शुक्रवार, 16 अगस्त 2024

साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय में 11 अगस्त 2024 को हुआ साहित्यिक मिलन कार्यक्रम, अक्षरा साहित्य साधक सम्मान से डॉ मनोज रस्तोगी को किया गया सम्मानित

मुरादाबाद के जीलाल स्ट्रीट स्थित साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय में आयोजित साहित्यिक मिलन कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी को अक्षरा साहित्य साधक सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान मुरादाबाद के साहित्य की समृद्ध धरोहर सहेजने के लिए साहित्यिक संस्था अक्षरा द्वारा प्रदान किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें अंगवस्त्र तथा सम्मान पत्र दिया गया। उपस्थित साहित्यकारों ने कहा शोधालय के माध्यम से डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा मुरादाबाद की दुर्लभ प्राचीन साहित्यिक कृतियों का संरक्षण एवं देश-विदेश में उनका प्रसार-प्रचार करना एक अनूठा कार्य है। यह शोधालय साहित्य के शोधार्थियों के लिए बहु उपयोगी सिद्ध होगा।इस अवसर पर काव्य गोष्ठी का भी आयोजन हुआ।

     कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात शायर एवं जिगर फाउंडेशन के अध्यक्ष मंसूर उस्मानी ने कहा ....

दुश्मनी के लिए सोचना है ग़लत

देर तक सोचिए दोस्ती के लिये

जिस सदी में वफा का चलन ही नहीं

हम बनाए गए उस सदी के लिए

     गीत गजल सोसाइटी के संस्थापक वरिष्ठ शायर डॉ मुजाहिद फराज  का कहना था .... 

आज़ादी-ए- गुलशन को ज़माना हुआ लेकिन

ज़हनों से गुलामी की यह काई नहीं जाती

हर नक़्श मिटा डाला है नफरत के जुनूँ ने

ये कोट, ये पतलून, ये टाई नहीं जाती

     कार्यक्रम का संचालन करते हुए उर्दू साहित्य शोध केंद्र के संस्थापक डॉ मुहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा यह आयोजन मुरादाबाद में हिन्दी और उर्दू साहित्य का अनूठा मिलन है। उन्होंने शहर की साहित्यिक विरासत के संरक्षण की जरूरत पर जोर दिया।

     साहित्यिक मुरादाबाद के संस्थापक और कार्यक्रम संयोजक डॉ मनोज रस्तोगी ने वर्तमान स्थितियों पर कहा ... 

बारिश में खूब नहाना भूल गये बच्चे

कागज की नाव बनाना भूल गये बच्चे

साहित्यिक संस्था अक्षरा के संयोजक चर्चित नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा ...

पिछला सब कुछ भूल जा, मत कर गीली कोर।

क़दम बढ़ा फिर जोश से, नई सुबह की ओर।। 

आँखों से बहने लगी, मूक-बधिर सी धार। 

जब यादों की चिट्ठियांँ, पहुँचीं मन के द्वार।। 

   ऑल इंडिया खानकाही एकता मिशन के प्रवक्ता और उत्तर प्रदेश उर्दू एकेडमी के पूर्व सदस्य सैयद मुहम्मद हाशिम क़ुद्दूसी ने कहा... 

इंसान को इंसान मिटाने पे तुला है

यह कैसा अजब खेल ज़माने में चला है

यह देश है गांधी का यक़ीं यूं नहीं आता

हर हाथ में ख़ंजर है, निगाहों में गला है

   मुरादाबाद लिटरेरी क्लब के संयोजक युवा शायर जिया जमीर का कहना था ... 

ख़ाक थे कहकशां के थे ही नहीं

हम किसी आस्मां के थे ही नहीं

उसने ऐसे किया नज़र अंदाज़

जैसे हम दास्तां के थे ही नहीं

     साहित्यिक संस्था हस्ताक्षर के सह संयोजक चर्चित दोहाकार राजीव प्रखर की अभिव्यक्ति थी... 

मैंने तेरी याद में, ओ मेरे मनमीत

पूजाघर में रख दिए, रचकर अनगिन गीत

क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की आस

बैठी हो जब प्रेम से, अम्मा मेरे पास

  मरदान अली ख़ाँ लाइब्रेरी के संस्थापक युवा शायर फरहत अली खान ने कहा ...

