सोमवार, 16 सितंबर 2024

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अंकन नवोदित साहित्यकार मंच की ओर से 15 सितंबर 2024 को हिंदी पखवाड़ा के उपलक्ष्य में काव्य गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अंकन नवोदित साहित्यकार मंच द्वारा रविवार 15 सितंबर 2024 को स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी भवन कम्पनी बाग  मुरादाबाद में हिंदी पखवाड़ा के उपलक्ष्य में काव्य गोष्ठी  का आयोजन किया गया जिसमें साहित्यकारों ने हिंदी की महत्ता पर  काव्य पाठ किया। इस अवसर पर तीन छात्राओं को पुरस्कृत भी किया गया।

शुभम कश्यप द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वन्दना से आरंभ कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार केपी सिंह सरल ने कहा .....

रूठ गयी कविता सकल रूठ गये हैं भाव

अलंकार रस छंद सब बन बैठे हैं ख्बाब।

मुख्य अतिथि डॉ. मनोज रस्तोगी ने कहा .....

मॉम-डैड कहने का चला चलन जबसे,

चरणों में शीश नवाना भूल गए बच्चे।

विशिष्ट अतिथि डॉ. स्वदेश सिंह ने कहा ....

हिंदी में करें नमस्कार ।

हिंदी में छुपे हैं संस्कार । 

कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ प्रीति हुंकार ने कहा ....

जग के आंगन आज महकती 

फुलवारी सी हिंदी है ।

डॉ.पूनम गुप्ता ने कहा ..

 हिंदी है भाषाओं की आत्मा ।"

कवयित्री इंदू रानी ने हिंदी की  महत्ता पर छंद पढे

शुभम कश्यप का कहना था ....

"हर एक कक्षा में लोगों लाज़िमी हिंदी

हमारे देश के लोगों की है लिपि हिंदी"

डॉ. आज़म बुराक़ ने कहा...

"मैं दिल को थाम के महफ़िल में आ गया लेकिन!

मेरी निगाह उसी बेवफा पे ठहरी है।"

फरहत अली फरहत ने कहा.....

सोचे समझे बिना कभी कोई

बात मुंह से नहीं किया कीजे!

माहीन खान ने कहा....

"समझ नहीं क्यों आता है ।

हिंदी भाषाओं की माता है ।

अंशा ने कहा....

सब भाषाओं का मान करें । 

हम हिंदी का सम्मान करें ।

शायला नूर ने कहा.... 

गुरुवर मेरे मुझे ज्ञान दे 

पथ के अंध मिटा देना। 

इंदु रानी ने सभी का आभार व्यक्त किया। 



































रविवार, 15 सितंबर 2024

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति ने 14 सितंबर 2024 को हिन्दी दिवस पर मनोज मनु को किया सम्मानित

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से हिन्दी दिवस 14 सितंबर 2024, शनिवार को श्री जंभेश्वर धर्मशाला में आयोजित समारोह में साहित्यकार मनोज मनु को सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें ग्यारह सौ रुपए की सम्मान राशि, रुद्राक्ष की माला, सम्मानपत्र और अंगवस्त्र प्रदान किया गया। 

 राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना से आरंभ कवि गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए योगेन्द्रपाल विश्नोई ने कहा ....

"लो पूर्ण हुई जीवन यात्रा इसमें कुछ शेष विशेष नहीं! 

अब भगवान् के घर को जाना है,रहा ये अपना देश नहीं"।

  मुख्य अतिथि के रूप में डॉ महेश दिवाकर का कहना था .....

हिन्दी जीवन प्राण है, भारत की पहचान।

हिन्दी हिन्दुस्तान की संस्कृति का सम्मान।।

   विशिष्ट अतिथि रघुराज सिंह 'निश्चल' की व्यथा थी .....

"हिन्दी है हमारी माँ हिन्दी से पले हैं हम।

यह बात नहीं समझी हिन्दी के ही लालों ने।।

संचालक अशोक विद्रोही ने हिन्दी प्रेम के भाव इस प्रकार व्यक्त किये.....

राष्ट्रभाषा बन जाय हिन्दी, 

भारत माँ का हो सम्मान। 

सारे जग में फिर से गूंजे, 

हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान! 

सम्मानित साहित्यकार मनोज वर्मा 'मनु' ने अपने उदगार इस प्रकार व्यक्त किए .....

