पृष्ठभूमि : सिंहावर्त नामक सघन वृक्षों वाला रमणीक महावन…ऊंची-ऊंची पर्वत श्रंखलाओं, नदियों, स्वच्छ पानी वाले जलाशयों और सुंदर सुगंधित पुष्पों लताओं से परिपूर्ण…हर ओर मनमोहक हरियाली…विशालकाय पत्थर, गुफाओं और सुरंगों की बहुलता।
पात्र परिचय :
तानिया बिल्ली – वनमाता
मनशेरा शेर – कठपुतली राजा
कुटिलरुप भेड़िया – निकटवर्ती राज्य कूटिस्तान का शासक
बाघेन्द्र बाघ – वनखण्ड प्रभारी
: परिदृश्य एक :
उद्घोषक : किसी समय सिंहावर्त नामक महावन में जीवा नामक बिलाव शासन करता था। किन्तु उसकी नीतियों से असंतुष्ट कुछ उग्र व हिंसक जन्तुओं ने उसकी हत्या कर दी थी। तब उसके चाटुकारों ने उसकी राजकाज में अनुभवहीन पत्नी तानिया नामक बिल्ली को सिंहासनासीन करने की भरसक चेष्टा की। किन्तु तानिया ने वनहित में त्याग का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए मनशेरा नामक एक ऐसे बूढ़े शेर को सत्तासीन कर दिया जो वंश से तो शेर था किन्तु स्वभाव व प्रवृत्ति से किसी मूषक की भांति कातर और मूकबधिर जैसा था। शायद तानिया ने उसे इसीलिए कठपुतली के रूप में राजा बनाया था। और वह त्याग की प्रतिमूर्ति बन परदे के पीछे से महावन पर अपना शासन चलाने लगी…
एक दिन मनशेरा वनमाता तानिया के तमाम सुख साधनों से भरपूर भव्य राजगुफा में पहुंचता है…और
मनशेरा (करबद्ध अभिवादन की मुद्रा में नतमस्तक) – वनमाता की सदा ही जय हो!
वनमाता (आशीर्वचन की मुद्रा में दायां हाथ ऊपर उठाते हुए)-- हां बोलो मनशेरा! क्यों इतने घबराये हुए हो?
मनशेरा – वनमाता! कूटिस्तान के राजा कुटिलरूप ने हमारे महावन में बहुत उत्पात मचा रखा है।
वनमाता (चौंकते हुए) – कौन कुटिलरूप? कौन कूटिस्तान?... पहले तो तुमने कभी ये नाम लिये नहीं?
मनशेरा – वनमाता! यह वह वन है जो कभी हमारे ही महावन का एक भाग हुआ करता था , किंतु अब वह अलग स्वतन्त्र वन कूटिस्तान बन गया है उसी का राजा है कुटिलरूप भेड़िया।
वनमाता – किस मूर्ख ने किया उसे हमारे महावन से अलग? क्या कोई सजा दी गई उसे?
मनशेरा – वनमाता! उसे तो कोई सजा नहीं दी गई, किन्तु उसके किए की सजा हमारा महावन अवश्य भुगत रहा है।
वनमाता – आखिर किसके दिमाग में वह कीड़ा कुलबुलाया था जो इस महावन से एक खण्ड काटकर इसे छोटा कर दिया गया? कौन बुद्धिहीन था वह?
मनशेरा (तनिक झिझकते हुए)– अतीत की बड़ी लम्बी और शर्मनाक कहानी है वनमाता!...सुनाते हुए संकोच भी होता है और भय भी लगता है कि कहीं आप कुपित न हो जाएं।
वनमाता – बिल्कुल मत डरो मनशेरा! और संकोच भी मत करो! सब कुछ साफ़ साफ़ बताओ!
