कुछ दिये टिमटिमाते रहे रातभर।
जुगनुओं की तरह से वो आए नज़र।।
रौशनी खो गयी है सियह रात में।
और वीरान है हर नगर, हर डगर।।
मोड़ पर थी जो उजड़ी हुई झोपड़ी।
उसपे ठंडी हवा ने भी ढाया कहर।।
चांदनी भी हुई अब बड़ी बेवफ़ा।
चाँद निकला मगर वो न आयी नज़र।।
जो मुहाफ़िज़ रहे हर क़दम पर मिरे।
मैं हूँ मुश्किल में और वो हैं सब बेख़बर।।
कुछ दिनों को ज़रा क्या मैं ग़ुम सा रहा।
लोग समझे कि 'आनंद' है बेख़बर।।
✍️अरविंद शर्मा "आनंद"
मुरादाबाद, उ०प्र०
मोबाइल फोन नम्बर- 8218136908
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें