लघुकथा के संबंध में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल ने महत्वपूर्ण रूप से व्याख्या करते हुए कहा है कि ‘लघुकथा किसी क्षण विशेष में उपजे भाव, घटना या विचार की संक्षिप्त और शिल्प से तराशी गई प्रभावी अभिव्यक्ति है। अपनी संक्षिप्तता, सूक्ष्मता और सांकेतिकता में वह जीवन की व्याख्या को समेटकर चलती है।’ दरअसल लघुकथा अपने आकार प्रकार में दिखने वाली ऐसी छोटी रचना है जो संवेदनाओं के अमृत सरोवर में आकंठ डूबकर अपने समय को प्रतिबिम्बित करने के साथ-साथ अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, समस्याओं के समाधान भी तलाशती है। लघुकथा अपने आकार से अधिक अपनी मारक क्षमता के लिए पहचानी जाती है। लघुकथा त्वरित की विधा होने के बाबजूद कभी भी सीधे-सीधे वह बयाँ नहीं करती जो वह अपने अंतिम वाक्य से उत्पन्न प्रश्नवाचक चिन्ह के साथ अभिव्यक्त कर जाती है। लघुकथा का यह अनकहा ही लघुकथा की खूबसूरती है। यह खूबसूरती ‘सुबह होगी’ से चलकर ‘सपनों का शहर’ तक की 24 वर्षीय लघुकथा-यात्रा में उपजीं वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथाओं में भी प्रचुर मात्रा में मिलती है।
संग्रह की पहली ही लघुकथा ‘काश’ में सेठजी का भिखारी को 10 रुपये के लिए दुत्कारना और फिर बाद में सेठजी का टेन्डर 10 रुपये के अंतर से ही पास होने से रह जाना, पाठक को भीतर तक झकझोर देता है। ‘भूख’ शीर्षक से 2 लघुकथाएं संग्रह में शामिल हैं और दोनों ही लघुकथाएं संवेदनशीलता की पराकाष्ठा को अभिव्यक्त करते हुए मन को मथने के लिए अनेक प्रश्न छोड़ जाती हैं अपने-अपने अंतिम वाक्य-‘ हमारा तो कहानी सुनकर ही पेट भर जाता है माँ...’ और ‘...हमें नहीं पता, ट्रेनिंग क्या होती है? हमें तो भूख लगती है, बस इतना पता है...’ के साथ। इसी प्रकार संग्रह की शीर्षक लघुकथा ‘सपनों का शहर’ भी प्रभाकर द्वारा अपनी डिग्रियों की फाइल को जला देने के अंतिम शब्दचित्र के साथ व्यवस्था की अव्यवस्थित स्थिति पर अनेक प्रश्नचिन्ह लगाकर मंथन को विवश करती है।
विश्नोई जी ने अपने आत्मकथ्य में कहा है कि ‘जैसा देखा वैसा लिखा’। इस आँखिन देखी की सशक्त अभिव्यक्ति का प्रमुख कारक आम बोलचाल की भाषा का होना है। कीर्तिशेष गीतकवि भवानी प्रसाद मिश्र की पंक्तियाँ-‘जिस तरह तू बोलता है/उस तरह तू लिख...’ विश्नोई जी की लघुकथाओं पर शत-प्रतिशत सटीक बैठती हैं। दरअसल वह मूलतः व्यंग्य-कवि हैं, परिणामतः उनकी कविताओं की तरह ही उनकी लघुकथाओं की भाषा भी कहीं-कहीं चुटीली और मारक होने के साथ ही सामान्यतः सहज तथा बोधगम्य है, यही उनकी लघुकथाओं का सबसे बड़ा सकारात्मक और महत्वपूर्ण पक्ष भी है।
निष्कर्ष रूप में, संवेदनाओं की सार्थक व सशक्त अभिव्यक्ति के मानक-बिन्दु गढ़ता यह लघुकथा-संग्रह ‘सपनों का शहर’ बहुत ही श्रेष्ठ व महत्वपूर्ण संग्रह है जो साहित्य-जगत में निश्चित रूप से पर्याप्त चर्चित होगा तथा सराहना पायेगा, यह मेरी आशा भी है और विश्वास भी।
कृति - ‘सपनों का शहर’ (लघुकथा-संग्रह)
लघुकथाकार - अशोक विश्नोई
प्रकाशक - विश्व पुस्तक प्रकाशन, नयी दिल्ली-110063
प्रकाशन वर्ष - 2022
मूल्य - रु0 250/-
समीक्षक :
योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल- 9412805981
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-07-2022) को
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच "दुनिया में परिवार" (चर्चा अंक-4503) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर समीक्षा पढ़कर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंगागर में सागर।
सादर