मंगलवार, 19 जुलाई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई के लघुकथा संग्रह सपनों का शहर की मीनाक्षी ठाकुर द्वारा की गई समीक्षा....जीवन की कड़वी सच्चाई उजागर करती हैं अशोक विश्नोई की लघुकथाएं

  लघुकथा  गल्प साहित्य के वृक्ष पर लगने वाला वह फल है जो आकार में  अत्यंत लघु होने के बावजूद अत्यंत स्वादिष्ट होता है, और   जिसे चखकर लंबे समय तक पाठकों के मुख से वाहहहहह  वाहह निकलता रहता है,अर्थात गागर में सागर भरना लघुकथा शिल्प की प्रथम शर्त है, इसके अतिरिक्त कथानक की कसावट, गंभीरता,  विषयों की गूढ़ता ,पात्रों का  सशक्त चयन,   तीव्र बेधन क्षमता,वक्रोक्ति व उद्देश्य की पूर्ति में सफल होना इसके प्रमुख अंग  होते हैं.

आज के व्यस्ततम समय में पाठकों के पास समय की प्रतिबद्धता का नितांत अभाव है तथा वह अपनी मानसिक उर्जा लंबी कहानियों को पढ़ने में व्यय करने से बचना चाहता है , परंतु साथ ही कुछ रोचक व संघर्ष पूर्ण  भी पढ़ना चाहता है . 

 ऐसे समय में अनेक पुरस्कारों से सम्मानित व " सुबह होगी", "संवेदना के स्वर" और  "स्पंदन "जैसी कृतियों के लेखक  अशोक विश्नोई ने अपने अनुभव की बारीक सुई से विभिन्न कथानकों को यथार्थ के धरातल से उठाकर लघुकथाओं के शिल्प  से जो *सपनों का शहर* तैयार  किया है वह  अद्भुत है और अपने उद्देश्य की पूर्ति में पूर्णतः सफल हुआ है. श्री अशोक विश्नोई ने गीत, कविता हाइकु, कहानी,आलेख, मुक्त छंद, मुक्तक लेखन तो किया ही है साथ ही लघुकथा लेखन में भी आपको महारथ हासिल  है     पाठकों के लिए  यह पुस्तक ’ सपनों का शहर’ बहुत ही प्रासंगिक हो जाती है जब वह स्वयं को विभिन्न पात्रों के रूप में परिस्थितियों से जूझते हुए देखता है और स्वयं को उक्त कथानक का हिस्सा समझने लगता है .

  आपकी कथाओं के पात्र व कथानक किसी भी दृष्टि से आरोपित नहीं लगते. प्रतीत होता है कि वे हमारे इर्द गिर्द से ही लिए गये हैं. आपने अपनी लघु कथाओं के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों, बुराइयों, भ्रष्टाचार, राजनीति, टूटते परिवार, खोखले रिश्तों, बेरोजगारी और समाज में व्याप्त गरीबी को उजागर करने के साथ साथ हमारे समाज पर पड़ रहे आधुनिकता के साइड इफेक्ट्स  भी दर्शाए हैं . लघुकथा..दरकती नींव इसका सशक्त उदाहरण है. जहाँ आधुनिकता की चपेट में आकर  गुरु और शिष्य के संबंध भी पतन की ओर अग्रसर होते दिखाई देते हैं

    संग्रह की शीर्षक लघुकथा ’सपनों का शहर’  देश के युवाओं के संघर्षरत जीवन की कड़वी सच्चाई है, जहाँ अथक परिश्रम   व योग्यता से शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात भी तमाम  डिग्रियाँ  रिश्वत रूपी वज़न के अभाव में मात्र कागज़ का टुकड़ा बनकर रह जाती हैं, इस लघुकथा के माध्यम से  आपने एक ओर बिना तकनीकी ज्ञान के कोरा किताबी ज्ञान की  निरर्थकता को रेखांकित किया है  तो दूसरी ओर सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार पर भी अंगुली उठायी है.डिग्री जलाकर पोरवे गरम करने का दृश्य युवा पीढ़ी की रोजगार  प्राप्त न कर पाने की कुंठा व तनाव का चरमोत्कर्ष  है.