मनशेरा (भयाक्रांत स्वर)-- वनमाता! किसी समय में यह सिंहावर्त नामक महावन क्षेत्रफल व समृद्धि की दृष्टि से अत्यधिक विशाल था। किन्तु आपके पति जीवा के एक सदाशय पूर्वज ने अपने किसी स्वार्थ के वशीभूत होकर अपने मित्र किसी भेड़िए को इस महावन का एक छोटा सा खण्ड उपहार स्वरूप प्रदान कर दिया था।तब से अब तक वहां भेड़िए ही शासन करते आ रहे हैं। आजकल वहां कुटिलरूप नामक एक निकृष्ट स्वभावी भेड़िया अधिपत्य जमाए हुए है। उसकी लोलुप दृष्टि हमारे महावन पर लगी हुई है।उसका दिवास्वप्न है कि वह हमारे सिंहावर्त व अपने कूटिस्तान को मिलाकर अपना साम्राज्य स्थापित करे। इसीलिए वह हमारे सिंहावर्त में अपने भेड़ियों द्वारा विध्वंस व उत्पात मचाता रहता है।
वनमाता – तो उससे हमें क्या हानि है?
मनशेरा (किंचित्आवेश में)-- वनमाता! वह हमारे वनवासियों का बहुत प्रकार से उत्पीड़न कर रहा है। हमारे तमाम जीवजंतु मारे जा रहे हैं। वनसम्पदा नष्ट की जा रही है।नदी नालों का पानी रक्त से लाल व दूषित किया जा रहा है।
वनमाता – तो उसके कुकृत्यों से हमें क्या हानि है?... हमारी समझ में यह बात नहीं आ पा रही?... वह हमारी प्रजा का ही तो शोषण कर रहा है हमारा तो नहीं।…बस इतना ध्यान तुम्हें अवश्य रखना है कि उसके कारण हमारे सुखोपभोग में कोई कमी न आने पाए।
मनशेरा – इतनी व्यवस्था तो हमने पहले ही कर रखी है। हमने चीते,हाथी, जिराफ़ व ऊंट को महावन की सीमाओं पर नियुक्त कर रखा है। परंतु वनमाता!कुटिलरूप भेड़िया इतना कुटिल है कि उसने साही के द्वारा महावन व कूटिस्तान के मध्य आर पार सुरंगें बनवा ली हैं। और विभाजन के समय जो भेड़िए यहां रह गये थे उनका आश्रय लेकर विध्वंस मचाता रहता है। तथा उन्हें यह कहकर उत्साहित करता रहता है कि अभियान जारी रखो! वह दिन दूर नहीं जब महावन सिंहावर्त में भी एक छत्र भेड़ियों का साम्राज्य स्थापित होगा।
वनमाता (आंखें विस्फारित करते हुए)-- ओह ऐसा हुआ?... यह तो बहुत ग़लत है…फिर तुमने क्या किया उसका अभियान रोकने के लिए?
मनशेरा – हमने उसे कठोर चेतावनी दी है कि कुटिलरूप जी! हमारे धैर्य की परीक्षा मत लीजिए! हम आपसे डरने वाले नहीं हैं,अपना विध्वंसक अभियान तत्काल रोक दीजिए! वरना हम आपकी ईंट से ईंट बजा देंगे।
वनमाता – तो उस पर क्या प्रतिक्रिया हुई तुम्हारी धमकियों की? क्या उसका अभियान रुक पाया?
