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बुधवार, 24 जून 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफा की लघु कथा-----अनुभव

                     
रामलाल ने अपनी तीन बीघा जमीन बेचकर बेटे सोहनलाल को नामी यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने शहर भेजा था कि बेटा इंजीनियर बनकर उसका नाम रोशन करेगा और अपना जीवन अच्छे से बिताएगा । सोहन ने भी पिता की इच्छा पूरी करते हुए पढ़ाई की और इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त कर ली जिसे हासिल किये उसे एक वर्ष से अधिक का समय हो गया था अब वह डिग्री लेकर जॉब की तलाश में सारे सारे दिन इधर से उधर जूते घिस रहा था मंगलवार को भी दिन भर का थका मांदा सोहन रात को अपने छोटे से कमरे में आकर सो गया बुधवार की सुबह उठा तो इस उम्मीद के साथ के शायद आज उसकी मेहनत सफल हो जाये। फ्रेश होकर वह चौराहे की ओर चल दिया गुप्ता न्यूज एजंसी से उसने अखबार खरीदा और तेज कदमो से कमरे पर लौट आया। टूटी हुई कुर्सी पर बैठकर वह अखबार के पन्ने पलटने लगा और अखबार के वर्गीकृत विज्ञापन वाले पेज पर वह एक एक विज्ञापन पढ़ने लगा लेकिन उसके मतलब का कोई विज्ञापन उसे नज़र नही आया अंत में नीचे छपे विज्ञापन पर उसकी निगाह पड़ी 'आवश्यकता है इंजीनियर्स की' उसकी आँखे खुशी से चमक उठी .वह गौर से विज्ञापन पढ़ने लगा विज्ञापन में मांगी गई शैक्षिक व प्रशिक्षण योग्यता पर वह खरा उतरता था लेकिन अगले ही पल उसे झटका सा लगा विज्ञापन में नीचे लिखा था 'अनुभव दो वर्ष ' जिसे पढ़कर उसके होंठ भिंच गये गुस्से से उसने बंद किया मुक्का 'ओफ्फो' कहकर सामने पड़ी मेज पर दे मारा और उसके होंठ बुदबुदाने लगे अब इन नीति नियंताओ को कौन बताये के जब बेरोज़गारों को जॉब ही नही मिलेगी तो वे अनुभव कहाँ से लायेंगे मायूसी के साथ उसने आँखे बंद की और कुर्सी की पीठ से सर लगाकर कुर्सी दीवार से टिका दी.

✍️कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'                                         सिरसी (संभल)
9456031926

मंगलवार, 16 जून 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफा की कहानी ------ हाजरा बेगम

