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गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा --मौसी का घर


  " अरे आप आ गये सरला ने अपने पति की ओर इशारा करके कहा," आपके साथ रानी भी आई है।

 रानी ने नमस्ते मौसी कह कर सम्बोधित किया।

---ठीक है ठीक है चलो आपने यह अच्छा किया, मैं काम करते - करते थक जाती हूँ यह चौक्का बर्तन कर दिया करेगी मेरा भी काम हल्का हो जायेगा," क्यों बेटी ?"

अब रानी क्या कहे वह मौसी को टेढ़ी निगाह से निहारती रही------।।

        

✍️ अशोक विश्नोई

  

शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कविता .....चित्र


एक नागरिक ने

जनता की निगाहों

को तोल-

मंच पर चढ़कर बोला -

मेरे हाथ में क्या है ?

जो बतलायेगा

हम , उसे हिंदुस्तान

की सैर करायेगा -

तभी,

जनता के बीच से

आवाज़ आई --

तुम्हारे हाथ में 

क्या है भाई--

नज़र नहीं आ रहा है

मेरे पास चश्मा नहीं है

दूसरा बोला,

तुम्हारे हाथ में फ़ोटो है

जिसका चेहरा लालू

से मिलता है--

कई बच्चों का बाप होने पर

कमल सा खिलता है--

मुझे,

तो दूर से टोपी ही

नजऱ आ रही है-

वी.पी.सिंह की याद

आ रही है-

नागरिक ने कहा

नहीं भाई नहीं,

तुम्हारे सभी उत्तर गलत 

हो गये,

तुम्हारे सभी अंदाज़

फेल हो गये-

यह चित्र,

किसी नेता या

राजनेता का नहीं

आम आदमी का चित्र है--

जिसका चेहरा

खिला हुआ नहीं

भूख से त्रस्त है--

सर पर टोपी नहीं

बल्कि,

अपनी जिंदगी के बोझ 

को ढोता, दर्द को सहता-

तिल - तिल कर मरता-

आज का इंसान है।

इसकी टांगे महंगाई ने

कमजोर कर दी हैं-

यह खड़ा होने में

असमर्थ है --

यह बड़ा ही विचित्र है--

सच्चाई के करीब,

आम आदमी का चित्र है ।।


✍️अशोक विश्नोई

मुरादाबाद

रविवार, 29 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कविता ....दिल्ली की सैर


