1
तन ने बाजार
में
कीमत लगाई
हाथों-हाथ
बिक गया।।
मन तो पागल
था
बिना कीमत
लुट गया।
2
सभ्यताओं के
स्टॉल पर कोई
नहीं आता
अब गाय को रोटी
नहीं डाली जाती
3
उधार की संस्कृति
कब तक चलेगी..?
जब तक जाने जहाँ
यह बहार चलेगी।।
4
अंदर से कुछ
बाहर से कुछ..हो
यह सियासत भी..
मियां!
कहॉं से कहाँ
पहुँच गई।।
5
सब नाच रहे हैं
तुम भी नाच लो
अस्मिता ने घूंघट
छोड़ दिया है।।
✍️ सूर्यकांत द्विवेदी
मेरठ
उत्तर प्रदेश, भारत
सूर्य कांत द्विवेदी
मेरठ
उत्तर प्रदेश, भारत
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