रंग पुराने लेकर आना,
ओ हुरियारे ।
मर्यादा का मुख इस युग में,
इतना काला ।
खुलने से ही कतराता है,
कुण्डी - ताला ।
तुम ही बोलो, चहकें कैसे,
घर - चौबारे ।
रंग पुराने लेकर आना,
ओ हुरियारे ।
मीठी चिक-चिक- हुल्लड़बाजी,
या बतियाना ।
होगा कब चौका सखियों का,
फिर मस्ताना ।
पूछ रहे हैं गुझिया मठरी,
पापड़ - पारे ।
रंग पुराने लेकर आना,
ओ हुरियारे ।
आस लगाए सोच रही है,
प्यारी होली ।
वापस झूमे चौपाई पर,
घर-घर टोली ।
रहें न गुमसुम ढोल-मजीरे,
या इकतारे ।
रंग पुराने लेकर आना,
ओ हुरियारे ।
✍️ राजीव प्रखर
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
हार्दिक आभार। आप सभी को होली पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामना।
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