(शहर के बीचों- बीच बने एक छोटे से से घर के अंदर कुछ गौरैये घोंसले बनाकर रह रही हैं। उन्हीं में से एक हरे रंग के काग़ज़ वाले डिब्बे नुमा घोंसले पर गिन्नी नाम की गिलहरी ने कब्जा कर लिया है। जो न जाने किस तरह से गेट के ऊपरी किनारे से होते उस घोसलें में आ घुसी थी। उस घर की मालकिन ने यह देखकर दो -तीन घोंसले और टांँग दिये , जिससे गौरैयों को रहने की जगह कम न पड़े। आज गौरैयों की सरदार गुनगुन की बाहरी सहेलियाँ भी उस घर में गुनगुन व उसके परिवार से मिलने आ पहुँची हैं। बाहर भारी बारिश हो रही है और मौसम विभाग के अनुसार अभी अड़तालीस घंटे ऐसे ही बरसात होने की भारी संभावना है। )
(प्रथम अंक)
( गिन्नी गिलहरी और गौरैये एक ही प्लेट में खा रही हैं और साथ ही दिन भर की बातें भी कर रही हैं।)
गिन्नी : हम्मम..! (गौरैयों के घोंसलों की ओर देखते हुए) तुम्हारे घोंसलों की इस घर की मालकिन ने अच्छी तरह से व्यवस्था कर रखी है। काफी समय से रह रही हो न तुम लोग यहाँ पर....!!
गौरैये : (समवेत स्वर में) हाँ बहन!! हमारी मालकिन बहुत दयालु हैं। अब देखो न...!!. उन्होंने तुम्हें भी नहीं भगाया। और तो और हमारे लिए प्रतिदिन चावल और पानी भी रख देती हैं।
गिन्नी : हम्ममम... ये तो सच है। आज प्रातः भी कुछ बिस्किट और पूड़ी रख गयी थीं वह...! बड़े ही स्वादिष्ट लगे मुझे तो...! (चावल खाते हुए)
गौरैये : (आश्चर्य से) बिस्किट.....! पूड़ी....! और तुम अकेले चट कर गयीं!! हमारे लिए कुछ भी नहीं छोड़ा...!
गुनगुन : मत भूलो गिन्नी यह घर हमारा पहले है, तुम्हारा बाद में। हम यहाँ बीस वर्षों से रह रहे हैं और तुम्हें छ:महीने भी नहीं हुए यहाँ आये...! चोर कहीं की....!
गिन्नी : ( हँसते हुए)अररररर...! तुम सब तो क्रोधित हो गयीं। साॅरी बाबा..( अपने कान पकड़ते हुए) आगे से ऐसा नहीं होगा। हम सब मिल बाँटकर खायेंगे।(तनिक चहकते हुए) सुनो.....!तुम लोगो ने अखरोट खाया है कभी...??
गौरैये :(समवेत स्वर में) अखरोट!!!!! नहीं तो..! हमारी चोंच से तो उसका मोटा छिलका टूटेगा भी नहीं,तो खायेंगे कैसे?
गिन्नी : कोई बात नहीं सखियों आज से हम सब मित्र हुए। अखरोट..मैं तुम्हें खिलाऊंगी । मिलाओ हाथ...!(अपना अगला सीधा पंजा आगे बढ़ाते हुए)
गुनगुन : बिलकुल...!!!.(फिर गौरैयों की सरदार गुनगुन गौरैया अपने एक पंजे को गिलहरी के आगे बढ़े हुए पंजे से मिलाकर मित्रता पक्की कर देती है।) मगर मित्रता का एक सिद्धांत है गिन्नी जी ...!( हँसते हुए)
गिन्नी: वो क्या.....?
गुनगुन: न धन्यवाद देना .....! न क्षमा माँगना..!
गिन्नी: जी मैडम, स्वीकार है। ( हंँसती है)चलो अब जल्दी- जल्दी चावल खा लेते हैं। मालकिन का छोटा बेटा स्कूल से आता ही होगा। वह बड़ा ही शरारती है .! हमें देखते ही पकड़ने को दौड़ेगा।
गुनगुन : हांँ- हांँ जल्दी खा लो सखियों। बाहर बारिश तेज होने वाली है। हमारी जो सखियाँ बाहर से आयी हैं उन्हें भी बहुत दूर जाना है।
गिन्नी: आज तुम्हारी सखियाँ यहाँ चावल खाने क्यों आयी हैं?
