रविवार, 16 मार्च 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख ।यह प्रकाशित हुआ है दैनिक जागरण मुरादाबाद संस्करण के 16 मार्च 2025 के सबरंग पेज पर

 


अतीत में दबे साहित्य को खोजा सुरेन्द्र मोहन मिश्र ने 

 

पुण्यतिथि 22 मार्च पर विशेष आलेख 


      पंडित सुरेंद्र मोहन मिश्र ने न केवल साहित्यकार के रूप में ख्याति प्राप्त की बल्कि इतिहासकार और पुरातत्ववेत्ता के रूप में भी विख्यात हुए। उन्होंने अतीत में दबे साहित्य को खोज कर उजागर किया।

     साहित्य, इतिहास और पुरातत्व को अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने वाले सुरेन्द्र मोहन मिश्र का जन्म 22 मई 1932 को चंदौसी के लब्ध प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ। आपके पिता पंडित रामस्वरूप वैद्यशास्त्री रामपुर जनपद की शाहबाद तहसील के अनबे ग्राम से चंदौसी आकर बसे थे। उनकी आयुर्वेद जगत में अच्छी ख्याति थी। उनके द्वारा स्थापित धन्वतरि फार्मसी द्वारा निर्मित औषधियाँ देश भर में प्रसिद्ध हैं । उनका निधन 22 मार्च 2008 को मुरादाबाद में अपने दीनदयाल नगर स्थित आवास पर हुआ ।

    बचपन से ही साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने में उनकी रुचि थी। साहित्य अनुराग के कारण ही आप कविता लेखन की ओर प्रवृत्त हुए। उधर, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में गाये जाने वाले कोरसों का भी मन पर पूरी तरह प्रभाव पड़ा। 

     आपकी प्रथम कविता दिल्ली से प्रकाशित दैनिक सन्मार्ग में वर्ष 1948 में प्रकाशित हुई । उस समय आपकी अवस्था मात्र सोलह वर्ष की थी। इसके पश्चात् आपकी पूरी रुचि साहित्य लेखन की ओर हो गयी। प्रारम्भ में आपने छायावादी और रहस्यवादी कवितायें लिखी। वर्ष 1951 में जब वह मात्र 19 वर्ष के थे उनकी प्रथम काव्य कृति मधुगान प्रकाशित हुई। इस कृति में उनके 37 गीत हैं। दूसरी कृति वर्ष 1955 में 'कल्पना कामिनी शीर्षक से पाठकों के सन्मुख आई। इस श्रृंगारिक गीतिकाव्य में उनके वर्ष 1951-52 में रचे 51 गीत हैं। लगभग 27 वर्ष के अंतराल के पश्चात उनकी तीसरी काव्य कृति कविता नियोजन का प्रकाशन वर्ष 1982 में हुआ। प्रज्ञा प्रकाशन मंदिर चन्दौसी द्वारा प्रकाशित इस कृति में उनकी वर्ष 1972 से 1974 के मध्य रची 26 हास्य-व्यंग्य की कविताएं हैं। वर्ष 1993 में उनकी चौथी कृति 'बदायूं के रणबांकुरे राजपूत' का प्रकाशन हुआ। प्रतिमा प्रकाशन चन्दौसी द्वारा प्रकाशित इस कृति में बदायूँ जनपद के राजपूतों का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत किया गया है। पाँचवीं कृति इतिहास के झरोखे से संभल का प्रकाशन वर्ष 1997 में प्रतिमा प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा हुआ। इसका दूसरा संस्करण वर्ष 2009 में प्रकाशित हुआ । वर्ष 1999 में उनकी छठी कृति कवयित्री सम्मेलन का प्रकाशन हिन्दी साहित्य निकेतन बिजनौर द्वारा हुआ। इस कृति में उनको 42 हास्य-व्यंग्य कविताएं हैं। वर्ष 2001 मैं सातवीं कृति के रूप में ऐतिहासिक उपन्यास 'शहीद

मोती सिंह' का प्रकाशन प्रतिमा प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा हुआ।

     वर्ष 2003 में उनकी तीन काव्य कृतियों- पवित्र पंवासा, मुरादाबाद जनपद का स्वतन्त्रता संग्राम तथा मुरादाबाद और अमरोहा के स्वतन्त्रता सेनानी का प्रकाशन हुआ । इसी वर्ष उसकी एक कृति मीरापुर के नवोपलब्ध कवि' का प्रकाशन हुआ। उनके देहावसान के पश्चात उनकी बारहवीं कृति आजादी से पहले की दुर्लभ हास्य कविताएं का प्रकाशन उनके सुपुत्र अतुल मिश्र द्वारा वर्ष 2009 में किया गया।

     उनकी अप्रकाशित कृतियों में महाभारत और पुरातत्व, मुरादाबाद जनपद की समस्या पूर्ति, स्वतंत्रता संग्रामः पत्रकारिता के साक्ष्य, चंदौसी का इतिहास, भोजपुरी कजरियां, राधेश्याम रामायण पूर्ववर्ती लोक राम काव्य, बृज के लोक रचनाकार, चंदौसी इतिहास दोहावली, बरन से बुलन्दशहर, हरियाणा की प्राचीन साहित्यधारा, स्वतंत्रता संग्राम का एक वर्ष, दिल्ली लोक साहित्य और शिला यंत्रालय, रूहेलखण्ड की हिन्दी सेवायें, भूले-बिसरे साहित्य प्रसँग, रसिक कवि तुलसी दास, हिन्दी पत्रों की कार्टून- कला के दस वर्ष उल्लेखनीय हैं।

   वर्ष 1955 में ही उनकी रुचि पुरातत्व महत्व की वस्तुएं एकत्र करने में हो गयी। इसी वर्ष उन्होंने चंदौसी पुरातत्व संग्रहालय' की नींव डाल दी जो बाद में कई वर्ष तक मुरादाबाद के दीनद‌याल नगर में हिन्दी संस्कृत शोध संस्थान, पुरातत्व संग्रहालय के रूप में संचलित होता रहा। पुरातत्व वस्तुओं की खोज के दौरान उन्होंने प्राचीन युग के अनेक अज्ञात कवियों प्रीतम, ब्रह्म, ज्ञानेन्द्र मधुसूदन दास, संत कवि लक्ष्मण, बालक राम आदि की पाण्डुलिपियाँ खोजी । हस्तलिखित पाण्डुलिपियों का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि इनमें से अनेक ग्रंथ दुर्लभ थे।

   उनकी समस्त पुरातात्विक धरोहर वर्तमान में उनके सुपुत्र अतुल मिश्र के अलावा बरेली के पांचाल संग्रहालय, स्वामी शुकदेवानन्द महाविद्यालय, शाहजहांपुर में 'पं. सुरेन्द्र मोहन मिश्र संग्रहालय'  तथा रजा लाइब्रेरी में संरक्षित है। 

    ✍️ डॉ मनोज रस्तोगी, वरिष्ठ साहित्यकार

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