आपकी लघुकथाएँ तीव्र हास्य व्यंग्य का पुट लिए हँसाती हैं, चौंकाती हैं और फिर अंत में सामाजिक विद्रूपताओं के विरोध में भीतर ही भीतर तिलमिलाने पर विवश कर देती हैं.इसी क्रम में  लघुकथा "नेता चरित्र " जहाँ नेताओं के चरित्र को उजागर करती है, वहीं भीतर तक गुदगुदाती है और शालीन हास्य को जन्म देती है, जब मूर्च्छित पड़े नेता जी उदघाटन का नाम सुनते ही चैतन्य हो जाते हैं और पूछते है," कहाँ आना है भाई और कब आना है? 

   आपने नारी जाति के प्रति समाज के पूर्वाग्रह को भी अपनी कथाओ मे दर्शाया है, जहाँ  पर स्त्री और   पर पुरुष के संबंधो को  बस हेय दृष्टि से ही देखा जाता है,  आपने लघुकथा "फैसला "के माध्यम से ऐसे  ही लोगों के मुँह पर तमाचा  मारा है, जब पंचायत लाजो देवी पर  लांछन लगाती है तब युवक का यह कथन ," यदि फैसला हो चुका हो तो क्या  मै अब अपनी बहन को ले जा सकता हूँ? "यह संवाद युवक के मुख से निकलकर उन समस्त लोगों का सर शर्म से झुका देता है, जो समाज के तथाकथित ठेकेदार बनते हैं और पवित्र रिश्तों को भी आरोपित करने से नहीं चूकते

लघुकथा "आदमी " की यह पंच लाइन,खासी  प्रभावित करती है जब फकीर कहता है"  सेठ जी कुछ देर को आप ही आदमी बन जाइए". यह पंच लाइन पाठकों को सहसा ही " वाहहहहह  गजब" कहने को विवश कर देती है . साथ ही यह पंक्ति पाठकों को लंबे समय तक झकझोरती रहेगी और हो सकता है कि कुछ निष्ठुर हृदय भी इस कथा को पढ़कर आदमी बन जाएँ, यही साहित्य की जीत भी है, यदि साहित्य को पढ़कर समाज की सोच को नयी दिशा मिले तो यह साहित्यकार की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है.

 इसके अतिरिक्त आपने समाजिक व आर्थिक विषमताओं को व्यंगात्मक शैली के द्वारा बड़ी चतुरता से प्रस्तुत किया है, गुलामी, बिसकुट का पैकेट,माँ, परिस्थितियाँ ऐसी ही लघुकथाएँ हैं.

. इस क्रम में विशेष रूप से अतिथि देवो भव तथा मजबूरी ऐसी ही कथाएँ हैं जो गरीबी में बिन बुलाए मेहमानों के आने पर  कंगाली में आटा गीला जैसी परिस्थितियों के बीच फँसे पात्रों को ऐसे रास्ते सुझाती हैं कि साँप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे. विषम परिस्थितियों में भी जीवन को सहजता प्रदान करना यह आपकी लघुकथाओं की विशेषता बन पड़ी है.

इसके अलावा नेकी का फल, इंसानियत, रक्तदान महादान आदि लघुकथाएं  मानवता व आदर्शवाद का पाठ पढ़ाती  हैं

लघुकथा अधिकार में  पात्र रमा का अपने शराबी पति से यह कहना   कि,  ,"जब हमारी सरकार ने आदमी और औरत को बराबर का दर्जा दे रखा है, औरतें नौकरी करती हैं तब मैं इस काम में आपका साथ क्यों न दूँ"ऐसा कहकर वह अप्रत्यक्ष रूप से  पुरुष के अहं पर चोट करते हुए समस्या का समाधान ढूँढते  हुए  अपने पति को मद्यपान की लत से छुटकारा दिलाने में एक नवीन प्रयोग करती  दिखती है.

आकार में लघु और कथा के सम्पूर्ण  तत्वों को अपने में समाहित किए अंत में अपने वृत को पूरा  करता आपका यह साहित्यिक दर्पण  पाठकों को अवश्य ही प्रभावित करेगा , ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है.





कृति : सपनों का शहर (लघु कथा संग्रह)

 लेखक : अशोक विश्नोई  

 प्रकाशक : विश्व पुस्तक प्रकाशन, नई दिल्ली

 प्रथम संस्करण : 2022

 पृष्ठ संख्या -103

 मूल्य : 250 ₹

 

समीक्षक

मीनाक्षी ठाकुर

 मिलन विहार

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश

भारत






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