मैंने एक दिन

अपने पालतू कुत्ते

के सर पर हाथ 

फेर कर कहा,

चल तुझे दिल्ली की

सैर कराता हूँ ।

देख,

यह है पुरानी दिल्ली

और

यह लालकिला

यहां से 15 अगस्त को

प्रधानमंत्री जी देश

को सम्बोधित करते हैं,

कुछ पुरानी बातें

करते हैं तो

कुछ नई घड़ते हैं।

कितनी लागू होती हैं

यह बात अलग है।

चल आगे चल

देख यह है

जंतर - मंतर

जहां धरना प्रदर्शन

होता है-

आंदोलन का स्थान है

माँगे माँगी जाती हैं

और 

लाठी भी भांजी जाती है।

और देख यह

समाधि स्थल है

यहां अनेक राजनीतिज्ञों

की समाधियां हैं

कोई फूल चढ़ाता है

तो कोई किसी न किसी

को कोसता है

अपनी अपनी

सोच है प्यारे।

और यह है कुतुबमीनार

इसकी ऊँचाई देख

यहां से कूदकर

कई प्रेमियों ने

आत्महत्या तक कर ली

और बता क्या दिखाऊँ,

यह यहां का प्रसिद्ध

चिड़ियाघर है-,

यहां हर प्रकार के 

जानवर हैं,

कुछ शेर हैं तो

कुछ गीदड़ हैं।

वैसे भी दिल्ली में

शेर गीदड़ बहुत हैं।

और यह

इंडिया गेट है

यहां शहीद की मशाल 

जल रही है

तभी मैनें देखा

मेरा कुत्ता

दोनों पैरों पर खड़ा 

होकर शहीद को नमन

करने लगा-

मन प्रसन्न हुआ

कि अभी इंसान से ज्यादा

मेरे बफादार कुत्ते में

इंसानियत है।

फिर मैंने

उसे बताया कि देख

यहां देश के चुने हुए

प्रतिनिधि आकर बैठते हैं,

यह जरूरी नहीं कि

सभी ईमानदार हों

कुछ अच्छे कुछ बुरे हैं।

ईमानदार कम

बेईमान अधिक हैं,

ईमानदारी की संख्या

40  परसेंट है ।

बेटा

यह पार्लियामेंट है।।

अन्दर बहस होती है

तू -तू मैं - मैं होती है

एक दूसरे पर

भौंकते हैं--

बस मेरा इतना कहना था

मेरा कुत्ता

ज़ोर -ज़ोर से भौंकने लगा।

मैनें माथे पर

हाथ मारा,

मन ही मन कोसने लगा ।

तुझे कहाँ ले आया,

बड़ी गलती हो गई।

शायद तुझे भी

यहां की हवा लग गई।।


✍️ अशोक विश्नोई 

मुरादाबाद

शनिवार, 21 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा-- कम्बल



  ....भैया कम्बल कैसे दिए हैं ।

अरे आप तो ले लो, बस दो ही बचे हैं... पैसे तो हो ही जायेंगे ।

      ठीक है, दोनों दे दो ," ग्राहक ने कहा"। 

विक्रेता ने दोनों कम्बलों के चार सौ रुपये लेकर उसे चलता किया।

   गोलू जो उधर से गुज़र रहा था, यह देखकर कह उठा,"अरे.... तुम तो अपने बच्चों के साथ कम्बल वितरण की लाइन में लगे हुए थे... अब समझा...."। 


अशोक विश्नोई

मो०9458149223

शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा--सभ्यता

   


चौराहे पर गाड़ी और मोटरसाइकिल में टक्कर होते -होते रह गई।तभी मोटरसाइकिल सवार ने गाड़ी चला रहे 75 वर्षीय वृद्ध से कहा

 देख कर नहीं चल सकता जब चलानी नहीं आती तो चलते क्यों हो ? वृद्ध ने विनम्रता से कहा ," बेटा गलती हो गई आइंदा ध्यान रखूंगा।" हाँ हाँ----- इतना ही कह पाया था कि उधर से मोटसाइकिल चालक के

पिता श्री ने उसके पास आकर गाड़ी रोक कर पूछा क्या हुआ बेटा ? ," कुछ नहीं पिता जी बस इसे बता रहा था कि गाड़ी देख कर चलाया कर ।" पिता रामसेवक ने गाड़ी में बैठे महाशय को देख गाड़ी से उतर कर उनके पैर छुये और लड़के के चपत लगाते हुए कहा," मालूम है यह कौन हैं?"ये गाड़ी ये मोटसाइकिल सब इनकी कृपा से है ,माफ़ी मांग इनसे।

    कोई बात नहीं राम सेवक," जाने दो बच्चा है कहा सेठ जी ने " और यह कह कर अपनी गाड़ी बढ़ा दी," ईश्वर का दिया तुम पर सब कुछ है  राम सेवक बस थोड़ी सी सभ्यता की कमी है-- सिखाना जरुर -----"।।

✍️ अशोक विश्नोई


बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा--सन्मति


 एक शराबी ने इतनी पी रखी थी कि उसे यह भी होश नहीं था कि वह कौन है बस सड़क पर खड़ा होकर अपनी ही धुन में बड़बड़ा रहा था ,मैं यहां का राजा हूँ तुम सब मेरी प्रजा हो । साली कहती है पैसे नहीं हैं तुम्हें दूँ या बच्चों को पढ़ाऊँ ,साली बच्चे गये भाड़ में।आज बताता हूँ उसे---।

       वह इतनी ज़ोर- ज़ोर से बड़बड़ा रहा था कि कहीं दूर से आती भजन की आवाज़ भी दब रही थी बस हल्की हल्की आवाज सुनाई पड़ रही थी

       ईश्वर अल्लाह तेरे नाम

       सबको सन्मति दे भगवान 

       ईश्वर अल्लाह तेरे नाम----।।

✍️ अशोक विश्नोई 

          



गुरुवार, 1 सितंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा- वक़्त की बात

     


रामप्रसाद ने अपने बहू- बेटे को बुलाकर कहा ,"ले बेटा यह मेरी जमा पूंजी के पेपर हैं जो मेरे पास था तेरे नाम कर दिया है सम्भाल कर रखना मुझे क्या चाहिए सब दो वक़्त की रोटी ?" ठीक है पिता जी, कहकर मोहन ने कागजात अपने पास रख लिए। एक दिन ऐसा आ गया कि न तो बहू सुनती और न ही बेटा, रोटी भी वक़्त बे वक़्त मिलती और वह भी बहुत तानों के बाद।अब रामप्रसाद क्या करे अपना दुख किससे कहे आखिर परेशान होकर वह वृद्धाश्रम में जाकर रहने लगा और बिना किसी को बताये अपनी वसीयत बदलवा दी।

       जब मोहन को पता चला तो बहुत देर हो चुकी थी वह पिता जी को लेने आश्रम पहुंचा वहां टीवी पर चित्रहार में गाना आ रहा था -----।

      तू हिंदू बनेगा,न मुसलमान बनेगा

       इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा।

✍️ अशोक विश्नोई 

 मुरादाबाद

मंगलवार, 26 जुलाई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल द्वारा अशोक विश्नोई के लघुकथा संग्रह सपनों का शहर की समीक्षा ....तमाम विसंगतियों को सशक्त रूप से दर्शाती हैं अशोक विश्नोई की लघुकथाएं

 जीवन की आपाधापी में तमाम मोड़ ऐसे आते हैं जहाँ परिस्थितियाँ अप्रत्याशित होती हैं I कहीं सामान्य मानवीय व्यवहार के कारण तो कहीं मानवीय मूल्यों के क्षरण के कारण ऐसी घटनाएं घट जाती हैं जो हतप्रभ कर देती हैं I

ऐसे ही घटनाक्रमों के कथानक को लेकर सूक्ष्मता से व प्रभावशाली ढंग से कम से कम शब्दों में व्यक्त करने की विधा है लघुकथा ।

 'सपनों का शहर' मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई का यह दूसरा लघुकथा संग्रह है । विश्नोई जी कहते हैं कि वो वही लिखने का प्रयास करते हैं जो समाज में घटित होता है - अर्थात जैसा देखा वैसा लिखा ।

उनके उपरोक्त कथन के अनुरूप ही इस संग्रह में सभी लघुकथाएं अपने आस पास के परिवेश में घटित होने वाली घटनाओं पर ही आधारित हैं । लघुकथा पढ़ते पढ़ते लगता है कि ये तो हमारे संज्ञान में है, या ऐसी घटनाएं तो आम बात हैं और यहाँ वहाँ घटती ही रहती हैं, किंतु उनकी लघुकथाएं तमाम विसंगतियों को सशक्त रूप से दर्शाती भी हैं और संदेश भी देती हैं ।भाषा और प्रस्तुति की शैली भी सामान्य और सहज है,   कहीं भाषा की क्लिष्टता या गूढ़ता नहीं मिलती ।

उक्त संग्रह में उनकी 101 लघुकथाएं संकलित हैं Iपहली ही लघुकथा में सेठ जी द्वारा भिखारी को दस रुपये न देकर भगा देना और फिर केवल दस रुपये के अंतर से टेंडर निरस्त हो जाना, जरूरतमंदों की मदद करने व उनके साथ अच्छा व्यवहार करने का संदेश देता है ।इसी प्रकार आदमी शीर्षक की लघुकथा में सेठ जी को और करारा तमाचा लगता है, जब पानी पिलाने की गुहार लगाता फकीर कहता है, 'सेठ जी कुछ देर के लिये आप ही आदमी बन जाइए' ।