मनशेरा – नहीं वनमाता!उसका तो दु:साहस निरंतर बढ़ता जा रहा है। उसने तो हमें ही ललकार दिया कि अरे जा-जा कठपुतली राजा! उस बिल्ली की गोद में बैठकर गीदड़भभकी देने वाले तुझ जैसे भीरू राजा से डरकर हम कभी पीछे हटने वाले नहीं।
वनमाता – पता नहीं क्यों मनशेरा! हमें इन भेड़ियों से कुछ विशेष प्रेम है, उनके अनिष्ट से हमारा हृदय रोता है। जबकि खरगोश,हिरण,सांभर, नीलगाय जैसे निरीह जन्तुओं से हमें नफरत है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे ये हमारे महावन पर बोझ हैं। और ये यहां से निकलकर किसी और वन में चले जाएं…
…खैर तुम अपनी गुफा में जाकर विश्राम करो!हम अपने परामर्शदाताओं से विचार विमर्श कर कोई ऐसी राह निकालेंगे कि इन भेड़ियों को भी कोई क्षति न पहुंचे और हमारे सुखोपभोग में भी कोई बाधा न पड़े।
( मनशेरा वनमाता के चरणों में तीन बार शीश झुकाकर किसी पंखकटे पक्षी की तरह छटपटाता हुआ रुआंसे मन से वापस लौट जाता है)
उद्घोषक : फिर एक रात्रि को कुटिलरूप ने बहुत सारे भेड़ियों के साथ सीमा पर बनाई गई सुरंगों से घुसकर सिंहावर्त पर आक्रमण कर दिया। वीभत्स जन्तु संहार करते हुए उसने बहुत भीतर तक प्रवेश कर लिया। मनशेरा को सूचना मिली तो वह अपने कातर स्वभावानुसार कुटिलरूप की अभ्यर्थना करने जा पहुंचा…
मनशेरा (कुटिलरूप की ओर मैत्री भरा हाथ बढ़ाते हुए) – सिंहावर्त की सुसमृद्ध धरती पर आपका अभिनन्दन है माननीय महोदय! 'अतिथि देवो भव:' हमारी परंपरा रही है। एक अतिथि के रूप में आप जब तक चाहें तब तक यहां रहें! परंतु हमारे जंतुओं को कोई हानि न पहुंचाएं! वे हमसे शिकायत करने आ जाते हैं तो हमारी शासकीय क्षमता पर प्रश्न चिन्ह उठ खड़े होते हैं। बात वनमाता के कानों तक जा पहुंचती है तो हमें उनका कोपभाजन बनना पड़ता है।
कुटिलरूप (अपने सेनापति के कानों में फुसफुसाते हुए)-- इस शेर की बुद्धिहीनता का भी कोई जवाब नहीं। शत्रु का भी कैसा भावभीना सत्कार कर रहा है। बेवकूफ कहीं का।
मनशेरा – सम्माननीय महोदय! धीरे-धीरे क्या कह रहे हैं आप? कुछ हमें भी तो पता चले?
कुटिलरूप – तुम्हारी सादगी और प्यार भरे आतिथ्य तथा इस महावन की सुंदरता ने हमारा मन मोह लिया है। मन करता है कि इस महावन को भी हम अपने कूटिस्तान में ही मिला लें। तुम भी वहीं चलकर रह लेना!... इस प्रस्ताव के संदर्भ में क्या कहते हो तुम?
मनशेरा (मंद-मंद मुस्कराते हुए)-- परिहास बहुत अच्छा कर लेते हैं आप। हंसी मजाक हमें भी बहुत पसंद है।
कुटिलरूप (अपने सेनापति से धीमें स्वर में)-- जहां का राजा नीति निपुण न हो , जिसे शत्रु मित्र की लेशमात्र भी पहचान न हो, जो शत्रु से भी प्रेमपगा व्यवहार करता हो– ऐसे राजा के राज्य पर अधिपत्य जमा लेने में लेशमात्र भी बाधा नहीं आ सकती।
उद्घोषक : और कुछ ही समय में देखते ही देखते सिंहावर्त महावन में कूटिस्तान के भेड़ियों ने उत्पात मचा दिया। वहां के मूल निवासी सांभर, नीलगाय, चीतल, चिंकारा, खरगोश,ज्ञ हिरण आदि निरीह जन्तुओं का सफाया किया जाने लगा। सम्पूर्ण महावन में करुण क्रंदन और चीत्कार के स्वर…जिधर भी देखो उधर हिंसा का भयावह ताण्डव…आतंक का नग्न नर्तन।
परंतु सिंहावर्त का कठपुतली राजा मूक,मौन और बधिर था…शायद उसे वनमाता के किसी आदेश की प्रतीक्षा थी।
( परदा गिरता है )
: परिदृश्य क्रमांक दो :
उद्घोषक : सिंहावर्त के एक लघुखण्ड का प्रभारी बाघेंद्र नामक बाघ बहुत शक्तिशाली, स्वाभिमानी और वीर था…खण्ड के जंतुओं की रक्षा के लिए सदैव सतर्क और सन्नद्ध…कूटिस्तान के भेड़िए जब उपद्रव मचाते हुए उसके खण्ड तक जा पहुंचे तो वह रौद्रमुखी बन गया…अन्य हिंसक जन्तुओं के सहयोग से उसने उन्हें तत्काल मार भगाया। और अगले ही दिन उसने अपने सेनापति व अन्य परामर्शदाता जंतुओं की एक सभा की…
बाघेंद्र (परामर्शदाताओं से)-- यह सोचकर मेरे मस्तक पर चिंता के साये लहराने लगे हैं कि पड़ोसी वन के जन्तुओं का हमारी सीमा में घुस आने का दु:साहस कैसे हुआ? क्या हमारे महावन का राजा इतना भीरू,कायर और ओजविहीन है कि अपने राज्य में घुस आए शत्रुओं का प्रतिकार नहीं कर सकता?
