एक नागरिक ने
जनता की निगाहों
को तोल-
मंच पर चढ़कर बोला -
मेरे हाथ में क्या है ?
जो बतलायेगा
हम , उसे हिंदुस्तान
की सैर करायेगा -
तभी,
जनता के बीच से
आवाज़ आई --
तुम्हारे हाथ में
क्या है भाई--
नज़र नहीं आ रहा है
मेरे पास चश्मा नहीं है
दूसरा बोला,
तुम्हारे हाथ में फ़ोटो है
जिसका चेहरा लालू
से मिलता है--
कई बच्चों का बाप होने पर
कमल सा खिलता है--
मुझे,
तो दूर से टोपी ही
नजऱ आ रही है-
वी.पी.सिंह की याद
आ रही है-
नागरिक ने कहा
नहीं भाई नहीं,
तुम्हारे सभी उत्तर गलत
हो गये,
तुम्हारे सभी अंदाज़
फेल हो गये-
यह चित्र,
किसी नेता या
राजनेता का नहीं
आम आदमी का चित्र है--
जिसका चेहरा
खिला हुआ नहीं
भूख से त्रस्त है--
सर पर टोपी नहीं
बल्कि,
अपनी जिंदगी के बोझ
को ढोता, दर्द को सहता-
तिल - तिल कर मरता-
आज का इंसान है।
इसकी टांगे महंगाई ने
कमजोर कर दी हैं-
यह खड़ा होने में
असमर्थ है --
यह बड़ा ही विचित्र है--
सच्चाई के करीब,
आम आदमी का चित्र है ।।
✍️अशोक विश्नोई
मुरादाबाद
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