शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष राजीव सारस्वत की 8 कविताएं----- ये रचनाएं उनके काव्य संग्रह ' मेरा नमन ' से ली गई हैं । इस संग्रह का प्रकाशन उनके मुंबई के होटल ताज में 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमले में शहीद होने के बाद सन 2009 में हुआ था। संयोग प्रकाशन मुंबई द्वारा प्रकाशित इस संग्रह में उनकी 111 रचनाएं हैं ।












            :::::::::::::प्रस्तुति:::::::::::::::::::

             डॉ मनोज रस्तोगी
             8, जीलाल स्ट्रीट
            मुरादाबाद 244001
            उत्तर प्रदेश, भारत
           मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की नौ लघु कथाएं --- ये लघु कथाएं उनके लघु कथा संग्रह 'सुबह होगी ' से ली गई हैं । यह संग्रह 28 साल पहले सन 1992 में सागर तरंग प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ था । इस संग्रह में उनकी 68 लघु कथाएं हैं । इस कृति की भूमिका डॉ सतीश राज पुष्करणा ने लिखी है ।













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          डॉ मनोज रस्तोगी
           8, जीलाल स्ट्रीट
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मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर (वर्तमान में काशीपुर ,उत्तराखंड निवासी ) के साहित्यकार प्रो.ओम राज की बारह गजलें --- ये ली गईं हैं उनके गजल संग्रह ' आहट है गलियारों में ' से । यह कृति सात साल पहले वर्ष 2013 में गुंजन प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित की गई थी ।















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              डॉ मनोज रस्तोगी
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गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष श्रीकृष्ण टंडन की 11 रचनाएं --- ये रचनाएं ली गई हैं उनके कविता संग्रह ' मन के मीत ' से । यह संग्रह लगभग 34 साल पहले सन 1986 में प्रकाशित हुआ था । इस संग्रह में उनकी 42 रचनाएं हैं ।














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              डॉ मनोज रस्तोगी
               8, जीलाल स्ट्रीट
              मुरादाबाद 244001
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मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल की साहित्यकार डॉ अलका अग्रवाल की गजल -- जन्नत है घर में, तो घर से बाहर क्यों जायें ? जिंदगी है घर, तो मौत से मिलने क्यों जायें?


जन्नत है घर में, तो घर से बाहर क्यों जायें ?
जिंदगी है घर, तो मौत से मिलने क्यों जायें? 

हर चेहरे पर नकाब है, कहाँ छिपा हो कातिल
जहरीली हवा में सांसें गिनने क्यों जायें?

हक़ है तेरे प्यार पर, उनका भी जो जीते हैं संग
बेवजह अपनों के जीवन को दांव पर क्यों लगायें?

यूंही बीमारों से भर गई है दुनिया की महफ़िल
अब उसके कद्रदानों में नाम क्यों लिखायें?

लाखों शिकार कोरोना के, हम बना रहे चुटकुले
दुनिया बन रही शमशान, कुछ तो शर्म दिखायें!


✍️ डा. अलका अग्रवाल
एसोसिएट प्रोफेसर
अंग्रेजी विभाग
एन. के. बी. एम. जी. कालेज
चंदौसी , जिला सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार श्याम सुंदर भाटिया की लघुकथा ---- लॉक डाउन

       

ममा के सांझ से पहले ही बैंक ड्यूटी से घर आने पर गोलू बेइंतहा खुश था... गोलू की ब्रीड को सब फैमिली लविंग के तौर पर जानते हैं...गोलू की बेपनाह खुशी को या तो उसके बाबा या परिजन या माई ...सहजता से समझ सकते हैं या डॉगी लविंग...बार - बार पूछ हिलाना फ्रेंडशिप या हैप्पीनेस का प्रतीक होता है... ये सभी लेब्रा की बॉडी लैंग्वेज को खूब पहचानते हैं... यूनिवर्सिटी क्यों बंद है...दीदी दिल्ली क्यों नहीं गई... मम ही ऑफिस क्यों जाती हैं...ये सारे सवाल उसके लिए बेमानी थे...कोरोना वायरस... जनता कर्फ्यू... लॉक डाउन... नाकेबंदी ... कर्फ्यू...सरीखे कानूनी शब्द अब तक उसकी डिक्शनरी में नहीं थे...बाबा और दीदी 72 घंटे से घर में हैं...मानो साईं राम ने उसके अकेलेपन के दंश को छूमंतर कर दिया है ....राष्ट्र के नाम संदेश सुनकर सभी ने बिना तर्क - वितर्क के संकल्प ले लिया... मानो इस लोकतांत्रिक देश में फिलहाल रुलिंग और अपोजिशन पार्टियों का एक ही एजेंडा है... विजयी भव...  रात के 12 बजे का इंतजार क्यों ...लक्ष्मण रेखा जान गए थे...सो सभी घर के अंदर ही खाना खाने के बाद टहलने लगे... सारे परिजन खामोश थे... लेकिन मम के गोलू...बाबा के कालू...दीदी के गोली की खुशी का ठिकाना न था... ज़ोर... ज़ोर से पूछ हिलाना...कभी किसी के पीछे तो कभी किसी के पीछे चिपकना...तीन साल में उसने पहली बार संग - संग...और लक्ष्मण रेखा लांघते हुए नहीं देखा...                                                                
✍️  श्याम सुंदर भाटिया 
 विभागाध्यक्ष
पत्रकारिता कॉलेज, तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी   मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 7500200085

