मंगलवार, 18 जुलाई 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा व्योम के सावन के संदर्भ में दोहे ...

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मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर के दोहे .....

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मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का गीत ....मां

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मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रेमवती उपाध्याय का गीत ...इन कहारों का कोई भरोसा नहीं

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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी की रचना .... दिखता नहीं कहीं सावन का उल्लास ...

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मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल का गीत ...सखी री यह कैसा सावन ,

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मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज मनु की रचना

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मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कविता .... सहजता

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मुरादाबाद के साहित्यकार मयंक शर्मा का गीत .....खुद पर रख विश्वास एक दिन नया सवेरा होगा ...

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शुक्रवार, 14 जुलाई 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से 14 जुलाई 2023 को काव्य गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से 14 जुलाई 2023 को जंभेश्वर धर्मशाला मुरादाबाद में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रमेशचन्द्र कृष्ण   ने राम भक्त हनुमान जी पर गहन उदबोधन दिया।

   मुख्य अतिथि रघुराज सिंह निश्चल ने कहा ....

   पहले होते सड़क में गडढे। 

   अब तो गडढों में  सड़क होती है ।

 विशिष्ट अतिथि ओंकार सिंह ओंकार का कहना था ....

 बारिश में सड़कें हुईं हैं गडढों से युक्त।

जाम लग रहे हर जगह, वाहन सरकें सुस्त।।

रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने कहा...

 अश्रु प्रेम का गंगा जल है, 

 पावन है यह अति निर्मल है  । 

 मानव मन तो बडा़ सरल है,

 राजनीति भर देती गरल है । 

   राम दत्त द्विवेदी ने कहा -

बादल छाये हैं अम्बर में भीगी हैं रातें। 

रातों में ढिंग बैठ तुमसे करनी  हैं बातें।

संचालन करते हुए अशोक विद्रोही ने रचना प्रस्तुत की - 

गाँव-गाॅव में बाढ़ है,

शहर शहर बेहाल। 

खाना -पानी के बिना, 

जीना हुआ मुहाल ।

लगी झड़ी बरसात की,

हुए प्रलय से पस्त।

हे प्रभु!अब बस भी करो! 

जन जीवन है त्रस्त।।

रामसिंह निशंक का गीत था.....

 आई ऋतु पावस की छाए हैं काले घन। 

बरखा की फुहार में प्रमुदित हैं सबके मन 

डाॅ मनोज रस्तोगी ने कहा -

खत्म हो गई है अब 

झूलों पर पेंग बढा़ने की रीत,

नहीं होता अब हास परिहास

 दिखता नहीं कहीं 

 सावन का उल्लास।

 राजीव प्रखर का कहना था .....

 अधरों पर महबूब के, आई जब मुस्कान।

दिल ने माना पड़ गई, फिर सावन में जान।।

 कृपाल सिंह धीमान का स्वर था ......

 राहें मेरा जीवन मेरी मंजिल दूर जहान है।

  गोष्ठी में  रमेशचन्द्र गुप्त, कुन्दनलाल सहगल आरके आर्य आदि  ने भी भाग लिया।  संस्था के अध्यक्ष रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने आभार व्यक्त किया। 











मुरादाबाद के साहित्यकार दिग्गज मुरादाबादी की छह बाल पहेलियां । इनका प्रकाशन हुआ है वर्ष 1996 में अखिल भारतीय साहित्य कला मंच चांदपुर,बिजनौर द्वारा प्रकाशित बाल काव्य संग्रह ..,"बाल सुमनों के नाम " में। इस संग्रह के संपादक हैं डॉ महेश दिवाकर और डॉ अजय जनमेजय ।




::::::::प्रस्तुति:::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
 

बुधवार, 12 जुलाई 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी के नौ गीत ...…


