से चली गई तो फिर जीवन में मिठास कहॉं बची ? बड़ा कड़वा हो गया है जीवन ! मेरी समझ में नहीं आता कि यह शुगर की बीमारी कहॉं से आती है ? आदमी अच्छा भला है ।एक दिन उसे कह दिया जाता है कि तुम्हारे ब्लड में शुगर है। तुम शुगर के मरीज हो।
परहेज इतने कि कुछ पूछो मत। दहीबड़ा भी खाओ तो बगैर सोंठ के ! क्या खाए ? आदमी मुँह लटकाए हुए कुर्सी पर बैठा हुआ है । आने वाला पूछता है “क्यों भाई ! मुॅंह लटकाए कैसे हो ? “जवाब देना पड़ता है “भाई साहब, शुगर हो गई है ”
कुछ लोग दिलासा दिलाते हैं। कहते हैं, “मन छोटा न करो । हर तीसरे आदमी को शुगर है।”
हमारा कहना है कि वह तीसरा आदमी हम ही क्यों हैं ? जो बाकी दो रह गए हैं, वह क्यों नहीं हैं ? भगवान किसी के साथ ऐसा अन्याय न करे । जिंदगी दी है तो मिठास भी दे। अब परहेज में जिंदगी गुजरेगी।
शुगर के चक्कर में व्यवहार बदल गया। कल मैं एक फल वाले के पास गया। अंगूर देखे ,पूछा” कैसे हैं ? “वह उत्साह में भर कर बोला “बहुत मीठे हैं।” मैंने कहा “ज्यादा मीठे नहीं चाहिए “और मैं आगे बढ़ गया। वह बेचारा सोचता ही रह गया कि आखिर उसने ऐसा क्या कह दिया कि ग्राहक ने अंगूर नहीं खरीदे ।
लोग कहते हैं कि दुनिया में केवल दो ही प्रकार के लोग हैं ,एक गरीब -दूसरे अमीर । लेकिन मेरा कहना है कि दुनिया में केवल दो ही प्रकार के लोग हैं ,एक वे जिनको शुगर है, दूसरे वे जिनको शुगर नहीं है ।शुगर वालों का एक अलग ही संसार है। वास्तव में सच पूछो तो “शुगर पेशेंट यूनियन “की आवश्यकता है ।और अगर सारे शुगर के मरीज मिल जाए बहुत बड़ा परिवर्तन समाज में जा सकते हैं।
हमारा सबसे पहला काम इस मानसिकता को बदलना होगा कि उपहार में केवल मिठाई का डिब्बा ही देना चाहिए । मैं मिठाई के डिब्बों को देखता हूं , उनमें कितनी मिठाई ही मिठाई भरी हुई रहती है। इसके स्थान पर अगर मठरियाँ, मट्ठी, काजू के समोसे , खस्ता और दालमोठ रखी जाए तो कितना अच्छा होगा। शगुन के लिए अगर मिठाई देना जरूरी है तो डिब्बे के कोने में नुकती के चार लड्डू बिठाए जा सकते हैं । इसी तरह दावत में देखिए ! छह – छह मिठाई के स्टालों का क्या औचित्य है ? एक तरफ जलेबी,इमरती गरम गरम निकल रही है, दूसरी तरफ गुलाब जामुन, रसगुल्ला , मालपुआ है । “एक दावत एक मिठाई” इस सिद्धांत को व्यवहार में बदलना चाहिए। एक दावत में छह छह मिठाईयां शुगर वालों को चिढ़ाना नहीं तो और क्या है ?