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कहानी --- जंगल में पारित प्रस्ताव


         जंगल के राजा शेर का दरबार लगा था । हर महीने की पूर्णमासी को जंगल में शेर अपना दरबार लगाता था । इस दिन जंगल के सारे निवासी पशु- पक्षी उपवास रखते थे । शेर भी उपवास रखता था । कोई जानवर किसी दूसरे जानवर को मारकर नहीं खाता था । दूर-दूर से सारे पशु पक्षी दरबार में शामिल होने के लिए आते थे।
           इस बार जब दरबार लगा तो शहर से आई हुई एक चिड़िया ने चहचहाते हुए कहा "महाराज मैं आपको एक खुशखबरी सुनाना चाहती हूँ।"
" स्वागत है ।"-शेर ने कहा ।
             " महाराज !आजकल मनुष्य आपस में ही लड़- मर कर खत्म होते जा रहे हैं ।उनकी आबादी घट रही है ।"
        शेर आग बबूला हो गया । "इसमें नई बात कौन सी है ? मनुष्य तो सैकड़ों हजारों सालों से आपस में लड़ते ही रहते हैं । कभी तलवारों से लड़ते थे। फिर बंदूकों से लड़ने लगे। तोपों से लड़े । एटम बम से लड़ने लगे। उनका तो काम ही लड़ना है । जंगली हम कहलाते हैं । मगर हमसे महाजंगली तो यह शहर में रहने वाले इंसान हैं। "
        " नहीं महाराज ! मैं उस लड़ाई की बात नहीं कर रही हूँ।"-चिड़िया बोली।
    " फिर कौन सी लड़ाई ?"
          "महाराज ! एक अजीब बीमारी इन दिनों मनुष्यों के बीच में आ गई है । आदमी, आदमी को छूता है और इतने भर से वह आदमी मर जाता है। हजारों लोग एक दूसरे को छूने से मरते जा रहे हैं।"
      " क्या कह रही हो तुम ? ऐसा कैसे हो सकता है?  ऐसा तो कभी नहीं हुआ?"
    " महाराज ! मैं यही बात बताना चाहती हूँ।"
      " विस्तार से बताओ चिड़िया रानी ! हम भी तो सुनें कि आखिर शहर में आदमी के साथ क्या हो रहा है ?"
    "महाराज ! एक नई बीमारी आई है। जिसको यह बीमारी लगी , उसने दूसरे आदमियों को छुआ ।तब उनको वह बीमारी लग गई । फिर उन्होंने अन्य आदमियों को छुआ । इस तरह बीमारी फैलती जा रही है। इस समय आदमी, आदमी को छूने से डर रहा है। छुआ और गया ।"
      "हा हा हा ! यह तो बड़ा सुंदर समाचार आया है। आदमी ने हमारे साथ बहुत बुरा किया है । मैं जंगल का राजा हूँ। लेकिन मुझे पकड़कर चिड़ियाघर में आदमियों के मनोरंजन के लिए पिंजरे में कैद करके रख दिया जाता है । लोग मुझे देखने आते हैं और तालियाँ बजाते हैं । सचमुच ऐसा अपमान असह्य होता है !"
    " महाराज आपने सही कहा ! मनुष्य ने मुझे भी पिंजरे में बंद करके अपने घरों में टाँग रखा है । बस हरी मिर्च खिला देते हैं और समझते हैं कि मैं खुश हूँ। वास्तविकता यह है कि मैं रोता हूँ और आजाद होना चाहता हूँ।"- तोते ने अपनी दुख भरी कहानी सुनाई।
      " मछलियों की व्यथा मैं सुनाना चाहता हूँ- बगुले ने बताया "महाराज !इतना प्रदूषण नदियों में कर दिया है मनुष्य ने कि मछलियाँ मरने लगी हैं और नदी का जल अब मछलियों के रहने योग्य नहीं रह गया है। नदियों का जल उद्योगों की गंदगी बहा- बहा कर आदमी ने इतना प्रदूषित कर दिया है कि वह आदमी के स्वयं नहाने योग्य भी नहीं रह गया है । पीने की तो बात ही और है । हमारी मछली बहने उसमें साँस भी नहीं ले पाती हैं।"
    तभी कुछ कौए भी वहाँ आए और कहने लगे "महाराज हमें भी उड़ने में बड़ी परेशानी होती है। वातावरण बहुत दूषित है । साँस कैसे लें ?"
      बिल्ली भी वहाँ मौजूद थी। बिल्ली बोली "मैं तो शहरी जानवर कहलाती हूँ। मेरा तो मनुष्यों के घरों में रोजाना आना- जाना रहता है, लेकिन जब से मनुष्यों को बीमारी लगी है, मुझे बड़ी खुशी हो रही है। कम से कम अब चैन की साँस तो ले पाती हूँ।"
    चील ने कहा "महाराज ! मैंने अपने जीवन में पहली बार हवा को इतना शुद्ध महसूस किया है। मैं तो आसमान में बहुत ऊपर तक उड़ती हूँ। लेकिन कभी भी इतनी साफ हवा मैंने महसूस नहीं की।"
       शेर ने सबकी बातें सुनी और कहा कि इस खुशी के अवसर पर मैं एक प्रस्ताव रखना चाहता हूँ : -
      " आज मनुष्य जाति आपस में ही एक दूसरे को छू- छू कर मौत के घाट उतार रही है । अतः मनुष्य जाति समाप्ति की ओर अग्रसर है। प्रकृति के लिए यह एक सुखदाई समाचार है। इससे नदियाँ, पहाड़, पर्यावरण और सारे पशु पक्षियों को नया जीवन मिलेगा। संपूर्ण धरती जंगलों में बदल जाएगी तथा एक नए आनन्दमय युग का प्रारंभ होगा। हम मनुष्य जाति के नष्ट होने की कामना करते हैं।"
       इसके बाद शेर ने सब की राय ली तो  सबने जोर से तालियाँ बजाकर प्रस्ताव का समर्थन किया । शेर ने प्रस्ताव के पक्ष में अपना हस्ताक्षर अंकित किया । लेकिन उसी समय कबूतर  आगे बढ़कर उस कागज को अपनी चोंच में दबाकर आसमान में उड़ गया।
   शेर गुर्राया बोला ' यह तुमने क्या किया ? "
      कबूतर बोला "मैं मनुष्य को उसकी करनी के बारे में सचेत करने जा रहा हूँ और बताऊँगा कि इन दिनों तुम जैसे प्रकृति के अनुरूप रह रहे हो, भविष्य में भी वैसे ही रहना सीखो । अन्यथा तुम्हारे बारे में संसार के पशु पक्षियों की राय बहुत बुरी है।"