कुछ लघुकथाएं कल्पना पर आधारित प्रतीत होती हैं ।हालाँकि वे हास्य प्रधान लघुकथाएं हैं, जैसे 'मजबूरी' नामक लघुकथा को ही लें, जहाँ पंद्रह दिन से टिके मेहमानों को विदा करने के उद्देश्य से तांत्रिक को बुलाया गया, योजनानुसार तांत्रिक ने धूनी रमाकर कहा : नये की बलि दो, और नत्थू की पत्नी ने जैसे ही कहा: महाराज नया तो कोई नहीं है, हाँ चार मेहमान जरूर हैं, जिसे सुनकर मेहमान भाग लिये I इस लघुकथा में कल्पना जनित हास्य झलकता है, जो पाठक को आनंदित करता है ।ऐसी ही लघुकथा कंजूस बाप है जो घड़ी खराब हो जाने के कारण बार बार कंजूस बाप से पचास रुपये माँगने आ जाता है, और अंतत: बाप घड़ी को ही पत्थर से कूटकर समाप्त कर देता है । एक और रोचक कथा है कवि गोष्ठी ।

इसी प्रकार सभी लघुकथाएं रोजमर्रा के क्रियाकलापों, मानवीय व्यवहार, ऊँच नीच, छल फरेब,लालच, दुराचार, आदि मानवीय बुराइयों का पर्दाफाश करती हैं और समाज को इनसे विलग रहने का संदेश देती हैं ।

      समग्रता में देखें तो श्री विश्नोई जी इन लघुकथाओं के माध्यम से पाठकों को तमाम विसंगतियों और असहज परिस्थितियों से  अवगत कराने के साथ साथ इन तमाम बुराइयों के प्रति सचेत करते हैं, साथ ही रोचकता बनाये रखने में सफल रहे हैं । कुल मिलाकर सपनों का शहर एक बार तो पठनीय संग्रह है ।





कृति : सपनों का शहर (लघु कथा संग्रह)

 लेखक : अशोक विश्नोई  

 प्रकाशक : विश्व पुस्तक प्रकाशन, नई दिल्ली

 प्रथम संस्करण : 2022 पृष्ठ संख्या -103

 मूल्य : 250 ₹

 

समीक्षक :श्रीकृष्ण शुक्ल,

MMIG - 69,

रामगंगा विहार,

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 19 जुलाई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई के लघुकथा संग्रह सपनों का शहर की मीनाक्षी ठाकुर द्वारा की गई समीक्षा....जीवन की कड़वी सच्चाई उजागर करती हैं अशोक विश्नोई की लघुकथाएं

  लघुकथा  गल्प साहित्य के वृक्ष पर लगने वाला वह फल है जो आकार में  अत्यंत लघु होने के बावजूद अत्यंत स्वादिष्ट होता है, और   जिसे चखकर लंबे समय तक पाठकों के मुख से वाहहहहह  वाहह निकलता रहता है,अर्थात गागर में सागर भरना लघुकथा शिल्प की प्रथम शर्त है, इसके अतिरिक्त कथानक की कसावट, गंभीरता,  विषयों की गूढ़ता ,पात्रों का  सशक्त चयन,   तीव्र बेधन क्षमता,वक्रोक्ति व उद्देश्य की पूर्ति में सफल होना इसके प्रमुख अंग  होते हैं.

आज के व्यस्ततम समय में पाठकों के पास समय की प्रतिबद्धता का नितांत अभाव है तथा वह अपनी मानसिक उर्जा लंबी कहानियों को पढ़ने में व्यय करने से बचना चाहता है , परंतु साथ ही कुछ रोचक व संघर्ष पूर्ण  भी पढ़ना चाहता है . 