"हिन्दी यदि पाती रहे जन मन में आकार। 

निज भाषा उत्थान के सपने हों साकार।।" 

अशोक विश्नोई ने कहा- 

भारत की भाषा हिन्दी है।

जन जन की आशा हिन्दी है। 

यह नहीं मिटाए  मिट सकती 

यह जननी भाल की बिंदी है। 

वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने पढा़.....

हिंदी की प्रशंसा करना कोई अनुचित बात नहीं ।

पर केवल प्रशंसा करने से ही बनती कुछ बात नहीं।।

ओंकार सिंह ओंकार ने इस प्रकार अपनी अभिव्यक्ति दी..... 

"हिन्दी हिन्दुस्तान का गौरव है श्रीमान!  

 आओ! सब मिलकर करें हिन्दी का उत्थान।।

राम सिंह निशंक ने पढा़- 

हिन्दी अपना प्राण है,

 हृदय हिन्दी स्थान। 

हिन्दी मुझको माँ लगे, 

करता हूँ सम्मान।। 

योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा.....

जीवन की परिभाषा हिन्दी, 

जन मन की अभिलाषा हिन्दी।

रची बसी है सबमें फिर क्यों,

रही उपेक्षित भाषा हिन्दी।। 

 नकुल त्यागी ने पढा़- 

हिन्दी भारत का गौरव है'

हिन्दी भविष्य की आशा है।

जन जन ने कर करके जतन 

तन मन से इसे तराशा है।।

  राजीव प्रखर ने कहा-

साहित्य-सृजन में मनभावन, 

रचती सोपान रही हिन्दी। 

भारत माता के मस्तक का, 

अविचल अभिमान रही हिन्दी। 

रविशंकर चतुर्वेदी ने ओज के भाव व्यक्त करते हुए कहा-, 

मजलूम बेबस हिंदू की आवाज हूं, 

तालिबानी सोच पर मैं गाज हूँ। 

मौत से आंखें मिलाना छोड़ दो 

और दरिंदों को मैं खूनी बाज हूँ।

 इसके अतिरिक्त प्रशांत मिश्र, डॉ मनोज रस्तोगी आदि ने भी रचना पाठ किया। राम सिंह निशंक ने आभार अभिव्यक्त किया। 
































:::::::प्रस्तुति:::;;

अशोक विद्रोही 

उपाध्यक्ष

राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

गुरुवार, 12 सितंबर 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ विश्व अवतार जैमिनी पर केंद्रित राजीव सक्सेना का आलेख....कक्षा बनी चौपाल

   


 बात उन दिनों की है जब महाराजा हरिश्चन्द्र महाविद्यालय में मैंने स्नातक कक्षा में नया -नया प्रवेश लिया था।

    कक्षाएं शुरू होने का पहला दिन था।हिंदी साहित्य का पीरियड था।जैमिनी साहब  हमारे अध्यापक थे।मैं और मेरे सहपाठी उनसे पहली बार रूबरू होने जा रहे थे।सभी बड़े रोमांचित थे। तभी जैमिनी साहब ने कक्षा में प्रवेश किया।उनके सुदर्शन व्यक्तित्व से सभी प्रभावित थे।

  अपने सभी छात्रों का परिचय प्राप्त करने के बाद वे बोले --"आज हम हिंदी साहित्य के इतिहास पर चर्चा करेंगे ।पहले यह बताइए आप में से किस -किसने आल्हा पढ़ा -सुना है ?" 

   दरअसल, जगनिक का लिखा 'आल्हखंड 'हमारे पाठ्यक्रम में था और हिंदी साहित्य के इतिहास यानी वीरगाथाकाल की चर्चा इसी ग्रंथ से शुरू होनी थी।

  बहरहाल, जैमिनी साहब द्वारा पूछे गए प्रश्न के उत्तर में कई हाथ ऊपर उठ गए ।हाथ उठाने वाले छात्रों में मैं भी शामिल था।

  जैमिनी सर ने सभी पर एक दृष्टिपात किया।उन्होंने फिर कहा --"अच्छा, कोई आल्हा की दो  -चार पंक्तियाँ सुनाएगा?" 

   अब तो पूरी कक्षा में एकदम सन्नाटा खिंच गया।

  "अरे,जब आप सभी ने आल्हा सुना है तो एक-दो पंक्तियाँ तो याद होंगी ही।अच्छा ,यह बताइए  कि गांव से कौन -कौन हैं ? शहर वालों ने तो आल्हा शायद न भी सुना हो ...." 

