(1) माँ! मैं भी बन जाऊँ कन्हैया
माँ! मैं भी बन जाऊँ कन्हैया,
मुरली मुझे दिला दे।
और मोर का पंख एक तू,
मेरे शीष सजा दे।
ग्वाल-बाल के साथ ओ! मैया,
मैं भी मधुबन जाऊँ।
प्यारी मम्मी! मुझको छोटी,
गैया एक दिला दे।
यमुना तट पर मित्रों के सँग,
गेंद-तड़ी फिर खेलूँ।
मारूँ तक कर गेंद,ओ माता!
मुझे पड़े तो झेलूँ।
और कदंब के पेड़ों पर मैं,
पल भर में चढ़ जाऊँ।
कूद डाल से यमुना में फिर,
गोते खूब लगाऊँ।
ऊँची डाली पर बैठूँ मैं,
मुरली मधुर बजाऊँ।
मुरली मधुर बजा कर मैया,
गैया पास बुलाऊँ।
मैं फोड़ूँ माखन-मटकी भी,
माखन खूब चुराऊँ।
मेरे पीछे भागें गोपी,
उनको खूब भगाऊँ।
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(2) कोयल कहती मीठा बोलो
कोयल कहती मीठा बोलो,
फूल कहें मुस्काओ।
चिड़िया चूँ-चूँ करके बोले,
शीघ्र सुबह उठ जाओ।
चींटी यह कहती है हमसे,
श्रम की रोटी खाओ।
कुत्ता भौं-भौं कर बतलाता,
वफादार बन जाओ।
नदी सिखाती चलते रहना,
थक कर मत रुक जाना।
पर्वत कहता तूफानों को,
कभी न शीष झुकाना।
वृक्ष हमें फल देकर कहते,
सदा भलाई करना।
मधुमक्खी सिखलाती बच्चो!
सदा संगठित रहना।
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(3) चांद और पृथ्वी में संबंध
अध्यापक जी ने कक्षा में,
पूछा एक सवाल ।
चांद और पृथ्वी में संबंध,
बतलाओ तत्काल ।
सारे बच्चे थे भौचक्के,
क्या है यह जंजाल।
सर जी ने पूछा है हमसे,
कैसा आज सवाल?
सर जी मैं बतलाऊँ उत्तर,
उठकर गप्पू बोला।
कक्षा में तो आता नहीं तू,
खबरदार मुँह खोला।
सब बच्चों के कहने पर फिर,
सर ने दे दिया मौका।
देखो प्यारे गप्पू ने फिर,
मारा कैसे चौका।
चाँद और पृथ्वी का संबंध,
हमको दिया दिखाई।
पृथ्वी तो है प्यारी बहना,
और चांद है भाई।
अध्यापक गुस्से में बोले-
पूरी बात बताओ।
भाई और बहन का रिश्ता,
कैसे है समझाओ।
गप्पू बोला मैं बतलाता,
ओ गुरुदेव! हमारे।
समझाता हूँ सुनो ध्यान से,
तुम भी बच्चों सारे।
जब चंदा है अपना मामा,
धरती अपनी मैया।
फिर क्यों नहीं होगा धरती का,
चंदा प्यारा भैया।
फिर क्या था पूरी कक्षा ने
खूब बजाई ताली।
बड़ी शान से गप्पू जी ने,
छाती खूब फुला ली।
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(4) बच्चों के मन भाता संडे
बच्चों के मन भाता संडे।
सबको बहुत लुभाता संडे।
होमवर्क से मिलती छुट्टी,
कितना रेस्ट कराता संडे।
सिर्फ एक दिन मुख दिखलाता,
फिर छ: दिन छुप जाता संडे।
बच्चों को पिकनिक ले जाकर,
खुद 'फन-डे' बन जाता संडे।
घर में बनते कितने व्यंजन,
नए-नए स्वाद चखाता संडे।
लेकिन प्यारी मम्मी जी का,
काम बहुत बढ़वाता संडे।
मुन्नी यों मम्मी से पूछे,
रोज नहीं क्यों आता संडे।
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(5) नील गगन के प्यारे तारे!,
नील गगन के प्यारे तारे!,
कितने सुंदर कितने न्यारे।
आसमान में ऊँचे ऐसे।
चमके हो हीरे के जैसे।
चाँद तुम्हारे पापा शायद,
साथ तुम्हारे आते हैं।
शैतानी न करो कोई तुम,
हर पल यह समझाते हैं।
कितने भाई तुम्हारे हैं ये।
एक ही जैसे दिखते हो।
सोच-सोच हैरानी होती,
नभ में कैसे टिकते हो।
क्या तुम भी विद्यालय जाते?,
किस कक्षा में पढ़ते हो?
हम बच्चों के जैसे तुम भी,
क्या आपस में लड़ते हो?
ओ तारे! चमकीलापन यह
तुमने कैसे पाया है?
सच-सच बतलाना तुम भैया,
किसने तुम्हें बनाया है?
✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन, कृष्णाकुंज
बहजोई (सम्भल) 244410
उत्तर प्रदेश, भारत
मो. नं.- 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com
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