राम राम प्रधान जी, प्रधान की देहरी पर बैठता हुआ रमेश बोला।
राम राम, कहो कैसे आना हुआ, प्रधान ने पूछा।
प्रधान जी, घर में राशन खतम हो गया है, पैसे भी नहीं हैं, इधर लॉकडाउन के कारण मजूरी भी नहीं मिल रही है। अगर मेरे मनरेगा के पैसे आ जाते तो काम चल जाता। पता नहीं मेरे पैसे क्यों नहीं आये, रमेश रिरियाता हुआ बोला।
अच्छा अच्छा देखता हूँ, कहते हुए प्रधान अपनी दराज खोलकर रजिस्टर पलटने लगा।
कुछ देर बाद बोला तुम्हारी एंट्री ब्लॉक में कहीं छूट गयी होगी। मैं करवा दूँगा लेकिन भुगतान तो अगले महीने ही होगा।
अरे प्रधान जी, हम तो भूखे मर जायेंगे, ब्लॉक वालों से कहकर अभी भुगतान करवा दीजिए, रमेश फिर गिड़गिड़ाया।
हम्म, देखो ऐसा है, ब्लॉक वाला बाबू बिना पैसे लिये कोई काम नहीं करता। हो सकता है उसने जानबूझकर तुम्हारी एंट्री न करी हो, इस वक्त तुम मुझसे कुछ पैसे ले जाओ और अपना काम चला लो, अगले महीने पैसे आ जाएंगे तो वापस कर देना। कहते हुए प्रधान जी ने उसे पाँच सौ रुपये दे दिये।
रमेश भी पैसे लेकर प्रधान जी को धन्यवाद देकर चल दिया।
चलते चलते उसके मन में रह रहकर यही विचार आ रहा था कि यदि प्रधान जी ने उसकी मदद न की होती तो मजबूरी में उसे ब्लॉक के बाबू को पैसे देने पड़ते और क्या पता कोई और प्रधान होता तो अपना हिस्सा भी माँगने लगता। बीस दिन की मजदूरी में कट कटा कर दस बारह दिन के ही पैसे हाथ आते।
सरकार तो पूरे पैसे खाते में भेजती है, लेकिन ये लोग पैसे वसूलने का कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं।
प्रधान जी और ब्लॉक बाबू की तुलना करते करते वह बुदबुदा उठा सही बात है यहीं पर देवता भी बसते हैं.और राक्षस भी यहीं बसते है, और उसका ह्रदय प्रधान जी के प्रति श्रद्धा से भर उठा।
श्रीकृष्ण शुक्ल
मुरादाबाद 244001
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई
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