चीता– ऐसे डरपोक और शक्तिहीन राजा को राज करने का कोई अधिकार नहीं।उसे तो एक पल भी सिंहासनारूढ़़ नहीं रहने देना चाहिए।
बाघेंद्र (क्रांति का बिगुल बजाते हुए)-- जिस राजा को अपनी प्रजा के हितों की चिंता न हो,जो शत्रुओं से अपनी प्रजा की रक्षा करने में सक्षम न हो– उसे शासन करने का कोई अधिकार नहीं।…तो आइए मेरे साथ…सत्ता परिवर्तन के लिए क्रांति की मशाल लेकर सब साथ-साथ चलें!
चीता, तेंदुआ,भालू,गुलदार (उत्साहित समवेत स्वर)-- बाघेंद्र जी संघर्ष करो!हम तुम्हारे साथ हैं।
बाघेंद्र– साथियों! हम शठे शाठ्यम समाचरेत् युद्ध नीति के अनुसार अपने महावन में अवैध रूप से घुस आए भेड़ियों को चुन-चुनकर मारेंगे और सारे वनद्रोही व धूर्त जंतुओं का भी सफाया करेंगे। तत्पश्चात पर्वतों पर अनधिकृत रूप से वास कर रहे कूटिस्तान के गुप्तचर सियार, लोमड़ी,साही, ऊदबिलाव आदि को चीर फाड़ डाला जाएगा।
चीता तेंदुआ – परंतु अपने महावन के राजा मनशेरा और वनमाता से मुक्ति कैसे मिलेगी? जिन्होंने अपनी स्वार्थांधता और कातरता से इस महावन के गौरवशाली इतिहास को कलंकित कर दिया।
बाघेंद्र– मैंने सिंहावर्त महावन के सर्वविधि संरक्षण और सर्वांगीण उन्नति की शपथ ली है तो मैं अपने इस संकल्प को अवश्य पूर्ण करके रहूंगा। बस आप सब मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते रहिए!आज से *सबका साथ सबका विकास* मेरा लक्ष्य है।
(बाघेंद्र महाराज की जय हो!... बाघेंद्र महाराज की जय हो!! – उद्घोष से आकाश गुंजाते हुए सारे जीव जंतु तत्क्षण उठ खड़े होते हैं और बाघेंद्र के पीछे पीछे चल पड़ते हैं )
उद्घोषक – महावन के जीव जन्तु मनशेरा के मौन व अकर्मण्यता से रुष्ट व क्षुब्ध तो थे ही, अतएव बाघेंद्र के नेतृत्व में सिंहावर्त में एक नई क्रांति का सूत्रपात करने एकजुट होकर निकल पड़ते हैं। और मनशेरा की राजगुफा पर धावा बोल उसे सत्ताच्युत कर बाघेंद्र को राजा घोषित कर देते हैं।
✍️ डॉ अशोक रस्तोगी
अफजलगढ़ ,बिजनौर
मो. 8077945148/9411012039
आज की परिस्थितियों में बहुत सार्थक
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