   प्रत्युत्तर में फिर कई हाथ ऊपर उठ गये ।

  "आप लोग सुनाइये आल्हा ..."

   लेकिन ग्रामीण क्षेत्र से आये छात्रों को तो जैसे काठ ही मार गया था। एक तो पहला दिन और ऊपर से हिंदी साहित्य का पहला पीरियड ! ग्रामीण क्षेत्र के छात्र चुप बैठे रहे।जैमिनी सर ने उनके असमंजस और हिचकिचाहट को जैसे भांप लिया।

    वे बोले --"कोई बात नहीं ,  मैं सुनाता हूँ --

    "आल्हा -ऊदल बड़े लड़इया

     इनकी मार सही न जाय,

     एक को मारैं ,दुइ मार जावैं

     तीसरा खौफ खाय मर जाय.."

 जैमिनी सर ने बड़ी लय में और किसी प्रोफेशनल अल्हैत की शैली में जो आल्हा सुनाया तो एकदम समां बंध गया।

  बस , फिर क्या था!

  अभी तक संकोचवश चुप बैठे ग्रामीण क्षेत्र के छात्रों के हाथ भी एक -एककर ऊपर उठने लगे --"सर , हम सुनाएं, सर हम सुनाएं ..."

  "हाँ- हाँ ...सभी सुनेंगें ...."

   

ग्रामीण छात्रों का सारा संकोच एकदम हवा हो गया।फिर तो एक -एककर  कई छात्रों ने अपने -अपने अंदाज में आल्हा शुरू कर दिया। 

    अल्हैती के सारे रिकॉर्ड टूट गए,कुछ समय के लिए हिंदी साहित्य की हमारी कक्षा जैसे गांव की चौपाल बन गयी। वीररस की अविरल धारा प्रवाहित होने लगी।सभी ने आल्हा गायन का खूब आनंद लिया।

  जैमिनी सर यही तो चाहते थे --छात्र निस्संकोच अपनी बात कहना सीखें।आल्हा  तो एक बहाना था।

  अगले दिन जब जैमिनी सर ने वीरगाथा काल के बारे में  बताना शुरू किया तो सभी छात्रों ने इसमें बड़ी रुचि ली।मेरे जो सहपाठी हिन्दी साहित्य और इसके इतिहास को एक नीरस विषय मानते थे उनके लिए यह अनायास ही एक रोचक विषय बन गया।

 यह सन अस्सी की बात है ।अब से करीब तैंतालीस साल पुरानी   यह घटना मेरे छात्र जीवन की एक यादगार घटना बन गयी।यह हम छात्रों के लिए तो एक प्यारा सबक थी ही उन अध्यापकों के लिए भी एक सबक थी जो हिंदी साहित्य जैसे रोचक विषय को भी बेहद नीरस ढंग से या  फिर अकादमिक शैली में पढ़ाते हैं

  एक लंबा कालखंड व्यतीत होने के बाद आज जब मैं इस घटना का 'टोटल रिकॉल ' करता हूँ तो बरबस ही मेरे होठों पर एक मुस्कान आ जाती है और जैमिनी सर की याद एक मीठा दंश देने लगती है 


✍️राजीव सक्सेना

डिप्टी गंज

मुरादाबाद 244001,

 उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल -9412677565

सोमवार, 9 सितंबर 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी का आत्मकथात्मक संस्मरण (7 )...... तो क्या मैं मक्खन मुरादाबादी हुआ होता



सन् 1971-72 का शैक्षिक सत्र था। मेरी बी.ए.(प्र.व) की पढ़ाई चल रही थी। हुल्लड़ जी द्वारा प्रकाशित और संपादित मासिक पत्रिका " हास परिहास " में भाई अतुल टंडन (ए.टी.जाकिर) और कौशल कुमार शर्मा के साथ मैंने भी हाथ बँटाना शुरू कर दिया था। दादा प्रोफेसर महेन्द्र प्रताप जी के घर आना-जाना और उनके परिवार में घुलना-मिलना आगे बढ़ने लगा था और इसके अतिरिक्त उस उम्र में कुछ युवाओं में जो गतिविधियाँ विकसित हो जाती हैं,वह भी संयमित भाव से विकसित होकर गतिशील थीं। मेरे कन्धों पर जो भी दायित्व थे, उन सभी का निर्वहन  भली-भाँति हो रहा था। 

