वो अपने थे कितने पराए,
मिलना चाहा तो मिल भी न पाए
अपनी मर्ज़ी से दिल के सफर में,
कब मिलते हैं आंचल के साए !
उस पार के सपने दिखा कर,
नाखुदा ने ही लूटा मेरा घर
जिसके कहने पर निकले सफर में,
वही कश्ति भंवर में डुबाए!
वो अपने थे कितने पराए
मिलना चाहा तो मिल भी न पाए
दिल की बातें लोगों से कर के
फरेब खाते रहे मर-मर के
शामिल थे उनमें तुम भी,
ये भी हम समझ न पाए !
वो अपने..........
जो घर गुरबत में पले हैं,
दंगों में वो ही जले हैं,
अंधेरी इन गलियों में,
कोई जाकर शमा एक जलाए
वो अपने थे.......
पैगाम न कोई खबर,
आंख देखे है सूनी डगर,
"आमोद" आज उनसे मिलेंगे,
कल ये शाम आए, न आए
वो अपने थे कितने पराए,
मिलना चाहा तो मिल भी न पाए
✍️ आमोद कुमार, दिल्ली
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