चलो झगड़े पुराने ख़त्म कर लें

नए पौधे पनपना चाहते हैं

पुराने दोस्त मिल बैठे हैं 'फ़रहत'

कोई क़िस्सा पुराना चाहते हैं

इससे पूर्व सभी साहित्यकारों ने साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय में संरक्षित मुरादाबाद के हिन्दी,उर्दू, और अंग्रेजी साहित्य , दुर्लभ पत्र पत्रिकाओं का अवलोकन किया और इस कार्य की सराहना की । मंसूर उस्मानी जी ने अपने द्वारा संपादित पत्रिका ग़ज़ल इंटरनेशनल के चार महत्वपूर्ण अंक और जिया जमीर ने डॉ आजम की कृति आसान अरूज शोधालय को प्रदान की । इस अवसर पर सभी ने रचना पाठ भी किया । शोधालय की ओर से डॉ आसिफ और फरहत अली खान  को स्मृतिशेष डॉ मीना नकवी जी की कृतियां प्रदान की गईं । आभार शिखा रस्तोगी ने व्यक्त किया ।






























































बुधवार, 7 अगस्त 2024

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रो ममता सिंह के चार गीत ....

 


एक....

आज जहाँ पतझड़ है 

कल फिर, आयेगा मधुमास ।


परिवर्तन है नियम सृष्टि का,

 इसको कर स्वीकार। 

संघर्षों से जीवन के तू, 

कभी न जाना हार। 

दूर कुहासा हो जायेगा, 

मन में धर विश्वास।


नयी कोंपलें शाखाओं पर, 

फेंकेंगी मुस्कान। 

भौंरो-कलियों का भी होगा, 

एक बड़ा अवदान। 

छायेगा सूने उपवन में,

 फिर से नव-उल्लास।


घर-घर खेतों-खलिहानों में 

स्वप्न उठेंगे जाग। 

रूप सलोना देख धरा का,

छेड़ेंगे खग राग।

हृदय मयूरा नाचेगा जब, 

प्रियतम होंगे पास।


आज जहाँ पतझड़ है 

कल फिर, आयेगा मधुमास ।। 


दो....

रखनी होगी अमिट तुम्हें ही,

अब अपनी पहचान।


सदियों से इस जग ने तुमको,

केवल अबला माना।

सकल सृष्टि तुमसे ही जन्मी,

फिर भी सहतीं ताना।

अग्नि परीक्षा दोगी कब तक,

खुद को कर बलिदान।


रखनी होगी अमिट तुम्हें ही,

अब अपनी पहचान।


कलियुग के हर पग पर तुमको,

रावण नित्य मिलेंगे।

लिपटे फूलों के चोले में 

काॅंटे खूब खिलेंगे।

करना नहीं कभी समझौता,

खोकर अपना मान।।


रखनी होगी अमिट तुम्हें ही,

अब अपनी पहचान।


माना बड़ी चुनौती है यह,

खुद को साबित करना।

आयें कितने ही दावानल,

नहीं कभी भी डरना।

हिम्मत को चुन कर साथी तुम,

भरना नई उड़ान।।


रखनी होगी अमिट तुम्हें ही,

अब अपनी पहचान।


तीन.....