                           
हाजरा बेगम  के  घर आज सवेरे से ही काफी चहल पहल थी घर मे झड़ाई, पुछाई, धुलाई चल रही थी घर की स्त्रियां घर को व्यवस्थित करने में लगी थी तो पुरुष बाहर से आने वाले सामान को लाने में लगे थे  लगता था जैसे कोई वी वी आई पी आने वाले है हाजरा बेगम सबको निर्देश देकर काम करा रही थी और सभी उनके निर्देशो के पालन की स्वीकृति में सर हिला रहे थे हाजरा बेगम कह रही थी किसी भी चीज की कमी नही रहनी चाहिये आज सायमा के रिश्ते वाले आ रहे है उनपर अच्छा इम्प्रेशन पड़ना चाहिए उनकी हां में हां मिलाते हुए उनकी सहेली फरीदा बेगम कहने लगीं आखिर सायमा आपकी इकलौती बेटी है चार चार भाईयो की बहन है और फिर बाप की तरह उसके भाई भी कोई मामूली आदमी थोड़ी है एक डॉक्टर दूसरा इंजीनियर तीसरा प्रोफेसर और चौथा बड़ा ठेकेदार है घर मे नौकर चाकर सब है आखिर ऐसे घर की लड़की को कौन पसन्द नही करेगा  मैं तो कहूंगी पिछले महीने जो लड़के वाले सायमा को देखने आए थे उनकी मत मारी गई थी जो मना करके चले गये ऐसे घर तो बड़े नसीब वालो को मिलते है फरीदा बेगम की बात पर हाजरा बेगम ने      हाँ कहकर स्वीकृति में सिर     हिलाया थोड़ी देर में ही एक कार उनके बंगले के सामने रुकी जिसमे से दो पुरुष व दो स्त्रियां नीचे उतरे सबने बड़े तपाक से उनका स्वागत किया उन्हें सजेधजे ड्राईग रूम में बैठाया गया चाय नाश्ते के बाद फरीदा बेगम ने मेहमानों के सामने हाजरा बेगम व उनके घर वालो के कसीदे पढ़ने शुरू कर दिये हाजरा बेगम के शौहर की कितनी आमदनी है बेटे कितने रुतबे वाले है  समाज मे उनका कितना दबदबा है सायमा कितने ऐशो आराम में पली बढ़ी है एक एक कर फरीदा बेगम मेहमानों को बताती रही मेहमान चुपचाप सब सुनते रहे कुछ देर बाद सायमा भी ड्राइंग रूम में आ गई  जीन्स टॉप पहने सायमा ने हाय - हेलो से मेहमानों का अभिवादन किया आधुनिकता में डूबी सायमा पूरी तरह रईसजादी लग रही थी जबकि मेहमानों के साथ आई लड़की पूरी तरह शरीफजादी  लग रही थी  मेहमानों में से उम्र दराज महिला ने बड़ी शालीनता के साथ कहना शुरू किया मेरा नाम आसिया है और यह मेरी बेटी सफिया है मेरे बेटे की डॉक्टरी की पढ़ाई का यह आखरी साल है हम उसके लिये लड़की ढूंढ रहे है जो सुख-दुख में उसका साथ दे सके अपने हाथ से बना दो वक़्त का खाना अपने शौहर को खिला सके आसिया ने कुछेक खानों की रेसिपी सायमा से पूछी तो वो बगले झांकने लगी तभी तपाक से फरीदा बेगम बोली-सायमा अपने बाप की इकलौती बेटी है उसके घर नौकर चाकर है अल्लाह का दिया सब कुछ है उसे कभी किचिन में जाने की जरूरत ही नही पढ़ी बस माँ बाप उसे पढ़ा लिखाकर आला तालीम दिलाना चाहते है जो वो कर रही है फरीदा बेगम चुप हुई तो आसिया  ने कहना शुरू किया  हम मानते है आजकल आला तालीम जरूरी है लेकिन तालीम के साथ साथ लड़कियों को घर गृहस्थी में भी माहिर होना जरूरी है   हमे अपने बेटे के लिये बीवी चाहिये कोई रानी या महारानी नही जिनके नखरे उठाते उठाते हमारा बच्चा बूढा हो जाये फिर हमारे घर भी कोई तंगदस्ती नही है लेकिन हमने अपनी बेटियों को आला तालीम के साथ खाना पकाना सीना- पिरोना सब कुछ सिखाया है कहते हुए आसिया बेगम उठी और अपने साथ आये लोगो के  साथ गाड़ी में जा बैठी हाजरा बेगम ने उनकी ओर हूं कहते हुए मुंह बिसूर लिया फरीदा बेगम भी मेहमानों को खा जाने वाली नजरो से देख रही थी। तभी हाजरा बेगम की बूढ़ी सास बोल पड़ी देख हाजरा, मै न कहती थी  बेटी पराया धन होती है यह शानोशौकत दिखाने के बजाय सायमा को आला तालीम के साथ साथ घर गृहस्थी के काम भी  सिखा ताकि ससुराल जाकर वो अपने घर को जन्नत बना सके।

✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926

गुरुवार, 4 जून 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी------ झूठी शान