1. अभिमन्यू है चक्रव्यूह में

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पता नहीं पल कैसे होंगे 

आने वाले कल के।

अभिमन्यू है चक्रव्यूह में 

कपटी कौरव दल के।


धरती अम्बर एक करेंगे

झूठ पुलिंदे मिलकर।

रेबड़ियों की ले आए हैं 

नई थैलियाँ सिलकर।।

अंकित हैं माथें पर ठप्पे 

जबकि पुराने छल के।


जिनके घर के कोने-कोने

अटे पड़े हैं धन से।

करी कमाई कैसे इतनी

पूछें अपने मन से।।

पिला पिलाया चले पेलने 

हाल न जाने खल के।


तरह-तरह के नाटक इनपर

नाटक में नौटंकी।

जन रोगों की एक दवा बस

राजनीति की फंकी।।

दे खैरात उन्हें क्या पाई 

जो प्यासे थे जल के।


शब्दकोश से बाहर की जिन

अधरों पर हर गाली।

छोड़ेगी तस्वीर बनाकर  

काली से भी काली।।

चुभे पुराने कंटक अबतक

निकल न पाए गल के।


एका है पर खबर नहीं है 

कौन रहेगा आगे।

लोक चदरिया बुनने निकले 

जले-भुने सब धागे।।

रात दिवस गरियाकर इच्छुक

लोकतंत्र के फल के।


गीता प्रेस बहाना भर है 

कुरक रही है गीता।

जल स्रोतों की निन्दा करके

सागर समझो रीता।।

रामचरित मानस पर हमले

सिर्फ सियासी मल के।


आया मौसम अब वैसे तो 

लौट पुनः वोटों का।

स्वर्ण काल पर निकल गया है

सब खारिज नोटों का।।

अब तो रण में जाना होगा

सच्चाई में ढल के।


2. थक जाती थी जब माँ मेरी

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करते-करते काम दिवस भर

थक जाती थी जब माँ मेरी।

कहती! पहले घर सुनना है

उसके बाद सुनूँगी तेरी।।


भले नहीं वह फिर भी मुझसे

अब भी बात वही कहती है।

घर चिंता में मैं रहता हूँ

इस चिंता में वह रहती है।

घर को ख़ुशी सुखी रखने में 

सदा मुसीबत उसने पेरी।


अथक परिश्रम उसका ही तो

आसपास में रँग लाया था।

एक जून जो खा न सका था

उस घर ने छक कर खाया था।।

सबके संकट काट दिए थे

खोल गाँव में उसने डेरी।


परधानी जीती तो उसने

घर के सँग-सँग गाँव सँभाला।

सूरत बदल गाँव की रखदी 

बिना पढ़ी ने लिखा खँगाला।।

सामूहिकता सींच-सींचकर

दूर भगा दी तेरी मेरी।


नियम गाँव को समझाकर वह

सौ नंबर से पास हुई थी।

पुरस्कार पा महामहिम से

दूर-दूर की खास हुई थी।।

उसने ही सिखलाया था यह 

अच्छी नहीं काम में देरी।


नहीं सोचता कोई भी जो

वही सोचती है माँ सबकी।

माँ चिंताओं से लड़-भिड़कर 

जिंदा अबतक,मरकर कब की।।

गाँव-गाँव जब सोते मिलते

वह देती फिरती है फेरी।


3. कोशिश है खरपतवारों की 

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कोशिश है खरपतवारों की 

मटियामेट फसल हो।


नए सृजन पर असमंजस में

तुलसी सूर कबीरा।

गान आज का गाने में सुन 

दुखी हो उठी मीरा।।

देख निराला भी कह उठते 

नव की नई शकल हो।


बचा-खुचा इस मोबाइल ने

जकड़ लिया अब सारा।

दुखती रग को पकड़ सभी की

परस दिया है चारा।।

जिसमें ख़तरा छुपा हुआ सा 

बैठा अगल-बगल हो।


बूँद-बूँद से भर इठलाए

बची नहीं वह गागर।

पोखर झील नदी नद नाले

आज सभी हैं सागर।।

जिनके दर्शन कर आभारी 

हुआ हरेक पटल हो।


कोई बड़ा न कोई छोटा 

अब तो सभी बराबर।

सभी मियां मिट्ठू अपने मुँह 

बनते फिरें परापर।।

