मुरादाबाद इन अर्थों में विशेष रूप से सौभाग्यशाली रहा है कि यहाँ जन्में अथवा रहे हिन्दी, उर्दू और अंग्रेज़ी भाषाओं के अनेक रचनाकारों ने अपने कृतित्व से न केवल राष्ट्रीय स्तर पर साहित्य को समृद्ध किया वरन मुरादाबाद की प्रतिष्ठा को भी समृद्ध किया है। साहित्य की समृद्धि और प्रतिष्ठा में अभिवृद्धि का यह क्रम आज भी अनवरत रूप से प्रवाहमान है। डाॅ. आर.सी.शुक्ल मुरादाबाद के वर्तमान समय के वरिष्ठ और महत्वपूर्ण रचनाकारों में शुमार ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने हिन्दी व अंग्रेज़ी में समान रूप से उल्लेखनीय सृजन किया है। उनकी अंग्रेज़ी में 10 पुस्तकें तथा हिन्दी में 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
हिन्दी के विख्यात कवि डा. शोभनाथ शुक्ल ने कहा है कि ‘कविता तो जीवन की व्याख्या है, विसंगतियों एवं जटिल-कुटिल परिस्थितियों में जीवन जीने की कला और संवेदना का लवालब संसार होती है कविता। मानव के लघुतर होते जाते कलेवर का पुनः सृजन करती है और सूखते जाते रिश्तों के तट पर फिर से लहरों की छुवन को महसूस कराती है’। हिन्दी के वरिष्ठ कवि डाॅ. आर.सी.शुक्ल की सद्यः प्रकाशित काव्यकृति ‘ज़िन्दगी एक गड्डी है ताश की’ की रचनाओं से गुजरते हुए भी यही महसूस होता है कि उनके सृजन लोक में जीवन-जगत से जुड़ा और जीवन-जगत से परे का हर छोटा-बड़ा परिदृश्य यहाँ-वहाँ चहलकदमी करता हुआ दिखाई देता है। संग्रह की शीर्षक रचना में शुक्ल जी संकेत में गहरी बात कहते हैं-
हमारी ज़िन्दगी की सूरत
इस बात पर निर्भर करती है कि
हमारा राजा कैसा है
सूरज अगर बेईमान हो जाय
तो खेतों में खड़ी फसलें तो
बर्बाद हो ही जायेंगी
पुरुषों और स्त्रियों के जिस्मों में भी
लग जायेगी फफूँद
इस संग्रह से पहले शुक्लजी की दो लम्बी कविता की कृतियाँ ‘मृगनयनी से मृगछाला’ और ‘मैं बैरागी नहीं’ आयी हैं जो दर्शन की पगडंडियों पर दैहिक प्रेमानुभूतियों और परालौकिक आस्था के बीच की उस दिव्ययात्रा की साक्षी हैं जिसे कवि ने अपने कल्पनालोक में बैराग्य के क्षितिज तक जाकर जिया है। लगभग ऐसे ही बैराग्य के दर्शन शुक्लजी की इस काव्य-कृति में भी होते हैं लेकिन अलग तरह से-
भवन कितना भी ऊँचा क्यूँ न हो
पर्वत नहीं हो सकता
सिर्फ़ ऊँचाई ही नहीं
पर्वत में गहराई भी होती है
भवन विक्षिप्त रहता है शहर के शोर-शराबे से
पर्वत शान्त होता है किसी ऋषि की तरह
भवन आवास होता है सांसारिक लोगों का
पर्वत पर देवता भी आते हैं
पर्वत बहुत प्रिय है बर्फ़ को
जो प्रतीक है तपस्या की
ओशो की दार्शनिक विचारधारा से भीतर तक प्रभावित शुक्लजी की जीवन-जगत को देखने की दृष्टि भी बिल्कुल अलग है। पुस्तक में संग्रहीत अनेक रचनाएं जीवन के विभिन्न पहलुओं को अपने अलग अंदाज़ में अभिव्यक्त करती हैं। शुक्लजी ‘मनुष्य का जीवन’ शीर्षक से कविता में कहते हैं-
मनुष्य का जीवन
एक मैदान है रेत का
जिस पर आकांक्षाओं के ऊँट
चलते रहते हैं निरंतर
यह मनुष्य ज़िद्दी तो है ही
अज्ञानी भी है
इस मैदान को
हरा-भरा करने के लिए
वह जीवन-भर लगाता रहता है
पौधे मोह के
जो मुरझाकर गिर जाते हैं
कुछ ही समय पश्चात
अनेक विद्वानों ने अपने-अपने तरीके से मृत्यु को परिभाषित और व्याख्यायित किया है। मृत्यु के संदर्भ में अनेक लेखकों के साथ-साथ अनेक कवियों ने भी अपनी कविताओं में अपने भावों और विचारों को महत्वपूर्ण रूप से अभिव्यक्त किया है, किन्तु मुझे लगता है कि शुक्लजी ने अपने कल्पना-लोक में मृत्यु को अपेक्षाकृत अधिक और भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से सोचा है, उसे अनुभूत किया है। परिणामतः उनकी लेखनी से मृत्यु को केन्द्र में अनेक रचनाएं प्रस्फुटित हुई हैं जिनका एक अलग संग्रह ‘मृत्यु के ही सत्य का बस अर्थ है’ शीर्षक से आया है। मृत्यु पर केन्द्रित उनकी एक कविता देखिए जिसमें वह अपने मन का पूर्ण बैराग्य अभिव्यक्त कर रहे हैं-
मृत्यु
किसी दूसरे ग्रह से नहीं आती है
हमें लेने के लिए
वह सदैव मौजूद रहती है
इसी भौतिक जगत में
मृत्यु एक भयप्रद तस्वीर है उस वृक्ष की
जो निर्जीव हो जाता है
उस चिड़िया के उड़ने के पश्चात
जिसने एक लम्बे समय तक बनाए रखा था
उसे अपना आवास
अलवर के कवि विनय मिश्र ने कहा है कि ‘कविता कवि की आत्मा का चित्र है।’ वरेण्य रचनाकार डाॅ. आर.सी.शुक्ल की कविताएं भी उनकी आत्मा के ही शब्दचित्र हैं जिसमें उन्होंने अपनी भावभूमि पर अपने आत्मसत्य और बेचैनी को ही शब्दांकित कर चित्रित किया है। शुक्लजी की अन्य कृतियों की भाँति यह महत्वपूर्ण कृति भी साहित्य-जगत में अपार सराहना पायेगी, ऐसी आशा भी है और विश्वास भी।
कृति - ‘ज़िन्दगी एक गड्डी है ताश की’ (कविता-संग्रह)
रचनाकार - डाॅ. आर.सी.शुक्ल
प्रकाशन वर्ष - 2022
प्रकाशक - प्रकाश बुक डिपो, बरेली-243003
मूल्य - 650 ₹ (पेपर बैक)
समीक्षक - योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल-9412805981
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