सोमवार, 12 सितंबर 2022

मुरादाबाद के युवाओं की संस्था ’अल्फाज़’ ने अपने तीसरे वार्षिकोत्सव पर 11 सितंबर 2022 को आयोजित किया कवि सम्मेलन एवं मुशायरा--- जश्न-ए-अल्फाज़

मुरादाबाद के युवाओं के जोश से भरी संस्था 'अल्फाज़' ने अपने तीन वर्ष पूर्ण करने पर रविवार 11 सितंबर 2022 को कवि सम्मेलन एवं मुशायरा.... जश्न-ए-अल्फाज़ का आयोजन किया।

     दीन दयाल नगर स्थित ट्रीट ओ क्लॉक कैफे में आयोजित इस कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि  बाल संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ विशेष गुप्ता, धवल दीक्षित, प्रिया अग्रवाल, फक्कड़ मुरादाबादी, ललित कौशिक आदि  ने माँ सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करके किया। 

 कार्यक्रम में बरेली से आए युवा साहित्यकार एडवोकेट मध्यम सक्सेना, ज़िया ज़मीर, चंदौसी से मोहम्मद हनीफ, राजीव प्रखर, मयंक शर्मा, नोएडा से अंकुश सिंह और फक्कड़ मुरादाबादी ने काव्य पाठ किया।

     अतिथियों में सूरज सक्सेना, डॉ मनोज रस्तोगी, कपिल कुमार, विवेक निर्मल, अनुज अग्रवाल, डॉ पूनम बंसल, दुष्यंत बाबा, शरद कौशिक, आशुतोष शर्मा, एच. पी. शर्मा, मंजू लता सक्सेना आदि ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम अल्फ़ाज़ की संस्थापिका अभिव्यक्ति सिन्हा और सह - संस्थापक अमर सक्सेना की देखरेख में हुआ। संचालन राघव गुप्ता ने किया। मुस्कान, उत्कर्ष, सचिन और हिमांशु का विशेष योगदान रहा। इस दौरान केक काटकर संस्था के तीन वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया गया।  सभी अतिथियों को स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया।

 अभिव्यक्ति सिन्हा ने बताया कि अल्फाज़ युवा साथियों को उनकी कला का प्रदर्शन करने के लिए एक मंच प्रदान करता है, जहां वे बेझिझक अपना हुनर दिखा सकते हैं । कार्यक्रम में कांठ से कक्षा केंद्र की टीम का पूरा सहयोग रहा। इस अवसर पर नमिता, अंजना, मीना, नई किरण संस्था, पूजा राणा, विपिन, मुकुल, साहिल, पल्लवी, वंदना, आदि बड़ी संख्या में गणमान्य लोग मौजूद रहे। आभार  अमर सक्सेना ने अभिव्यक्त किया।




















































































 

रविवार, 11 सितंबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य सदन की ओर से शनिवार 10 सितंबर 2022 को आयोजित कार्यक्रम में मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ अजय अनुपम के गीत-संग्रह ‘दर्द अभी सोये हैं’ का लोकार्पण

      मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ अजय अनुपम के  गीत-संग्रह ‘दर्द अभी सोये हैं’ का लोकार्पण शनिवार 10 सितंबर 2022 को साहित्यिक संस्था  हिंदी साहित्य सदन के तत्वावधान में श्रीराम विहार कालोनी मुरादाबाद स्थित विश्रांति भवन में आयोजित कार्यक्रम में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने की, मुख्य अतिथि के रूप में दिव्य सरस्वती इंटर कालेज के प्रधानाचार्य अनिल शर्मा तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में पर्यावरण मित्र समिति के संयोजक के. के. गुप्ता उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा किया गया।

      इस अवसर पर लोकार्पित कृति- ‘दर्द अभी सोये हैं’ से रचनापाठ करते हुए डॉ अजय अनुपम ने गीत सुनाये-

 "दर्द क्या है दंश का

यह बोलती हैं चुप्पियाँ

कौन इस चेतन घृणा के

पाप का दोषी कहो

ज़ख़्म, सिसकी, मौत या फिर

एक खामोशी कहो

नर्म कलियाँ खोजती हैं

तेल वाली कुप्पियाँ"