 ऐसे समय में अनेक पुरस्कारों से सम्मानित व " सुबह होगी", "संवेदना के स्वर" और  "स्पंदन "जैसी कृतियों के लेखक  अशोक विश्नोई ने अपने अनुभव की बारीक सुई से विभिन्न कथानकों को यथार्थ के धरातल से उठाकर लघुकथाओं के शिल्प  से जो *सपनों का शहर* तैयार  किया है वह  अद्भुत है और अपने उद्देश्य की पूर्ति में पूर्णतः सफल हुआ है. श्री अशोक विश्नोई ने गीत, कविता हाइकु, कहानी,आलेख, मुक्त छंद, मुक्तक लेखन तो किया ही है साथ ही लघुकथा लेखन में भी आपको महारथ हासिल  है     पाठकों के लिए  यह पुस्तक ’ सपनों का शहर’ बहुत ही प्रासंगिक हो जाती है जब वह स्वयं को विभिन्न पात्रों के रूप में परिस्थितियों से जूझते हुए देखता है और स्वयं को उक्त कथानक का हिस्सा समझने लगता है .

  आपकी कथाओं के पात्र व कथानक किसी भी दृष्टि से आरोपित नहीं लगते. प्रतीत होता है कि वे हमारे इर्द गिर्द से ही लिए गये हैं. आपने अपनी लघु कथाओं के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों, बुराइयों, भ्रष्टाचार, राजनीति, टूटते परिवार, खोखले रिश्तों, बेरोजगारी और समाज में व्याप्त गरीबी को उजागर करने के साथ साथ हमारे समाज पर पड़ रहे आधुनिकता के साइड इफेक्ट्स  भी दर्शाए हैं . लघुकथा..दरकती नींव इसका सशक्त उदाहरण है. जहाँ आधुनिकता की चपेट में आकर  गुरु और शिष्य के संबंध भी पतन की ओर अग्रसर होते दिखाई देते हैं

    संग्रह की शीर्षक लघुकथा ’सपनों का शहर’  देश के युवाओं के संघर्षरत जीवन की कड़वी सच्चाई है, जहाँ अथक परिश्रम   व योग्यता से शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात भी तमाम  डिग्रियाँ  रिश्वत रूपी वज़न के अभाव में मात्र कागज़ का टुकड़ा बनकर रह जाती हैं, इस लघुकथा के माध्यम से  आपने एक ओर बिना तकनीकी ज्ञान के कोरा किताबी ज्ञान की  निरर्थकता को रेखांकित किया है  तो दूसरी ओर सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार पर भी अंगुली उठायी है.डिग्री जलाकर पोरवे गरम करने का दृश्य युवा पीढ़ी की रोजगार  प्राप्त न कर पाने की कुंठा व तनाव का चरमोत्कर्ष  है.

आपकी लघुकथाएँ तीव्र हास्य व्यंग्य का पुट लिए हँसाती हैं, चौंकाती हैं और फिर अंत में सामाजिक विद्रूपताओं के विरोध में भीतर ही भीतर तिलमिलाने पर विवश कर देती हैं.इसी क्रम में  लघुकथा "नेता चरित्र " जहाँ नेताओं के चरित्र को उजागर करती है, वहीं भीतर तक गुदगुदाती है और शालीन हास्य को जन्म देती है, जब मूर्च्छित पड़े नेता जी उदघाटन का नाम सुनते ही चैतन्य हो जाते हैं और पूछते है," कहाँ आना है भाई और कब आना है? 

   आपने नारी जाति के प्रति समाज के पूर्वाग्रह को भी अपनी कथाओ मे दर्शाया है, जहाँ  पर स्त्री और   पर पुरुष के संबंधो को  बस हेय दृष्टि से ही देखा जाता है,  आपने लघुकथा "फैसला "के माध्यम से ऐसे  ही लोगों के मुँह पर तमाचा  मारा है, जब पंचायत लाजो देवी पर  लांछन लगाती है तब युवक का यह कथन ," यदि फैसला हो चुका हो तो क्या  मै अब अपनी बहन को ले जा सकता हूँ? "यह संवाद युवक के मुख से निकलकर उन समस्त लोगों का सर शर्म से झुका देता है, जो समाज के तथाकथित ठेकेदार बनते हैं और पवित्र रिश्तों को भी आरोपित करने से नहीं चूकते

लघुकथा "आदमी " की यह पंच लाइन,खासी  प्रभावित करती है जब फकीर कहता है"  सेठ जी कुछ देर को आप ही आदमी बन जाइए". यह पंच लाइन पाठकों को सहसा ही " वाहहहहह  गजब" कहने को विवश कर देती है . साथ ही यह पंक्ति पाठकों को लंबे समय तक झकझोरती रहेगी और हो सकता है कि कुछ निष्ठुर हृदय भी इस कथा को पढ़कर आदमी बन जाएँ, यही साहित्य की जीत भी है, यदि साहित्य को पढ़कर समाज की सोच को नयी दिशा मिले तो यह साहित्यकार की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है.