शब्द सारे जो मुखर थे,

मौन धर अब सो गए ।

साथ छूटा जो तुम्हारा,

हम अकेले हो गए।।


याद हैं हमको तुम्हारी,

आज भी बातें सभी।

भूल सकते हैं कहां हम,

वो मुलाकातें कभी।

है अधूरी ही कहानी,

छोड़कर तुम जो गये।

साथ छूटा जो तुम्हारा,

हम अकेले हो गए।।


दिल की बातें तुम से अब,

फिर कहो कैसे कहें ।

तुम नहीं हो साथ तो ये,

दर्द हम कैसे सहें ।

ढूंढ कर लायें कहां से,

तुम कहां फिर खो गए।

साथ छूटा जो तुम्हारा,

हम अकेले हो गए।।


एक पल को देख लें फिर,

है यही अब  कामना।

मान जाओ दिल न तोड़ो,

मत करो अब तुम मना।

जो न आये तुम मिलन को,

आंसुओं से रो गए।

साथ छूटा जो तुम्हारा,

हम अकेले हो गए।।


शब्द सारे जो मुखर थे,

मौन धर अब सो गए।

साथ छूटा जो तुम्हारा,

हम अकेले हो गए।।


चार...…

ओ मेरे प्यारे सावन तुम,

पास पिया के जाना।

बहुत तड़पती हूॅं मैं उन बिन,

जाकर उन्हें बताना।


जब से वो परदेस गये हैं,

अखियां नीर बहाएं।

हाल हुआ है अब तो ऐसा ,

सखियां मुझे चिढ़ाएं।

खुशियों का जीवन में मेरे,

रीता हुआ ख़ज़ाना।।


ओ मेरे प्यारे सावन तुम,

पास पिया के जाना।

बहुत तड़पती हूॅं मैं उन बिन,

जाकर उन्हें बताना।।


यादों की पगडंडी पर मैं,

हूॅं अब निपट अकेली।

साथ पिया के झूला झूले,

मेरी हरिक सहेली।

बेबस मन का यह सन्देशा,

है उन तक पहुंचाना।


ओ मेरे प्यारे सावन तुम,

पास पिया के जाना।

बहुत तड़पती हूॅं मैं उन बिन,

जाकर उन्हें बताना।।


दूर-दूर से सब के प्रियतम,

लौट घरों को आये।

सांझ सवेरे रस्ता देखूं,

बैचेनी बढ़ जाये।

बस इतनी सी अरज करुं मैं,

साथ पिया को लाना।

  

ओ मेरे प्यारे सावन तुम,

पास पिया के जाना।

बहुत तड़पती हूॅं मैं उन बिन ,

जाकर उन्हें बताना।।


✍️ प्रो. ममता सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार के डी शर्मा (कृष्ण दयाल शर्मा ) की दस रचनाएं....