 उन्होंने एक और गीत सुनाया -

 "अब हम खुद बाबा दादी हैं

कल आदेश दिया करते थे

आज हो गए फरियादी हैं

भीषण कोलाहल के भीतर

असमय सोना असमय खाना

मोबाइल से कान लगाए

यहाँ खड़े हो वहाँ बताना

अपने को ही भ्रम में रखना

सच को हौले से धकियाना

छोटे बड़े सभी की इसमें

देख रहे हम बर्बादी हैं।"

 कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध नवगीतकार यश भारती माहेश्वर तिवारी ने कहा- "अजय अनुपम ने अपने गीतों में जहाँ एक ओर सामाजिक विसंगतियों पर अपनी टिप्पणी की है और आज के समय के सच को बयान किया है वहीं दूसरी ओर समाज के अलिखित संदर्भों पर अपनी तीखी अभिव्यक्ति भी दी है। कवि ने अपने गीत संग्रह के माध्यम से अपने समय की पड़ताल भी की है।"

      वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. मनोज रस्तोगी ने इस अवसर पर अपने आलेख का वाचन किया- ‘इस संग्रह के अधिकांश गीतों में जहां समाज की पीड़ा का स्वर मुखरित हुआ है वहीं राजनीतिक विद्रूपताओं को भी उजागर किया गया है। जिंदगी की भाग दौड़ में व्यस्तता के बीच रिश्तों में आ रही टूटन, बिखराव, स्वार्थ लोलुपता  और भूमंडलीकरण के मकड़जाल में उलझती जा रही नई पीढ़ी की मानसिकता को भी उन्होंने अपने गीतों में बखूबी व्यक्त किया है।"

  कवि राजीव प्रखर ने पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा- ‘डॉ अजय अनुपम के 109 गीतों को संजोए हुए यह गीत संग्रह यह दर्शाता है कि रचनाकार विद्रूपताओं एवं विसंगतियों से भले ही व्यथित हो किंतु उसने सकारात्मकता एवं आशा का दामन नहीं छोड़ा है। यह सभी गीत पाठक के अंतस को गहरे स्पर्श करने की अद्भुत क्षमता लिए हुए हैं।’ 

    कवयित्री डॉ पूनम बंसल, के पी सरल, ज्योतिर्विद विजय दिव्य, सुशील कुमार शर्मा आदि ने भी डॉ अजय अनुपम को बधाई दी। आभार-अभिव्यक्ति डॉ कौशल कुमारी ने प्रस्तुत की।













बुधवार, 7 सितंबर 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में मेरठ निवासी ) के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की पांच व्यंग्य क्षणिकाएं


 1

तन ने बाजार

में

कीमत लगाई

हाथों-हाथ

बिक गया।।

मन तो पागल

था

बिना कीमत

लुट गया।


2

सभ्यताओं के 

स्टॉल पर कोई

नहीं आता 

अब गाय को रोटी

नहीं डाली जाती


3

उधार की संस्कृति

कब तक चलेगी..?

जब तक जाने जहाँ

यह बहार चलेगी।। 


4

अंदर से कुछ

बाहर से कुछ..हो

यह सियासत भी..

मियां!

कहॉं से कहाँ

पहुँच गई।। 


5

सब नाच रहे हैं

तुम भी नाच लो

अस्मिता ने घूंघट

छोड़ दिया है।। 


✍️ सूर्यकांत द्विवेदी 

मेरठ 

उत्तर प्रदेश, भारत


सूर्य   कांत द्विवेदी 

मेरठ 

उत्तर प्रदेश, भारत 



मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य .....फीता काटने की कला


 फीता काटना एक कला है । जब कोई दस-बीस जगह जाकर तरह-तरह के लोगों को फीता काटते हुए देखता है और केवल देखता ही नहीं है, गहराई से उसका निरीक्षण करता है तथा अपना सारा चिंतन फीता काटने में लगा देता है, तब उसे फीता काटने के वास्तविक महात्म्य का पता चलता है । अन्यथा ज्यादातर लोग फीता काटने के लिए जाते हैं और कैंची हाथ में जैसे ही उन्हें पकड़ाई जाती है, वह फीता काट देते हैं । जबकि यह इतनी सरल और सीधी-सादी प्रक्रिया नहीं होती है ।