 इसके अतिरिक्त आपने समाजिक व आर्थिक विषमताओं को व्यंगात्मक शैली के द्वारा बड़ी चतुरता से प्रस्तुत किया है, गुलामी, बिसकुट का पैकेट,माँ, परिस्थितियाँ ऐसी ही लघुकथाएँ हैं.

. इस क्रम में विशेष रूप से अतिथि देवो भव तथा मजबूरी ऐसी ही कथाएँ हैं जो गरीबी में बिन बुलाए मेहमानों के आने पर  कंगाली में आटा गीला जैसी परिस्थितियों के बीच फँसे पात्रों को ऐसे रास्ते सुझाती हैं कि साँप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे. विषम परिस्थितियों में भी जीवन को सहजता प्रदान करना यह आपकी लघुकथाओं की विशेषता बन पड़ी है.

इसके अलावा नेकी का फल, इंसानियत, रक्तदान महादान आदि लघुकथाएं  मानवता व आदर्शवाद का पाठ पढ़ाती  हैं

लघुकथा अधिकार में  पात्र रमा का अपने शराबी पति से यह कहना   कि,  ,"जब हमारी सरकार ने आदमी और औरत को बराबर का दर्जा दे रखा है, औरतें नौकरी करती हैं तब मैं इस काम में आपका साथ क्यों न दूँ"ऐसा कहकर वह अप्रत्यक्ष रूप से  पुरुष के अहं पर चोट करते हुए समस्या का समाधान ढूँढते  हुए  अपने पति को मद्यपान की लत से छुटकारा दिलाने में एक नवीन प्रयोग करती  दिखती है.

आकार में लघु और कथा के सम्पूर्ण  तत्वों को अपने में समाहित किए अंत में अपने वृत को पूरा  करता आपका यह साहित्यिक दर्पण  पाठकों को अवश्य ही प्रभावित करेगा , ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है.





कृति : सपनों का शहर (लघु कथा संग्रह)

 लेखक : अशोक विश्नोई  

 प्रकाशक : विश्व पुस्तक प्रकाशन, नई दिल्ली

 प्रथम संस्करण : 2022

 पृष्ठ संख्या -103

 मूल्य : 250 ₹

 

समीक्षक

मीनाक्षी ठाकुर

 मिलन विहार

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश

भारत






रविवार, 17 जुलाई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई के लघुकथा संग्रह सपनों का शहर की योगेंद्र वर्मा व्योम द्वारा की गई समीक्षा-‘संवेदनाओं के अमृत सरोवर में आकंठ डूबी लघुकथाएं’

    लघुकथा के संबंध में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल ने महत्वपूर्ण रूप से व्याख्या करते हुए कहा है कि ‘लघुकथा किसी क्षण विशेष में उपजे भाव, घटना या विचार की संक्षिप्त और शिल्प से तराशी गई प्रभावी अभिव्यक्ति है। अपनी संक्षिप्तता, सूक्ष्मता और सांकेतिकता में वह जीवन की व्याख्या को समेटकर चलती है।’ दरअसल लघुकथा अपने आकार प्रकार में दिखने वाली ऐसी छोटी रचना है जो संवेदनाओं के अमृत सरोवर में आकंठ डूबकर अपने समय को प्रतिबिम्बित करने के साथ-साथ अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, समस्याओं के समाधान भी तलाशती है। लघुकथा अपने आकार से अधिक अपनी मारक क्षमता के लिए पहचानी जाती है। लघुकथा त्वरित की विधा होने के बाबजूद कभी भी सीधे-सीधे वह बयाँ नहीं करती जो वह अपने अंतिम वाक्य से उत्पन्न प्रश्नवाचक चिन्ह के साथ अभिव्यक्त कर जाती है। लघुकथा का यह अनकहा ही लघुकथा की खूबसूरती है। यह खूबसूरती ‘सुबह होगी’ से चलकर ‘सपनों का शहर’ तक की 24 वर्षीय लघुकथा-यात्रा में उपजीं वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथाओं में भी प्रचुर मात्रा में मिलती है।

