रविवार, 5 मार्च 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में रविवार पांच मार्च 2023 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम द्वारा मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन रविवार पांच मार्च 2023 को आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज, मिलन विहार में हुआ। 

      अंकित गुप्ता अंक द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वयोवृद्ध साहित्यकार रामदत्त द्विवेदी ने कहा .....

आज अचानक याद आ गया मुझको अपना गांव

दरवाजे पर खड़ी पंखुड़ियों की वह शीतल छांव

      मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार की अभिव्यक्ति थी - 

 भारत में हैं जातियां, मज़हब पंथ अनेक। 

 होली सबको बांधकर, कर देती है एक।।

      विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. मनोज रस्तोगी ने रंगों की बौछार करते हुए कहा - 

प्रेमभाव से सब खेलें होली,

 रंग अबीर गुलाल बरसाएं। 

 आपस के सब झगड़े भूल, 

 आज गले से सब लग जाएं।।

  विशिष्ट अतिथि के रूप में अशोक विद्रोही ने आह्वान किया - 

  होली तो है देश के, त्यौहारों की शान। 

  रंग डालो इक रंग में, पूरा हिन्दुस्तान।

      कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजीव प्रखर ने कहा .....

बदल गईं अनुभूतियाॅं, बदल गए सब ढंग।

 पहले जैसे अब कहाॅं, होली के हुड़दंग।। 

 गुमसुम पड़े गुलाल से, कहने लगा अबीर। 

 चल गालों पर खींच दें, प्यार भरी तस्वीर।। 

 इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई ने कहा....

रोज सबेरे पास हमारे, एक जादूगर आता है।

और मुझे कविता करने की जादूगरी सिखाता है।।

    रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ का कहना था .....

मानव बन तू दीप समान

दीपक सा तू जल जल कर

पदम 'बेचैन' ने कहा .....

सूर्य चन्द्र तारागण की चांदनी

मेघ पावक और पवन की रागनी 

योगेन्द्र वर्मा व्योम ने भी फागुन के रंग में सभी को डुबोया - 

मन के सारे त्याग कर, कष्ट और अवसाद । 

पिचकारी करने लगी, रंगो से संवाद ।। 

रिश्तो की शालीनता, के टूटे तटबंध। 

फागुन ने जब जब लिखा, मस्ती भरा निबंध ।। 

      रचना-पाठ करते हुए जितेन्द्र जौली ने कहा -

ये क्या समझ लिया तूने, ये जीवन नहीं झमेला है। 

मंजिल वो ही पाता है, कष्टों को जिसने झेला है।। 

  डॉ. प्रीति हुंकार की अभिव्यक्ति थी - 

  कुछ ही दिनों की बात है, नववर्ष हमारा आएगा।

धरती का आंचल महकेगा, बासंती फगुआ छाएगा।।       

      अंकित गुप्ता अंक की अभिव्यक्ति थी -

       देखो पेड़ों में छुपी, कोयल एक उदास‌। 

       दबेे पाँव आता गया, शहर गाँव के पास।। 

  प्रशांत मिश्र भी गरजे - 

  सन सैंतालीस की गलती को  

  अब तो देश सुधारों तुम। 

  बहुत सब्र अब हो चुका, 

  अब तो सिंह दहाड़ों तुम।

 अंत में दिवंगत साहित्यकार शिशुपाल मधुकर जी की स्मृति में दो मिनट का मौन रखकर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
















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