                 फीता काटने से पहले आदमी को चारों तरफ गर्व से सिर उठाकर देखना चाहिए । एक नजर फीते की ओर, दूसरी नजर चारों तरफ उपस्थित भीड़ की ओर । अगल-बगल-पीछे सब को देखने के बाद उसे कैंची हाथ में लेने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए अर्थात कैंची को बहुत नाजुक तरीके से हाथ में उठाना होता है । इसमें कभी भी अपनी उतावलेपन की भावना को प्रकट नहीं होने देना चाहिए । वरना मामला बिगड़ जाता है । भीतर भले ही कैंची को झटपट प्लेट से उठाकर फीता काटने की ऑंधियॉं चल रही हों, लेकिन व्यक्ति की कलात्मकता इसी में है कि वह मंद मंद मुस्कुराते हुए धीरे-धीरे कैची को प्लेट से उठाए और हल्के-हल्के फीते तक ले जाए।

          बस यहॉं आकर थोड़ा-सा रुकने की जरूरत है । अभी आपको फीता नहीं काटना है। कुछ लोग इसी समय अपना हाथ आपकी कैंची की तरफ बढ़ाने के उत्सुक होंगे । उन्हें जबरन पीछे धकेलने की कला आपको आनी चाहिए । यह बात सुनिश्चित कर लीजिए कि कैंची अकेले आपके हाथों में ही सुशोभित होनी चाहिए। अगर अगल-बगल के दो लोगों ने भी कैंची को स्पर्श कर लिया, तो समझ लीजिए कि आप का श्रेय एक तिहाई रह जाएगा। कल को जब इतिहास लिखा जाएगा, तब फोटो को सबूत के तौर पर कोई भी प्रस्तुत करके यह कह सकता है कि फीता तीन लोगों ने काटा है । तब आप क्या करेंगे ? सिवाय हाथ मलने के कुछ नहीं बचेगा ? 

            इसलिए कैंची को अपने शरीर के बीचो-बीच बिल्कुल सुरक्षित पोजीशन में रखिए । कैमरे की तरफ ध्यान अवश्य दें, लेकिन कैंची को चिंतन की धारा से बाहर न जाने दें। परोक्ष रूप से ध्यान पूर्णतः फीते पर ही रहना चाहिए । जरा सोचिए ! कितने उखाड़-पछाड़ के बाद फीता काटने का सौभाग्य जीवन में आता है ! कितने पापड़ बेले ! कितनी सिफारिशें पड़वाईं ! क्या-क्या सौदे नहीं किए ! न जाने कितने वायदों के बाद फीता काटने की मंजूरी मिल पाती है ! फीता काटने की दौड़ में अनेक प्रतियोगी लगे रहते हैं । एक अनार, सौ बीमार । जिसे फीता काटने का सौभाग्य मिल जाता है, सचमुच अपने आप को धन्य मानता है । दौड़ में एक को ही विजयश्री प्राप्त होती है । बाकी मन-मसोसकर रह जाते हैं कि यह जो फीता काटने का सौभाग्य अमुक को मिला है, काश हमें मिल जाता ! अगर दांव लग जाता तो हम भी फीता काट रहे होते! 

✍️ रवि प्रकाश

बाजार सर्राफा 

रामपुर 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451

मंगलवार, 6 सितंबर 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की पांच बाल कविताएं .....


1 गीतिका
 

 सब मिल हम सखियाँ बचपन की

 चल करते बतियाँ बचपन की

    

 बागों में चलकर फिर खाते

 वो खट्टी अमियाँ बचपन की

 

 छत पर उन तारों को  गिनकर

 बीते फिर रतियाँ बचपन की


  शादी हम जिसकी करवाते

  चल ढूँढे  गुड़िया बचपन की

 

  कच्चे उस आगंन में अब भी

  फुदके हैं चिड़ियाँ बचपन की


   नव जीवन के सपने देखें 

   चमके हैं अँखियाँ बचपन की


 2 दोहा गीतिका

 बच्चे हम माँ शारदे , करते तेरा ध्यान ।

जीवन- पथ पर तुम हमें  ,देती रहना ज्ञान ।।


 माँगें हम यह भारती, हो भारत का नाम ।

 फहरे झण्डा विश्व में, भारत की बन शान ।।


सभी रंग के फूल से , महके हर उद्यान ।

यही हमारी कामना , सब हो एक समान   ।।          

       

 रुके नहीं चलते चलें  , करें नहीं आराम ।

 धात्री के सम्मान का , रखना हमको मान ।।

      