 ✍️  रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
 रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 99 97 61 5451

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की लघुकथा --- खुद्दारी



 आज लाक डाउन को पूरे पंद्रह दिन हो गये थे।रमेश किसी फैक्ट्री में मज़दूर था। महामारी के कारण हुऐ  लाक डाउन से घर में ज़रूरी चीजें तो पहले ही खत्म हो गयीं थीं, पर अब तो फ़ाक़ाकशी की नौबत आ गयी थी। फैक्ट्री मालिक ने भी बची हुई तनख्व़ाह देने से साफ इंकार कर दिया था।कल रमेश जब राशन डीलर पर राशन लेने पहुँचा तो उसने राशन कार्ड फटा हुआ देखकर राशन देने से ही मना कर दिया था।  मास्क लगाकर आज फिर वह राशन पानी के जुगाड़ में गया था। रमेश की पत्नी निशा भूखे बच्चों को बहला रही थी,"पापा आने वाले हैं बेटा....जैसे ही आयेंगे  झटपट खाना बना दूँगी...मेरा बच्चा...रो मत चुप जा ...।"  छोटे बेटे को पुचकारते हुऐ उसकी नज़र  घर की दहलीज़ में कदम रखते हुऐ रमेश के हाथ में खाली थैले पर पड़ी ।निशा ने रमेश से कातर स्वर में पूछा,"क्या हुआ?..मिला नहीं कुछ..!आप तो राशन लेने गये थे न?"  रमेश नज़रें नीची करके न में सर हिलाते हुऐ रुंधे गले से बोला,"मिल तो रहा था...मगर.!!"  "मगर क्या..?... लाये क्यों नहीं..?"निशा ने उसकी ओर प्रश्नवाचक नज़रों से देखते हुए कहा, "राशन भी नहीं मिला आपको...!कल खाने के पैकेट भी  नहीं मिले थे...!दोनो बच्चे सुबह से भूखे हैं... जो  राशन घर में था ,सब खत्म हो गया है..सब लोगों को मिल रहा है..कहाँ खड़े रहते हो..? लाइन में सबसे पीछे रहते हो क्या ?...कैसै माँगते हो? ....जो आपको ही कुछ नहीं मिलता.!"निशा एक साँस में  लगभग रोते हुए कहती चली जा रही थी। "हाँ...हाँ.. नहीं मिला...!!नहीं आता मुझसे माँगना... ।"रमेश रूँआसा हो गया और लगभग चीखते हुऐ बोला,"...मिल रहा था बहुत कुछ मिल रहा था..मगर...मगर  वो लोग साथ में खड़ा करके फोटो...."  कहते हुऐ रमेश सर पकड़कर वहीं फर्श पर बैठ गया और फूटफूट कर रोने लगा और  निशा ....वो तो मानो जड़वत   हो गयी थी ...शायद सोच रही थी...ये क्या किया आपने..!! आपकी  ख़ुद्दारी  आज बच्चों को भूखा ही न .........."

✍️ मीनाक्षी ठाकुर
 मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल की लघुकथा --- देवता


