भारत के कण-कण बसे, पुरुषोत्तम श्रीराम ।
हर जन के वह प्राण हैं, यही धारणा आम ।।
राम चरित वह ग्रंथ है, सारे शास्त्र समाय ।
मात-पिता गुरु के लिए, आदर भाव सिखाय ।।
सौतेली माँ हो कभी, करें न दुर्व्यवहार ।
दासी कैसी है सदा, करिए सोच-विचार ।।
पुरुषोत्तम श्रीराम के, कर्म सभी अभिराम ।
हर जन के वह प्राण हैं, यही धारणा आम ।।
प्रजा प्रेम का भी करें, बहुत अधिक सम्मान ।
केवट जैसे की सदा, रखें आय का ध्यान ।।
श्राप मुक्त पत्थर किया, दे नारी का रूप ।
पशु-पक्षी सबके बने, चिंतक राम अनूप ।।
भिलनी के उस प्रेम में, नहीं जाति का काम ।
हर जन के वह प्राण हैं, यही धारणा आम ।।
मित्र बने तो दीजिए, उसका पूरा साथ ।
शरण पड़े तो लीजिए, उसको हाथों-हाथ ।।
बुरी दृष्टि का कीजिए, तत्क्षण ही उपचार ।
कोई जब शंका करे, दिया सभी कुछ वार ।।
पग-पग पर सिखला रहे, वनवासी प्रभु राम ।
हर जन के वह प्राण हैं, यही धारणा आम ।।
विद्वजनों को दीजिए, सदा मान-सम्मान ।
लक्ष्मण भ्राता से कहा, लो रावण से ज्ञान ।।
राक्षस सारे तर गये, सफल हुआ यह काज ।
जीती लंका सौंप दी, दिया विभीषण राज ।।
किये शत्रु हित कार्य भी, पुरुषोत्तम श्रीराम ।
हर जन के वह प्राण हैं, यही धारणा आम ।।
✍️राम किशोर वर्मा
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
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