शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यन्त बाबा की कहानी -----साहब का कुत्ता


बात उन दिनों की है, जब भोला राम आरक्षी के रूप में बड़े साहब के कार्यालय में तैनात था पुराने साहब के ट्रान्सफर के बाद नये साहब की तैनाती हुई। नये साहबछोटे से कद थे परन्तु बडे चटपटे थे। साहब ने अपने थोड़े से सामान के साथ कार्यालय में आगमन किया चूंकि कार्यालय तथा आवास एक ही परिसर में था साहब के आते समस्त कार्यालय स्टाफ शिष्टाचार भेंट के लिए इकट्ठा हो गया सभी के परिचय के साथ भोला राम ने भी साहब को सलाम ठोंक दिया। साहब कभी ए.एस.पी. से सीधे आई.जी. बने थे बडे़ साहब में पूरी हनक थी बात-बात पर अपने कन्धे पर लगे स्टार और अन्य साज सज्जा की ओर देखते हुए स्टाफ को कहते थे कि "जमीनी अफसर रहा हूँ कभी कोई गड़बडी़ की तो छोडूंगा नही"समस्त स्टॉफ एक शब्द में “जी सर” कहकर साहब की तारीफ में कसीदे लगाने लग जाता।

          कुछ ही समय बीता था कि साहब की मैडम का मय सामान के बंगले पर आगमन हुआ। सभी कर्मचारियों ने बडे़ उत्साह के साथ सामान उतरवा दिया। कर्मचारियों का धन्यवाद करने साहब हाथ में जंजीर थामे एक कुत्ता साथ में लिए आ गये। साहब सभी को 'धन्यवाद' कहने वाले ही थे कि सभी ने चापलूसी भरे एक ही स्वर में कहा "साहब आपका कुत्ता बहुत अच्छा है कहा से मंगाया है" इतना सुनते ही साहब का पारा सातवें आसमान पर हो गया। समय की नजाकत को कोई भाप न सका, सभी मूकदर्शक बने साहब की खरी-खोटी सुन रहे थे। जब साहब का गुस्सा कुछ ठण्डा हुआ तब साहब ने कुत्ते के परिचय देते हुए बताया कि इसका नाम “बाबूजी” है कर्मचारियों द्वारा इस नाम के पीछे छिपे तथ्य को जानने की जिज्ञासा को भांपते हुए साहब ने बताया कि जब यह लगभग तीन माह का था तब हमारे ससुर जी की ससुराल से भेंट किया गया था ससुर के ससुर यानि कि बाबूजी की याद में इसका नाम ”बाबूजी“ रखा गया है तथा इन्हें परिवार के सदस्यों की तरह सम्मान दिया जाता है अगले ही दिन से एक कर्मचारी को विशेष रूप से उसकी देखभाल करने के लिए नियुक्त किया गया। जब भी कोई अपनी पत्रावलियां साइन कराने जाता तो बाबूजी की तारीफ में एक दो कसीदे पड़ देता इससे उसकी डाक समय से साइन हो जाती थी साथ ही साहब भी अच्छे मूड़ में दिखाई देते थे। परन्तु कभी-कभी टेलीफोन डयूटी के साथ एक विशेष समस्या आ जाती थी, कि जब भी साहब कहते थे कि 'बाबूजी को बुलाओ!' तो यह समझ नही आता था की कुत्ते को बुलाना है या लिपिक को क्यूंकि दोनों ही बाबूजी हैं इसी वजह से आये दिन टेलीफोन डयूटि की डांट पड़ जाती थी। चूंकि बडे साहब थे बडे़-बडे़ लोग उनसे मिलने आते थे परन्तु सभी "बाबूजी" का नाम बडे अदब से लिया करते थे “बाबूजी” के तारीफ करके ही बडे़-बड़े काम यूं ही निकाल लिया करते थे।