निवेदन है:-
मर्ज शुगर का लग गया, अब हम हैं बीमार
रसगुल्ला सब खा रहे , टपकाएं हम लार
एक जगत में वे हुए , मीठा खाते लोग
दूजे उनको जानिए , मीठा जिनको रोग
✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 99976 15451
सतरंगी आकाश हो गूंजे जय जयकार
गुजिया घर बनती नहीं ना कांजी का स्वाद
चाकलेट से हो गया फीका सा आस्वाद
टेसू अब भी खिल रहे जंगल में सब ओर
किस को फ़ुरसत है बची लाए उनको तोड़
चीनी पिचकारी और रंग से अटा पड़ा बाज़ार
देसी राग आलाप कर , लें ख़रीद हर बार
बरगुलियाँ ग़ायब हुईं न मिले आम की डाल
कैरोसिन को झोंक कर होलिका दी है बाल
दोज फुलेरा से होते थे शुरू पहले होली रंग
सिमट चुका अब एक दिन होली का हुड़दंग
कभी चंग की थाप पर खेला जाता फाग जी
दारू के संग आजकल गा रहे बेसुरा राग
अभी वक्त है कुछ सोच लो छोड़ो सभी कुरंग
होली खेलो प्रेम से समृद्ध परम्परा के संग
✍️ प्रदीप गुप्ता, मुंबई
उनका आध्यात्मिक चिंतन, छोड़ने पर ही टिका है। उनको खुद को भी,जो कुछ मिला है,कविता छोड़ कर मिला है। सफलता का सूत्र है..छोड़ना, छोड़ कर ही आप कुछ पा सकते हैं।विजय माल्या, नीरव मोदी आदि अगर आज खुशनुमा जीवन बिता रहे हैं,तो इसके पीछे उनका बहुत बड़ा त्याग है। उन्होंने अपने देश तक को छोड़ दिया है।
अगर हम इतिहास पर नजर डालें,स्वतंत्रता संग्राम के मूल में भी छोड़ने की प्रवृति दिखाई देती है। महात्मा गांधी के आवाहन पर किसी ने पढ़ाई छोड़ी, किसी ने वकालत,किसी ने अपना घर और आंदोलन में कूद पड़े।इसकी परिणीति उन्नीस सौ बयालिस में भारत छोड़ो आंदोलन के रूप में हुई।
पिछले चुनाव में,एक पार्टी के वफादार नेता,अपनी पार्टी छोड़ कर दूसरी पार्टी में चले गए।उनके सारे पाप धुल गए और तरक्की के सारे रास्ते खुल गए। आज सरकार में एक महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल रहे हैं।उन्होंने सही समय पर सही कदम उठाया। उसूलों को छोड़ा,पार्टी को छोड़ा और बहुत कुछ पाया।
मेरा आप सब से, हाथ छोड़ कर निवेदन है,आप इस समय जो कुछ भी कर रहे हों,चाहे आवश्यक दैनिक कार्य ही क्यों ना हों,सब छोड़ कर इस लेख को पढ़िए और छोड़ने की इस मुहिम को,यानी कि आर्ट ऑफ लीविंग को आगे बढ़ाइए। वरना आपके दोस्त ,आपको छोड़ कर आगे बढ़ जायेंगे और आप हाथ मलते रह जायेंगे।
✍️ डॉ पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेजीडेंसी
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
ओ हुरियारे ।
मर्यादा का मुख इस युग में,
इतना काला ।
खुलने से ही कतराता है,
कुण्डी - ताला ।
तुम ही बोलो, चहकें कैसे,
घर - चौबारे ।
रंग पुराने लेकर आना,
ओ हुरियारे ।
मीठी चिक-चिक- हुल्लड़बाजी,
या बतियाना ।
होगा कब चौका सखियों का,
फिर मस्ताना ।
पूछ रहे हैं गुझिया मठरी,
पापड़ - पारे ।
रंग पुराने लेकर आना,
ओ हुरियारे ।
आस लगाए सोच रही है,
प्यारी होली ।
वापस झूमे चौपाई पर,
घर-घर टोली ।
रहें न गुमसुम ढोल-मजीरे,
या इकतारे ।
रंग पुराने लेकर आना,
ओ हुरियारे ।
✍️ राजीव प्रखर
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार
