बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा--सन्मति


 एक शराबी ने इतनी पी रखी थी कि उसे यह भी होश नहीं था कि वह कौन है बस सड़क पर खड़ा होकर अपनी ही धुन में बड़बड़ा रहा था ,मैं यहां का राजा हूँ तुम सब मेरी प्रजा हो । साली कहती है पैसे नहीं हैं तुम्हें दूँ या बच्चों को पढ़ाऊँ ,साली बच्चे गये भाड़ में।आज बताता हूँ उसे---।

       वह इतनी ज़ोर- ज़ोर से बड़बड़ा रहा था कि कहीं दूर से आती भजन की आवाज़ भी दब रही थी बस हल्की हल्की आवाज सुनाई पड़ रही थी

       ईश्वर अल्लाह तेरे नाम

       सबको सन्मति दे भगवान 

       ईश्वर अल्लाह तेरे नाम----।।

✍️ अशोक विश्नोई 

          



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