      एक दिन कर्मचारी जब बाबूजी को बाहर घुमाने ले गया था तभी आठ-दस बाहरी कुत्तों ने "बाबूजी" की जमकर नुचाई कर दी किन्तु देखभाल वाले कर्मचारी ने जैसे-तैसे बचाकर, बाहर ही नहला-धुलाकर ठीक कर दिया जिससे इस घटना का कानों-कान किसी को पता नही लगने दिया किन्तु कार्यालय के कुछ लोग इस दृश्य को देख चुके थे। भोला राम भी जिनमें से एक था। एक दिन जब साहब कार्यालय परिसर का भ्रमण कर रहे थे कि भोला राम साहब के सामने आते हुए उत्साह पूर्वक बताया कि “साहब अपने बाबूजी को तो बाहरी कुत्ता ने बहुत बुरी तरह धोया है” इतना सुनते ही साहब बौखला गये और तुरन्त हैड क्लर्क को बुलाया गया तथा भोला राम को सात दिन की फटीक/दलील के साथ सात दिवस अर्थदण्ड सजा बतौर दिया गया। "बाबूजी" से ईर्ष्या रखने वालों की कडी़ में एक नाम और जुड़ गया भोला राम का। 

       कुछ ही दिन बीते थे कि पुराने साहब कि मैडम शहर आई थीं सोचा जब शहर आये ही है तो बडे़ साहब से शिष्टाचार भेंट करते चलें। चूंकि उनके पति तो डी.आई.जी. रहे थे, सोचा बड़े साहब मिलकर अच्छा लगेगा। मैडम का आगमन हुआ तो कर्मचारियों द्वारा पुराने साहब की मैडम होने के नाते सीधे साहब के कार्यालय कक्ष में बैठा दिया गया तथा टेलीफोन द्वारा साहब को मैडम के आगमन की सूचना दे दी, चूंकि भोला राम भी मैडम से पुराना परिचित था इस नाते पता चलने वह भी वहां आ चुका था। भोला राम मैडम का अभिवादन कर कुशलक्षेम पूछ ही रहे थे कि “बाबूजी” का आगमन हो गया मैडम को पूर्व से ही साहब का "बाबूजी" के प्रति स्नेह का पता था अतः मैडम ने बाबूजी पुचकारते हुए जैसे ही हाथ बढ़ाया कि बाबूजी ने अनजान समझकर मैडम पर हमला कर दिया। जब तक भोला राम 

मैडम को बाबूजी से बचा पाते तब-तक बाबूजी दो दांत मैडम के बाजू में गड़ा चुके थे। जिससे मैडम का ब्लाउज बाजू से कुछ फट गया था जब तक साहब का आगमन 

हुआ तब तक भोला राम बाबूजी को भगा चुके थे।

        साहब आकर बैठे अभिवादन हुआ ही था कि मैडम ने "बाबूजी" की शिकायत न करते हुए उसकी तारीफ में कसीदे पढ़ दिये कि "साहब! अपने ये जो बाबूजी बहुत अच्छे है बहुत अच्छा काटते है मुझे भी काटा, बहुत अच्छा लगा और गुद-गुदी सी हुई" चिलमबाजी की परकाष्ठा को भोला राम हतप्रभ बना निर्जीव सा खड़ा देख रहा था। भोला राम मन ही मन सोच रहा था कि 'हे प्रभु! चिलम बाजी की भी हद होती है' थोडी देर खडे़ रहने के पश्चात चुप-चाप बाहर निकल आया। भेंटवार्ता खत्म हुई। बडे साहब भी शिष्टाचार दिखाते हुए मैडम को बाहर तक छोड़ने आये। भोला राम पुनः मैडम से मिला और एन्टी-रैबीज के इजैक्शन लगवाकर मैडम को गंतव्य तक छोड़ आया।