संग्रह की पहली ही लघुकथा ‘काश’ में सेठजी का भिखारी को 10 रुपये के लिए दुत्कारना और फिर बाद में सेठजी का टेन्डर 10 रुपये के अंतर से ही पास होने से रह जाना, पाठक को भीतर तक झकझोर देता है। ‘भूख’ शीर्षक से 2 लघुकथाएं संग्रह में शामिल हैं और दोनों ही लघुकथाएं संवेदनशीलता की पराकाष्ठा को अभिव्यक्त करते हुए मन को मथने के लिए अनेक प्रश्न छोड़ जाती हैं अपने-अपने अंतिम वाक्य-‘ हमारा तो कहानी सुनकर ही पेट भर जाता है माँ...’ और ‘...हमें नहीं पता, ट्रेनिंग क्या होती है? हमें तो भूख लगती है, बस इतना पता है...’ के साथ। इसी प्रकार संग्रह की शीर्षक लघुकथा ‘सपनों का शहर’ भी प्रभाकर द्वारा अपनी डिग्रियों की फाइल को जला देने के अंतिम शब्दचित्र के साथ व्यवस्था की अव्यवस्थित स्थिति पर अनेक प्रश्नचिन्ह लगाकर मंथन को विवश करती है।

विश्नोई जी ने अपने आत्मकथ्य में कहा है कि ‘जैसा देखा वैसा लिखा’। इस आँखिन देखी की सशक्त अभिव्यक्ति का प्रमुख कारक आम बोलचाल की भाषा का होना है। कीर्तिशेष गीतकवि भवानी प्रसाद मिश्र की पंक्तियाँ-‘जिस तरह तू बोलता है/उस तरह तू लिख...’ विश्नोई जी की लघुकथाओं पर शत-प्रतिशत सटीक बैठती हैं। दरअसल वह मूलतः व्यंग्य-कवि हैं, परिणामतः उनकी कविताओं की तरह ही उनकी लघुकथाओं की भाषा भी कहीं-कहीं चुटीली और मारक होने के साथ ही सामान्यतः सहज तथा बोधगम्य है, यही उनकी लघुकथाओं का सबसे बड़ा सकारात्मक और महत्वपूर्ण पक्ष भी है। 

निष्कर्ष रूप में, संवेदनाओं की सार्थक व सशक्त अभिव्यक्ति के मानक-बिन्दु गढ़ता यह लघुकथा-संग्रह ‘सपनों का शहर’ बहुत ही श्रेष्ठ व महत्वपूर्ण संग्रह है जो साहित्य-जगत में निश्चित रूप से पर्याप्त चर्चित होगा तथा सराहना पायेगा, यह मेरी आशा भी है और विश्वास भी। 




 कृति - ‘सपनों का शहर’ (लघुकथा-संग्रह)                    

लघुकथाकार    - अशोक विश्नोई                                  

प्रकाशक    - विश्व पुस्तक प्रकाशन, नयी दिल्ली-110063

प्रकाशन वर्ष - 2022

मूल्य       - रु0 250/-

समीक्षक

योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’

मुरादाबाद 244001

 उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल- 9412805981

'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से 16 जुलाई 2022 को आयोजित भव्य समारोह में मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कृतियों 'सपनों का शहर' (लघुकथा संग्रह) एवं 'ओस की बूंदें' (हाइकु संग्रह) का लोकार्पण एवं देशभक्ति पर आधारित लघु नाटिका एकांकी प्रतियोगिता के विजेताओं और तीन बाल साहित्यकारों को सम्मानित किया गया।