राम राम प्रधान जी, प्रधान की देहरी पर बैठता हुआ रमेश बोला।
राम राम, कहो कैसे आना हुआ, प्रधान ने पूछा।
प्रधान जी, घर में राशन खतम हो गया है, पैसे भी नहीं हैं, इधर लॉकडाउन के कारण मजूरी भी नहीं मिल रही है। अगर मेरे मनरेगा के पैसे आ जाते तो काम चल जाता। पता नहीं मेरे पैसे क्यों नहीं आये, रमेश रिरियाता हुआ बोला।
अच्छा अच्छा देखता हूँ, कहते हुए प्रधान अपनी दराज खोलकर रजिस्टर पलटने लगा।
कुछ देर बाद बोला तुम्हारी एंट्री ब्लॉक में कहीं छूट गयी होगी। मैं करवा दूँगा लेकिन भुगतान तो अगले महीने ही होगा।
अरे प्रधान जी, हम तो भूखे मर जायेंगे, ब्लॉक वालों से कहकर अभी भुगतान करवा दीजिए, रमेश फिर गिड़गिड़ाया।
हम्म, देखो ऐसा है, ब्लॉक वाला बाबू बिना पैसे लिये कोई काम नहीं करता। हो सकता है उसने जानबूझकर तुम्हारी एंट्री न करी हो, इस वक्त तुम मुझसे कुछ पैसे ले जाओ और अपना काम चला लो, अगले महीने पैसे आ जाएंगे तो वापस कर देना। कहते हुए प्रधान जी ने उसे पाँच सौ रुपये दे दिये।
रमेश भी पैसे लेकर प्रधान जी को धन्यवाद देकर चल दिया।
चलते चलते उसके मन में रह रहकर यही विचार आ रहा था कि यदि प्रधान जी ने उसकी मदद न की होती तो मजबूरी में उसे ब्लॉक के बाबू को पैसे देने पड़ते और क्या पता कोई और प्रधान होता तो अपना हिस्सा भी माँगने लगता। बीस दिन की मजदूरी में कट कटा कर दस बारह दिन के ही पैसे हाथ आते।
सरकार तो पूरे पैसे खाते में भेजती है, लेकिन ये लोग पैसे वसूलने का कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं।
प्रधान जी और ब्लॉक बाबू की तुलना करते करते वह बुदबुदा उठा सही बात है यहीं पर देवता भी बसते हैं.और राक्षस भी यहीं बसते है, और उसका ह्रदय प्रधान जी के प्रति श्रद्धा से भर उठा।

श्रीकृष्ण शुक्ल
मुरादाबाद 244001

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा --- जिम्मेदार कौन


      आज स्कूल की छुट्टी जल्दी हो गई थी। माला बस में बैठकर घर वापिस आती थी। रोज की तरह आज भी सर्दी बहुत थी।माला  छुट्टी के बाद जल्दी ही बस में बैठ गई थी। थोड़ी देर बाद अपने गन्तव्य पर पहुंचने पर जब वह बस से उतरी तो उसने देखा कि एक बुजुर्ग सी महिला, जो कि ठीक ठाक से कपड़े पहने हुए थी, बहुत परेशान सी इधर उधर देख रही थी। माला को जब उस बुजुर्ग महिला ने देखा तो वह उसके पास आई, माला थोड़ा असहज हुई। वह महिला उसके पास आकर धीरे से बोली, “बेटा, मेरा पर्स चोरी हो गया है। मेरे पास घर जाने के लिए पैसे नही है।” माला ने सोचा कि ये नया तरीका है पैसे ऐंठने का। वह आगे बढ़ गई, परंतु कहीं न कहीं उसके मन मे यह बात आ रही थी कि कहीं वास्तव में तो उस महिला का पर्स चोरी नहीं हो गया। माला इसी सोच विचार में घर पहुंच गई। तथा फिर अपने रोजमर्रा के कार्य निपटाने में लग गई।
       सुबह जब वह तैयार होकर स्कूल के लिए निकली तो देखा कि बस स्टैंड के पास ही एक जगह बहुत भीड़ लगी थी, लोग आपस मे बात कर रहे थे..बेचारी ठण्ड को सहन नही कर पाई, सर्दी अंदर तक हड्डियों में घुस गई। माला भी थोड़ा डरते सकुचाते हुए उस तरफ जाने लगी। न जाने क्यों उसको सहसा ही कल की घटना याद आ गई कि कहीं वो बुजुर्ग महिला तो.....तभी भीड़ के बीच से अपना चेहरा निकाल कर देखा तो उसके होश उड़ गए, उसका रंग पीला पड़ गया, जैसे अचानक से उसका खून जम गया हो, जब सामने उसने उस महिला को सड़क पर पड़े देखा, क्योंकि वह वही महिला थी जिसने कल उससे मदद की गुहार की थी। दृश्य उसकी आँखों के सामने था एकदम। यह देखकर एकाएक माला की आंखें भर आयी और सोचने लगी कि उसकी इस हालत की जिम्मेदार कौन है..? कहीं वह खुद तो जिम्मेदार नहीं......? नही... !! नही.....!! आखिर जिम्मेदार कौन है.....??
                                      ✍️  प्रीति चौधरी
                                   गजरौला,अमरोहा
                                  मोबाइल  9634395599

मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की लघुकथा --- लॉक डाउन


"बाहर मत जा पागल लॉक डाउन हो गया है मुसीबत खड़ी हो जाएगी....." मैना नन्ही चिड़ी पर जोर-जोर से चिल्लाए जा रही थी।
                              "नहीमाँssssss....आज देखो न आसमान कितना स्वच्छ है, कहीं भी कोई ध्वनिप्रदूषण नही है, कोई धुआं नही है, इंसान तन-मन से कितने अनुशासित हो गए हैं, कोई हम पशु-पक्षियों को मारने की सोच भी नही रहा, आज जी भर के उड़ लेने दो ना माँ, दिल बहुत खुश है ये वातावरण देख के माँ, मैं नही आऊँगी"।
               "अरे ये सुनती तो है नही,अब इस पागल को कौन समझाए के ये इन्सानी लोग हैं भला कब तक एसे रहने वाले हैं हम सब की जान तो तब तक तक ही सलामत है जब तक ये कोरोना.."।

