शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कविता .....चित्र


एक नागरिक ने

जनता की निगाहों

को तोल-

मंच पर चढ़कर बोला -

मेरे हाथ में क्या है ?

जो बतलायेगा

हम , उसे हिंदुस्तान

की सैर करायेगा -

तभी,

जनता के बीच से

आवाज़ आई --

तुम्हारे हाथ में 

क्या है भाई--

नज़र नहीं आ रहा है

मेरे पास चश्मा नहीं है

दूसरा बोला,

तुम्हारे हाथ में फ़ोटो है

जिसका चेहरा लालू

से मिलता है--

कई बच्चों का बाप होने पर

कमल सा खिलता है--

मुझे,

तो दूर से टोपी ही

नजऱ आ रही है-

वी.पी.सिंह की याद

आ रही है-

नागरिक ने कहा

नहीं भाई नहीं,

तुम्हारे सभी उत्तर गलत 

हो गये,

तुम्हारे सभी अंदाज़

फेल हो गये-

यह चित्र,

किसी नेता या

राजनेता का नहीं

आम आदमी का चित्र है--

जिसका चेहरा

खिला हुआ नहीं

भूख से त्रस्त है--

सर पर टोपी नहीं

बल्कि,

अपनी जिंदगी के बोझ 

को ढोता, दर्द को सहता-

तिल - तिल कर मरता-

आज का इंसान है।

इसकी टांगे महंगाई ने

कमजोर कर दी हैं-

यह खड़ा होने में

असमर्थ है --

यह बड़ा ही विचित्र है--

सच्चाई के करीब,

आम आदमी का चित्र है ।।


✍️अशोक विश्नोई

मुरादाबाद

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