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रविवार, 12 दिसंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष प्रो. महेंद्र प्रताप पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का संस्मरणात्मक आलेख .... मेरे साहित्यिक जीवन की प्रथम पाठशाला थी 'अंतरा'


 बीती सदी का नवां दशक , जब मैंने शुरू की थी अपनी साहित्यिक यात्रा।  यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि 'अंतरा' की गोष्ठियां ही मेरे साहित्यिक जीवन की प्रथम पाठशाला बनीं। इन गोष्ठियों में 'दादा', श्री अंबालाल नागर जी, श्री कैलाश चंद अग्रवाल जी, पंडित मदन मोहन व्यास जी, श्री ललित मोहन भारद्वाज जी, श्री माहेश्वर तिवारी जी ने मेरी अंगुली पकड़कर मुझे चलना सिखाया और उनके संरक्षण एवं दिशा निर्देशन में मैंने साहित्य- पत्रकारिता के मार्ग पर कदम बढ़ाए । दादा और आदरणीय श्री माहेश्वर तिवारी जी के सान्निध्य से न केवल आत्मविश्वास बढ़ा बल्कि सदैव ऐसा महसूस हुआ जैसा किसी पथिक को तेज धूप में वृक्ष की शीतल छांव में बैठकर होता है।

इसी दौरान मैंने दादा के संरक्षण में एक सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था ''तरुण शिखा'' का गठन भी कर लिया था। लगभग छह साल तक निरंतर 'तरुण-शिखा के माध्यम से मैं देश के प्रख्यात साहित्यकारों के जन्म दिवसों एवं पुण्य तिथियों पर विचार गोष्ठियां आयोजित करता रहा। इसकी लगभग सभी गोष्ठियों में दादा उपस्थित होते थे और मुझे प्रोत्साहित करते थे। 

   मुझे याद है 26 दिसम्बर 1985 का दिन, प्रख्यात कथाकार यशपाल के साहित्य पर मैंने तरुण शिखा की ओर से अपने निवास पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया था। दादा प्रो० महेन्द्र प्रताप, निर्धारित समय दोपहर दो बजे से पहले ही आ गए। धीरे धीरे केजीके महाविद्यालय के हिन्दी प्रवक्ता अवधेश कुमार गुप्ता, रणवीर दिनेश, राजीव बंसल राज भी  आ गए। अन्य आमंत्रितों की प्रतीक्षा होती रही। समय व्यतीत होता गया. घड़ी की बड़ी सुई सरकते सरकते छह पर आ गयी और छोटी सुई तीन से आगे निकल चुकी थी। डेढ़ घंटा हो चुका था लेकिन आमंत्रित साहित्यकारों में से और कोई उपस्थित नहीं हुआ। यह स्थिति देख कर मैं पूरी तरह हतोत्साहित हो चुका था। आयोजन की शुरुआत किस तरह की जाये, कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मेरी मनोदशा को भाँपते हुये अचानक 'दादा' ने कहा- "मनोज, इस तरह हतोत्साहित होने की कोई बात नहीं है। ऐसी गोष्ठियों से जहाँ नये चिंतन, विचारधाराओं से साक्षात्कार होता है वहीं आत्म निर्माण भी होता है। तुम्हारा यह प्रयास शहर में एक नई शुरुआत है जो धीर-धीरे ही सफल होगा।" बीस साल पहले दादा के यह शब्द एम०ए० अर्थशास्त्र के विद्यार्थी के लिये एक प्रेरणा बन चुके थे।

       दादा के एक और संस्मरण का मैं विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूंगा । 5 दिसंबर 1988 को मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार, संगीतज्ञ, कलाप्रेमी पंडित मदन मोहन व्यास जी की जयंती  पर मैंने तरुण शिखा, चेतना केंद्र और प्रयास नाट्य संस्था के संयुक्त तत्वावधान में संगीत, विचार व काव्य गोष्ठी का आयोजन हिंदू महाविद्यालय के अर्थशास्त्र व्याख्यान कक्ष में किया। आयोजन में स्मृतिशेष व्यास जी के लगभग सभी परिजन, अनेक मित्र, साहित्यकार, संगीतज्ञ और रंगकर्मी उपस्थित थे। दादा प्रो महेंद्र प्रताप जी कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे और विशिष्ट अतिथि आदरणीय माहेश्वर तिवारी थे। संचालन का दायित्व मेरे कंधों पर था । कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष दादा प्रो महेंद्र प्रताप जी का नाम उद्बोधन के लिए पुकारा गया । बोलने के लिए खड़े होते ही वह फफक फफक कर रोने लगे , आंखों से अश्रुधारा बहने लगी । यह देख कर उपस्थित सभी लोग भाव विह्वल हो गए और उनकी भी आंखे नम हो गई।  काफी देर बाद स्थिति सामान्य हुई।  भर्राए कण्ठ से दादा अधिक नहीं बोल सके। ऐसी थी उनकी सम्वेदनशीलता।