✍️इन्दु रानी

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की कहानी ---दावत


ठाकुर संग्राम सिंह बहुत उदार जमींदार थे।
सारे गांव में उनको बहुत आदर सम्मान मिलता था।संग्राम सिंह जी भी सारे गांव के सुख दुख में विशेष ध्यान रखते।

उसी गांव के बाहर कुछ दिन से एक गरीब परिवार आकर ,झोंपडी बना कर रह रहा है ,पता नहीं कहाँ से किन्तु बहुत दयनीय अवस्था मे थे सब।
परिवार में एक बीमार आदमी रग्घू उसकी पत्नी रधिया , दो बेटियां छुटकी और झुमकी।
बेचारी रधिया गांव के कूड़े से प्लास्टिक धातु ओर अन्य बेचने योग्य बस्तुएं बीन कर कबाड़ी को बेचती थी।
बामुश्किल एक समय का बाजरा, जुआर अथवा संबई कोदो जुटा पाती और उसे उबालकर पीकर सभी परिवार सो जाता।
बच्चों ने कभी पकवानों के नाम भी नहीं सुने थे ,चखने की तो बात ही स्वप्न थी।
आज संग्राम सिंह जी के घर उनका वंश दीप जन्मा था उनका पोता।
उसके जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में उन्होंने सारे गांव को दावत दी थी।
उन्होंने वारी(न्योता देने वाला) से कहा था कि, ध्यान रहे आज गांव में किसी के भी घर चूल्हा न जले सब हमारे घर ही भोजन करेंगे।
तो वारी इस परिवार में भी न्योता दे आया।
दावत का नाम भी बेचारे बच्चों ने कभी नही सुना था, अतः उन्होंने सवाल पूछ पूछ रधिया को हलकान कर दिया,,,,

अम्मा, यो दावत क्या होवे है? छोटी छुटकी ने पूछा।
अम्मा लोग कहते हैं हुँआ पकवान बनेगा ,,यो पकवान क्या होवे है ,,?
झुमकी ने दूसरी तरफ से उसका आँचल खींचा।
दावत में बहोत सारा खाना बनेगा जितना मन करे खाओ कोई रोकेगा नई लल्ली।
रधिया ने जबाब दिया,, पर हमारी दावत कैसे कर दी जमींदार ने।
अर्रे अम्मा सारा गाम उनके घर जावेगा खाने हम तो जरुरी जानगे अम्मा ।
अम्मा पकवान बहोत मीठा होवे है का?
गुड़ से भी जादा मिट्ठा?? झुमकी ने चहक कर पूछा।
उन वेचारे बच्चों ने लड्डू पूड़ी रायता के नाम भी नहीं सुने थे।

अगले दिन डरते डरते रधिया दोनो बच्चियों को लेकर दावत में गई और एक कोने में ज़मीन पर बैठ गई ।

तभी संग्राम सिंह उधर आये उन्हें यूं नीचे बैठे देख बोले अरे आप लोग ऐंसे कैसे बैठ गए??
रधिया बेचारी डर गई कि कहीं जमींदार उसे घुड़क कर भगा न दे।
वह अपने फटे मैले कपड़े समेटते हुए आदर से उन्हें नमस्ते करके बोली ,मालिक कोनो भूल हुई गई हो तो माफ करदो।
आपका आदमी दावत कर आया था तो,,,, कह कर बड़ी कातर दृष्टि से उनकी ओर देखने लगी।
अरे नही कोई भूल नहीं हुई बेटा लेकिन यूं सबसे अलग ज़मीन पर कियूं??
उधर बिछावन पर बैठ कर आराम से खाना खाओ।
और कोई रह तो नही गया घर?
मालिक इनके बापू हैं बीमार हैं तो,,,,, रधिया रोनी सी हो गई।
ठीक है खाना खाकर उनके लिए बंधवा लेना ।

ठीक है मालिक आपका जस बना रहे, कह कर रधिया सबके साथ खाना खाने बैठ गई,

पत्तल में दो सब्जी पूड़ी दोने में रायता और लड्डू परोसे गए।

झुमकी ने लड्डू हाथ मे लेकर फिर राधिया से पूछा यो के है अम्मा।??
चुप कर खाले लड्डू है।
पहले बाकी सब चीज़े खा इसे बाद में खाइयो यो मीठा है खाने के बाद खाया जाबे है।
सब खाना खाने लगे। बच्चीयों ने ऐंसे पकवान कभी नही खाये थे अतः वह जल्दी जल्दी पूड़ी तोड़ने लगीं।

उनके पीछे बैठा कोई कह रहा था ,,
साहब जमींदार ने इतना सब गांव नोत दिया और खाने में कंजूसी कर गया, सब्जी में मसाला पता नहीं लग रहा और लड्डू इतना मीठा की एक में ही मन भर जाए।
खर्च बचाने के लिए स्वाद से समझौता कर लिया ठाकुर ने।

इधर छुटकी रधिया से कह रही थी ,,
अम्मा लड्डू इतने बढिया इतने मीठे होबे है।
गुड़ से भी अच्छे और पूड़ी कितनी स्वाद, अम्मा जमींदार के घर रोज़ पोता कियूं नही पैदा होतता।

रोज़ कियूं?? रधिया ने मुस्कुरा कर पूछा।

अम्मा रोज़ होगा तो रोज दावत मिलेगी ना।

अरे तो रोज़ किसी के घर बच्चा थोड़ो होवे है ,झुमकी ने अपना मासूम ज्ञान बखाना।

तो अम्मा ओर दावत कब कब होवे है??

