गुरुवार, 1 सितंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा- वक़्त की बात

     


रामप्रसाद ने अपने बहू- बेटे को बुलाकर कहा ,"ले बेटा यह मेरी जमा पूंजी के पेपर हैं जो मेरे पास था तेरे नाम कर दिया है सम्भाल कर रखना मुझे क्या चाहिए सब दो वक़्त की रोटी ?" ठीक है पिता जी, कहकर मोहन ने कागजात अपने पास रख लिए। एक दिन ऐसा आ गया कि न तो बहू सुनती और न ही बेटा, रोटी भी वक़्त बे वक़्त मिलती और वह भी बहुत तानों के बाद।अब रामप्रसाद क्या करे अपना दुख किससे कहे आखिर परेशान होकर वह वृद्धाश्रम में जाकर रहने लगा और बिना किसी को बताये अपनी वसीयत बदलवा दी।

       जब मोहन को पता चला तो बहुत देर हो चुकी थी वह पिता जी को लेने आश्रम पहुंचा वहां टीवी पर चित्रहार में गाना आ रहा था -----।

      तू हिंदू बनेगा,न मुसलमान बनेगा

       इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा।

✍️ अशोक विश्नोई 

 मुरादाबाद

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