एक....
आज जहाँ पतझड़ है
कल फिर, आयेगा मधुमास ।
परिवर्तन है नियम सृष्टि का,
इसको कर स्वीकार।
संघर्षों से जीवन के तू,
कभी न जाना हार।
दूर कुहासा हो जायेगा,
मन में धर विश्वास।
नयी कोंपलें शाखाओं पर,
फेंकेंगी मुस्कान।
भौंरो-कलियों का भी होगा,
एक बड़ा अवदान।
छायेगा सूने उपवन में,
फिर से नव-उल्लास।
घर-घर खेतों-खलिहानों में
स्वप्न उठेंगे जाग।
रूप सलोना देख धरा का,
छेड़ेंगे खग राग।
हृदय मयूरा नाचेगा जब,
प्रियतम होंगे पास।
आज जहाँ पतझड़ है
कल फिर, आयेगा मधुमास ।।
दो....
रखनी होगी अमिट तुम्हें ही,
अब अपनी पहचान।
सदियों से इस जग ने तुमको,
केवल अबला माना।
सकल सृष्टि तुमसे ही जन्मी,
फिर भी सहतीं ताना।
अग्नि परीक्षा दोगी कब तक,
खुद को कर बलिदान।
रखनी होगी अमिट तुम्हें ही,
अब अपनी पहचान।
कलियुग के हर पग पर तुमको,
रावण नित्य मिलेंगे।
लिपटे फूलों के चोले में
काॅंटे खूब खिलेंगे।
करना नहीं कभी समझौता,
खोकर अपना मान।।
रखनी होगी अमिट तुम्हें ही,
अब अपनी पहचान।
माना बड़ी चुनौती है यह,
खुद को साबित करना।
आयें कितने ही दावानल,
नहीं कभी भी डरना।
हिम्मत को चुन कर साथी तुम,
भरना नई उड़ान।।
रखनी होगी अमिट तुम्हें ही,
अब अपनी पहचान।
तीन.....
शब्द सारे जो मुखर थे,
मौन धर अब सो गए ।
साथ छूटा जो तुम्हारा,
हम अकेले हो गए।।
याद हैं हमको तुम्हारी,
आज भी बातें सभी।
भूल सकते हैं कहां हम,
वो मुलाकातें कभी।
है अधूरी ही कहानी,
छोड़कर तुम जो गये।
साथ छूटा जो तुम्हारा,
हम अकेले हो गए।।
दिल की बातें तुम से अब,
फिर कहो कैसे कहें ।
तुम नहीं हो साथ तो ये,
दर्द हम कैसे सहें ।
ढूंढ कर लायें कहां से,
तुम कहां फिर खो गए।
साथ छूटा जो तुम्हारा,
हम अकेले हो गए।।
एक पल को देख लें फिर,
है यही अब कामना।
मान जाओ दिल न तोड़ो,
मत करो अब तुम मना।
जो न आये तुम मिलन को,
आंसुओं से रो गए।
साथ छूटा जो तुम्हारा,
हम अकेले हो गए।।
शब्द सारे जो मुखर थे,
मौन धर अब सो गए।
साथ छूटा जो तुम्हारा,
हम अकेले हो गए।।
चार...…
ओ मेरे प्यारे सावन तुम,
पास पिया के जाना।
बहुत तड़पती हूॅं मैं उन बिन,
जाकर उन्हें बताना।
जब से वो परदेस गये हैं,
अखियां नीर बहाएं।
हाल हुआ है अब तो ऐसा ,
सखियां मुझे चिढ़ाएं।
खुशियों का जीवन में मेरे,
रीता हुआ ख़ज़ाना।।
ओ मेरे प्यारे सावन तुम,
पास पिया के जाना।
बहुत तड़पती हूॅं मैं उन बिन,
जाकर उन्हें बताना।।
यादों की पगडंडी पर मैं,
हूॅं अब निपट अकेली।
साथ पिया के झूला झूले,
मेरी हरिक सहेली।
बेबस मन का यह सन्देशा,
है उन तक पहुंचाना।
ओ मेरे प्यारे सावन तुम,
पास पिया के जाना।
बहुत तड़पती हूॅं मैं उन बिन,
जाकर उन्हें बताना।।
दूर-दूर से सब के प्रियतम,
लौट घरों को आये।
सांझ सवेरे रस्ता देखूं,
बैचेनी बढ़ जाये।
बस इतनी सी अरज करुं मैं,
साथ पिया को लाना।
ओ मेरे प्यारे सावन तुम,
पास पिया के जाना।
बहुत तड़पती हूॅं मैं उन बिन ,
जाकर उन्हें बताना।।
✍️ प्रो. ममता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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