जब कोई खुशि होबे है किसी के घर।

छुटकी और झुमकी एक साथ आंख बंद कर हाथ जोड़ बैठ गईं।

अरे क्या करने लगीं तुम दोनों।
अम्मा भगवान से दुआ मना रई हैं कि, जमींदार जी के घर रोज़ कोई ना कोई खुशी आवे ओर हमे रोज़ ऐंसे अच्छी दावत खाने कु मिले।
ये सुनकर रधिया ने भी ऊपर की ओर हाथ जोड़ कर सर झुका लिया।

संग्राम सिंह जी दोनो ओर की बात सुन रहे थे और सोच रहे थे  कि असली दावत किसकी हुई।
दावत के बाद संग्राम सिंह जी ने रधिया को अगले दिन घर आकर मिलने को कहा।
अगले दिन जब रधिया हवेली पर आई तो उन्होंने उस से पूछा ,, कियूं रधिया अपनी मालकिन की सेवा करेगी ??
बदले में खाना कपड़े बच्चियों की पढ़ाई के साथ एक हज़ार रुपये भी मिलेंगे।
बदले में घर की साफ सफाई और अपनी मालकिन की सेवा।
ये सुनते ही रधिया उनके पैरों में पड़ गई,, मालिक ईश्वर आपका भला करे सारे सुख पहले आपके कदम चूमे।
काम कब से शुरू करना है मालिक।
अभी से। संग्राम सिंह ने संक्षिप्त उत्तर दिया ।
और राधिया ने फिर ऊपर की ओर हाथ जोड़ कर सिर झुका लिया।
और मन ही मन कहने लगी।
हे ईश्वर! आज हुई मेरी असली दावत।।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर"
रतुपुरा, ठाकुरद्वारा 244601
जिला- मुरादाबाद
उत्तरप्रदेश, भारत
Mobie-9045548008

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा --- वक्त


















  नाजिम रोते -रोते स्कूल की प्रधानाचार्य के पास पहुंचा और कहने लगा मैडम यदि मैंने आपकी बात मान ली होती तो आज मैं भी हाई स्कूल पास होता ।परंतु आपकी बात ना मान कर मुझे बहुत दुख हो रहा है ।.....नाजिम कक्षा 10 का विधार्थी था पढ़ने में बेहद कमजोर था ,परंतु विद्यालय की प्रधानाचार्या ऐसे बच्चों पर विशेष ध्यान देकर उन्हें अलग से तैयारी करा कर परीक्षा में सम्मिलित कराती थी जिससे कि वह परीक्षा में पास हो सके।परन्तु  नाजिम का मन पढ़ाई में नहीं लगता था। बार-बार कहने के बाद भी वो ना स्कूल आता था और ना ही पढ़ता था । थक -हार कर स्कूल से उसका नाम काटना पड़ा। परंतु जब आज  कोरोना महामारी के कारण  हाईस्कूल के परीक्षाफल में सभी को उत्तीर्ण कर दिया गया है।  स्कूल के सभी साथियों को पास देख कर वह अपने किये पर वह बहुत पछता रहा है........

✍️ स्वदेश सिंह
 सिविल लाइन्स
मुरादाबाद 244001
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मुरादाबाद के साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की कहानी ---अलविदा


