सोमवार, 19 दिसंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार ज़िया ज़मीर की ग़ज़ल .... हकीकत था मगर अब तो फसाना हो गया है /उसे देखे हुए कितना जमाना हो गया है....

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