     हास-परिहास में मुझ पर सर्कुलेशन मैनेजर का दायित्व था और अतुल टंडन (ए.टी.जाकिर) प्रबंध संपादक तथा कौशल कुमार शर्मा सह संपादक के दायित्व का निर्वहन कर रहे थे। हुल्लड़ जी और हम तीनों के प्रयासों से "हास परिहास " कुछ ही महीनों में चल निकली थी। यहाँ तक की ए.एच.व्हीलर पर भी बिक्री के लिए एप्रूवल प्राप्त कर चुकी थी और ए.एच व्हीलर के बुक स्टॉल्स पर उपलब्ध थी। उस समय ए.एच.व्हीलर एक वह कंपनी थी जो पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री के लिए रेलवे स्टेशनों पर बुक स्टाल्स की ठेकेदारी करती थी। उसका मुख्यालय इलाहाबाद में था। रोडवेज के बस अड्डों के  बुक स्टालों पर भी हास परिहास बिक्री के लिए अपना स्थान बनाने लग गई थी क्योंकि मुझ पर सर्कुलेशन मैनेजर का दायित्व था,तो मुझे पत्रिकाओं के गट्ठर लेकर बुक स्टाल्स पर पत्रिका पहुँचाने और हुई बिक्री की धनराशि कलेक्ट करने बस से आना-जाना पड़ता था। मैं हँसी-खुशी आता-जाता था और इसे खूब एन्जॉय भी करता था। इस सबके साथ पढ़ाई भी ठीक चल रही थी और कविताएँ भी ठीक-ठाक होने लग गई थीं।

         तीन दिसंबर 1971 को पाकिस्तान-भारत युद्ध शुरू हो गया था। देश में 'ब्लैक आउट' की घोषणा हो चुकी थी।प्रेम परिन्दों के लिए अच्छा समय था। सायं से लेकर प्रातः काल तक कोई लाइट नहीं जलती थी। अंधकार ही छाया रहता था।इसी का नाम 'ब्लैक आउट' था। इस ब्लैक आउट में मुझे भी कुछ नए अनुभव हो रहे थे,जो मेरी प्रेम कथा से सम्बंधित थे। अपनी प्रेम पींगें बढ़ रही थीं और भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना को खदेड़ कर उस पर चढ़ रही थी।16 दिसम्बर को पाकिस्तान की ओर से एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा कर दी गई। युद्ध विराम की घोषणा के तत्काल बाद मुझसे एक रचना हुई - " ब्लैक आउट "।

     वह रचना मैंने अपने मित्रवत बड़े भाई अतुल टंडन ( ए.टी.ज़ाकिर ) को सुनाई। उन्होंने उसकी जमकर तारीफ की और कहा यह तो तुमसे हास्य-व्यंग्य की बहुत ही शालीन और श्रेष्ठ रचना हो गई है। माँ सरस्वती की विशेष कृपा हुई है, तुम पर।इस रचना से तुममें हास्य-व्यंग्य का कवि होने की संभावना बोल रही है, तुम हास्य-व्यंग्य के कवि हो जाओ। मैं शुरू में " अकेला " उपनाम लगाता था। उसके बाद " नवनीत " उपनाम लगाने लगा था।उस समय नवनीत उपनाम से ही तुकबंदियाँ करता था। मित्र भाई अतुल टंडन ( ए.टी.ज़ाकिर ) ने अपने आप ही हुल्लड़ मुरादाबादी की तर्ज़ पर मेरा नाम नवनीत के पर्याय मक्खन से " मक्खन मुरादाबादी " रख दिया और उन्होंने ही  जब इस रचना को यह कहकर हुल्लड़ जी को सुनावाया कि नवनीत जी अब " मक्खन मुरादाबादी " हो गए हैं। हुल्लड़ जी बहुत प्रसन्न हुए और बोले कि यह अच्छा हुआ क्योंकि कि उन्होंने भी अपने नन्हें बेटे का नाम नवनीत रखा हुआ था। हुल्लड़ जी ने रचना सुनी और सुनकर मन से प्रशंसा कर मुझे खूब प्रोत्साहित किया।