                     
बरामदे में  पलंग पर लेटे हुक्का गुड़गुड़ा रहे इकबाल मियां के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी । वह किसी गहरी चिंता में डूबे हुए थे ।उनके सामने कुर्सी पर बैठी उनकी बीवी सफिया उन्हें समझा रही थीं -देखिये पूरे मुल्क में कोरोना की बीमारी फैली हुई है, लॉक डाउन लगा हुआ है ऐसे में  गुलफाम भाई के चालीसवें की फातिहा बड़ी मस्जिद के इमाम साहब को बुलाकर पढ़वा दीजिये। कोई जलसा वगैरा मत कीजिये इससे खर्चा भी बचेगा और हम कानून का पालन करने वाले भी कहलायेंगे । फातेहा में पांच लोग हाथ उठायेंं या पचास।  अल्लाह ताला सब जानता है उसके पास सवाब की कमी थोड़े है वो गुलफाम भाई को भरपूर सवाब देगा फिर हमारे गुलफाम भाई तो वैसे ही खुदा के नेक बन्दे थे। उन्होंने नमाज, रोजा ,हज, जकात वगैरा अल्लाह के किसी भी फरमान में कोताही नही की है और सबसे बढ़कर वह सबके हमदर्द थे। उन्होंने कभी किसी का दिल नही दुखाया। हर किसी की मदद करते थे ऐसे बन्दों से तो अल्लाह वैसे ही खुश रहता है। सफिया की बात सुनकर इकबाल मियां कहने लगे बात तो तुम्हारी ठीक है लेकिन बेगम दीन से दुनिया भारी है। लोग क्या कहेंगे, रिश्तेदार ताने देंगे कि एक ही भाई था उसकी चार बीघा जमीन तो लेली और उनका चालीसवाँ तक सही से नही किया । कहेंगे लॉक डाउन था तो क्या हुआ बाहर वालों को न सही गांव के लोगों को ही बुलाकर फातेहा का खाना कर देते । मीट बंद था तो चिकन तो मिल ही जाता थोड़ा महंगा होता तो क्या गुलफाम भाई की जमीन भी तो मिलेगी ।  मियां की बात सुनकर बीवी सफिया फिर समझाने लगी देखिये लोगो की बातों पर न जाइये लोगो की क्या वह तो खाना खाने के बाद भी बातें बनाएंगे । कोई कहेगा चिकन में नमक कम था तो कोई कहेगा रोटी ठंडी थी  फिर गुलफाम भाई की बीमारी में ही सारा पैसा खतम हो चुका है। उनकी जमीन भी आप साहूकार के पास गिरवीं रखकर उनके इलाज में लगा चुके है । ऐसे में और कर्जा करके  चालीसवें की फातेहा पर बड़ा खाना करना अक्लमंदी नही है लेकिन इकबाल मियां पर तो सफिया की बातों का कुछ असर ही नहीं हुआ। वह अपने तर्क देने लगे कि गांव वाले क्या सोचेंगे । उनके बाप दादा की शान मिट्टी में मिल जाएगी फिर किसी को क्या पता उन पर कितना उधार है। धीरे धीरे सब अदा कर देंगे लेकिन एक बार गई इज्जत बनाने में सालों लग जाते है ।इकबाल मियां अपनी ज़िद पर अड़े रहे और अगली जुमेरात पर उन्होंने बड़े भाई गुलफाम के चालीसवें की फातेहा बड़ी धूमधाम से की। लॉक डाउन के चलते छिपकर एक क्विंटल चिकन मंगाया ।शहर से नानवाई बुलाया ।जलसे के बाद फातेहा हुई और फिर चालीसवें की दावत शुरू हो गई। चालीसवें पर भी लोग दुखी होने के बजाय हँस हँस कर बतिया रहे थे ।तभी सायरन बजाती पुलिस की गाड़ियों ने गांव में प्रवेश किया और लॉक डाउन के उल्लंघन में इकबाल मियां को साथ ले गई। तमाम गांव में चर्चा हो गई कि प्रधानी चुनाव की रंजिश में सरवत खांं ने इकबाल मियांं को पकड़वा दिया। उधर, सफिया माथे पर हाथ रखे बड़बड़ा  रही थी मियां अगर झूठी शान दिखाने में न पड़कर मेरी बात मान लेते तो मुझे यह दिन न देखना पड़ता।

✍️  कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
सिरसी (सम्भल)
9456031926

