बुधवार, 1 सितंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल) के साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी के पाँच गीत ------


(1)

आदमी का आकाश 

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भूमि के विस्तार में बेशक कमी आई नहीं है

आदमी का आजकल आकाश छोटा हो गया है।


हो गए सम्बन्ध सीमित डाक से आए ख़तों तक

और सीमाएं सिकुड़ कर आ गईं घर की छतों तक

प्यार करने का तरीक़ा तो वही युग–युग पुराना

आज लेकिन व्यक्ति का विश्वास छोटा हो गया है।

आदमी का आजकल आकाश छोटा हो गया है।


आदमी के शोर से आवाज़ नापी जा रही है

घंटियों से वक़्त की परवाज़ नापी जा रही है

देश के भूगोल में कोई बदल आया नहीं है

हाँ हृदय का आजकल इतिहास छोटा हो गया है।

आदमी का आजकल आकाश छोटा हो गया है।


यह मुझे समझा दिया है उस महाजन की बही ने

साल में होते नहीं हैं आजकल बारह महीने

और ऋतुओं के समय में बाल भर अंतर न आया

पर न जाने किस तरह मधुमास छोटा हो गया है।

आदमी का आजकल आकाश छोटा हो गया है।

(2)

रोशनी मुझसे मिलेगी

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इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूँ;

मत बुझाओ!

जब मिलेगी, रोशनी मुझसे मिलेगी!


पाँव तो मेरे थकन ने छील डाले

अब विचारों के सहारे चल रहा हूँ

आँसूओं से जन्म दे-देकर हँसी को

एक मंदिर के दिए-सा जल रहा हूँ;

मैं जहाँ धर दूँ कदम वह राजपथ है;

मत मिटाओ!

पाँव मेरे, देखकर दुनिया चलेगी!


बेबसी मेरे अधर इतने न खोलो

जो कि अपना मोल बतलाता फिरूँ मैं

इस कदर नफ़रत न बरसाओ नयन से

प्यार को हर गाँव दफनाता फिरूँ मैं

एक अंगारा गरम मैं ही बचा हूँ

मत बुझाओ!

जब जलेगी, आरती मुझसे जलेगी!


जी रहे हो किस कला का नाम लेकर

कुछ पता भी है कि वह कैसे बची है,

सभ्यता की जिस अटारी पर खड़े हो

वह हमीं बदनाम लोगों ने रची है;

मैं बहारों का अकेला वंशधर हूँ

मत सुखाओ!

मैं खिलूँगा, तब नई बगिया खिलेगी!


शाम ने सबके मुखों पर आग मल दी

मैं जला हूँ, तो सुबह लाकर बुझुँगा

ज़िन्दगी सारी गुनाहों में बिताकर

जब मरूँगा देवता बनकर पुजुँगा;

आँसूओं को देखकर मेरी हंसी तुम

मत उड़ाओ!

मैं न रोऊँ, तो शिला कैसे गलेगी!

(3)

आँचल बुनते रह जाओगे 

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मैं तो तोड़ मोड़ के बंधन 

अपने गाँव चला जाऊँगा 

तुम आकर्षक सम्बन्धों का,

आँचल बुनते रह जाओगे.


मेला काफी दर्शनीय है 

पर मुझको कुछ जमा नहीं है 

इन मोहक कागजी खिलौनों में 

मेरा मन रमा नहीं है.

मैं तो रंगमंच से अपने 

अनुभव गाकर उठ जाऊँगा 

लेकिन, तुम बैठे गीतों का 

गुँजन सुनते रह जाओगे.


आँसू नहीं फला करते हैं 

रोने वाले क्यों रोता है?

जीवन से पहले पीड़ा का 

शायद अंत नहीं होता है.

मैं तो किसी सर्द मौसम की 

बाँहों में मुरझा जाऊँगा 

तुम केवल मेरे फूलों को 

गुमसुम चुनते रह जाओगे.


मुझको मोह जोड़ना होगा 

केवल जलती चिंगारी से 

मुझसे संधि नहीं हो पाती 

जीवन की हर लाचारी से. 

मैं तो किसी भँवर के कंधे

चढकर पार उतर जाऊँगा,

तट पर बैठे इसी तरह से 

तुम सिर धुनते रह जाओगे.

(4)

चाँदी की उर्वशी न कर दे~

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चाँदी की उर्वशी न कर दे युग के तप संयम को खंडित

भर कर आग अंक में मुझको सारी रात जागना होगा ।


मैं मर जाता अगर रात भी मिलती नहीं सुबह को खोकर

जीवन का जीना भी क्या है, गीतों का शरणागत होकर,

मन है राजरोग का रोगी, आशा है शव की परिणीता

डूब न जाये वंश प्यास का पनघट मुझे त्यागना होगा ॥


सपनों का अपराध नहीं है, मन को ही भा गयी उदासी

ज्यादा देर किसी नगरी में रुकते नहीं संत सन्यासी,

जो कुछ भी माँगोगे दूँगा ये सपने तो परमहंस हैं

मुझको नंगे पाँव धार पर आँखें मूँद भागना होगा ॥


गागर क्या है - कंठ लगाकर जल को रोक लिया माटी ने

जीवन क्या है - जैसे स्वर को वापिस भेज दिया घाटी ने,

गीतों का दर्पण छोटा है जीवन का आकार बड़ा है

जीवन की खातिर गीतों को अब विस्तार माँगना होगा ॥


चुनना है बस दर्द सुदामा लड़ना है अन्याय कंस से

जीवन मरणासन्न पड़ा है, लालच के विष भरे दंश से,

गीता में जो सत्य लिखा है, वह भी पूरा सत्य नहीं है

चिन्तन की लछ्मन रेखा को थोड़ा आज लाँघना होगा ॥

(5)

सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे 

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आने पर मेरे बिजली-सी कौंधी सिर्फ तुम्हारे दृग में

लगता है जाने पर मेरे सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे !

 

मैं आया तो चारण-जैसा

गाने लगा तुम्हारा आंगन;

हंसता द्वार, चहकती ड्योढ़ी

तुम चुपचाप खड़े किस कारण ?

मुझको द्वारे तक पहुंचाने सब तो आये, तुम्हीं न आए,

लगता है एकाकी पथ पर मेरे साथ तुम्हीं होओगे!


मौन तुम्हारा प्रश्न चिन्ह है, 

पूछ रहे शायद कैसा हूं 

कुछ-कुछ चातक से मिलता हूँ

कुछ कुछ बादल के जैसा हूं; 

मेरा गीत सुन सब जागे, तुमको जैसे नींद आ गई, 

लगता मौन प्रतीक्षा में तुम सारी रात नहीं सोओगे! 


तुमने मुझे अदेखा कर के

संबंधों की बात खोल दी;

सुख के सूरज की आंखों में 

काली काली रात घोल दी;

कल को गर मेरे आंसू की मंदिर में पड़ गई ज़रूरत 

लगता है आंचल को अपने सबसे अधिक तुम ही धोओगे!


परिचय से पहले ही, बोलो, 

उलझे किस ताने बाने में ?

तुम शायद पथ देख रहे थे, 

मुझको देर हुई आने में;

जगभर ने आशीष पठाए, तुमने कोई शब्द न भेजा,

लगता है मन की बगिया में गीतों का बिरवा बोओगे!

✍️  रामावतार त्यागी

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