    उनका कहना था कि कविता लिखने से ज्यादा जरुरी है अपने अंदर कविता की समझ पैदा करना। यह जानना भी जरूरी है कि हमारे समकालीन रचनाकार क्या लिख रहे है और पूर्ववर्ती रचनाकारों ने हमें क्या दिया? उनके यह प्रेरणाप्रद वाक्य सचमुच मेरे लिये एक दिशा बन चुके थे और मैं अपना लक्ष्य निर्धारित कर चुका था मुरादाबाद जनपद के साहित्य पर शोध कार्य करने का। इसी लक्ष्य पूर्ति के लिये मैंने हिन्दी विषय से एमए किया और फिर पी-एच०डी० की उपाधि प्राप्त की।

यह मेरा सौभाग्य है कि लगभग 21- 22 साल तक मुझे दादा का आशीष प्राप्त होता रहा। बहुत कुछ है लिखने को ....

'दादा' आज हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनकी स्मृतियां उनका दुलार, उनका आशीष सदैव मुझे आगे.... और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता रहेगा।


✍️ डॉ मनोज रस्तोगी

 8,जीलाल स्ट्रीट

 मुरादाबाद 244001 

 उत्तर प्रदेश, भारत 

 मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

रविवार, 8 अगस्त 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी ) वैशाली रस्तोगी के संयोजन में 7अगस्त 2021 को सम्भल में आयोजित कवि सम्मेलन में 'स्पर्शी उत्कृष्ट सम्मान' से सम्मानित हुए डॉ मनोज रस्तोगी

मुरादाबाद के  साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी को  'स्पर्शी उत्कृष्ट सम्मान' से सम्मानित किया गया ।  उन्हें यह सम्मान मुरादाबाद के साहित्य संरक्षण एवं प्रसार में उल्लेखनीय योगदान के लिए  सम्भल की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था ज्ञानदीप की ओर से प्रदान किया गया है । जकार्ता (इंडोनेशिया) की प्रवासी भारतीय वैशाली रस्तोगी के संयोजन में शनिवार 7 अगस्त 2021 को आयोजित कविसम्मेलन में अशोक त्यागी कृष्णम, नेहा मलय, डॉ अर्चना गुप्ता,वैशाली रस्तोगी और अतुल कुमार शर्मा द्वारा  सम्मान स्वरूप उन्हें अंगवस्त्र एवं स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया।

       सम्भल के बरेली सराय स्थित प्रेम इन होटल में स्वतंत्रता दिवस अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित कवि सम्मेलन में सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने काव्य पाठ करते हुए कहा ----

 सुन रहे यह साल आदमखोर है

 हर तरफ चीख, दहशत, शोर है।

मत कहो वायरस जहरीला बहुत, 

इंसान ही आजकल कमजोर है।

  तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उन्होंने अपनी चर्चित रचना जरूरी है कुत्तों को बिस्कुट खिलाना प्रस्तुत कर नेताओं पर पैना व्यंग्य किया।

   अध्यक्षता कर रहे चर्चित व्यंग्यकार त्यागी अशोक कृष्णम ने हाइकू प्रस्तुत करते हुए कहा --

   बेटी बचाओ

   नीचता खूब गुनो

   बहु जलाओ 

मुख्य अतिथि प्रख्यात रंगकर्मी डॉ पंकज दर्पण अग्रवाल ने श्री रामलीला के अनेक प्रसंगों की भावपूर्ण प्रस्तुति से कार्यक्रम को एक नया आयाम दिया । 

वरिष्ठ कवयित्री डॉ अर्चना गुप्ता ने सुनाया -

"अपने भारत देश पर कभी आंच नहीं आने देंगे हम

 जान चली भी जाएगी तो हमें ना होगा कोई भी गम।

 प्रवासी भारतीय कवयित्री वैशाली रस्तोगी ने पढ़ा -"

जद्दोजहद जारी रहेगी हर वक्त इंसान की,

 डूबती नहीं नैया,क्षमता वान की ।

दुख पर गर हंसते हैं जमाने वाले,

 वहीं से कश्ती निकाल ले जाते हैं हिम्मत वाले"

  व्यंग्यकार अतुल कुमार शर्मा ने सुनाया -

"झुक जाता है यह जग सारा,जिनकी मेहनत के आगे ,

रंग सदा भरते हैं वो, मावस की काली रातों में ।"