शुक्रवार, 15 मई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ---पड़ौसी

                                                          अशर्फीलाल और चिरंजीलाल में सुबह -सुबह तू तू मै मै होना कोई नई बात नहीं  थी । अशर्फीलाल का कहना था कि चिरंजी  अपने घर का कूड़ा उसके घर के सामने डाल देता है जबकि चिरंजीलाल का कहना था - वह तो सरकारी सड़क पर कूड़ा डालता है। आये दिन की दोनों की तू तू मै मैं से दोनों परिवार में मन मुटाव चला आ रहा था । 
     अचानक पांच मई को  65 वर्षीय अशर्फीलाल की तबियत खराब होने पर उन्हें पहले मुरादाबाद ले जाया गया और वहाँ से उन्हें मेरठ अस्पताल में रैफर कर दिया गया जहाँ 6 मई को उनकी कोरोना के लिये सैम्पलिंग हुई और 8 मई को उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो उनके सभी परिजनों को स्वास्थ्य विभाग की तरफ से क्वारन्टीन कर दिया गया। 10 मई को उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई । मेरठ में अशर्फीलाल की ससुराल के कई रिश्तेदार थे, जिन्हें मौत की सूचना दी गई लेकिन कोरोना के खौफ के चलते कोई अस्पताल नहीं आया। कल तक जो लोग उनके आगे पीछे रहते थे उन्होंने नये नये बहाने बनाकर अस्पताल आने में अपनी असमर्थता जता दी थी। पड़ौस के गांव से मुंह बोले भतीजे विनोद को जब ताऊ की मौत की खबर मिली तो वह सारी बाधाएं पार करते हुए मेरठ पहुँच गया। उसने ताई सविता से फोन पर वार्ता की तो उन्होंने मेरठ में ही अंतिम संस्कार करने की बात कह दी लेकिन दो जिलों के बीच में अशर्फीलाल का अंतिम संस्कार भी उलझ गया। वह सोच रहा था कोरोना ने रिश्ते नाते तो क्या  संवेदनहीनता का वायरस भी समाज में फैला दिया है । ताऊ के परिजनों से कहकर  बड़ी मिन्नतों के बाद आखिरकार वह ताऊ का शव गांव ले आया। कोरोना व प्रशासन के खौफ़ के कारण गांव में भी लोग सांत्वना तक व्यक्त करने उसके ताऊ के घर नहीं आये । वहीं पड़ोस में चिरंजी लाल की पत्नी रजनी अपने पति व बच्चों को समझा रही थी कि पड़ोस में छोटी मोटी बात होती रहती है लेकिन कोई दुश्मनी थोड़ी हो जाती है। सविता की पूरी फैमिली क्वारन्टीन है ऐसे में पड़ोसी होने के नाते हमारा फर्ज है कि हम अशर्फीलाल का विधि विधान से अंतिम संस्कार कराएं।  अगले ही पल चिरंजीलाल अपने चारों बेटों के साथ पूरी सावधानी बरतते हुए अशर्फीलाल की अर्थी को कान्धा देने पहुँच गये । शमशान की दीवार से सिर टिकाए विनोद अपने ताऊ की चिता को जलते देख रहा था। अचानक उसके मुंह से निकल पड़ा - किसी  ने सच ही कहा है सौ गोती एक पड़ौसी बराबर होता है।

✍️कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा (मुरादाबाद)
सिरसी (सम्भल)
9456031926

गुरुवार, 7 मई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी------बिखरे सपने

     