 मुरादाबाद मंडल के साहित्य के प्रसार एवं संरक्षण को पूर्ण रूप से समर्पित 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से आयोजित भव्य समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई की कृतियों 'सपनों का शहर' (लघुकथा संग्रह) एवं 'ओस की बूंदें' (हाइकु संग्रह) का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर 13 साहित्यकारों को सम्मानित भी किया गया।

 राम गंगा विहार स्थित एमआईटी के सभागार में आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा - "श्री अशोक विश्नोई जी की मुरादाबाद के साहित्य के प्रति निष्ठा और समर्पण अनुकरणीय है‌। उन्होंने सदैव  नए रचनाकारों को प्रोत्साहित और प्रेरित करने का कार्य किया है।"

मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती वंदना से आरंभ इस कार्यक्रम में डॉ. मनोज रस्तोगी ने साहित्यिक मुरादाबाद की उपलब्धियों पर चर्चा की।

मुख्य अतिथि डॉ महेश 'दिवाकर' तथा विशिष्ट अतिथियों के रूप में डॉ. मक्खन मुरादाबादी, जितेंद्र कमल आनंद, धवल दीक्षित एवं डॉ. कुलदीप नारायण सक्सेना ने अशोक विश्नोई के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा करते हुए कहा कि हिंदी साहित्य, पत्रकारिता, पुस्तक प्रकाशन एवं लघु फिल्म निर्माण में आपका उल्लेखनीय योगदान रहा है। 

इस अवसर पर साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के अंतर्गत देशभक्ति पर आधारित लघु नाटिका एकांकी प्रतियोगिता के वरिष्ठ वर्ग में प्रथम डॉ अशोक रस्तोगी, द्वितीय अशोक विद्रोही, तृतीय रवि प्रकाश एवं कनिष्ठ वर्ग में प्रथम मीनाक्षी ठाकुर, द्वितीय नृपेन्द्र शर्मा सागर तथा तृतीय डॉ. प्रीति 'हुंकार' को सम्मानित किया गया। डॉ. फ़हीम अहमद, प्रो. ममता सिंह, सपना सक्सेना दत्ता सुहासिनी को बाल साहित्यकार सम्मान 2022 प्रदान किया गया। निर्णायक के रूप में रवि प्रकाश, डॉ. अनिल शर्मा अनिल, धन सिंह धनेंद्र एवं शिव ओम वर्मा को सम्मानित किया गया। सभी सम्मानित साहित्यकारों को अंग वस्त्र, स्मृति चिन्ह एवं सम्मान पत्र प्रदान किए गए।

डॉ मनोज रस्तोगी के संचालन में आयोजित समारोह में अशोक विश्नोई का जीवन परिचय राजीव प्रखर ने प्रस्तुत किया। योगेंद्र वर्मा व्योम, मीनाक्षी ठाकुर, हेमा तिवारी भट्ट , पूजा राणा, काले सिंह साल्टा, शिशुपाल मधुकर, डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने लोकार्पित कृतियों की समीक्षा प्रस्तुत की। धन सिंह धनेंद्र ने एकांकी लेखन एवं डॉ. अनिल कुमार शर्मा अनिल ने बाल कविता लेखन की बारीकियों और विशेषताओं पर प्रकाश डाला। 

  इस अवसर पर डॉ. संगीता महेश, मनोरमा शर्मा, डॉ पुनीत कुमार,डॉ रीता सिंह,नकुल त्यागी, नीमा शर्मा हंसमुख, रचना शास्त्री,प्रीति चौधरी, इंदु सिंह, विवेक आहूजा , श्री कृष्ण शुक्ल, अनुराग रोहिला, अतुल शर्मा, रामकिशोर वर्मा, शिखा रस्तोगी, प्रशांत मिश्र, ज़िया ज़मीर, मनोज मनु, रेखा रानी, वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी , योगेंद्र पाल विश्नोई, रामेश्वर वशिष्ठ, ओंकार सिंह ओंकार, फक्कड़ मुरादाबादी, उदय अस्त, स्वदेश कुमारी, राशिद हुसैन,  आदि उपस्थित रहे। दुष्यंत बाबा ने आभार अभिव्यक्त किया।




























































































































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डॉ मनोज रस्तोगी

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