कवि दुष्यंत बाबा ने कहा -

"यह मेरे देश की मिट्टी, 

मिट्टी नहीं चंदन है।

लगा मस्तक पर जो उतरे ,

उन वीरों का वंदन है।

 कवयित्री डॉ नेहा मलय ने पढ़ा,- 

 "मेरे भारत देश की, 

 गाथा बड़ी महान ।

महिमा इसकी गा रहा 

सारा आज जहान।"

 कार्यक्रम में वीरेंद्र रस्तोगी, प्रभात मेहरोत्रा, सुभाष चंद शर्मा ,श्वेता तिवारी, सुशील मेहरोत्रा, शिवानी मेहरोत्रा, अश्वनी रस्तोगी, शिवानी शर्मा, शिखा रस्तोगी, नितिन गर्ग, पवन कुमार रस्तोगी,निधि,, एडवोकेट, संजय  शंखधार ,विकास वर्मा, भरत मिश्रा, गुरमीत सिंह, रितिका चौधरी ,राजू रस्तोगी, अमन सिंह, डिम्पल रस्तोगी आदि  उपस्थित रहे। अध्यक्षता त्यागी अशोक कृष्णम ने व संचालन अतुल कुमार शर्मा व वैशाली रस्तोगी ने संयुक्त रूप से किया।





















































गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी की व्यंग्य कविता ---- स्वस्थ भारत का निर्माण


चकाचक सफेद कमीज पहने 

काली टोपी लगाए

लघु पुस्तिकाओं से भरा झोला 

कंधे पर लटकाए

हमारे एक राष्ट्रवादी मित्र

सुबह ही सुबह

बिना हमें बताएं

घर पर पधार गए

कोरोना काल में उन्हें देखकर 

हम सब अचकचा गए 

जब तक हम कुछ समझ पाते 

उनके स्वागत में कुछ कह पाते 

सोफे पर पसरते हुए 

उन्होंने हमारी पत्नी को

 हाथ जोड़कर की नमस्ते

बोले गुजर रहा था इस रस्ते 

सोचा आप सब से मिलता चलूं 

राष्ट्रहित पर चिंतन करता चलूं 

हमने कहा - भाई साहब                     

आजकल हम बहुत तनाव में हैं 

अगले हफ्ते पंचायत चुनाव हैं 

शहरों के साथ-साथ गांव में भी 

कोरोना पैर पसार रहा है 

हर रोज बढ़ती जा रही है 

पीड़ितों की संख्या 

बता यह अखबार रहा है 

एक और मास्क न पहनने पर 

कट रहे चालान हैं

कैसे करेंगे चुनाव ड्यूटी

यह सोचकर हम हलकान हैं

कैसे हो पाएगी दो गज की दूरी 

गांव में कैसे कट पाएगी रात पूरी

सुनकर हमारी बात 

दार्शनिक अंदाज में उन्होंने

हमें समझाया 

राष्ट्रहित का वास्तविक अर्थ 

हमें बताया

पंचायत चुनाव 

सत्ता का विकेंद्रीयकरण है 

हर राजनीतिक पार्टी में 

हर्ष का वातावरण है 

लोकतंत्र की रक्षा हेतु 

चुनाव करना -कराना 

हम सबकी जिम्मेदारी है

हमने कहा - भाई साहब 

चुनाव पर यह आपदा तो भारी है 

मौतों का सिलसिला लगातार जारी है

अस्पतालों में बेड नहीं हैं

ऑक्सीजन की मारामारी है

चाय का घूंट पीते हुए

चेहरे पर मुस्कान लाते हुए 

वह बोले 

चुनाव का मामला 

राष्ट्रहित से जुड़ा हुआ है

और राष्ट्र के हित में

अपने प्राणों की चिंता न करना 

हम सबकी जिम्मेदारी है 

रही बात इस वायरस की

यह कम इम्युनिटी वालों को ही 

पकड़ता है

गंभीर रोग वालों को ही 

जकड़ता है

यह शरीर तो नश्वर है

हमारी रक्षा करने वाला ईश्वर है

मौतों की खबरों से

बिल्कुल मत घबराइए 

तनाव से पूरी तरह मुक्त हो जाइए 

सकारात्मक सोच के साथ

राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाइये

जाते-जाते वह जता गए 

धीरे-धीरे हम 

सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे हैं 

सशक्त भारत , स्वस्थ भारत

का निर्माण कर रहे हैं

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

अलविदा 2020 : बीत गया एक और साल । इस साल का अधिकांश समय कोरोना काल के चलते लोकडाउन में बीता। इस दौरान ऑन लाइन गतिविधियों में सक्रियता रही । शेष समय साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों के बीच गुजरा । इस साल भी तमाम उपलब्धियां हासिल हुईं । अनेक संस्थाओं ने सम्मानित किया। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आलेखों का प्रकाशन भी हुआ और विभिन्न आयोजनों में काव्य पाठ का अवसर भी मिला । इस साल स्कूली बच्चों को स्वतंत्रता संग्राम में मुरादाबाद के योगदान के बारे में जानकारी देने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ । बीते साल के मधुर, अविस्मरणीय पल आपके साथ साझा कर रहा हूँ । डॉ मनोज रस्तोगी 8, जीलाल स्ट्रीट मुरादाबाद 244001 उत्तर प्रदेश, भारत मोबाइल फोन नंबर 9456687822

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शनिवार, 26 दिसंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी का संस्मरण ---लोग उसे भिखारी समझते थे लेकिन वह कवि निराला थे ..….