       पाकिस्तान से युद्ध समाप्ति की घोषणा के बाद दिसम्बर अंत में "हास-परिहास" की ओर से टाउन हॉल, मुरादाबाद के विशाल प्रांगण में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन आयोजित किया गया था। उस समय हास-परिहास की टीम में हुल्लड मुरादाबादी, कौशल शर्मा,ए.टी.ज़ाकिर और मेरे अतिरिक्त इंडस्ट्रीयल डिजाइन गैलरी के प्रबंधक रमेश चंद्र आज़ाद, प्रतिष्ठित एडवोकेट शैलेन्द्र जौहरी, स्टील के व्यापार में लगे कमल किशोर जैन और व्यापार में ही लगे सी.डी.वार्ष्णेय तथा महेन्द्र नाथ टंडन मुख्य रूप से जुड़े थे।इस टीम द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में हुल्लड़ मुरादाबादी जी ने मुझे भी नवोदित कवि के रूप में काव्य पाठ का अवसर प्रदान कर दिया। माँ सरस्वती की कृपा से ही " ब्लैक आउट "रचना हुई और माँ की कृपा से ही इतने विशाल श्रोता गण के समक्ष मुझे काव्य पाठ का अवसर मिल गया और मैं इतना जम गया जिसकी किसी ने भी कल्पना नहीं की होगी, मैंने तो बिल्कुल भी नहीं।

        मैं अगले दिन जब शहर में निकला तो मेरी ओर सड़क के दोनों ओर से उँगलियाँ उठ रही थीं कि देखो वह जा रहे हैं - " मक्खन मुरादाबादी "। बाजार में कई दुकानदारों ने मुझे बुलाया, बिठाया और खूब प्रशंसा की तथा चाय नाश्ते से बेहतरीन खातिरदारी भी। सब इतना खुश और गौरवान्वित थे कि मैं भी उनकी मनोभावनाओं की खुशियों में तैर गया। मुझे पहली बार लगा कि उँगलियाँ अच्छे कार्यों की ओर भी उठती हैं। परिणामत: कवि सम्मेलन में आए कवियों की संस्तुतियों पर मैंने बीसियों कवि सम्मेलन कर डाले। पहचान मिली और लिफाफे में धनराशि भी। मैं बी.ए.(प्रथम वर्ष) का छात्र कारेन्द्र देव त्यागी एक ही झटके में " मक्खन मुरादाबादी " हो गया और मुझे पुकारा जाने वाला संबोधन 'नवनीत' गायब हो चला।यहाँ तक कि मेरा मूल नाम कारेन्द्र देव त्यागी भी " मक्खन मुरादाबादी " के सामने पिछड़ने लगा और मैं हास्य-व्यंग्य कवि " मक्खन मुरादाबादी " होकर ख्याति पाने लगा।

     हर किसी के बनने और बिगड़ने के कुछ क्षण होते हैं। बनाने में अपने साथ होते हैं और बिगाड़ने में अपनों के ही कुछ हाथ होते हैं। बिगाड़ने वाले हाथों के चंगुल से जितनी जल्दी मुक्त हो जाओ, उतना अच्छा है । पर,यह भी गाँठ बाँध लेने वाली बात है कि बनाने वाले हाथों के स्मृति भरे पलों को पूजा की थाली में गणेश रूपा मिट्टी की डली को कलावा लपेट कर न रखो तो इससे बड़ी कृतघ्नता समाज में कोई दूसरी नहीं हो सकती। मुझे लेकर ही सोचिए,माँ शारदे ने यदि मुझसे " ब्लैक आउट " न लिखवाई होती और भाई ए.टी.ज़ाकिर ने मुझमें हास्य-व्यंग्य की संभावनाओं की परख करके मुझ " नवनीत " को "मक्खन मुरादाबादी " नाम न दिया होता तथा हुल्लड़ जी ने मुझे हास-परिहास के अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में प्रस्तुति का अवसर न प्रदान किया होता, तो क्या मैं मक्खन मुरादाबादी हुआ होता?

 

✍️ डॉ. मक्खन मुरादाबादी 

झ-28, नवीन नगर 

काँठ रोड, मुरादाबाद - 244001

मोबाइल: 9319086769 

हला भाग पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए 

⬇️⬇️⬇️⬇️

https://sahityikmoradabad.blogspot.com/2024/01/blog-post_28.html

दूसरा भाग पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए 

⬇️⬇️⬇️

https://sahityikmoradabad.blogspot.com/2024/04/blog-post_3.html 

तीसरा भाग पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए 

⬇️⬇️⬇️

https://sahityikmoradabad.blogspot.com/2024/08/3.html 

चौथा भाग पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए 

⬇️⬇️⬇️ 

https://sahityikmoradabad.blogspot.com/2024/08/4.html 

पांचवा भाग पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए  

https://sahityikmoradabad.blogspot.com/2024/08/5.html 

छठा भाग पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए  

https://sahityikmoradabad.blogspot.com/2024/08/6.html