वह सन 1996 की तारीख थी पांच अक्टूबर । मुरादाबाद रेलवे स्टेशन पर आरक्षण हॉल में एक कोने में दीवार के सहारे अधलेटा एक वृद्ध। शरीर पर मैला- कुचैला कुर्ता पायजामा, बढ़ी दाढ़ी, उलझे हुए बाल। कोई यात्री उसे भिखारी समझ रहा था तो कोई उसे पागल समझ कर एक उचटती हुई नजर डाल कर आगे बढ़ रहा था। यह शायद किसी को नहीं मालूम था कि यह आदमी रामपुर का एक जाना पहचाना कवि है, जिसका नाम है मुन्नू लाल शर्मा निराला। अपनी कविताओं से जिंदगी में रंग भरने वाले इस कवि को शायद इस बात का कभी गुमान भी नहीं हुआ होगा कि जिंदगी के किसी मोड़ पर उसकी जिंदगी भी इस तरह बदरंग हो जाएगी। यात्रियों की भीड़ में उपेक्षित इस कवि को पहचाना काशीपुर के साहित्यकार डॉ वाचस्पति जी ने। टिकट लेते हुए अचानक उनकी निगाह उन पर पड़ी और उन्हें देखते ही वह लपक कर उनके पास पहुंच गए थे। निगाहें मिली और दोनों एक दूसरे को पहचान गए। कातर दृष्टि से कवि निराला ने उनसे पानी मांगा। पानी पीने के बाद उन्होंने कहा बस एक डिब्बी पनामा सिगरेट और एक माचिस की डिब्बी और ला दो। रुपये- पैसे लेने से उन्होंने इंकार कर दिया था। साथ जाने से भी उन्होंने मना कर दिया था।
उस समय मैं दैनिक जागरण में कार्यरत था। प्रख्यात साहित्यकार माहेश्वर तिवारी जी का फोन आया । उन्होंने यह जानकारी मुझे दी । यह सुनते ही फोटोग्राफर को लेकर मैं रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया। वहां मैंने निराला जी से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि एक माह पहले वृंदावन गया था। एक हफ्ते पहले जब वहां से वापस लौट रहा था तो किसी ने राजघाट पर धक्का दे दिया। उस समय पैर में चोट आ गई । खैर किसी तरह वह चन्दौसी पहुँचे और पहुंच गए पुरातत्ववेत्ता सुरेंद्र मोहन मिश्र जी के बड़े भाई के घर। उन्होंने उन्हें खाना खिलाया उसके बाद वह मूलचंद गौतम के घर भी पहुंचे लेकिन उनसे भेंट न हो सकी। श्री गौतम उस दिन शहर से बाहर थे। उसके बाद किसी तरह वह मुरादाबाद आ गए । तीन-चार दिन से यहीं रेलवे स्टेशन पर पड़े हैं । उन्होंने कहा "मजबूरी का नाम महात्मा गांधी"। आज भूख लगी तो रेलवे स्टेशन के सामने पहुंच गये एक मुसलमान के होटल पर जहां उसने कढ़ी चावल खिलाएं ।
जिंदगी भर दुख सहने वाले इस कवि ने कभी जिंदगी से हार नहीं मानी थी। पत्नी उसे छोड़कर कलकत्ता चली गई थी । एक बेटा था उसकी मौत हो गई थी और बेटी उसका कुछ पता नहीं था। वह अकेला ही जिंदगी काट रहा था और कविताएं रच रहा था ।पहला काव्य संग्रह जिंदगी के मोड़ पर छपा। साप्ताहिक सहकारी युग के सम्पादक महेंद्र गुप्त जी अपने अखबार में उनकी कविताएं छापते रहे। आकाशवाणी का रामपुर केंद्र उनकी कविताएं प्रसारित करता रहा।
वह जिंदगी के हर पड़ाव को, हर मोड़ को हंसते हुए पार करते रहे। उस समय चलते चलते उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा---
सर सैयद के घर मेहमानी
करके मुसलमान कहलाए
यह दुनिया वाले क्या जाने
हम क्या-क्या बन कर आए
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश,भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (27-12-2020) को "ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन" (चर्चा अंक-3928) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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🙏🙏🙏🙏 मुरादाबाद के साहित्य को प्रसारित करने में आपके द्वारा जो सहयोग किया जा रहा है उसके लिए मैं आपका हृदय से अत्यंत आभारी हूँ ।
हटाएंडॉ मनोज रस्तोगी जी ! आपने कविवर श्री मुन्नू लाल शर्मा जी जो कि रामपुर के निराला थे, के संबंध में अपना मौलिक संस्मरण बहुत सुंदर रीति से लिखा है ।आप उस समय दैनिक जागरण में कार्यरत थे तथा आप अपने फोटोग्राफर को साथ लेकर मुरादाबाद रेलवे स्टेशन पर श्री मुन्नू लाल शर्मा जी से उनकी अव्यवस्थित अवस्था में मिले ,यह संस्मरण के संबंध में आपका मौलिक योगदान है। मुन्नू लाल शर्मा जी की मस्ती और फकीरी सर्वविदित रही है। लेखनी के धनी थे। पुनः उत्तम लेखन के लिए आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंरवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99976 15451
🙏🙏🙏🙏 आदरणीय भाई साहब ,आपका आशीष सदैव मिलता रहे ।यही परमपिता परमेश्वर से कामना है । आपका बहुत बहुत आभार ।
हटाएंवर्ष 1982 से 88 तक मैं रामपुर में ही नियुक्त था। मेरा निवास शहर के प्रमुख स्थान, नयागंज चौराहे पर स्थित था। लगभग रोजाना मुन्नालाल शर्मा जी लगभग विक्षिप्त अवस्था में सड़क पर घूमते मिलते थे, कोई कुछ बोलता तो बकने लगते थे। लेकिन मैं एक कवि गोष्ठी में उन्हें देख चुका था, जिस कारण सामने आकर उन्हें प्रणाम करता था और वह बहुत सामान्य रूप से स्नेहयुक्त मुस्कान के साथ आशीर्वाद देते थे। बीच बीच में कई कई दिन को गायब भी हो जाते थे। इतने समय बाद उनके विषय में पढ़कर स्मृतियां सजीव हो गयीं।
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएंवर्ष 1982 से 88 तक मैं रामपुर में ही नियुक्त था। मेरा निवास शहर के प्रमुख स्थान, नयागंज चौराहे पर स्थित था। लगभग रोजाना मुन्नालाल शर्मा जी लगभग विक्षिप्त अवस्था में सड़क पर घूमते मिलते थे, कोई कुछ बोलता तो बकने लगते थे। लेकिन मैं एक कवि गोष्ठी में उन्हें देख चुका था, जिस कारण सामने आकर उन्हें प्रणाम करता था और वह बहुत सामान्य रूप से स्नेहयुक्त मुस्कान के साथ आशीर्वाद देते थे। बीच बीच में कई कई दिन को गायब भी हो जाते थे। इतने समय बाद उनके विषय में पढ़कर स्मृतियां सजीव हो गयीं।
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