1. उसकाआदि न मध्य न अन्त

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उसका रूप न रंग न आकार 

निरुपाधि निराकार सर्वाकार 

 वह सर्वदा - सर्वत्र उपस्थित

जग रचना , स्वयं स्व - रचित


सर्वज्ञ व्यापक सर्वशक्तिमान

सूक्ष्म से सूक्ष्म, महान से महान 

उसको खोज रहे योगी -विद्वान 

सकल संसार उसका मकान


सब ही उसके संज्ञा सर्वनाम 

बाँटता निज कोष निरभिमान  

उसके समान न कोई उदार 

न चाहत धन्यवाद न आभार


 वह नित्य निरंतर अनंत

 उसका आदि न मध्य न अन्त 

अपनी रचना में स्वयं समाया 

अज्ञ उसकी माया से भर माया


वह मन बुद्धि चित्त से परे

भक्त उसके स्मरण से तरे

जीव - जीवका पालक रक्षक

विकृत विचार धारा का भक्षक


सृष्टि से वह आनंद वर्षा करता

उसका कोल चक्र सदा चलता 

रहित भूत -भविष्य -वर्तमान 

गोविंद ने दिया नाम भगवान


2..कल्याणकारी गोविन्द गुणगान

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जीवन उद्देश्य नही सुख -भोग 

तन - मन उन्नत करता योग

चंचल इन्द्रियाँ निरंतर भूखी

संयमशील मनुज सदा सुखी


दुखदायी तत्कालीन सुख वृत्ति

 मनोरंजन हेतु पुनः आवृति

सदाचरण का आधार प्रवृत्ति

सतत सुधारना निज प्रकृति


पकड़ना महापुरुषों का संग 

स्वाध्याय करना श्रेष्ठतम ग्रन्थ 

निश्चित चढ़ेगा आत्मा - ज्ञान रंग

सीखेंगे जीना मानवता का ढंग


आवश्यक विशुद्ध अन्तःकरण

काम क्रोध लोभ मोह का हरण

पुनः पुनः परमेश्वर स्मरण

श्री राम द्वारा दशानन मरण


वेद - शास्त्र मे दृढतम विश्वास

सत्य - प्रेम - दया का दिव्य प्रकाश

ज्ञान दीप ही हरता अंधकार

कल्याणकारी मानवता विचार


शरीर उपकरण उपलब्ध 

सतत सराहना निज प्रारब्ध

संतोष आनंद  प्राप्ति का सोपान

कल्याणकारी गोविन्द गुणगान


3.सर्विश जगादो सद्ज्ञान आदित्य

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सतत सच्चा सुधारक साहित्य

तम तिरोहित करता आदित्य

हिमालय में प्रवाहित सरिता

उर सागर से निस्सृत कविता


सदैव करती पावन पवित्र

उन्नायक सुविचार सुचरित्र

मन बुद्धि चित सदा प्रभावित

परिमार्जन अवश्य संभावित


रचनाकार का दर्पण रचना

पूर्णतया अनुवादित कल्पना

मनोरंजन संग आत्म रंजन 

साहित्य द्वारा सर्वेश्वर दर्शन


परमात्मा से उपलब्ध प्रतिभा

शब्द आभूषण सजाते प्रतिमा

प्रकृति पुरुष की सब महिमा

रखना निगम शास्त्र की गरिमा


निश्चित समझना निज दायित्व

अच्युत बताते अर्जुन को कर्तव्य

गोविंद विस्मरण अक्षम्य भूल

रचना में ईश अनुकंपा मूल


सर्वेश जगा दो सद्ज्ञान आदित्य

करा दो कुछ योगदान साहित्य

सदैव उदित रखना सविता

शब्दालंकार से सजाना कविता


4 : अनुभव हो ईश्वरीय स्पंदन 

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मानव न मानव बिन मानवता

नीर  विहीन सरिता न सरिता 

मानव का गुण परोपकारिता 

उद्यम शीलता आत्म निर्भरता 


दिव्य सद्गुरु सर्वहित चिंतन

 प्रेम पूर्वक पर -दुख हरण

सब मे  गोविंद उसका स्मरण

सदा शिक्षाप्रद गीता रामायण 


उनके सिद्धांतों का अनुपालन

अनुपालक  श्रेष्ठ उदाहरण

 निज जीवन कल्याण करण

 अविस्मरणीय उनका मरण 


संयम विहीन मानव न मानव 

उच्छृंखलता  परिभाषा दानव 

परमेश्वर की सर्व व्यापकता 

परिचायक सर्वत्र चेतनता 


संसार में सबका अभिनंदन 

उद्यम पूर्वक हरना क्रन्दन

अनुभव हो ईश्वरीय स्पन्दन 

यही सत्य -ज्ञान आत्म जागाण 


मानव होना अनुपम सोपान

 यहां से संभव पतन उत्थान 

सद्गुण अपनाना अवरोहण

पशुवत जीवन अवतरण"