     सोनू आज गांव भर में सुबह से ही चहकता फिर रहा था घूम घूमकर दोस्तोंं  को बता रहा था कि आज उसके चाचा आ रहे हैंं वह भी उनके साथ मुंबई जायेगा अब वह वहींं रहेगा । उसके चाचा बहुत बड़े आदमी हैंं। उनके पास गाड़ी बंगला सब कुछ है।
  12 साल का किशोर सोनू  नये नये सपने बुनता हुआ बाहर से गांव आने वाले रास्ते पर टकटकी लगाये हुए था कि कब उसके चाचा की कार गांव आयेगी ,उधर उसकी माँ सुबह से ही सोनू के मुंबई जाने को लेकर उदास थी । सोनू के पापा मंगन उसे तसल्ली दे रहे थे कि चंदन के साथ जाने से सोनू का भविष्य उज्ज्वल होगा फिर चंदन उसका सगा चाचा है ,कोई गैर थोड़े ही है और फिर चंदन मुंबई जाकर बहुत बड़ा आदमी बन गया है । बड़ी मुश्किल से उसने सोनू की माँ ममता को इस बात के लिये राजी किया था कि वह सोनू को चंदन के साथ भेज देगी         शाम के पांच बजे चमचमाती हुई एक कार गांव में घुसी तो सबमेंं शोर हो गया देखो पलटन का बेटा चंदन मुम्बई से गांव आया है । बीस बरस बाद वह गांव लौटा था। बड़ा आदमी बनकर उसके पीछे ही उसकी माँ सुखिया व बाप पलटन इस दुनिया से चल बसे थे। चंदन उनकी अर्थी को कान्धा देने तक नहींं आ पाया था।  बीस साल बाद गाँव  आये छोटे भाई चंदन से लिपटकर मंगन की आंखों से आंसुओंं का सैलाब उमड़ पड़ा । गांव वालों ने तसल्ली देकर उसे चंदन से अलग किया । थोड़ी देर में सब कुछ सामान्य होने पर चंदन गांव वालों के सामने अपनी तरक्की और शानो शौकत के किस्से बयान कर रहा था जिसे सुनकर मंगन और सोनू का सीना भी गर्व से चौड़ा हुआ जा रहा था ।
     गांव वालों के जाने के बाद चंदन ने भाई भाभी से सोनू को मोबाइल फोन पर हुई बातचीत के अनुसार साथ ले जाने पर चर्चा शुरू की ।उसने उन्हें यकीन दिलाया कि सोनू को पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बनाएगा ।चाचा की बातेंं सुनकर सोनू भी भविष्य के सपने बुनकर खुशी से फूला नहींं समा रहा था । रातभर वह सुबह के इंतजार में बिस्तर पर करवटें बदलता रहा । सुबह नाश्ते के बाद मुम्बई जाने के लिये चंदन के साथ सोनू जब कार में बैठा तो माँ बाबा के साथ गांव के संगी साथी भी उसे विदा करने आये । सबने उसे शुभकामनाएं दी तो उसने भी कार के शीशे से हाथ बाहर निकाल कर सबका अभिवादन किया ।कार फर्राटा भरती हुई मुम्बई की ओर चली जा रही थी और कार में बैठा हुआ सोनू सुनहरे सपनो में खोया हुआ था। दस घण्टे बाद कार ने मुम्बई में चंदन के बंगले में प्रवेश किया तो वहाँ की भव्यता देख खुशी व हैरत से सोनू की आंखे फटी की फटी रह गई  तभी एक अधनंगी टांगो वाली खूबसूरत महिला दो छोटे बच्चो के साथ सामने आई । चंदन ने हैलो डार्लिंग कहकर उसकी ओर देखा। सोनू समझ गया कि यह उसकी चाची हैंं । उसने नमस्ते कहते हुए पैर छूने के लिए उनकी ओर हाथ बढ़ाये, तो ठीक है .... ठीक है, कहते हुए वह महिला पीछे हट गई । रात होने वाली थी चंदन ने खाने के बाद सोनू को दरी और चादर देते हुए कहा कि तुम यहींं हमारे कमरे के बाहर बरामदे में सो जाना। सोनू चादर बिछाकर लेट गया और अंदर कमरे में चंदन पत्नी व  बच्चोंं को  लेकर चला गया। सोनू अब भी भविष्य के सपने बुन रहा था। नींद उसकी आँखों से कोसोंं दूर थी तभी उसे अंदर कमरे से खुसर पुसर की आवाज सुनाई दी। उसने उनकी ओर ध्यान लगाया। चाचा चाची आपस मेंं बात कर रहे थे। कौतूहल पूर्वक उसने उनकी बातों की ओर कान लगा दिये। चंदन की पत्नी उससे कह रही थी आखिर तुम अपने भतीजे को ले ही आये । अगले ही पल चंदन का जवाब सुनकर सोनू को जैसे जोर का करंट लगा ।चंदन पत्नी से कह रहा था - हाँ डार्लिग,  नौकर आजकल मिलते ही कहांं है और फिर अनजान होते हैंं ।हम अपने बच्चोंं को उनपर कैसे छोड़ सकते हैंं । सोनू तो मेरा भतीजा है फिर यह भागकर जायेगा भी कहांं .... कहकर दोनों ठहाका लगाने लगे और सोनू ने यहां आने के जो सपने बुने थे वह एक एक कर बिखरने लगे।

   ✍️कमाल जैदी" वफ़ा"
प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा मुरादाबाद
सिरसी(सम्भल)
मोबाइल फोन नंबर 9456031926