सोमवार, 27 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर एटा की साहित्यिक संस्था "प्रगति मंगला" ने ऑन लाइन साहित्यिक परिचर्चा का आयोजन किया .....


प्रगति मंगला साहित्यिक संस्था एटा के तत्वावधान में कुरकावली जनपद संभल के यशस्वी गीतकार रामावतार त्यागी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर ऑन लाइन परिचर्चा हुई। इस ऑनलाइन साहित्यिक समारोह की अध्यक्षता आचार्य  डा. प्रेमीराम मिश्र पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष  जे. एल.एन. कालेज एटा ने की। मुख्य अतिथि  मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डा. मनोज रस्तोगी  रहे।  संयोजक उमाशंकर राही ने संचालन किया। संस्थापक बलराम सरस ने कार्यक्रम की रूपरेखा पर प्रकाश डाला ।

आचार्य डा. प्रेमी राम मिश्र ने कहा कि रामावतार त्यागी  उस पीढ़ी के श्रेष्ठ कवि हैं जिसे हम रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंश राय बच्चन, गोपाल सिंह नेपाली, नरेंद्र शर्मा, डॉ शिवमंगल सिंह सुमन ,देवराज दिनेश, वीरेंद्र मिश्र आदि के रूप में स्मरण करते हैं ।वह अपने समय के सर्वाधिक मुखर कवि के रूप में विख्यात रहे। उनका योगदान गीत के ही क्षेत्र में नहीं गद्य लेखन और पत्रकारिता में भी रहा है ।
मुख्य प्रस्तोता के रूप में मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार डा. मनोज रस्तोगी ने  रामावतार त्यागी के व्यक्तित्व और कृतित्व से अवगत कराया तथा  उनके बहुचर्चित गीत प्रस्तुत किये। उन्होंने बताया कि रामावतार त्यागी का जन्म 8जुलाई 1925 को कुकरावली जनपद संभल में एक जमींदार घराने में हुआ था। वह बचपन से ही कविता के तुके मिलाया करते थे।1950 से उनकी रचनाएं नवभारत,नवयुवक जैसे पत्रों में छपने लगीं थीं। आपने शिक्षण कार्य भी किया बाद में कई सम्मानित पत्रों के सम्पादक भी रहे। 1950 में नया खून काव्यसंग्रह, 1958में आठवां स्वर,1959 मैं दिल्ली हूं,1965 गुलाब और बबूल'( 1973), ' गाता हुआ दर्द'( 1982), ' लहू के चंद कतरे'( 1984), 'गीत बोलते हैं'(1986) काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। वर्ष 1954 में उनका उपन्यास 'समाधान' प्रकाशित हुआ। इसके अतिरिक्त 1957 में  उनकी कृति 'चरित्रहीन के पत्र'  पाठकों के समक्ष आई ।
हास्य व्यंग्य कवि त्यागी अशोका कृष्णम् कुरकावली संभल ने उनके संस्मरण सुनाते हुए बताया कि रामावतार त्यागी का जीवन एक खुली किताब था। वह सरलता से परिपूर्ण और कुटिलताओं से कोसों दूर थे। उन्होंने जो भोगा वही लिखा। आधुनिक गीत साहित्य का इतिहास उनके गीतों की विस्तार पूर्वक चर्चा किए बिना लिखा ही नहीं जा सकता
प्रख्यात नवगीतकार यश भारती माहेश्वर तिवारी मुरादाबाद ने कहा कि रामावतार त्यागी  हिंदी खड़ीबोली के ऐसे रचनाकार हैं जो काव्यत्व के धरातल पर अपने समकालीन बहुत से लोक विश्रुत कवियों से बहूत आगे थे । जमींदराना ठसक और विद्रोह का स्वर उनके निजी व्यक्तित्व के साथ साथ उनकी कविता में भी देखी जा सकती है । इसे हिंदी गीत का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता हैकि उनकी अपेक्षा मौलिकता और कम काव्यात्मक पूँजी वाले कई लोग महफ़िल लूटते रहे और त्यागी जी जिस मूल्यांकन के हकदार थे वह उन्हें अभीतक नहीं मिला है ।
प्रख्यात हास्य व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि रामावतार त्यागी  पीड़ा के अमर गायक थे । वह उस उदधि के जैसे हैं जिसकी लहर-लहर में पीड़ा ही पीड़ा व्याप्त है।इन पीड़ाओं के ताप से समुद्र वाष्पीकृत होकर बादल बनके जब बरसता है तो पीड़ाओं की बाढ़ ले आता है। पीड़ाओं की इस बाढ़ से दो-दो हाथ करने नाम है, रामावतार त्यागी।उनका गीत संसारपीड़ाओं की मूसलाधार बरसात से कमाई गई खेती है।
मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट  ने विचार रखते हुए कहा- श्री त्यागी जी ने अपने गीतों में जिस तरह से दर्द को जिया है और वह जिस तरह से दर्द को पालते और पुचकारते हैं,साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं क्योंकि जो व्यक्ति अपनी तप की सफलता के परिणाम में चुभन की कामना करे वह साधारण हो भी नहीं सकता।
   मुरादाबाद के ही साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने कहा- रामावतार त्यागी कवि नहीं भारतीय सांस्कृतिक विरासत की चेतना के सोये हुए भावों में पुनर्जागरण का शंख फूंकने वाले मनीषी हैं।
संयोजक उमाशंकर राही वृन्दावन ने बताया कि रामावतार त्यागी ने फिल्मों के लिए भी कई गीत लिखे जिनमें फिल्म 'जिन्दगी और तूफान' 1975 के गीत- एक हसरत थी कि आंचल का मुझे प्यार मिले' काफी लोकप्रिय हुआ।
  कवि बलराम सरस एटा ने कहा कि रामावतार त्यागी की सभी रचनाएं कालजयी हैं। वह अपनी रचनाधर्मिता से सदैव प्रासांगिक रहेंगे।उनका गीत --
"मन समर्पित तन समर्पित, और यह जीवन समर्पित। चाहता हूँ मातृ-भू तुझको अभी कुछ और भी दूँ " पाठ्य पुस्तकों में भी शामिल हुआ है ।
 संस्था की प्रशासक और साहित्यकार श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ ने विचार व्यक्त करने के बाद रामावतार त्यागी जी तन समर्पित को अपना स्वर प्रदान किया।
वरिष्ठ कवि जयराम जय कानपुर ने भी रामावतार त्यागी के गीत संसार पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि उनके गीत हिंदी गीत साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं ।
गुड़गांव की डॉ गुंजन शुक्ला ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि स्मृतिशेष रामावतार त्यागी जी का हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान है । उन्होंने उनके एक गीत का अंश भी प्रस्तुत किया ।
गाजियाबाद की कवियत्री सोनम यादव ने भी स्मृतिशेष रामावतार त्यागी के गीतों पर चर्चा करते हुए कहा कि उनके गीत मन में वेदना भर देते हैं । इसतरह के आयोजनों से नई पीढ़ी को महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
इस संगोष्ठी में मध्य प्रदेश की साहित्यकार डा. परवीन महमूद ने कहा कि देश के प्रख्यात दिवंगत साहित्यकारों पर साहित्यिक परिचर्चा का आयोजन करके प्रगति मंगला संस्था एक सराहनीय कार्य कर रही है।

::::::प्रस्तुति:::::
बलराम सरस
संस्थापक
प्रगति मंगला
एटा ,उत्तर प्रदेश

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