मुरादाबाद के जीलाल स्ट्रीट स्थित साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय में आयोजित साहित्यिक मिलन कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी को अक्षरा साहित्य साधक सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान मुरादाबाद के साहित्य की समृद्ध धरोहर सहेजने के लिए साहित्यिक संस्था अक्षरा द्वारा प्रदान किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें अंगवस्त्र तथा सम्मान पत्र दिया गया। उपस्थित साहित्यकारों ने कहा शोधालय के माध्यम से डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा मुरादाबाद की दुर्लभ प्राचीन साहित्यिक कृतियों का संरक्षण एवं देश-विदेश में उनका प्रसार-प्रचार करना एक अनूठा कार्य है। यह शोधालय साहित्य के शोधार्थियों के लिए बहु उपयोगी सिद्ध होगा।इस अवसर पर काव्य गोष्ठी का भी आयोजन हुआ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात शायर एवं जिगर फाउंडेशन के अध्यक्ष मंसूर उस्मानी ने कहा ....
दुश्मनी के लिए सोचना है ग़लत
देर तक सोचिए दोस्ती के लिये
जिस सदी में वफा का चलन ही नहीं
हम बनाए गए उस सदी के लिए
गीत गजल सोसाइटी के संस्थापक वरिष्ठ शायर डॉ मुजाहिद फराज का कहना था ....
आज़ादी-ए- गुलशन को ज़माना हुआ लेकिन
ज़हनों से गुलामी की यह काई नहीं जाती
हर नक़्श मिटा डाला है नफरत के जुनूँ ने
ये कोट, ये पतलून, ये टाई नहीं जाती
कार्यक्रम का संचालन करते हुए उर्दू साहित्य शोध केंद्र के संस्थापक डॉ मुहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा यह आयोजन मुरादाबाद में हिन्दी और उर्दू साहित्य का अनूठा मिलन है। उन्होंने शहर की साहित्यिक विरासत के संरक्षण की जरूरत पर जोर दिया।
साहित्यिक मुरादाबाद के संस्थापक और कार्यक्रम संयोजक डॉ मनोज रस्तोगी ने वर्तमान स्थितियों पर कहा ...
बारिश में खूब नहाना भूल गये बच्चे
कागज की नाव बनाना भूल गये बच्चे
साहित्यिक संस्था अक्षरा के संयोजक चर्चित नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा ...
पिछला सब कुछ भूल जा, मत कर गीली कोर।
क़दम बढ़ा फिर जोश से, नई सुबह की ओर।।
आँखों से बहने लगी, मूक-बधिर सी धार।
जब यादों की चिट्ठियांँ, पहुँचीं मन के द्वार।।
ऑल इंडिया खानकाही एकता मिशन के प्रवक्ता और उत्तर प्रदेश उर्दू एकेडमी के पूर्व सदस्य सैयद मुहम्मद हाशिम क़ुद्दूसी ने कहा...
इंसान को इंसान मिटाने पे तुला है
यह कैसा अजब खेल ज़माने में चला है
यह देश है गांधी का यक़ीं यूं नहीं आता
हर हाथ में ख़ंजर है, निगाहों में गला है
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब के संयोजक युवा शायर जिया जमीर का कहना था ...
ख़ाक थे कहकशां के थे ही नहीं
हम किसी आस्मां के थे ही नहीं
उसने ऐसे किया नज़र अंदाज़
जैसे हम दास्तां के थे ही नहीं
साहित्यिक संस्था हस्ताक्षर के सह संयोजक चर्चित दोहाकार राजीव प्रखर की अभिव्यक्ति थी...
मैंने तेरी याद में, ओ मेरे मनमीत
पूजाघर में रख दिए, रचकर अनगिन गीत
क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की आस
बैठी हो जब प्रेम से, अम्मा मेरे पास
मरदान अली ख़ाँ लाइब्रेरी के संस्थापक युवा शायर फरहत अली खान ने कहा ...
चलो झगड़े पुराने ख़त्म कर लें
नए पौधे पनपना चाहते हैं
पुराने दोस्त मिल बैठे हैं 'फ़रहत'
कोई क़िस्सा पुराना चाहते हैं
इससे पूर्व सभी साहित्यकारों ने साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय में संरक्षित मुरादाबाद के हिन्दी,उर्दू, और अंग्रेजी साहित्य , दुर्लभ पत्र पत्रिकाओं का अवलोकन किया और इस कार्य की सराहना की । मंसूर उस्मानी जी ने अपने द्वारा संपादित पत्रिका ग़ज़ल इंटरनेशनल के चार महत्वपूर्ण अंक और जिया जमीर ने डॉ आजम की कृति आसान अरूज शोधालय को प्रदान की । इस अवसर पर सभी ने रचना पाठ भी किया । शोधालय की ओर से डॉ आसिफ और फरहत अली खान को स्मृतिशेष डॉ मीना नकवी जी की कृतियां प्रदान की गईं । आभार शिखा रस्तोगी ने व्यक्त किया ।
अभिनंदन
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