होली के हुलास में
अंग-अंग खिल उठे, रंग रंग मिल उठे,
पीने लगे जब सब,एक ही गिलास में।
ऐसी जोड़ तोड़ वाली, व्याकरण पढ़ी गयी,
कुछ भी न फर्क रहा, संधि व समास में।
रस छंद सुर ताल, करने लगे कमाल,
गीत व गजल बैठ, गये आस-पास में।
कौन चाची कौन ताई, कौन दादी भाभी कौन,
कुछ भी न होश रहा, होली के हुलास में।।
✍️त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली, संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
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