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गुरुवार, 22 दिसंबर 2022
मुरादाबाद मंडल के साहित्यकारों जितेंद्र कमल आनंद रामपुर, राम किशोर वर्मा रामपुर, अनमोल रागिनी चुनमुन रामपुर,प्रीति चौधरी अमरोहा, डॉ रीता सिंह मुरादाबाद, रवि प्रकाश रामपुर, कृष्ण कुमार पाठक बिजनौर, राजवीर सिंह राज रामपुर, सुरेश अधीर रामपुर, इंदु रानी अमरोहा और राजीव प्रखर मुरादाबाद के दोहे । ये प्रकाशित हुए हैं रामपुर से जितेंद्र कमल आनंद के संपादन में प्रकाशित मासिक ई पत्रिका अखिल भारतीय काव्य धारा के नवम्बर दिसम्बर 2022 के संयुक्त अंक में ....
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ आर सी शुक्ल की काव्य कृति "ज़िन्दगी एक गड्डी है ताश की" की योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा की गई समीक्षा- ‘आत्मसत्य और बेचैनी को शब्दांकित करती कविताएं’
मुरादाबाद इन अर्थों में विशेष रूप से सौभाग्यशाली रहा है कि यहाँ जन्में अथवा रहे हिन्दी, उर्दू और अंग्रेज़ी भाषाओं के अनेक रचनाकारों ने अपने कृतित्व से न केवल राष्ट्रीय स्तर पर साहित्य को समृद्ध किया वरन मुरादाबाद की प्रतिष्ठा को भी समृद्ध किया है। साहित्य की समृद्धि और प्रतिष्ठा में अभिवृद्धि का यह क्रम आज भी अनवरत रूप से प्रवाहमान है। डाॅ. आर.सी.शुक्ल मुरादाबाद के वर्तमान समय के वरिष्ठ और महत्वपूर्ण रचनाकारों में शुमार ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने हिन्दी व अंग्रेज़ी में समान रूप से उल्लेखनीय सृजन किया है। उनकी अंग्रेज़ी में 10 पुस्तकें तथा हिन्दी में 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
हिन्दी के विख्यात कवि डा. शोभनाथ शुक्ल ने कहा है कि ‘कविता तो जीवन की व्याख्या है, विसंगतियों एवं जटिल-कुटिल परिस्थितियों में जीवन जीने की कला और संवेदना का लवालब संसार होती है कविता। मानव के लघुतर होते जाते कलेवर का पुनः सृजन करती है और सूखते जाते रिश्तों के तट पर फिर से लहरों की छुवन को महसूस कराती है’। हिन्दी के वरिष्ठ कवि डाॅ. आर.सी.शुक्ल की सद्यः प्रकाशित काव्यकृति ‘ज़िन्दगी एक गड्डी है ताश की’ की रचनाओं से गुजरते हुए भी यही महसूस होता है कि उनके सृजन लोक में जीवन-जगत से जुड़ा और जीवन-जगत से परे का हर छोटा-बड़ा परिदृश्य यहाँ-वहाँ चहलकदमी करता हुआ दिखाई देता है। संग्रह की शीर्षक रचना में शुक्ल जी संकेत में गहरी बात कहते हैं-
हमारी ज़िन्दगी की सूरत
इस बात पर निर्भर करती है कि
हमारा राजा कैसा है
सूरज अगर बेईमान हो जाय
तो खेतों में खड़ी फसलें तो
बर्बाद हो ही जायेंगी
पुरुषों और स्त्रियों के जिस्मों में भी
लग जायेगी फफूँद
इस संग्रह से पहले शुक्लजी की दो लम्बी कविता की कृतियाँ ‘मृगनयनी से मृगछाला’ और ‘मैं बैरागी नहीं’ आयी हैं जो दर्शन की पगडंडियों पर दैहिक प्रेमानुभूतियों और परालौकिक आस्था के बीच की उस दिव्ययात्रा की साक्षी हैं जिसे कवि ने अपने कल्पनालोक में बैराग्य के क्षितिज तक जाकर जिया है। लगभग ऐसे ही बैराग्य के दर्शन शुक्लजी की इस काव्य-कृति में भी होते हैं लेकिन अलग तरह से-