सुशांत चौधरी शहर के एक मशहूर डाक्टर थे । लॉक डाउन में भी सुबह दस बजे से 2:00 बजे तक और शाम को 6:00 बजे से रात 10:00 बजे तक पहले की तरह अपने क्लीनिक आते जाते थे । बहुत हंसमुख मिलनसार और समाज सेवा में निरंतर योगदान देने वाले डॉक्टर को शहर के सभी लोग पसंद करते थे, उनकी प्रशासनिक अधिकारियों में भी  खासी पहचान थी । कोरोना के खिलाफ जंग में उन्होंने 50 लाख रुपए का योगदान पीएम केयर्स फंड में भी दिया था । एकदम स्वस्थ थे,ना डायबिटीज ना दिल या और कोई और बीमारी, पूरी तरह फिट और अपने जीवन से संतुष्ट नज़र आते थे । कल रात 10 बजे के लगभग डॉक्टर साहब अपने घर आए, रोज की तरह खाना खाया,थोड़ी देर घर के लॉन में अपने प्यारे कुत्ते टाइगर के साथ टहले,पत्नी और बच्चों के साथ टीवी देखा और सो गए । सुबह जब सोकर उठे तो उन्हें हल्का सा बुखार महसूस हुआ, लेकिन वो नहा धोकर तैयार हुए नाश्ता किया और बिना किसी को अपने बुखार के बारे में बताए क्लीनिक चले गए । क्लीनिक पर जब बुखार ज्यादा बढ़ा तो वह घर नहीं गए और अपने रैस्ट रूम में ही आराम करने लगे, बुखा़र तेज होता रहा और उन्हें शाम तक तेज बुखार के साथ-साथ कोरोना सारे लक्षण दिखायी देने लगे । डॉ.साहब को घबराहट हुई उन्होंने घर पत्नी को फोन कर दिया । थोड़ी देर में ही परिवार के सारे सदस्य क्लिनिक पर आ गए । अभी तक उन्होंने अपना टेस्ट नहीं कराया था । उन्हें तेज बुखार के साथ-साथ सांस लेने में परेशानी,सूखी खांसी और गले में बेइंतहा दर्द का सुनकर सारे घरवालों के होश उड़ गए । उन्हें कोरोना संक्रमण का शक होने लगा, टीवी पर कई डॉक्टरों को कोरोना होने की सूचना वह कई बार देख चुके थे । परिवार के सदस्यों के चेहरों पर कोरोना का खौफ़ साफ़ दिखाई पड़ रहा था । घर पहुंचकर आनन-फानन में उनको घर में बने सर्वेंट क्वार्टर में शिफ्ट कर दिया गया । सारे परिवार वाले यहां तक कि नौकर चाकर भी डॉ.साहब से दूर होते चले गए, उनके साथ सर्वेंट क्वार्टर में कोई था तो केवल तनहाई और उनका पालतू कुत्ता *टाइगर* । और यह वही कुत्ता था,जिसे वह कुछ साल पहले सड़क से घायल अवस्था में सड़क से उठाकर लाये थे, जिसका उन्होंने स्वयं इलाज किया था, उन्होंने इसका नाम भी खुद ही रखा था टाइगर । उन्होंने उसे अपने बच्चे की ही तरह पाला था । वो उस के साथ खेलते, उसके साथ टहलते, टाइगर भी उन्हें बहुत प्यार करता था । सर्वेंट क्वार्टर में अब केवल डॉ.साहब,उनकी बेबसी,उनकी मजबूरी और उनकी तन्हाई के साथ उनका प्यारा टाइगर ही उनका साथी था । डॉ.साहब का एक बेटा उसकी बहू तथा एक बेटी थी,पत्नी सहित उन तीनों ने भी उनसे दूरी बना ली थी, घर के दोनों नौकर व नौकरानी उनके पास तक भी नहीं आ रहे थे । यहां तक कि पोते और पोती को भी उनके पास जाने से मना कर दिया गया था ।

प्रशासन द्वारा जारी किये गये नंबर पर फोन करके सूचना दे दी गयी थी । मौहल्ले में भी सबको सूचना हो चुकी थी,लेकिन कोई उनसे मिलने नहीं आया । सिवाए पड़ोस की सरला आंटी के, जो साड़ी के पल्ले से मुँह लपेटे हुए, हाथ में छड़ी लिये आईं और रोने लगीं, उन्होंने सुशांत चौधरी की पत्नी से कहा "अरे कोई इन्हें कुछ खिला तो दो, पता नहीं फिर यह मौका मिले ना मिले, उन्होंने डॉ.साहब की बेटी की तरफ देखते हुए कहा,अरे उनके पास दूर से ही खाना,वाना सरका दो, अस्पताल वाले तो इन्हें भूखा ही ले जाएँगे, वहां पता नहीं खाने को भी देंगे या नहीं ...

सब एक दूसरे का मुंह देख रहे थे,सब यह सोच रहे थे कि उनको खाना देनें के लिये कौन जाए । टीवी पर देख देख कर सभी परिवार वाले कोरोना से अनभिज्ञ नहीं थे । तब कहीं कहीं जाकर खाने की थाली बहू ने लाकर बेटी को और बेटी ने खाने की थाली अपनी मां को पकड़ा दी,थाली पकड़ते ही डॉक्टरनी के हाथ काँपने लगे ,पैर मानो खूँटे से बाँध दिये गए हों, उसकी खाना लेकर सर्वेंट क्वार्टर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी । पूरे घर में शोक का माहौल था । घर के बाहर दर्जनों पत्रकार और टीवी वाले घर में घुसने की कोशिश कर रहे थे । जिन्हें डॉक्टर साहब का बेटा बमुश्किल रोकने का प्रयास कर रहा था । डॉक्टरनी की यह हालत देखकर उसकी पड़ोसन सरला आंटी ने जोर से चिल्लाकर कहा "अरी तेरा तो पति है तू भी ........। उन्होंने डांटते हुए कहा,चल मास्क लगाकर, हाथ में ग्लव्स पहनकर चली जा और दूर से थाली सरका दे । वो अपने आप उठाकर खा लेंगे " । सारा माजरा सुशांत चौधरी ‌सर्वेंट क्वार्टर में बिस्तर पर लेटे हुए देख रहे थे, सोच रहे थे कि वह परिवार वाले जिसके लिए उन्होंने ना दिन देखा ना रात,कभी अपने दर्द की चिंता नहीं की,कभी अपनी जरूरतों,अपनी इच्छाओं को ऊपर नहीं रखा और उनके लिए जीवन का हर सुख देने का प्रयास किया । आज वह सारे उस से मुंह मोड़ रहे हैं । उनकी आँखें गीली हो रहीं थीं, जिन्हें वह निरंतर छुपानेे का प्रयास कर रहे थे । उन्होंने खुद ही काँपते होठों से कहा कि "कोई मेरे पास ना आये तो बेहतर है,मुझे ना भूख है ना प्यास । वह बुदबुदाते जा रहे थे, कोई कमी रह गई हो तो मुझे माफ कर देना " ।
तभी सरकारी एम्बुलेंस आ जाती है और स्वास्थ्य कर्मी उनसे एम्बुलेंस में बैठने के लिये कहते हैं । सुशांत चौधरी घर के बाहर आकर एक बार पलटकर अपने घर की ओर निराशा भरी नज़रों से अपने सपनों के घर को,और दूर खड़े अपने परिवारजनों को देखते हैं । उनकी जीवन संगिनी,उनका बेटा, बेटी, बहू, पोता और पोती सभी मास्क लगाए हुए लोन में खड़े हुए उन्हें जाते हुए देख रहे हैं । सब उन्हें दूर से हाथ हिला कर विदा कर रहे हैं,पत्नी अपने दोनों हाथ जोड़े हुए एक मूर्ति के समान खड़ी है ।