5 : निज ध्येय  से न होना विचलित 

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रहना  प्रसन्न पाया नरतन

आनंदमय गीत संगीत  नर्तन

मनुज मुदित  देख परिवर्तन

 स्वस्थ रखना उभय तन -मन


दैनिक व्यायाम भास्कर : नमन 

शोभित श्रृंगार कथन - श्रवण 

आहार व्यवहार दोनों मनोरम 

संयम पालन हो अधिकतम


सकल जीवन साधना सदन 

रहना तटस्थ हर्ष - रुदन

जग रंगमंच प्राणी अभिनेता 

सतयुग ,कलयुग  द्वापर त्रेता 


आकर्षण से न होना सम्मोहित 

निज ध्येय से न होना विचलित

मन को सतत रखना केंद्रित 

सत्संग से ज्ञान भास्कर उदित


काल बीत रहा दिवस रजनी 

जीवन क्रीडा मध्य नभ अवनि

इन्द्रियां निरन्तर मांगती भोग

भोग अभ्यस्त मनुज ग्रस्त रोग


नियम -संयम पालन सुखद 

समुचित पथ त्यागना दुखद 

सुख -दुख से श्रेष्ठतर आनन्द 

गोविन्द स्मरण से परमानंद


6 : करुणेश, काटना फन्द ममत्व

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तन उपकरण ध्येय आनंद

उचित पथ उपलब्धि अनंत

कुपथ पसन-गर्त मे गिराता

प्रिया को प्रियतम से न मिलाता 


संसारी पदार्थ आकर्षण माया

अनं :करण पर कुत्सित छाया

दुर्बुद्धि मनुज सदा भरमाया 

मृगमरी चिका से व्यर्थ लुभाया


अमूल्य आयु निरक गंवाई

कोई न सहायक बहन - भाई

मिथ्या जगत मे सत्य पहचानना

सत्संग सद्गुरु शरण अपनाना


संसार आवश्यकता पूर्ति हेतु 

वैराग्य स्मरण कल्याण सेतु

चिंतन -मनन जगाता विवेक 

श्रेयस्कर श्रेय त्यागना निषेध


 निगम शास्त्र समझाते उपाय 

निरंतर भजना नमः शिवाय 

आदर्श पथ दर्शाते नीलकंठ 

उपेक्षा करना आलोचना व्यंग 


त्याग तपस्या से जीवन सफल

भोग संलिप्तता  करती विफल

गोविंद कराना सकल कर्तव्य

करुणेश काटना फंद ममत्व


7 : सर्वोत्तम उपहार प्रसन्नता

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 प्राची मे उदित मुदित भास्कर