गुनगुन : क्योंकि भारी बारिश में हम लोगो को हमारा प्रमुख भोजन कीड़े नहीं मिलते हैं। इसलिए हमारी सखियाँ भी हमारे साथ यहाँ रोटी- चावल खाने आ जाती हैं। मालकिन कुछ नहीं कहतीं, बल्कि हमारी प्लेट में खुब सारे खाद्य- पदार्थ रख देती है।
गिन्नी: ओह......! यह बात है....!खाओ... खाओ...! ( कुछ सोचते हुए)तुम लोगो को एक बहुत ज़रूरी बात भी बतानी है।
गुनगुन : अच्छा.....!क्या बात है गिन्नी? बताओ... बताओ... !
गिन्नी : ( गंभीर होकर) आज सुबह मैने गेट के ऊपर एक गिरगिट देखा । वह तुम लोगो के अंडे चुराने वाला था, तभी मैने उसे भगा दिया। तुम लोग सावधान रहना....!
गुनगुन : ओहहह.....! बहुत अच्छा किया गिन्नी..!वह गिरगिट बहुत शातिर बदमाश है ...!जब हम बाहर भोजन की तलाश में जाते हैं तब वह अक्सर हमारे अंडे चुरा कर खा लेता है। सच कहूँ तो तुमने यहाँ आकर हम सब पर बहुत उपकार किया है गिन्नी...! ( गुनगुन का गला भर आया था)
गिन्नी: (अपनी गोल- गोल आँखों में आँसू भरकर) उपकार तो तुम सबने किया है मुझपर ...!.अपने बीच....मुझे भी इस घर में शरण देकर...! और उस दिन........उस खुले मैदान में तो वो भूरी बिल्ली मुझे कब की खा गयी होती यदि तुम सबने चींचींचीं का शोर मचाकर मुझे सतर्क न किया होता ....!!
गुनगुन: नही.... नहीं....हमने तुम्हें शरण कब दी ....? तुम तो खुद ज़बरदस्ती आयी हो हमारे बीच ( ज़ोर से हँसते हुए) हा हा हा...!
गिन्नी: (तनिक झेंपते हुए ) जो भी है, अब तो हम सब मित्र हुए न....! ( मुस्कुराती है)
तुमने मुझे बिल्ली से बचाया और मैं गिरगिट और छिपकली से तुम्हारे अंडों की रक्षा करुँगी। वैसे भी इस घर में हम सब अधिक सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। काफी आरामदायक है यह।
गुनगुन : हाँ ,ठीक कहा तुमने गिन्नी,अबसे हम एक दूसरे के सुख: दुख में बराबर के हिस्सेदार होंगे। ( तनिक चौंक कर) अरे... ! देखो ......मकान मालकिन अपना फोन लेकर इधर ही आ रही हैं। इन्हें भी हमारी फोटो और वीडियो बनाने का बड़ा ही शौक है। हा! हा! हा..!. हा! अच्छा हुआ हम सब फोन नहीं चलाते। सुना है इंसानों में फोन चलाने की बड़ी बुरी बीमारी है। ( सब हँसते हैं) .....हा हा हा ही ही ही....! चलो निकलो ....अब सब लोग!!!!
बाहरी गौरैये : (समवेत स्वर में ) चलते हैं गुनगुन -गिन्नी हम कल फिर आयेंगे !! तुम अखरोट ज़रूर ले आना.... !बाय- बाय...!
गिन्नी: ( अपने घोंसले में जाते हुए) अवश्य...!अवश्य.!.... कल शीघ्र आना... ! मैं तुम सबकी प्रतीक्षा करुँगी। बाय-बाय..मित्रों..!
गुनगुन:(अपने घोंसले में जाते हुए) बाय- बाय सखियों....! ठीक से जाना...!
✍️मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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