   स्वप्न यही है ' प्रीति 'का, बेटी बनें महान ।

   उनसे ही तो है बढ़े , इस भारत की शान ।।


 3 गीतिका                                             

सैर इस आसमाँ की कराओ परी 

चाँद के पास जाकर सुलाओ परी ।।1।।


 है वहीं माँ , बतायें मुझे सब यही

 अब चलो आज माँ से मिलाओ परी ।।2।।


  तुम सुनाकर कहानी मुझे गोद में 

  नींद भी नैन में अब बुलाओ परी  ।।3।।

   

  झिलमिलाते सितारे कहें  हैं  मुझे

  ज़िंदगी में नया गीत गाओ परी ।।4।।


 सीख अब मैं गयी बात यह काम की

 फूल से तुम सदा मुस्कुराओ परी ।। 5।।


4 गुल्लक  

    बचपन की वह प्यारी गुल्लक 

    मिट्टी की थी न्यारी गुल्लक 


   चवन्नी अठन्नी जोड़ी जिसमें 

    मिलती नहीं हमारी गुल्लक


  चकाचौंध  की भेंट  चढ़  गईं,

   मेरी  और  तुम्हारी   गुल्लक।


  नहीं दिखतीं घर में किसी के

  कहाँ गईं  वह  सारी  गुल्लक।

    

5 मेरी माँ

कभी कड़वी कभी मीठी गोली सी मेरी माँ

प्यार अंदर भरा हुआ पर दिखती सख़्त है मेरी माँ

ममता की छांव में उसकी बड़े हुए हम

हम भाई बहनो का अभिमान है मेरी माँ

कभी.........

कड़ी धूप में चलना सिखाया

कठिनाइयों से लड़ना सिखाया

बात ग़लत पर चपत लगाती 

राह सच्ची पर चलना सिखाती है मेरी माँ

कभी........

उच्च शिक्षा प्राप्त किए वो 

पर अहंकार से बहुत दूर वो

हर पल चुनौतियों का सामना कर

आत्मविश्वास से भरी दिखती है मेरी माँ

कभी..........

न कभी सजते सँवरते देखा

न व्यर्थ बातों में समय व्यतीत करते देखा 

सादगी से भरी ममता की मूरत 

पूरे दिन हमारी फ़िक्र में

दिन रात मेहनत करती दिखती है मेरी माँ

कभी.....

कभी डाँट कर हमें वो अच्छा बुरा समझाती है

ये जीवन अमूल्य है

हर रोज़ यह बताती है

पथ पर क़दम न डगमगाए कभी

हर राह पर मेरे साथ खड़ी दिखती है मेरी माँ

कभी......

कभी गुरु बन वह मुझे मेरा रास्ता सुझाती है

कभी सखी बन मेरी हर बात बिन कहे समझ जाती है

कभी ईश्वर का रूप धर हर दुविधा में रास्ता बन जाती है

साहस अंदर भरा हुआ

हर विपदा से दूर मुझे कर देती है मेरी माँ

कभी.......

✍️ प्रीति चौधरी 

गजरौला, अमरोहा 

उत्तर प्रदेश, भारत 


मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद संभल) के साहित्यकार दीपक गोस्वामी विराग की पांच बाल कविताएं .....


 (1) माँ! मैं भी बन जाऊँ कन्हैया

माँ! मैं भी बन जाऊँ कन्हैया,

 मुरली मुझे दिला दे।

और मोर का पंख एक तू,

मेरे शीष सजा दे।


ग्वाल-बाल के साथ ओ! मैया,

मैं भी मधुबन जाऊँ।

प्यारी मम्मी! मुझको छोटी,

 गैया एक दिला दे।


यमुना तट पर मित्रों के सँग,

गेंद-तड़ी फिर खेलूँ।

मारूँ तक कर गेंद,ओ माता!