भवन कितना भी ऊँचा क्यूँ न हो
पर्वत नहीं हो सकता
सिर्फ़ ऊँचाई ही नहीं
पर्वत में गहराई भी होती है
भवन विक्षिप्त रहता है शहर के शोर-शराबे से
पर्वत शान्त होता है किसी ऋषि की तरह
भवन आवास होता है सांसारिक लोगों का
पर्वत पर देवता भी आते हैं
पर्वत बहुत प्रिय है बर्फ़ को
जो प्रतीक है तपस्या की
ओशो की दार्शनिक विचारधारा से भीतर तक प्रभावित शुक्लजी की जीवन-जगत को देखने की दृष्टि भी बिल्कुल अलग है। पुस्तक में संग्रहीत अनेक रचनाएं जीवन के विभिन्न पहलुओं को अपने अलग अंदाज़ में अभिव्यक्त करती हैं। शुक्लजी ‘मनुष्य का जीवन’ शीर्षक से कविता में कहते हैं-
मनुष्य का जीवन
एक मैदान है रेत का
जिस पर आकांक्षाओं के ऊँट
चलते रहते हैं निरंतर
यह मनुष्य ज़िद्दी तो है ही
अज्ञानी भी है
इस मैदान को
हरा-भरा करने के लिए
वह जीवन-भर लगाता रहता है
पौधे मोह के
जो मुरझाकर गिर जाते हैं
कुछ ही समय पश्चात
अनेक विद्वानों ने अपने-अपने तरीके से मृत्यु को परिभाषित और व्याख्यायित किया है। मृत्यु के संदर्भ में अनेक लेखकों के साथ-साथ अनेक कवियों ने भी अपनी कविताओं में अपने भावों और विचारों को महत्वपूर्ण रूप से अभिव्यक्त किया है, किन्तु मुझे लगता है कि शुक्लजी ने अपने कल्पना-लोक में मृत्यु को अपेक्षाकृत अधिक और भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से सोचा है, उसे अनुभूत किया है। परिणामतः उनकी लेखनी से मृत्यु को केन्द्र में अनेक रचनाएं प्रस्फुटित हुई हैं जिनका एक अलग संग्रह ‘मृत्यु के ही सत्य का बस अर्थ है’ शीर्षक से आया है। मृत्यु पर केन्द्रित उनकी एक कविता देखिए जिसमें वह अपने मन का पूर्ण बैराग्य अभिव्यक्त कर रहे हैं-
मृत्यु
किसी दूसरे ग्रह से नहीं आती है
हमें लेने के लिए
वह सदैव मौजूद रहती है
इसी भौतिक जगत में
मृत्यु एक भयप्रद तस्वीर है उस वृक्ष की
जो निर्जीव हो जाता है
उस चिड़िया के उड़ने के पश्चात
जिसने एक लम्बे समय तक बनाए रखा था
उसे अपना आवास
अलवर के कवि विनय मिश्र ने कहा है कि ‘कविता कवि की आत्मा का चित्र है।’ वरेण्य रचनाकार डाॅ. आर.सी.शुक्ल की कविताएं भी उनकी आत्मा के ही शब्दचित्र हैं जिसमें उन्होंने अपनी भावभूमि पर अपने आत्मसत्य और बेचैनी को ही शब्दांकित कर चित्रित किया है। शुक्लजी की अन्य कृतियों की भाँति यह महत्वपूर्ण कृति भी साहित्य-जगत में अपार सराहना पायेगी, ऐसी आशा भी है और विश्वास भी।
कृति - ‘ज़िन्दगी एक गड्डी है ताश की’ (कविता-संग्रह)
रचनाकार - डाॅ. आर.सी.शुक्ल
प्रकाशन वर्ष - 2022
प्रकाशक - प्रकाश बुक डिपो, बरेली-243003
मूल्य - 650 ₹ (पेपर बैक)
समीक्षक - योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल-9412805981
बुधवार, 21 दिसंबर 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुम्बई निवासी) प्रदीप गुप्ता के सम्मान में कोचिंग संस्थान स्कॉलर्स डेन में 18 दिसंबर 2022 को साहित्यिक मिलन का आयोजन
मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुम्बई निवासी) प्रदीप गुप्ता के सम्मान में रविवार 18 दिसंबर 2022 को साहित्यिक मिलन का आयोजन किया गया। आयोजन में उपस्थित साहित्यकारों ने मुरादाबाद के साहित्यिक परिदृश्य पर चर्चा के साथ- साथ काव्य पाठ भी किया।
कांठ रोड स्थित कोचिंग संस्थान स्कॉलर्स डेन में प्रख्यात साहित्यकार यश भारती माहेश्वर तिवारी के संरक्षण में आयोजित कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने किया । काव्य पाठ करते हुए माहेश्वर तिवारी ने कहा--
साथ-साथ बढ़ता है
उम्र के
अकेलापन
फ्रेमों में मढ़ता है
उम्र के
अकेलापन
प्रदीप गुप्ता का कहना था--
किनारे बैठ कर देख लिया बहुत हमने
मौज के साथ तनिक बह के भी देखा जाए
हास्य व्यंग्य के वरिष्ठ रचनाकार डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा--
चोरी की कविताओं की
हाय-हाय को लेकर
सवाल यह पैदा होकर सामने आया है
किसने किसका माल चुराया है
वरिष्ठ रचनाकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा --
द्वेष घृणा मिट सके दिलों से कुछ ऐसे अश्आर लिखो मानवता दम तोड़ रही है कुछ इसका उपचार लिखो
चर्चित नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम का कहना था ---
रामचरितमानस जैसा हो
घर आनंद का अर्थ
मात-पिता पति पत्नी भाई
गुरु शिष्य संबंध
पनपें बनकर अपनेपन के
अभिनव ललित निबंध
वरिष्ठ बाल साहित्यकार राजीव सक्सेना ने कहा ....
प्राचीर के पीछे
सूरज निकल तो रहा है
पत्थरों के भीतर
कुछ पिघल तो रहा है
स्पंदन धीमे ही सही
जीवन चल तो रहा है
अंधेरा घना ही सही
दीपक जल तो रहा है
मैं यूं ही डरा जा रहा हूं
युवा शायर ज़िया जमीर का कहना था...
हकीकत था मगर अब तो फसाना हो गया है
उसे देखे हुए कितना जमाना हो गया है
युवा कवि मयंक शर्मा
मन ले चल अपने गांव यह शहर हुआ बेगाना
दुख का क्या है दुख से अपना पहले का याराना
राजीव प्रखर ने दोहे प्रस्तुत करते हुए कहा ....
अब इतराना छोड़ दे, ओ निष्ठुर अंधियार
झिलमिल दीपक फिर गया, तेरी मूंछ उतार
कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने नवगीत प्रस्तुत करते हुए कहा...
उसके दम से मां की बिंदी,
बिछिया कंगना हार
नहीं पिता के हिस्से आया
कभी कोई इतवार
कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा ...
सुंदरता नैसर्गिक हो सकती है
किंतु उसका स्थायित्व
तुम्हें अर्जित करना पड़ता है
फूल यूं ही फूल नहीं होता
उसे हर पल
फूल रहना पड़ता है
डॉ मनोज रस्तोगी ने कविता 'नई सदी की ओर' के माध्यम से युवा पीढ़ी के अपनी परंपराओं से विमुख होने पर चिंता व्यक्त की....
भेड़ियों के मुहल्ले में
गूंजते हैं
रात को स्वर
आदमी आया ,आदमी आया
रंगकर्मी धन सिंह धनेंद्र ने मुरादाबाद के रंगमंच पर चर्चा की वहीं डॉ स्वीटी तलवार ने प्रदीप गुप्ता की कविता का पाठ किया ।अनिल कांत बंसल ने मुरादाबाद की साहित्यिक विरासत पर चर्चा की । आभार डॉ मनोज रस्तोगी ने व्यक्त किया ।