 करना स्वागत निद्रा त्यागकर 

होना सचेत लालिमा देखकर 

सदा प्रचुर कृपालु दिनकर


उड़ते विहंग पंख फैलाकर

प्रकटते हर्ष गोविंद गांकर 

प्रवाहित पवन इठलाकर 

कलियाँ हंसती मुख दिखाकर


 नृत्य में मगन भ्रमरावलियाँ 

साथ दे रही संगिनी तितलियाँ

हरित वसुधा बिखरे मोतियाँ

झिल -मिल झिलमिल झाँकियां 


बहती सरिता कल कल गाती

प्रकृति मधुर संगीत सुनाती 

सर्वत्र लहराती विजय केतु

 सहज उपलब्ध आनंद सेतु 


प्रत्येक जीव पशु पक्षी पतंग 

पूरित उत्साह उल्लास उमंग

कर्मठ कृषक भूमि सहलाता 

 धन्यवाद मुद्रा में हल चलाता


सब ओर अनुपम सजीवता 

अनुभव ईश्वरीय भगवत्ता 

सर्वोत्तम उपहार प्रसन्नता 

आनंद से स्पंदन ही सफलता


8: सेवा मात - पिता तुल्य जगत पिता

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कर्म संग स्मरण अभ्यास

पुन :पुन :निश्चित हो प्रयास

कर्म पर ध्यन रखना केंद्रित

चंचल मन न करें विचलित


कुछ काल अवश्य बैठना शांत

जग शोर से दूर चुनना स्थान 

देवालय सरिता -तट एकांत 

दृढतम हो संकल्प, न हों भ्रान्त 


तन मंदिर में ईष्ट उपस्थित 

हो मानसिक पूजा तथा कथित

पंचोपचार पूजा विधि - विधान 

गहनतम ध्यान, सर्वकल्याण 


श्वास -श्वास सदा भजना नाम 

समझना पूजा स्थान तीर्थ धाम 

निश्चित समय इष्ट को अर्पण 

मन से  अर्चना सर्व समर्पण 


चेतन -स्मरण सांसारिक कर्म

निष्ठा पूर्वक निर्वहन ही धर्म 

सत्य प्रेम दया उत्तम सिद्धांत 

नित्यानंद उपलब्ध उपरांत


 जीवन एक प्रभावी सरिता

 सद्गुरु सत्संग सद्ज्ञान सविता 

स्वाध्याय हो रामायण गीता 

सेवा मात - पिता तुल्य परमपिता


9 : श्रेयस्कर भजन अधिकतम 

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विनम्रता से सुलभ महानता

निरंतर अपनाना उदारता

स्वार्थमय सोच अकल्याणकारी 

सराहनीय जीव परोपकारी


सबकी सुनना ,विवेकी बोलना

 कथन से पूर्व अवश्य सोचना

निज ज्ञान किसी पर न थोपना

कदाचारी को समझाना, रोकना


सदा हितकारी बनना जिज्ञासु

 ज्ञानवान बनता ज्ञान पिपासु 

सरिता न दीर्घ जीवी बिन स्रोत

चिंतन मनन से जाग्रत ज्योत 


 रहना तत्पर सर्व - सहायता

 संसाधन प्रदाता  परमपिता 

उपलब्धि पर न करना गर्व 

हानि लाभ गोविंद के हाथ सर्व 


सचेत,ध्यान रहे आयु  अल्पता 

प्रमाद से विनष्ट शक्ति क्षमता 

अवश्य करना योग्यता प्रयोग

 निज जीवन का यही उपयोग


 अग्रज का आदर ,अनुज से  स्नेह 

रखना व्यवहार मधुर  प्रेय 

केवल मनुज तन श्रेष्ठतम

श्रेयस्कर भजन अधिकतम


10: जनक -जननी का अमूल्य ऋण 

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 ईश अनुकंपा प्राप्त नर-तन

 आभार पूर्वक करना नर्तन 

गोविंद जनक - जननी माध्यम 

 उनका महत्तम अधिकतम


 जनक - जननी, ईश उपस्थित

 सकल पदार्थ प्राप्त अयाचित

 संतान के सहायक संरक्षक

 सब गतिविधि के पर्यवेशक 


सतत उपलब्ध सहायतार्थ 

उदारमना निरंतर निस्वार्थ

सराहनीय संतान आज्ञाकारी

सद्गुणी परोपकारी सदाचारी


सदा संवारना निज वर्तमान 

कर्मठ कर्मनिष्ठ विवेकवान 

सदैव सेवक संतान महान

 सहज पथ आरोहण उत्थान


आचरण मनुज की पहचान

 विनम्रता महानता की सोपान 

सत्यवान ,ज्ञानवान ,बुद्धिमान

 भावना में विद्यमान भगवान


 परिवार सद्गुण की पाठशाला 

समाज चरित्र की प्रयोगशाला 

जनक -जननी का अमूल्य ऋण 

गोविंद कृपालु करना अऋण


✍️कृष्ण दयाल शर्मा

लाजपत नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 97515899 80

सोमवार, 5 अगस्त 2024

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम ने चार अगस्त 2024 को आयोजित की मासिक काव्य-गोष्ठी

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की मासिक काव्य-गोष्ठी रविवार चार अगस्त 2024 को मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में हुई‌। 

राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामदत्त द्विवेदी ने कहा ....

मत कहो आकाश में कोहरा तना है। 

यह किसी विरहिणी का आंचल तना है।

 मुख्य अतिथि रघुराज सिंह निश्चल का कहना था ....

नहीं एक भी ऋतु है ऐसी, जिसके लिए अर्चना होती।

 एकमात्र ऋतु पावस ही है, जिसके लिए धरा भी रोती।

  विशिष्ट अतिथि योगेन्द्र वर्मा व्योम ने अपने भावों को शब्द दिये - 

रोज़ाना ही हर सुबह, तलब उठे सौ बार। 

पढ़ा कई दिन से नहीं, मेघों का अख़बार।। 

कहीं धरा सूखी रहे, कहीं पड़े बौछार। 

राजनीति करने लगा, बूँदों का व्यवहार।।

 कार्यक्रम का संचालन करते हुए जितेन्द्र जौली ने समाज को संदेश दिया - 

तम्बाकू का सेवन करके, बहुत लोग मर जाते हैं। 

तम्बाकू से दूर रहेंगे, चलो कसम ये खाते हैं।। 

पदम बेचैन भी अपनी इन पंक्तियों के साथ मुखर हुए - 

गिला तुझसे नहीं रूठ कर जाने वाले,

 तन्हा मैं भी अपने रास्ते पर जाता हूॅं। 

नकुल त्यागी के अनुसार - 

पुरानी दोस्ती हो तो जगत में नाम पाती है। 

मनोज मनु की पंक्तियों ने भी अपनी प्रस्तुति से सभी को आह्लादित करते हुए कहा - 

न जाने कितने हालातों से लड़ कर शक्ल पाती है... 

करो इस दोस्ती की क़द्र, यह यूं ही नहीं मिलती। 

 राजीव प्रखर ने समाजिक परिस्थितियों का सटीक चित्र इस प्रकार खींचा - 

होंठों पर सुर-लहरियाॅं, झूलों में उल्लास।

 मेघा ! ला दे ढूंढ कर, ऐसा सावन मास।। 

अधरों पर महबूब के, आयी जब मुस्कान। 

दिल ने माना पड़ गयी, फिर सावन में जान।। 

 काव्य पाठ करते हुए प्रशांत मिश्र ने कहा - 

मुझे दुनिया की नजर से वो बचाती है, 

अपने मन का भय कहाँ जताती है, 

वो माँ है, अपना दर्द कहाँ बताती है। 

 कार्यक्रम के अंत में राजीव प्रखर के बड़े भ्राता संजीव कुमार सक्सेना के निधन पर दो मिनट का मौन रखते हुए उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की गयी।