हाथी के कद पर ज्यों चींटी 

लेने चली दखल हो।


इसी तरह तो खंड-खंड सब

अपना होता आया ।

सदा जिए अति विश्वासों में 

हमने गोता खाया।।

मौज मस्तियाँ पागल जैसे  

मौसम गया बदल हो।


4. उधड़ा!रफू इसी से होता 

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झोला छाप जमे हैं अबतक

झोलों के दम पर।


चर्चित हैं,सँग बीमारों के

ये खिलवाड़ करें।

अपना ठिया जमाकर उनसे 

पैसा झाड़ धरें।।

उधड़ा! रफू इसी से होता 

मोलों के दम पर।


आए दिन अखबारों का भी 

मुद्दा बना रहे।

उरे परे होते रहने का

किस्सा कौन कहे।‌।

भारी भरकम मसले निबटे

बोलों के दम पर।


यह भी सच है बिन इनके भी

काम नहीं चलना।

ये जानें बिगड़े से बिगड़ा 

हर रोग पकड़ना।।

गाड़ी कभी न चलती देखी 

चोलों के दम पर।


5. सबको गले लगाने की 

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शान्त भाव की धुन में यह तो 

आदत मंगल गाने की।

जुर्म नहीं है धमकी धड़ से

शीश उतारे जाने की।।


मंगल यही अमंगल जमकर 

सदियों से करता आया।

पता सभी को अब इसका भी

क्या खोकर क्या है पाया।।

आदत फिर भी पड़ी हुई है

सबको गले लगाने की।


दया भाव के सभी आचरण

मकसद अच्छा गढ़ने के।

बुरा भला भी सुन-सुन लक्षण

क्षमा दिशा में बढ़ने के।।

सीख न पाए लड़ना-भिड़ना

और जुगत लड़वाने की।


अनेकांत में भाव एकता

पीढ़ी दर पीढ़ी पहना।

करी विविधता आत्मसात फिर

उसको बना लिया गहना।।

आज जरूरत इसी भाव पर

आगम के इतराने की।


इस धरती पर मिसरी जैसी

कहीं न कोई वाणी है।

फसलें मीठी रहा उगाता

खारा भी यदि पानी है।।

ऊपर से नीचे तक फिर भी

चली सदा उकसाने की।


इस धरती ने मान दिया है

सूफी पीर मजारों को।

फिर भी घायल करते रहते

कुछ हैं लोग बहारों को।।

असली कथा छुपाकर अपनी 

गाते रहे ज़माने की।


रातों में खुल दरवाजों ने

बड़े-बड़े उपकार किए।

उलटे पाँव प्रार्थना लौटी

अबकी तो फटकार लिए।।

भूल समझ में आई जल्दी 

याची को हड़काने की।


6. बता अकेले कबतक ढोएँ 

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गंगा जमुनी चलन तुझे हम

बता अकेले कबतक ढोएँ।


धार अलग गंगा यमुना की

संगम तक ही तो रहती है।

आगे फिर सागर तक यमुना

गंगा होकर ही बहती है।।

इसी सत्य को समझा-समझा

आँसू-आँसू कबतक रोएँ।


भाव घिरा निरपेक्ष धर्म से

हुआ व्यथित सा खुद लगता है।

तथाकथित सब पहले जैसा 

तथाकथित ही अब लगता है।।

शुद्ध भाव की रोटी को हम

एक हाथ से कबतक पोएँ।


लिबरल खेती के खेतों में

बुए पड़े हैं बस उकसावे।

कारोबार झूठ की खेती 

उगते रहते खुक्खल दावे।।

कड़ी नींद से घिरे हुए हम

खुली आँख से कबतक सोएँ।


एक पिता की संतानें सब

इन ऋतुओं के सारे मौसम।

यही सत्य समझाने भर में

अपनों से ही हारे मौसम।।

मौसम के सद्भाव घाव हम

और बताओ!कबतक धोएँ।


7. गीतों में नानी लिखना

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झुलस रहे हैं बाग बगीचे

गीतों में पानी लिखना।


तपे दिनों में बच्चे व्याकुल

गर्मी से उकताए हैं।

ननिहालों से उन्हें बुलाने

कई बुलावे आए हैं।।

इस मौसम में खुश रखने को

गीतों में नानी लिखना।


चले छतों से बरसे पत्थर

दिन हों जैसे दंगल के।

गंगा जमुनी के धोखे में

पल गायब हैं मंगल के।।

तर कर दे जो बादल को भी

गीतों में वानी लिखना।


इधर-उधर से चली हवाएँ

आकर हममें पसर गईं।

कल ही तो थी आग लगाई

आज सबेरे मुकर गईं।।

सुनो!ठीक से इनके रुख को

गीतों में ज्ञानी लिखना।


8. सबको पानी दो

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अर्थहीन हो चुका बहुत सा

उसको मानी दो।

प्यासे झील नदी नद पोखर

सबको पानी दो।।


जल जीवन है तो उसका भी

जीवन बचा रहे।

और धरा पर जो-जो हमने

खोया,रचा रहे।।

मूक पड़ा जो ज्ञान ध्यान है

उसको बानी दो।


पंचतत्व में घोली हमने

एकमात्र विषता।

अपना इससे जाने क्या-क्या

रोज़ रहा रिसता।।

उजड़ रहे से इस मौसम को

रंगत धानी दो।


जिनसे भू पर मानवता के

उपवन मुस्काएँ।

हमें बचाओ!बोल रहीं सब

मिटती धाराएँ।।

मन से इन्हें पोसने वाले

राजा रानी दो।

=9. गौरैया गीत

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लुप्त हुईं गौरैया

कुछ तो ठीक नहीं।


उनकी फुदक-फुदक से

घर-आंगन फुदके

बिखरे मिल जाते थे

कुछ लक्षण शुभ के

पुनः बुला लाने की

दिखती लीक नहीं।


नीड़ बना रहती थीं

घर के खोडर में

घर ही होते थे तब

गांव औ' शहर में

लुप्त घरौंदे, घर भी

उठती चीक नहीं।


तप्त रेत मल-मल कर

जेठ दुपहरी में

नहा, मेघ ले आतीं

एक फुरहरी में

ज्ञान जगत पर ऐसी

कुछ तकनीक नहीं।


खेत फदोरा करतीं

खेल दिखाती थीं

छिटक गये बीजों को

खुद बो जाती थीं

देखे गये न पंछी

इतने नीक, नहीं।


कीट-पतंगे घर के

और खेत के भी

चुग, संवार देती थीं

भाग्य रेत के भी

बिन उनके,जीवन का

सुख निर्भीक नहीं।


चीं चीं चूज़े करके

सूनापन हरते

निर्जन में भी जैसे

वो हलचल भरते

होते आये बखान

हुए सटीक नहीं।


चहक-चहक से उतरा

उत्सव सा लगता

जन-जीवन में पसरा

सन्नाटा भगता

लुटी सम्पदा सारी

सदियां ठीक नहीं।


✍️ डॉ.मक्खन मुरादाबादी

     झ-28, नवीन नगर

     काँठ रोड, मुरादाबाद-244001

     मोबाइल:9319086769


  





मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में मेरठ निवासी)के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी का गीत ....फट गया लो मेघ सावन आ गया लो मेघ आंगन


फट गया लो मेघ सावन 

आ गया लो मेघ आंगन 

कह रही चारों दिशाएं 

यह कभी टिकता नहीं है


रूपसी तो रूप की है

यह कली तो धूप सी है

आज है पर कल नहीं है

कल भी एक पल नहीं है

पकड़े रहना आशाएं

वक़्त फिर मिलता नहीं है


बरसेगा इक दिन सावन

बोलेगा  तुझको साजन

बूँद का इतिहास मन है

सर सर सर बहता तन है

भीगी भीगी  अलकाएँ

जल वहाँ रुकता नहीं है।


देख ले तू चाँद यारा

मेघ में भी और प्यारा

यात्रा रुकती नहीं है

मात्रा गिनती नहीं है

तोड़ दे तू वर्जनाएं

मन कभी मरता नहीं है।।


✍️ सूर्यकांत द्विवेदी, मेरठ

सोमवार, 10 जुलाई 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी ) आमोद कुमार की रचना ...आगे बढ़ने के सभी रास्तों पर जहरीले साँपों का पहरा है


