आज सुबह जब आँख खुली, तो मौसम का मिज़ाज़ देख कर दिल खुश हो गया। बड़ा सुहाना मौसम था, साथ में ताज़गी से सराबोर कर देने वाली ठंडी हवा।
एक अनदेखी सी खुशी महसूस हो रही थी। अब एक शायर होते हुए ऐसे खुशनुमा मौसम की खूबसूरती को पन्नों पर न लिखूँ, ऐसा हो ही नही सकता।
मैंने कुछ लिखने को जैसे ही कलम हाथ में ली तो ख्याल आया कि पहले क्यों न अखबार के मेरे पसन्दीदा पृष्ठ 'साहित्यिक समाचार' को चाय की चुस्कियाँ लेते हुए पढ़ लिया जाये। उसके बाद ही कुछ लिखता हूँ।
जैसे ही उस पृष्ठ पर मेरी नज़र पड़ी तो!
"अरे यह क्या?" मैं उस ग़ज़ल को देखकर अवाक रह गया।
इतनी मशहूर ग़ज़ल के लेखक का नाम!!!???
"आखिर यह कैसे?" मेरे अंदर सवालों का एक समुद्र हिलोरें मारने लगा था, "क्या आज तक मैंने जो ज्ञान प्राप्त किया था, या मुझे जो जानकारी थी, वह गलत थी? या जो मैं देख रहा हूँ वो गलत है?", मैंने खोजबीन शुरू की तो जिस नतीजे पर पहुँचा वह चौंकाने वाला था, "आखिर कोई व्यक्ति, जो कि अपने आपको साहित्य की महान पृष्ठभूमि से जुड़ा हुआ कहता है। वह इतनी नीच हरकत कैसे कर सकता है? आखिर इतनी ओछी मानसिकता कैसे रख सकता है? जिनके दम से साहित्य जगत को एक नयी बुलंदी और पहचान मिली हो वह उन जैसी महान हस्ती का अपमान करने की कैसे सोच सकता है?"
मुझे यह सब देखकर बड़ा दुख हुआ। मैंने उस अखबार और उसमें छपी ग़ज़ल के बनावटी शायर की निंदा की।
मुझे अंदर से एक बात की संतुष्टि थी कि "मैं अपनी शायरी के हर शब्द को स्वयं लिखता हूँ। कुछ लोगों की तरह चोरी-डकैती या दूसरे शायरों की ग़ज़ल अपने नाम से पेश नही करता। आज एक नई सीख मिली थी कि मुझे अपनी ग़ज़लों को बचा कर रखना होगा। अन्यथा यहाँ चोरों की कमी नही है।"
अरविंद कुमार शर्मा "आनंद"
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
8979216691
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