इस देश में
क्या तुम रोक सकोगे?
जवान झील के
पानी की तरह ठहरी,
कभी न खोने वाले
उबलते सच से भरी दृष्टि को
जिससे लोग,
तुम्हें निरंतर देख रहे हैं?
खोखले कानूनों की सुरक्षा
और स्याह हथकडियों के पीछे
शिकार करते हुए,
एक के बाद एक
आवाजों को दबाते हुए,
लोगों को ले जाते हुए,
लोग, जो दबाए हालातों को
ले आते हैं मिट्टी से उछालकर
सतहों तक,
उनके स्वरों से गूँजते,
संघर्ष करते, लड़ते,
घरों को
खाली करते हुए
नज़रें तुम्हें निरंतर देख रही हैं,
बोलो, जब
त्वरित झरनों की तरह
उमड़ने लगेगा
प्रतिरोध का सागर
हर कोने से
तो क्या तुम
इस बहाव को रोक सकोगे?
✍️ अस्मिता पाठक
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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