जंगल में होने लगी, रंगों की बौछार
भरी बाल्टी रंग से, लेकर बैठे शेर
छोडूंगा अब मैं नहीं,लगा रहे हैं टेर
हाथी दादा सूंड से, मारे जल की धार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार
बंदर मामा कम नहीं, बहुत बड़े शैतान
बैठे ऊँचे पेड़ पर, ले पिचकारी तान
लाये थे बाज़ार से, वो कुछ रंग उधार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार
छिपती छिपती फिर रहीं, बिल्ली मौसी आज
चूहों ने रँग डालकर, किया उन्हें नाराज़
पर कुछ कर सकती नहीं,बैठी खाये खार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार
हिरनी ने गुझिया बना, सबको दी आवाज
सभी खा गयी लोमड़ी,ज़रा न आयी लाज़
और टपकती रह गयी, सबके मुँह से लार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार
✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की संस्था अखिल भारतीय काव्यधारा के तत्वावधान में रविवार 26 फरवरी 2023 को कवि सम्मेलन व सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। आनंद कॉन्वेंट स्कूल, ज्वाला नगर, रामपुर में आयोजित इस आयोजन की अध्यक्षता संस्था अध्यक्ष जितेंद्र कमल आनंद ने की। मुख्य अतिथि बीसलपुर से पधारे दिनेश समाधिया और विशिष्ट अतिथि द्वय डॉ अब्दुल रऊफ (रामपुर) व मुरादाबाद से डॉ नीरू कपूर रहे।
राम किशोर वर्मा के संचालन में डॉ गीता मिश्रा गीत (हल्द्वानी) द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरंभ इस आयोजन में हिंदी की उत्कृष्ट सेवाओं के लिए ओंकार सिंह ओंकार (मुरादाबाद), डॉ गीता मिश्रा गीत, पुष्पा जोशी प्राकाम्य (शक्ति फार्म सितार गंज), अनमोल रागिनी गर्ग (रामपुर), रश्मि चौधरी 'दीक्षा' (रामपुर), डॉ अब्दुल रऊफ, आनंद वर्धन शर्मा (अल्मोड़ा), डॉ नीरू कपूर (मुरादाबाद), डॉ थम्मन लाल वर्मा 'विकल' (बीसलपुर- पीलीभीत), सुरेन्द्र अश्क 'रामपुरी', राजवीर सिंह 'राज' (बुलंदशहर), शिव प्रकाश सक्सेना (रामपुर), अमित रामपुरी, दिनेश समाधिया, सत्य पाल सिंह 'सजग'(लाल कुआँ) को सम्मानित किया गया। इन काव्यकारों को स्मृतिशेष प्रकाश चन्द्र सक्सेना "दिग्गज मुरादाबादी" स्मृति सम्मान, स्मृतिशेष शोभा आनंद स्मृति सम्मान, स्मृतिशेष हीरा लाल 'किरण' स्मृति सम्मान, काव्यधारा: काव्य श्री सम्मान, काव्य धारा: काव्य सृजन प्रवाह सम्मान विभूषित किया गया । इस अवसर पर काव्यामृत पत्रिका (चतुर्मासिक पत्रिका) प्रधान संपादक डॉ थम्मन लाल वर्मा 'विकल' का लोकार्पण अध्यक्ष और अतिथियों द्वारा किया गया ।
आयोजन के दूसरे चरण में उपस्थित रचनाकारों ने काव्य पाठ भी किया। आयोजन में पीयुष प्रकाश सक्सेना (प्रबंधक आनंद कॉन्वेंट स्कूल व काव्य धारा के संरक्षक), कुसुम लता वर्मा, पीयूष वर्मा, श्रीमती रवि प्रकाश, श्रीमती मंजुल रानी, अरुण सक्सेना, अल्का सक्सेना, अमन सक्सेना व शन्नो आदि शामिल रहे। संचालन राष्ट्रीय महासचिव राम किशोर वर्मा ने किया।
::::::प्रस्तुति::::::
राम किशोर वर्मा
महासचिव
अखिल भारतीय काव्यधारा
रामपुर , उत्तर प्रदेश, भारत