निकल पड़े घर-बार छोड़कर अपनी क्षमता, प्रतिभा को लेकर 

राजपथ के आह्वान पर कब किसका तन-मन ठहरा है 

आगे बढ़ने के सभी रास्तों पर जहरीले साँपों का पहरा है।

घूम-फिरकर चंद वे ही लोग सत्ता में आ जाते हैं।

कभी इस दल से, कभी उस दल से, हम दलदल में फँसते जाते हैं

बेटा मुख्यमंत्री, बाप मंत्री, भाई का संसद में आसन है

ये लोकतंत्र नहीं केवल कुछ परिवारों का शासन है।

अरबों-खरबों के घोटाले इनके साए में पलते हैं।

न्याय और धर्म भी इशारों पर इनके चलते हैं।

साज़िशों का ताना-बाना देखो कितना गहरा है

आगे बढ़ने के सभी रास्तों पर जहरीले साँपों का पहरा है

नोटों के हार पहनकर हैलीकाप्टर में उड़ते

ये उन लोगों के मसीहा हैं 

जो भूख से खुदक़शी करते

लंबी-लंबी लाइनें बेरोजगारों की लग जाती हैं।

नौज़वान बेटियाँ अपनी पुलिस के डंडे खाती हैं

झूठे वादे, झूठी कसमें, झूठे इनके भाषण हैं

वोटों के व्यापार के लिए ही करते ये आरक्षण है।

सत्ता के गलियारों में हर चेहरा नकली चेहरा है।

आगे बढ़ने के सभी रास्तों पर ज़हरीले सौाँपों का पहरा है

पाँच हजार करोड़ का एक उद्योगपति घर बनाता है।

घर की छत पर फिर देखो हैलीपैड बनवाता है

कहने को आज़ाद हैं हम, पर दासता की वही कहानी

लाखों-करोड़ों को नहीं मयस्सर पीने का पानी है।

कितनी ही रैलियाँ निकालो या फिर तुम करो रैला

गंगा का पानी अब सब जगह हो गया मैला

कोई नहीं कुछ सुनने वाला शासन गूँगा-बहरा है।

आगे बढ़ने के सभी रास्तों पर ज़हरीले साँपों का पहरा है।

✍️ आमोद कुमार, दिल्ली

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार का बाल गीत ....गौरेया

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मुरादाबाद के साहित्यकार पंडित नरोत्तम व्यास की कृति ......परशुराम । यह कृति वर्ष 1922 में निहाल चंद एंड कंपनी कलकत्ता द्वारा प्रकाशित की गई थी ।

 



सम्पूर्ण कृति पढ़ने के लिए क्लिक कीजिए

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::::::::प्रस्तुति::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822

शनिवार, 8 जुलाई 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार शालिग्राम वैश्य का नाटक ...माधवनल कामकंदला । उनकी यह कृति वर्ष 1889 में श्री वेंकटेश्वर छापाखाने मुम्बई से प्रकाशित हुई थी ।


 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

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::::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

संस्थापक

साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी के नौ दोहे .....

 


1. 

सत्ता मद  में डूबकर,करो न अत्याचार

सच्चाई के सामने, झूठ मानता हार।

2. 

निर्धन की संपत्ति पर, करो नहीं अधिकार

निर्बल के अभिशाप से, होता बंटाधार।

3. 

उसके घर माफ़ी नहीं,सुन ले साहूकार

तेरी करनी की सज़ा, देगा पालनहार।

4.

 दुर्गा माँ का रूप है, बेटी का अवतार

 अपने हाथों से करे, दुष्टों का संहार।

5. 

अहम् वहम में मत रहो, धनबल सुख का सार,

मिट्टी में मिल जाएगा, मायावी संसार।

6. 

बेटी की किलकारियाँ, ईश्वर का उपहार

जिस घर में बेटी नहीं,वह घर है बेकार।

7. 

आदर्शो की बेल पर, खिलें ख़ुशी के फूल

नहीं सताते राह में विपदाओं के शूल।

8. 

बेटों से कमतर नहीं,बेटी का किरदार

सुख-दुख में रहती सदा सेवा को तैयार।

9. 

कभी किसी से मत करो, कटुता का व्यवहार

सबके ही एहसान का, करो व्यक्त आभार।

          

✍️वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर   9719275453

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गुरुवार, 6 जुलाई 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार राशिद हुसैन की कहानी ......किट्टू

 


आज घर में खाना नहीं बना था। घर के सभी लोग उदास थे, खामोश थे। सब एक दूसरे का चेहरा देख रहे थे। कोई कुछ बोलता तो सिर्फ किट्टू का ही ज़िक्र करता उसी की बातें करता। आज हमारा किट्टू दूर बहुत दूर चला गया था। वह कम समय में ही परिवार का सदस्य बन गया था। सभी के साथ खेलता और सभी उससे प्यार करते थे। आज घर में सन्नाटा सा छाया हुआ था। कोई परिचित या संबंधी सांत्वना देने भी नहीं आया।

 मैं कभी घर में कोई भी पालतू जानवर या पक्षी पालने के पक्ष में नहीं रहा। एक दिन बच्चे अपनी बुआ के घर से एक बिल्ली का बच्चा जो मात्र डेढ़ माह का था, ले आए। उसका नाम किट्टू रखा गया मुझे उस समय काफी बुरा लगा लेकिन बच्चों की मोहब्बत के आगे मैं कुछ कह न सका। धीरे-धीरे वक्त गुजरने लगा। बच्चे किट्टू के साथ बहुत खुश रहते और किट्टू उनके साथ उछल–कूद करता रहता। मैं किट्टू से थोड़ा अलग- थलग ही रहता। मैं जब सुबह ऑफिस के लिए घर से निकलता तो किट्टू मेरे पीछे -पीछे छोटे -छोटे कदमों से दरवाजे तक आता जब मैं घर से बाहर निकल जाता तो वह लौट जाता। शाम को जब मैं ऑफिस से घर लौटता तो किट्टू मुझे बड़ी मासूम नज़रों से देखता, जब घर में टहलता तो वह घर की लॉबी के कोने में जहां उसके सोने बैठने के लिए एक छोटे गद्दे का इंतजाम किया गया था और टेडी बियर बॉल और कुछ खिलौने दे दिए गए थे उनसे  खेलता रहता था। वहां बैठकर मुझे गर्दन घुमा कर देखता रहता। यह सिलसिला यूं ही चलता रहा। एक दिन जब शाम को मैं ऑफिस से घर लौटा तो किट्टू मेरे पैरों में आकर लिपट गया इससे पहले कि मैं छुड़ाने की कोशिश करता वह प्यार करने लगा । मैं हतप्रभ  उसे देखता रहा और कुछ न कह सका फिर थोड़ी देर बाद उसने मुझे छोड़ा और अपनी जगह जाकर बैठ गया। बच्चों को तो जैसे खिलौना मिल गया था वह उसके साथ खूब खेलते उसे गोद में उठाए_ उठाए फिरते सुबह  जब स्कूल जाते तो उससे खेल कर जाते जब स्कूल से आते तो फिर उस में लगे रहते मैं इस बात से संतुष्ट था थी चलो बच्चों को मोबाइल देखने की लत से छुटकारा मिला। बच्चों को पढ़ाई के बाद जितना भी समय मिलता वह किट्टू के साथ गुजारते। किट्टू अब बड़ा होने लगा था और पूरे घर में उछल कूद करता रहता उसकी शरारतें अब दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी।

    एक दिन देर रात को बहुत तेज आंधी बारिश होने लगी और बिजली चमकने लगी सभी लोग सोए हुए थे तब ही बादलों की तेज गरज से मेरी आंख खुल गई मैं उठा और अपने कमरे से बाहर आकर  देखा तो किट्टू लॉबी के एक कोने में डरा सहमा हुआ बैठा था वह मुझे देखकर म्याऊं- म्याऊं करने लगा। मुझे लगा कि वह डर गया है और मुझसे कुछ कहना चाह रहा है। मैंने उसको उठाया और अपने कमरे में ले गया जहां वह बारिश रुक जाने और बादलों की गरज बिजली की गड़गड़ाहट समाप्त हो जाने तक वहीं रहा उसके बाद बाहर आकर अपनी जगह लेट कर सो गया।

घर की लॉबी के एक कोने में जहां किट्टू का बिस्तर खिलौने रखे थे वहीं पर उसके खाने के लिए एक प्लेट और दूध पीने के लिए कटोरी और पानी पीने के लिए एक छोटा लोटा रख दिया गया था। घर में सुबह सबसे पहले जो उठता किट्टू उसको देखकर म्याऊं- म्याऊं करने लगता और अपने खाने-पीने के बर्तनों की तरफ इशारा करता। हम समझ जाते उसको भूख लगी है और खाने को दे देते उसके लिए फिक्र से कैट फूड बाजार से लाकर रखे जाते वह अपना खाना खाकर शांत हो जाता।

एक दिन रात को मैं अपने बिस्तर पर लेटा सोने की कोशिश कर रहा था और नींद का कहीं अता पता नहीं था। मैं करवटें बदल रहा था उस दिन मां की बहुत याद आ रही थी। उनकी कभी ना पूरी होने वाली कमी का बहुत एहसास हो रहा था अचानक मुझे ख्याल आया कि जब मेरी मां इस दुनिया ए फानी से रुखसत हुई थी तब मेरी उम्र पैंतीस साल थी। मुझे एकदम ध्यान आया अरे हमारा किट्टू तो मात्र डेढ़ माह का ही था जब वह अपनी मां से जुदा हुआ। यह सोच कर मेरा दिल भर आया और उसके लिए मन में प्यार उमड़ने लगा और सोचने लगा अब तो हमारा परिवार ही उसका परिवार है। उसका ख्याल हमें ही रखना है ।उसको प्यार की जरूरत है। मैं जो उस से हटा बचा रहता था अब मेरे मन में उसके लिए प्रेम उमड़ आया अब मैं ऑफिस जाते और आते समय उसको देखता बातें करता यहां तक की ऑफिस से घर को फोन करके किट्टू की खैरियत लेता रहता। रात घर आने पर अब किट्टू मेरी गोद में आकर काफी देर तक बैठ जाता।

वक्त गुजर रहा था और यह सिलसिला यूं ही चलता रहा। किट्टू भी अब बड़ा हो गया था। अब उसकी इच्छा बाहर इधर-उधर घूमने की होती तो वह अक्सर छत पर चला जाता वहां छत से होते हुए पड़ोसियों के घर भी चला जाता। सभी पड़ोसी जान गए थे की वह हमारे घर का किट्टू है। किट्टू घर में रहे बाहर सड़क पर न निकले इसके लिए हमेशा घर का मुख्य द्वार बंद रखते लेकिन एक दिन बे ध्यानी से घर का मुख्य द्वार खुला रह गया और किट्टू घर से बाहर चला गया इसी बीच गली के कुत्तों ने उस पर हमला कर दिया । उसकी आवाज सुन मैं बाहर निकला, कुत्तों से उसे छुड़ाया तब तक वह किट्टू को काफी जख्मी कर चुके थे। किट्टू लहूलुहान था वह मेरे पैरों पर आया, सिर रखा और हल्की आवाज से एक बार म्याऊं की आवाज निकाली और हमेशा के लिए सो गया। मैंने उसे उठाया फिर एक कपड़े में रखकर नदी के किनारे ले गया जहां गड्ढा खोदकर उसे दबा दिया। जब मैं उसे दबा कर लौट रहा था तब मेरी आंखों में आंसू थे। घर आकर सबसे पहले मैंने बहुत सख्त लहजे में ताकीद की अब  इस घर में कोई किट्टू नहीं लाया जाएगा क्योंकि जब कोई किट्टू हमेशा के लिए चला जाता है तब उसके जाने का गम भी इंसानों के जाने के गम के बराबर ही होता है।

✍️ इंजीनियर राशिद हुसैन

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष दिग्गज मुरादाबादी के आठ गीत, उन्हीं की हस्तलिपि में ....

 













:::::::प्रस्तुति:::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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