मुझे पड़े तो झेलूँ।


और कदंब के पेड़ों पर मैं,

पल भर में चढ़ जाऊँ।

कूद डाल से यमुना में फिर,

गोते खूब लगाऊँ।


ऊँची डाली पर बैठूँ मैं,

मुरली मधुर बजाऊँ।

मुरली मधुर बजा कर मैया,

गैया पास बुलाऊँ।


मैं फोड़ूँ माखन-मटकी भी,

माखन खूब चुराऊँ।

मेरे पीछे भागें गोपी,

उनको खूब भगाऊँ।

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(2) कोयल कहती मीठा बोलो

कोयल कहती मीठा बोलो, 

फूल कहें मुस्काओ। 

चिड़िया चूँ-चूँ करके बोले, 

शीघ्र सुबह उठ जाओ।

 

चींटी यह कहती है हमसे, 

श्रम की रोटी खाओ। 

कुत्ता भौं-भौं कर बतलाता,

 वफादार बन जाओ। 


नदी सिखाती चलते रहना,

 थक कर मत रुक जाना। 

पर्वत कहता तूफानों को,

 कभी न शीष झुकाना।


वृक्ष हमें फल देकर कहते,

 सदा भलाई करना। 

मधुमक्खी सिखलाती बच्चो!

 सदा संगठित रहना।

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(3) चांद और पृथ्वी में संबंध

अध्यापक जी ने कक्षा में, 

पूछा एक सवाल ।

चांद और पृथ्वी में संबंध,

बतलाओ तत्काल ।


सारे बच्चे थे भौचक्के, 

क्या है यह जंजाल। 

सर जी ने पूछा है हमसे, 

कैसा आज सवाल? 


सर जी मैं बतलाऊँ उत्तर,

 उठकर गप्पू बोला। 

कक्षा में तो आता नहीं तू,

 खबरदार मुँह खोला। 


सब बच्चों के कहने पर फिर,

 सर ने दे दिया मौका। 

देखो प्यारे गप्पू ने फिर, 

मारा  कैसे चौका।


चाँद और पृथ्वी का संबंध,

हमको दिया दिखाई। 

पृथ्वी तो है प्यारी बहना, 

और चांद है भाई। 


अध्यापक गुस्से में बोले- 

पूरी बात बताओ। 

भाई और बहन का रिश्ता,

 कैसे है समझाओ।


 गप्पू बोला मैं  बतलाता, 

ओ गुरुदेव! हमारे।

 समझाता हूँ सुनो ध्यान से,

 तुम भी बच्चों सारे। 


जब चंदा है अपना मामा,

धरती अपनी मैया।

फिर क्यों नहीं होगा धरती का,

 चंदा प्यारा भैया। 


फिर क्या था पूरी कक्षा ने 

खूब बजाई ताली। 

बड़ी शान से गप्पू जी ने, 

छाती खूब फुला ली।

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(4) बच्चों के मन भाता संडे

बच्चों के मन भाता संडे।

सबको बहुत लुभाता संडे।


 होमवर्क से मिलती छुट्टी,

 कितना रेस्ट कराता संडे। 


सिर्फ एक दिन मुख दिखलाता,

 फिर छ: दिन छुप जाता संडे।


 बच्चों को पिकनिक ले जाकर, 

खुद 'फन-डे' बन जाता संडे।


 घर में बनते कितने व्यंजन,

 नए-नए स्वाद चखाता संडे।


लेकिन प्यारी मम्मी जी का,

 काम बहुत बढ़वाता संडे।


 मुन्नी यों मम्मी से पूछे,

 रोज नहीं क्यों आता संडे।

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(5) नील गगन के प्यारे तारे!,

नील गगन के प्यारे तारे!,

 कितने सुंदर कितने न्यारे।

 आसमान में ऊँचे ऐसे।

 चमके हो हीरे के जैसे।


 चाँद तुम्हारे पापा शायद,

 साथ तुम्हारे आते हैं। 

शैतानी न करो कोई तुम, 

हर पल यह समझाते हैं।


 कितने भाई तुम्हारे हैं ये।

 एक ही जैसे दिखते हो।

 सोच-सोच हैरानी होती, 

नभ में कैसे टिकते हो। 


क्या तुम भी विद्यालय जाते?,

 किस कक्षा में पढ़ते हो? 

हम बच्चों के जैसे तुम भी,

 क्या आपस में लड़ते हो? 


ओ तारे! चमकीलापन यह

 तुमने कैसे पाया है? 

सच-सच बतलाना तुम भैया,

 किसने तुम्हें बनाया है?


✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'

शिव बाबा सदन, कृष्णाकुंज

बहजोई (सम्भल) 244410

 उत्तर प्रदेश, भारत

मो. नं.- 9548812618

ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com