         


वह सन 1996 की तारीख थी पांच अक्टूबर । मुरादाबाद रेलवे स्टेशन पर आरक्षण हॉल में एक कोने में दीवार के सहारे अधलेटा एक वृद्ध। शरीर पर मैला- कुचैला कुर्ता पायजामा, बढ़ी दाढ़ी, उलझे हुए बाल। कोई यात्री उसे भिखारी समझ रहा था तो कोई उसे पागल समझ कर एक उचटती हुई नजर डाल कर आगे बढ़ रहा था। यह शायद किसी को नहीं मालूम था कि यह आदमी रामपुर का एक जाना पहचाना कवि है, जिसका नाम है मुन्नू लाल शर्मा निराला। अपनी कविताओं से जिंदगी में रंग भरने वाले इस कवि को शायद इस बात का कभी गुमान भी नहीं हुआ होगा कि जिंदगी के किसी मोड़ पर उसकी जिंदगी भी इस तरह बदरंग हो जाएगी। यात्रियों की भीड़ में उपेक्षित इस कवि को पहचाना काशीपुर के साहित्यकार डॉ वाचस्पति जी ने। टिकट लेते हुए अचानक उनकी निगाह उन पर पड़ी और उन्हें देखते ही वह लपक कर उनके पास पहुंच गए थे। निगाहें मिली और दोनों एक दूसरे को पहचान गए। कातर दृष्टि से कवि निराला ने उनसे पानी मांगा। पानी पीने के बाद उन्होंने कहा बस एक डिब्बी पनामा सिगरेट और एक माचिस की डिब्बी और ला दो। रुपये- पैसे लेने से उन्होंने इंकार कर दिया था। साथ जाने से भी उन्होंने मना कर दिया था।            

      उस समय मैं दैनिक जागरण में कार्यरत था। प्रख्यात साहित्यकार माहेश्वर तिवारी जी का फोन आया । उन्होंने यह जानकारी मुझे दी । यह सुनते ही फोटोग्राफर को लेकर मैं रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया। वहां मैंने निराला जी से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि एक माह पहले वृंदावन गया था। एक हफ्ते पहले जब वहां से वापस लौट रहा था तो किसी ने राजघाट पर धक्का दे दिया। उस समय पैर में चोट आ गई । खैर किसी तरह वह चन्दौसी पहुँचे और पहुंच गए पुरातत्ववेत्ता सुरेंद्र मोहन मिश्र जी के बड़े भाई के घर। उन्होंने उन्हें खाना खिलाया उसके बाद वह मूलचंद गौतम के घर भी पहुंचे लेकिन उनसे भेंट न हो सकी। श्री गौतम उस दिन शहर से बाहर थे।  उसके बाद किसी तरह वह मुरादाबाद आ गए । तीन-चार दिन से यहीं रेलवे स्टेशन पर पड़े हैं । उन्होंने कहा "मजबूरी का नाम महात्मा गांधी"। आज भूख लगी तो रेलवे स्टेशन के सामने पहुंच गये एक मुसलमान के होटल पर जहां उसने कढ़ी चावल खिलाएं । 

    जिंदगी भर दुख सहने वाले इस कवि ने कभी जिंदगी से हार नहीं मानी थी। पत्नी उसे छोड़कर कलकत्ता चली गई थी । एक बेटा था उसकी मौत हो गई थी और बेटी उसका कुछ पता नहीं था। वह अकेला ही जिंदगी काट रहा था और कविताएं रच  रहा था ।पहला काव्य संग्रह जिंदगी के मोड़ पर छपा। साप्ताहिक सहकारी युग के सम्पादक महेंद्र गुप्त जी अपने अखबार में उनकी कविताएं छापते रहे। आकाशवाणी का रामपुर  केंद्र उनकी कविताएं प्रसारित करता रहा।

   वह जिंदगी के हर  पड़ाव को, हर मोड़ को हंसते हुए पार करते रहे। उस समय चलते चलते उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा--- 

सर सैयद के घर मेहमानी

करके मुसलमान कहलाए

 यह दुनिया वाले क्या जाने

 हम क्या-क्या बन कर आए

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश,भारत

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