सुशांत चौधरी के दिमाग में अपनी बीमारी नहींं,बल्कि अपनी जिंदगी का गुजारा हुआ वक्त,घरवालों के साथ बिताए गए पल जीवन चक्र की एक एक घटना विचारों के समंदर की तरह दिल में उमड़ रही थी । जब वह एंबुलेंस में बैठ गए तब उन्हें अपनी पत्नी की चीख सुनाई दी, उन्हें ऐसा महसूस हुआ मानो कि उस चीख़ ने उसे हमेशा के लिए सबसे जुदा कर दिया है । शायद उसे उसके जीवन ने ही अलविदा कह दिया है ।

डॉ.साहब की आँखों में रुका हुआ आंसुओं का सैलाब बाहर निकल गया । वह एंबुलेंस से उतरे उन्होंने बैठकर अपने घर की देहरी को चूम लिया और वापस जाकर एम्बुलेंस में बैठ गये । उनकी बहू ने तुरंत पानी और डिटोल से भरी बाल्टी घर की उस देहरी पर डाल  दी,जिसको चूमकर वह एम्बुलेंस में बैठे थे ।

इसे कोरोना से बचाव का प्रयास कहो, मजबूरी कहो,अपने जीवन की रक्षा कहो, या परिवार के मुखिया का तिरस्कार कहो, लेकिन ऐसे दृश्य कि कल्पना कोई नहीं करना चाहता । दूर खड़ा बेचारा टाइगर भी यह सब देख रहा था और रो भी रहा था । जैसे ही एंबुलेंस चली,वह बेजुबान जानवर,वह कुत्ता, डॉ.साहब का प्यारा टाइगर अकेला उसी एम्बुलेंस के पीछे - पीछे दौड़ने लगा,वह भी एंबुलेंस के  साथ ही अस्पताल पहुंच गया ।

सुशांत चौधरी को 14 दिन तक अस्पताल में रहना पड़ा । उनकी सभी जाँचें सामान्य थीं । 14 दिन बाद उन्हें पूर्णतः स्वस्थ घोषित करते हुए उनके परिवार वालों को सूचना दे दी गई । आज अस्पताल से उनकी छुट्टी कर दी गयी । जब वह अस्पताल से बाहर निकले तो उन्हें अपने घर वाला कोई दिखाई नहीं दिया, लेकिन उनको अस्पताल के गेट पर उनका प्यारा कुत्ता टाईगर बैठा दिखाई दिया । जो 14 दिन तक लगातार गेट के बाहर भूखा प्यासा रह कर अपने मालिक का इंतजार कर रहा था । डॉ. साहब को देखकर कुत्ता उनकी तरफ दौड़ पड़ा और उनके पैरों में लोटने लगा,डॉ. साहब ने भी उस को अपने बच्चे की तरह अपनी बाहों में भर लिया । ‌दोनों एक दूसरे से लिपट गए और एक दूसरे को प्यार करने लगे । दोनों की आंखों से आंसुओं का सैलाब बह रहा था ।

जब तक उनकी पत्नी,बेटा,बेटी की लग्ज़री कार उन्हें लेने आती, उससे पहले ही डॉक्टर सुशांत चौधरी अपने कुत्ते टाइगर को साथ लेकर किसी अज्ञात स्थान की ओर निकल गए । उसके बाद वो कभी शहर में दिखाई नहीं दिए । लेकिन उनकी गुमशुदगी की सूचना समाचार पत्रों के साथ साथ टीवी पर भी प्रसारित हो रही थी, सूचना के अनुसार डॉ.सुशांत चौधरी की खबर देने वाले को 50 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की गई थी ।

✍️मुजाहिद चौधरी एडवोकेट
हसनपुर, अमरोहा

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा -- लाइन


"बड़ी मुसीबत है। इतनी देर हो गयी लाइन में लगे हुए, पता नहीं नंबर कितनी देर में आयेगा",
फॉर्म जमा करने के लिए लाइन में बहुत समय से खड़ा संजय बौखलाकर बुदबुदाया।
इसी बौखलाहट में उसने अपना सिर घुमाकर देखा कि उसके पीछे भी लाइन काफी दूर तक जा रही थी।
यह देखते ही संजय की बौखलाहट संतोष में बदलने लगी थी। अब वह आराम से खड़ा अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगा था।

✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत