गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की लघुकथा --- खुद्दारी



 आज लाक डाउन को पूरे पंद्रह दिन हो गये थे।रमेश किसी फैक्ट्री में मज़दूर था। महामारी के कारण हुऐ  लाक डाउन से घर में ज़रूरी चीजें तो पहले ही खत्म हो गयीं थीं, पर अब तो फ़ाक़ाकशी की नौबत आ गयी थी। फैक्ट्री मालिक ने भी बची हुई तनख्व़ाह देने से साफ इंकार कर दिया था।कल रमेश जब राशन डीलर पर राशन लेने पहुँचा तो उसने राशन कार्ड फटा हुआ देखकर राशन देने से ही मना कर दिया था।  मास्क लगाकर आज फिर वह राशन पानी के जुगाड़ में गया था। रमेश की पत्नी निशा भूखे बच्चों को बहला रही थी,"पापा आने वाले हैं बेटा....जैसे ही आयेंगे  झटपट खाना बना दूँगी...मेरा बच्चा...रो मत चुप जा ...।"  छोटे बेटे को पुचकारते हुऐ उसकी नज़र  घर की दहलीज़ में कदम रखते हुऐ रमेश के हाथ में खाली थैले पर पड़ी ।निशा ने रमेश से कातर स्वर में पूछा,"क्या हुआ?..मिला नहीं कुछ..!आप तो राशन लेने गये थे न?"  रमेश नज़रें नीची करके न में सर हिलाते हुऐ रुंधे गले से बोला,"मिल तो रहा था...मगर.!!"  "मगर क्या..?... लाये क्यों नहीं..?"निशा ने उसकी ओर प्रश्नवाचक नज़रों से देखते हुए कहा, "राशन भी नहीं मिला आपको...!कल खाने के पैकेट भी  नहीं मिले थे...!दोनो बच्चे सुबह से भूखे हैं... जो  राशन घर में था ,सब खत्म हो गया है..सब लोगों को मिल रहा है..कहाँ खड़े रहते हो..? लाइन में सबसे पीछे रहते हो क्या ?...कैसै माँगते हो? ....जो आपको ही कुछ नहीं मिलता.!"निशा एक साँस में  लगभग रोते हुए कहती चली जा रही थी। "हाँ...हाँ.. नहीं मिला...!!नहीं आता मुझसे माँगना... ।"रमेश रूँआसा हो गया और लगभग चीखते हुऐ बोला,"...मिल रहा था बहुत कुछ मिल रहा था..मगर...मगर  वो लोग साथ में खड़ा करके फोटो...."  कहते हुऐ रमेश सर पकड़कर वहीं फर्श पर बैठ गया और फूटफूट कर रोने लगा और  निशा ....वो तो मानो जड़वत   हो गयी थी ...शायद सोच रही थी...ये क्या किया आपने..!! आपकी  ख़ुद्दारी  आज बच्चों को भूखा ही न .........."

✍️ मीनाक्षी ठाकुर
 मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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