मंगलवार, 31 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार अस्मिता पाठक की कविता --कोरोना कर्फ्यू


मार्च में लगे कर्फ्यू की उस शाम
अपने आलीशान संसार की सतह पर खड़े होकर
एक सी आवाजों के अंधाधुंध शोर में
क्या तुम सुन पाए थे ?
कान के एक छोर से
बच्चों के रोने चीखने की आवाजों के बीच
दबी हुई धीमी व्यग्र बूढ़ी-जवान आवाजें
जो तुमसे बहुत दूर
-बहुत ही दूर- स्थित कमरे में
किसी चलचित्र की तरह चल रही थीं?
सहसा तुमने भी महसूस किया?
फटे-खुरदुरे हाथों पर बने
पुराने घावों की जलन को
जब वे उलझन में कुछ पुराने नोट
और सिक्के निकालते समय
डब्बे की स्टील वाली सतह से
बार-बार टकरा रहे थे?
नहीं ?
नहीं सुन पाए न तुम ?
-शंखों, थालियों के
तर्कहीन शोर में-
मजबूर मेहनतकश के हाथों से छूटती,
-स्टेशन पर दुविधा में भागते पैरों के बीच-
ऊँचे प्रतिरोध में गिरती पसीने की
खानाबदोश बूंदों को...
जिन्होंने खड़ा किया था कभी
तुम्हारा सुरक्षित संसार..

***अस्मिता पाठक
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत

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