          जब यह बात कार्यालय में पता लगी तो साहब के गोपनीय सहायक (स्टैनो) ने नम्बर बनाने में बिल्कुल देरी नही की और तुरन्त साहब को बताया कि “साहब! अपने बाबूजी ने मैडम को दांत मार दिये है जिसके इन्फैक्शन का खतरा बाबूजी को भी बराबर है” साहब "बाबूजी" के प्रति सहायक जिम्मदारी और तत्परता का भाव देख बहुत खुश हुए। तथा कर्तव्य के प्रति संवेदनशीलता को देखते हुए तुरंत सहायक को रिवार्ड दिये जाने की घोषणा की गयी। सहायक की बात मानते हुए तत्काल “बाबूजी” को अस्पताल भेजने की तैयारियां की जाने लगी। जिप्सी कार मंगायी गयी उसमें रंगीन कालीन बिछाकर "बाबूजी" को बैठा दिया गया। देख-रेख करने वाले कर्मचारी को साथ बैठाकर अस्पताल जाने के लिए रवाना कर दिया गया। अन्य कोई स्टाफ इसलिए साथ नही भेजा गया था कि साहब के पी.आर.ओ. ने इस सम्बंध में पहले ही डॉक्टर को अवगत करा दिया गया था।

      जिप्सी कार कार्यालय से कुछ दूरी पर ही मुख्य मार्ग पर पहुंची ही थी कि "बाबूजी" को सड़क पर “बाबूजिन” (कुतिया) दिखाई पड़ गयी, "बाबूजिन" को देखकर वानप्रस्थ काट रहे "बाबूजी" अपने संयम को साध न सके, और चलती कार से ही छलांग दी। कर्मचारी कुछ प्रयास करता उससे पहले ही सामने से आ रहे एक ट्रक ने ”बाबूजी“ को सड़क पर चिपका दिया। बस अब क्या था! कर्मचारी और जिप्सी का ड्राईवर अवाक् खडे़ एक दूसरे का मुँह देख रहे थे, कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करें! फिर भी उन्होने मार्ग पर चलते ट्रैफिक को रोककर "बाबूजी" के गले में बंधा पट्टा व जंजीर खोल ली और बापस आ गये।

       किसी तरह हिम्मत जुटाते कार्यालय पहुंचे वहाँ पहुँच कर दोनों ने पी.आर.ओ. तथा टेलीफोन डयूटी से बाबूजी की मृत्यु की सूचना साहब को देने का अनुरोध किया। परन्तु बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधता। जब कोई उपाय न सूझा तो दोनों स्वयं ही सीधे हिम्मत जुटाते हुए साहब के सामने पहुँचे। साहब तभी मध्यान्ह भोजन कर कार्यालय में बैठे ही थे। दोनो ने हाथ जोड़कर जंजीर दिखाते हुए कहा कि “साहब! बाबूजी अब नही रहे” फिर क्या था साहब का आक्रोश देखते ही बनता था। तुरन्त साहब की गाड़ी लगवायी गयी और तत्काल घटनास्थल पर पहुंचे परन्तु तब तक देर हो चुकी थी राष्ट्रीय राजमार्ग होने के कारण न जाने कितने ही वाहन "बाबूजी" के ऊपर से गुजर चुके थे "बाबूजी" के रूप में अब केवल सड़क से चिपकी "बाबूजी" की खाल ही शेष बची थी। खाल को खुरपी मंगाकर खुर्चा गया। बाल्टी में रखकर कार्यालय लाया गया पूरे विधि-विधान से "बाबूजी" का अन्तिम संस्कार किया गया। साथ ही मोक्ष प्राप्ति के लिए ब्राह्मण भोज भी कराया गया।

        समस्त कार्यालय में आज "बाबूजी" की मौत की सुगबुगाहट थी। एक कुत्ते की मौत के रूप में प्रत्येक कर्मचारी की संवेदनाएं थी। परन्तु "बाबूजी" की मौत का सुखद अहसास प्रत्येक स्टाफ कर्मी के चेहरे पर साफ दिखाई पड़ रहा था क्योंकि शायद ही कोई बचा हो जिसे "बाबूजी" की वजह से किसी न किसी रूप में डांट न पड़ी हो।

✍️दुष्यन्त 'बाबा', मुरादाबाद

मो0न0-9758000057

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