रविवार, 2 जुलाई 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से 2 जुलाई 2023 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में रविवार दो जुलाई 2023 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन मिलन विहार स्थित मिलन धर्मशाला में किया गया। 

      दुष्यंत बाबा द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. महेश दिवाकर ने संदेश दिया - 

दो पल जिनसे भी मिलो, मन में रहे विचार।

 वह दो पल की ज़िंदगी, बन जाए उपहार।।

    मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार ने दोहों से वर्षा का चित्र खींचा - 

सावन में लहरा रहे, ज्वार बाजरा धान। 

परमल, लौकी, तोरई, टिंडे चढ़े मचान।। 

आए बादल झूमकर, पड़ने लगी फुहार। 

मगर टपकाने लग गए, कच्चे बने मकान।।

   विशिष्ट अतिथि के रूप में रामेश्वर वशिष्ठ ने कहा ....

अब नहीं मिलता जग में सरल अन्तःकरण है।

 हर कोई ओढ़े हुए, एक अपना आवरण है।।

वरिष्ठ कवि रामदत्त द्विवेदी का दर्द इन पंक्तियों में झलका - 

नाम देकर के जमाने ने किया हमको अलग। 

वरना हममें और तुममें भेद कुछ होता नहीं। 

एक को हिन्दू बता और दूसरे को मुसलमां, 

कह दिलों में नफरतों के बीज बोता कोई।। 

के. पी. सिंह सरल ने सामाजिक परिस्थितियों का चित्र खींचते हुए कहा - 

माता-पिता से विमुख हो, कभी न करायें प्यार। लिव इन में रहने का चलन, बन्द करें सरकार।।

पद्म सिंह बेचैन की अभिव्यक्ति थी - 

कितने हैं मजबूत इन रिश्तों के धागे। 

पंछी रे तुझ बिन मन नहीं लागे।। 

डॉ. मनोज रस्तोगी ने सावन के संदर्भ में कुछ इस तरह से कहा....

पवन भी नहीं करती शोर। 

वन में नहीं नाचता है मोर। 

नहीं गूंजते हैं घरों में 

अब सावन के गीत। 

खत्म हो गई है अब 

झूलों पर पेंग बढ़ाने की रीत।। 

योगेन्द्र वर्मा व्योम ने अपने दोहों के माध्यम से आह्वान किया - 

मूल्यहीनता से रही, इस सच की मुठभेड़। 

जड़ से जो जुड़़कर जिये, हरे रहे वे पेड़।।

 व्हाट्सएप औ' फेसबुक, ट्वीटर इंस्टाग्राम। 

तन-मन के सुख-चैन को, सबने किया तमाम ।। 

 कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजीव प्रखर ने  दोहों के माध्यम से अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालते हुए कहा - 

फाॅंसे बैठा है मुझे, यह माया का जाल। 

चावल मुझसे छीन लो, आकर अब गोपाल। 

मैंने तेरी याद में, ओ मेरे मनमीत। 

पूजाघर में रख दिए, रचकर अनगिन गीत।। 

दुष्यंत बाबा की अभिव्यक्ति थी - 

भाव टमाटर खा रहे, और पैसे नटवर  लाल। 

भूखे खेत किसान सब, न  चावल न   दाल।। 

 रचना पाठ करते हुए जितेन्द्र जौली ने कहा - 

पापी कमा लेते हैं बहुत नाम देखो। 

सरेराह होता है कत्लेआम देखो।।

हमें नहीं पूछता है कोई दुनिया में, 

लोग गुंडों को करते हैं सलाम देखो। 

  रामदत्त द्विवेदी द्वारा आभार अभिव्यक्त किया गया। 
















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